संजय सक्सेना
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एशिया की सबसे बड़ी इंदिरानगर कालोनी के मानस इंक्लेव में 29 दिसंबर को को एक खतरनाक नजारा देखने को मिला,जो भविष्य के लिये बड़ा संकेत समझा जाये तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा। घटनाक्रम कुछ इस तरह से था कि यहां ठेला जब्त करने गई नगर निगम की टीम पर स्थानीय लोगों ने लाठी-डंडो से हमला बोल दिया। करीब दो सौ की संख्या में एकजुट भीड़ ने लाठी डंडा लेकर नगर निगम के कर्मियों को दौड़ा लिया और कूड़ा प्रबंधन का काम देख रही मेसर्स लखनऊ स्वच्छता अभियान की महिला कर्मी मीनाक्षी की न केवल पिटाई की उसके कपड़े तक फाड़ दिये। इसके अलावा एक अन्य सफाई निरीक्षक विजेता द्विवेदी के साथ भी मारपीट की और उनकी कार पर जानलेवा हमला कर किया।
इतना ही नहीं उतेजित भीड़ ने अन्य निगम कर्मियों को पीटने के साथ ही इनका मोबाइल और पर्स भी छीन लिया गया। यह सब करीब एक घंटे तक चलता रहा।यह सब इंदिरा नगर थाने के बगल में बसी बस्ती में हो रहा था। वैसे तो पूरे घटनाक्रम में कोई बहुत खास बात नजर नहीं आती है,क्योंकि अक्सर अतिक्रमण का विरोध करने वाले हमलावर हो जाते हैं,लेकिन यह हमलावर आम हिन्दुस्तानी नहीं थे,बल्कि यह बांग्लादेशी युवक थे,जो अवैध तरीके से सीमा पार करके यहां आकर बस गये थे और जिन्हें कुछ राजनैतिक दलों का समर्थन मिला हुआ था। अवैध तरीके से बसे बाग्लादेशियों को जब हटाया जाने लगा तो यह चिल्लाने लगे कि यह जमीन चांद बाबू की है जो हर झोपड़ी से पांच सौ रूपये किराया लेता है। आश्चर्य तो यह था कि इनको बिजली के कनेक्शन भी बड़ी आसानी से मिल गये थे।
लखनऊ में अवैध रूप से बसे बांग्लादेशियों को कई बार आपराधिक वारदात में पकड़ा जाता रहा है,लेकिन इतनी बड़ी तादात में एकत्र होकर किसी सरकारी महकमें के कर्मचारियों से इनती बुरी तरह से मारपीट का एक पहला मामला होगा, जो इस बात का भी संकेत है कि समय रहते सरकार नहीं चेती तो यह समस्या दिन पर दिन गंभीर होती जायेगी। बता दें पश्चिम बंगाल के रास्ते घुसपैठ करके आने वाले बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों के लिए यूपी मुफीद ठिकाना है। साल दर साल यूपी में इनकी तादाद बढ़ती जा रही है। पांच वर्ष पूर्व पुलिस ने प्रदेश में अवैध रूप से निवास कर रहे बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों को चिन्हित करने के लिए सर्वे किया था। तब पुलिस ने अनुमान जताया था कि प्रदेश में 12 लाख से ज्यादा बांग्लादेशी और करीब 3 हजार रोहिंग्या नागरिक अवैध रूप से निवास कर रहे हैं। पुलिस अधिकारियों ने दावा किया था कि केवल लखनऊ में ही करीब एक लाख बांग्लादेशी नागरिकों ने अपना ठिकाना बना लिया है।
हालांकि सर्वे के बाद भी इन बंग्लादेशियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी। अधिकतर मामलों में पाया गया कि स्थानीय नेताओं ने ही उनके भारतीय नागरिकता के प्रमाण पत्र जैसे जन्म प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड बनवाने में मदद की थी। इनमें से अधिकतर ने असम के निवासी होने का दावा किया था, जिसकी पड़ताल के लिए पुलिस की टीमें भेजी गई थीं।वर्ष 20213 में एडीजी कानून-व्यवस्था रहे प्रशांत कुमार के निर्देश पर रोहिंग्या नागरिकों की धरपकड़ के लिए कई जिलों में अभियान चलाया जरूर गया था,लेकिन यह किसी अंजाम पर नहीं पहुंच सका था। यहां बंग्लादेशियों के रायबरेली के सलोन से जुडद्यी एक घटना का भी जिक्र जरूरी है। कुछ माह पूर्व इस घटना का खुलासा हुआ था । यहां करीब 20 हजार फर्जी जन्म प्रमाणपत्रों की कड़ियां बांग्लादेशी व रोहिंग्या घुसपैठियों से जुड़ी थी। जांच में यह बात सामने आई थी कि यहां से घुसपैठियों को भारतीय नागरिकता दिलाने का षड्यंत्र चल रहा था। इसके बदले जन सेवा केंद्र (सीएससी) संचालक जीशान खान, सुहेल और रियाज मोटी कमाई कर रहे थे। इसी महीने कर्नाटक पुलिस ने पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के एक संदिग्ध को दबोचा था। उसका जन्म प्रमाणपत्र भी यहीं से बना था। जांच के लिए टीम रायबरेली पहुंची तो धीरे-धीरे पूरा मामला खुलने लगा। पुलिस व प्रशासनिक सूत्रों के तब बताया था कि सलोन से सर्वाधिक अल्पसंख्यकों के ही फर्जी प्रमाणपत्र बनाए गए हैं। इनमें 2023 में मुंबई में पकड़े गए चार बांग्लादेशियों के नाम भी शामिल हैं। इससे पहले जम्मू में भी पकड़े गए कुछ रोहिंग्या के पास यहां बने जन्म प्रमाणपत्र मिले थे।
बहरहाल, लखनऊ के इंदिरागनर में बांग्लादेशियों की गुंडागर्दी के बाद नगर निगम के अधिकारियों की टीम मौके पर पहु़ंच गई और पुलिस व पीएसी को बुला लिया। कई की मौके से पकड़ा गया। महापौर सुषमा खर्कवाल और विधायक ओपी श्रीवास्तव भी मौके पर पहुंचे गए। इसके बाद निजी जमीन पर बसी बस्ती पर को जेसीबी की मदद से उजाड़ दिया गया। कई के खिलाफ इंदिरानगर थाने में मुकदमा भी दर्ज कराया गया है।देखना यह होगा कि आगे सरकार क्या कदम उठाती है। क्योंकि एक तरह से नगर निगम कर्मियों पर हमला करके बांग्लादेशियों ने सरकार को ही चुनौती दे दी है।संभवता इनके मन में खाकी और खादी दोनों का खौफ नहीं रह गया है।