सफेद हाथी बन चुके प्रसार भारती का शटर डाउन करने की तैयारी में है केंद्र सरकार !

संदीप ठाकुर

सफेद हाथी बन गए प्रसार भारती काे सरकार बंद कर सकती है। बंद करने का
रास्ता प्रसार भारती के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) शशि शेखर वेम्पति
ने बना दिया है। सूचना व प्रसारण मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के
मुताबिक वेम्पति ने इसे बंद करने की सिफारिश सरकार से की है। सिफारिश से
संबंधित रिपोर्ट आज से छह माह पहले यानी विगत जनवरी में सरकार काे साैंपी
गई है। सरकार में इस पर कई दाैर की बैठक हो चुकी है। वेम्पति का कार्यकाल
गत 8 जून काे समाप्त हो गया। वर्तमान में प्रसार भारती की जिम्मेदारी
अतिरिक्त प्रभार के रूप में दूरदर्शन के डायरेक्टर जनरल मयंक कुमार
अग्रवाल के पास है।वेम्पति, प्रसार भारती के इतिहास में सबसे युवा और
पहले गैर-नौकरशाह सीईओ थे। वेम्पति को जून 2017 में प्रसार भारती का सीईओ
बनाया गया था। फरवरी 2016 से जून 2017 तक वेम्पति प्रसार भारती बोर्ड के
सदस्य भी रहे। जाते जाते वे इसे बंद करने की सिफारिश कर गए हैं।

ऐसा नहीं है कि प्रसार भारती तत्काल बंद हो जाएगा । दरअसल इसे बंद करने
के आखिरी निर्णय तक पहुंचने के लिए सरकार काे एक लंबी प्रक्रिया से
गुजरना हाेगा। प्रसार भारती का गठन 23 नवम्बर, 1997 प्रसारण संबंधी
मुद्दों पर सरकारी प्रसारण संस्थानों को स्वायत्तता देने के मुद्दे पर
संसद में काफी बहस के बाद किया गया था। संसद ने इस सम्बन्ध में 1990 में
एक अधिनियम पारित किया लेकिन इसे अंततः 15 सितंबर 1997 में लागू किया
गया। इसलिए इसे बंद करने के लिए भी संसद से मंजूरी लेनी हाेगी। पता चला
है कि इससे संबंधित बिल सरकार संसद सत्र में पेश कर सकती है। बिल मानसून
सत्र में पेश किया जाएगा या फिर अगले सत्र में,इसका खुलासा फिलहाल नहीं
किया गया है। लेकिन मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक इसे बंद करने का मन
सरकार बना चुकी है। इमरजेंसी में दूरदर्शन और आकाशवाणी के दुरुपयोग की
वजह से इन दोनों संस्थाओं को स्वायत्त बनाने की मांग उठी थी और कई
समितियों और सिफारिशों के बाद 1990 में प्रसार भारती अधिनियम पारित कर
स्वायत्त प्रसार भारती बोर्ड का गठन किया गया । आकाशवाणी और दूरदर्शन को
सूचना और प्रसारण मंत्रालय से हटाकर, बोर्ड के तहत कर दिया गया। लेकिन
अपने गठन के पहले दिन से लेकर आज तक हर तरह से सरकार पर बोझ बना हुआ है।
न ताे यह अपनी कोई स्वतंत्र नीति बना पाया और न ही आर्थिक रूप से अपने
पांव पर खड़ा हो पाया है। उल्टे किसी न किसी मुद्दे पर प्रसार भारती के
अधिकारियों का मंत्रालय से टकराव ही होता रहा है।

संसद में अधिनियम पास कर प्रसार भारती बाेर्ड काे बनाया ताे स्वायत्त गया
था लेकिन यह कभी स्वायत्त संस्था बन नहीं पाई। अधिनियम के तहत कहा गया है
कि तमाम फंड, संपत्तियां ,आकाशवाणी और दूरदर्शन के सभी कर्मचारियों का
बोर्ड को हस्तांतरण किया जाए और भर्ती बोर्ड की स्थापना की जाए जो दोनों
संस्थानों में अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति की व्यवस्था करे।
अधिनियम के चैप्टर 2(4) में यह भी कहा गया है कि प्रसार भारती से जुड़े
सभी मामलों की देखरेख करने, प्रबंधन करने और उनका निर्णय करने का सामान
और अंतिम अधिकार प्रसार भारती बोर्ड के पास ही होगा। लेकिन इससे जुड़े
आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि अपनी स्थापना के ढाई दशक बाद भी आज तक
प्रसार भारती को अधिनियम के अनुसार कर्मचारियों, अधिकार और संपत्ति का
हस्तांतरण नहीं किया गया है। अभी तक अपने बजट के लिए यह सरकार पर ही
निर्भर है। न ही यह स्वतंत्र रूप से अधिकारियों और कर्मचारियों की
नियुक्ति कर सकता है और न ही हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर खरीद सकता है। कुल
मिलाकर प्रसार भारती हर चीज के लिए सरकार का मोहताज है।

प्रसारण मंत्रालय और प्रसार भारती बोर्ड में अंदरूनी तनातनी कम हाेने की
बजाए लगातार बढ़ती ही जा रही है। इसे कुछ पुराने उदाहरणों से समझा जा
सकता है। याद कीजिए प्रसार भारती के तत्कालीन चेयरमैन ए सूर्य प्रकाश और
मंत्रालय के बीच हुई तनातनी के किस्से। जब स्मृति ईरानी सूचना व प्रसारण
मंत्री थीं ताे टकराव अपने चरम पर पहुंच गया था। ए सूर्य प्रकाश ने आरोप
लगाया था कि दूरदर्शन और आकाशवाणी को चलाने के लिए मंत्रालय निर्धारित
धनराशि नहीं देता है। इतना ही नहीं उन्होंने ताे यहां तक कहा था कि
प्रसार भारती को अपने आपातकालीन कोष से कर्मचारियों को वेतन देना पड़ता
है। यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले दिनों में तनख्वाह देने के भी लाले पड़
जाएंगे। दरअसल इस झगड़े की शुरुआत तब हुई जब प्रसार भारती बोर्ड ने एक
निजी कंपनी को गोवा में हुए अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की कवरेज के लिए
करीब तीन करोड़ रुपए का भुगतान करने से मना कर दिया था। बोर्ड का कहना था
कि दूरदर्शन के पास इसके लिए पर्याप्त अनुभव और संसाधन हैं और अब तक
दूरदर्शन ही इसकी कवरेज करता आया है, इसलिए मंत्रालय द्वारा बाहरी फर्म
से कवरेज कराने का औचित्य ही नहीं है। बोर्ड ने टीवी के लिए दो पत्रकारों
को भारी-भरकम वेतन पर लाने की मंत्रालय की कथित सिफारिश को भी ठुकरा दिया
था। बतौर मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रसार भारती में ठेके पर रखे गए सभी
कर्मचारियों को हटाने के लिए कहा था, लेकिन प्रसार भारती ने ऐसा करने से
भी मना कर दिया था। ऐसे और भी कई किस्से हैं। तनातनी आज भी है।
बहरहाल,प्रसार भारती से सरकार पिंड छुड़ाना चाहती है और इसलिए इसके पिंड
दान की तैयारी की जा रही है। लेकिन इसमें वक्त लगेगा।