
विनोद कुमार विक्की
युद्ध से कभी भी शांति की कल्पना नहीं की जा सकती। युद्ध जान-माल एवं मानवता के लिए हमेशा ही नुकसान दायक रहा है। पाक की कायराना आतंकी कार्रवाई के विरुद्ध 7 मई को भारत द्वारा जारी ऑपरेशन सिंदूर साहसिक और राष्ट्र सम्मान के हित में यथोचित कृत्य था। भारत की उक्त कार्रवाई के विरुद्ध बौखलाहट अथवा बहकावे में पाकिस्तान द्वारा 8 मई की रात से लगातार भारत के रिहायशी और सैन्य इलाकों पर ड्रोन से हमला किया गया और सीमावर्ती क्षेत्रों में गोलीबारी जारी रखा। यह और बात है कि हमारी समृद्ध एयर फ़ोर्स ने एस 400 एयर डिफेंस सिस्टम से तमाम हमलों को नाकाम कर दिया, तथापि भारतीय जान-माल के क्षय को नकारा नहीं जा सकता।
क़र्ज़ में कंठ तक डूब चुके विवेक शून्य पाकिस्तान के लिए युद्ध एक अवसर हो सकता है आईएमएफ से कर्ज लेने का, किंतु विवेक शील भारत अपने एक-सौ चालीस करोड़ जनता को युद्ध में झोंकने का पक्षधर नहीं हो सकता। 7-10 मई तक चलने वाले इस द्विपक्षीय कार्रवाई में भारत का टारगेट पाक की आम अवाम की बजाय हमेशा आतंकी संगठन संस्थान अथवा आतंक प्रोत्साहित सैन्य संस्थान रहा, जबकि पाक ने भारतीय जनता और सैन्य संस्थानों को टारगेट कर के हमला किया।
समसामयिक परिदृश्य में वैश्विक स्तर पर घटित होने वाले युद्धों, गृहयुद्ध सहित लगभग पाँच लाख सैन्य क्षति वाले ताजातरीन रुस-यूक्रेन के संघर्ष से बहुत कुछ सीखने और समझने की आवश्यकता है। मानवीय जीवन की क्षति, भूखमरी, गरीबी और लाचारी ऐसे युद्धों की जीवंत तस्वीरें हैं।
विवेक शून्य, संवेदनहीन परमाणु संपन्न राष्ट्र पाक के खिलाफ भारत सरकार द्वारा परिस्थितिजन्य ऑपरेशन सिंदूर रणनीतिक और साहसिक निर्णय था, तो युद्ध जन्य भविष्य की त्रासदी को टालने के लिए सशर्त संघर्ष विराम बुद्धिजीविता की परिचायक भी है।
आतंकी हमलों के दौरान एयरकंडीशंड कमरों में मोबाइल के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पानी पी-पीकर भारत सरकार को कोसने और जवाबी कार्रवाई करने की दुहाई देने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी उपभोक्ता, समाजसेवी एवं साहित्य सेवियों के द्वारा जब 7-9 मई को भारत-पाक के बीच युद्ध की परिस्थितियां बनती दिखाई दी, तो इन्हें दोनों पड़ोसी देशों के जन-धन की हानि और यूरोपीय हथियार बिक्रेताओं के लाभ को लेकर चिंता होने लगी।
10 मई की संध्या से युद्ध विराम की घोषणा पर तथाकथित बुद्धिजीवी एक बार पुनः पीओके, आतंकवाद का पूर्ण खात्मा तथा ब्लूचिस्तान के निर्माण आदि बिंदुओं पर विधवा विलाप करते हुए दिख रहे हैं और सरकार के निर्णय को दोषपूर्ण ठहराते हुए सरकार पर ऊंगली उठा रहे है। ऐसे सोच वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों की सोच से भी युद्ध की परिस्थितियां उत्पन्न होती है, जो कभी बाह्य, तो कभी गृह युद्ध के रूप में देखा और सुना जाता रहा है।
ऐसे बुद्धिजीवियों को युद्ध और युद्ध विराम विषय पर ऊंगली उठाने या राय देने से पूर्व इस तथ्य पर आत्ममंथन करना चाहिए कि आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान से हमारा पूर्व में भी युद्ध हो चुका है। बांग्लादेश का निर्माण भी हुआ।सर्जिकल स्ट्राइक भी हुआ, तो क्या इन युद्धों के बाद परिस्थितियां बदल गई? शक्ति से शांति की स्थापना हुई? क्या सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन नहीं हुआ? इजरायल से अस्सी फीसदी बर्बाद होने के बाद भी हमास द्वारा आतंकी गतिविधियां बंद कर दी गई? क्या वैश्विक स्तर पर आतंकवाद समाप्त हो गया? बिल्कुल नहीं।
सच तो यह है कि आतंकवाद के नाम पर वैश्विक स्तर पर चल रही लड़ाई किसी राष्ट्र या संगठन से नहीं बल्कि एक कट्टरपंथी सोच से है। धर्म की आड़ में विकसित की गई एक ऐसी सोच जो वर्तमान मानवीय जीवन को जीने की बजाय गैर मज़हबी जनसंहार में, मरने-मारने में और मौत के बाद के तथाकथित अय्याश और सुखमय जीवन की कल्पना पर केंद्रित है। क्या इस सोच का खात्मा एक युद्ध से किया जा सकता है? यह विचारणीय विषय है।
बहरहाल विश्व पटल पर संयमित अटल एवं अदम्य शौर्य प्रदर्शन के पश्चात विश्वबंधुता की अस्मिता, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था एवं जनजीवन की सुरक्षा के दृष्टिकोण से विरोधी मुल्क के साथ भारत सरकार द्वारा संघर्ष विराम का निर्णय समय सम्मत एवं न्यायोचित प्रतीत होता है।