
अम्बिका कुशवाहा अम्बी
हमारे समाज में माता-पिता की भूमिका को लंबे समय तक एक रूढ़िगत दायरे में देखा गया है। पिता को घर का मुखिया, आर्थिक आधार, और अनुशासक माना गया। भारतीय समाज में पिता को अक्सर वह व्यक्ति माना जाता था, जो परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत करता है, लेकिन भावनात्मक रूप से दूरी बनाए रखता है। वही मां की जिम्मेदारी रसोई से लेकर परिवार की सेवा तक घर के अंदर सीमित रखा गया।
भारतीय संस्कृति में माताओं को पूजनीय माना गया, और उनकी मेहनत, त्याग, और बलिदान की गाथाएँ पीढ़ियों से गूँजती रही हैं। हालाँकि, आधुनिक समय में यह परिभाषा तेजी से बदल रही है। आज का पिता न केवल आर्थिक स्तंभ है, बल्कि भावनात्मक समर्थन, लैंगिक समानता का समर्थक, और घरेलू जिम्मेदारियों में सक्रिय भागीदार भी है। वही महिलाएं भी घर से बाहर समाज, राजनीति एवं आर्थिक क्षेत्र में भागीदार बन रही है। फिर भी, इस बदलाव के बीच पिता की उपेक्षा एक हकीकत है।
आधुनिक पिता अब केवल परिवार का आर्थिक रक्षक नहीं है। वह बच्चों का दोस्त, मार्गदर्शक, और भावनात्मक सहारा बन रहा है। वह बच्चों के साथ समय बिताता है, उनकी भावनाओं को समझता है, और उनकी रुचियों को प्रोत्साहित करता है। पिता अब लैंगिक समानता के प्रबल समर्थक भी हैं। वे बेटियों को खेल, विज्ञान, या तकनीक जैसे क्षेत्रों में प्रोत्साहित करते हैं और बेटों को घर के कामों में भाग लेना सिखाते हैं। साथ ही, वे घरेलू जिम्मेदारियों में सक्रिय हैं— खाना बनाने से लेकर बच्चों को स्कूल छोड़ने तक। एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में 62% शहरी पिता घर के कामों में नियमित रूप से योगदान करते हैं। यह बदलाव न केवल परिवारों में समानता को बढ़ावा देता है, बल्कि समाज में भी सकारात्मक प्रभाव डालता है।
हालाँकि पिता की भूमिका में यह सकारात्मक बदलाव आया है, लेकिन उनकी मेहनत और योगदान को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है। भारतीय संस्कृति में माताओं के त्याग और बलिदान की कहानियाँ तो खूब सुनाई जाती हैं, लेकिन पिता के संघर्ष और समर्पण को उतना महत्व नहीं दिया जाता। पिता को परिवार का “मजबूत आधार” मानकर उनकी भावनात्मक और मानसिक जरूरतों को अनदेखा कर दिया जाता है। समाज की यह अपेक्षा कि “पिता को हमेशा मजबूत रहना चाहिए” उनके लिए एक अदृश्य बोझ है। समाज में अवधारणा बनी हुई है कि, जो महिलाएं घर परिवार संभालती है, कड़ी मेहनत सिर्फ वो करती है बाकी मर्द जो कमाकर घर आता है, उनकी मेहनत कम होती है।
भारतीय पिता अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते हैं। “मर्द को दर्द नहीं होता” जैसी रूढ़ियाँ उन्हें अपनी कमजोरियों या तनाव को छिपाने के लिए मजबूर करती हैं। आधुनिक पिता से अपेक्षा की जाती है कि वह न केवल आर्थिक जिम्मेदारियाँ निभाए, बल्कि भावनात्मक रूप से उपलब्ध हो, घर के कामों में मदद करे, और बच्चों की परवरिश में सक्रिय रहे। यह तभी संभव है, जब महिलाएं भी आर्थिक जिम्मेदारी में बराबरी की जिम्मेदार और हिस्सेदार बने।
माताओं की तुलना में पिताओं की मेहनत को कम सराहा जाता है। माँ का त्याग और प्रेम तो कविताओं, गीतों, और सिनेमा में अमर है, लेकिन पिता के संघर्ष को अक्सर सामान्य मान लिया जाता है। फादर डे जैसे अवसर भी मदर डे की तुलना में कम उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। यह असंतुलन पिताओं को यह महसूस कराता है कि उनके योगदान को पर्याप्त महत्व नहीं मिलता।
भारतीय पिता को कानूनी एवं सामाजिक भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है। तलाक या पारिवारिक विवादों में पिताओं को अक्सर बच्चों की कस्टडी या भावनात्मक रिश्ते में कम प्राथमिकता दी जाती है। भारतीय कानून और सामाजिक धारणाएँ माँ को प्राथमिक देखभालकर्ता मानती हैं, जिससे पिता अपने बच्चों से दूर हो सकते हैं। यह उनके लिए भावनात्मक और मानसिक रूप से कष्टकारी होता है।
पिता की उपेक्षा का असर न केवल उन पर, बल्कि परिवार और समाज पर भी पड़ता है। जब पिता की भावनात्मक जरूरतों को अनदेखा किया जाता है, तो वे तनाव, अवसाद, या अलगाव का शिकार हो सकते हैं। इससे परिवार में संवाद की कमी और रिश्तों में तनाव बढ़ सकता है। बच्चे भी पिता के साथ गहरे भावनात्मक रिश्ते से वंचित रह सकते हैं, जो उनके व्यक्तित्व विकास पर असर डालता है। समाज में भी, पिता की अनदेखी लैंगिक रूढ़ियों को और मजबूत करती है, जिससे पुरुषों के लिए अपनी भावनाएँ व्यक्त करना और मुश्किल हो जाता है। फिर भी, समाज में अपनी जगह बनाने का सबसे मजबूत पक्ष पिता होता है।
आज का पिता न केवल परिवार की नींव है, बल्कि भावनात्मक सहारा, लैंगिक समानता का समर्थक, और समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है। हम पिताओं के योगदान को न केवल सराहें, बल्कि उनकी भावनात्मक और मानसिक जरूरतों को भी समझें। एक ऐसा समाज बनाएँ, जहाँ पिता को न केवल “मजबूत” बल्कि “संवेदनशील” और “सम्मान” के रूप में भी देखा जाए। क्योंकि पिता भी उतने ही पूजनीय हैं, जितना कि माँ।