करोड़ पार महिला स्वावलंबन की साख

The credibility of women's self-reliance exceeds crores

प्रेम प्रकाश

जिस दिन औरतों के श्रम का हिसाब होगा, इतिहास की सबसे बड़ी चोरी पकड़ी जाएगी। रोजा लक्जमबर्ग ने भारत की आजादी के तकरीबन ढाई-तीन दशक पहले यह बात कही थी। इसी के साथ विश्व के वैचारिक मंचों पर दुनिया में श्रम, योग्यता और पुरुषार्थ को लेकर लैंगिक पूर्वाग्रह दरकने लगा। समाज विज्ञान से लेकर चिकित्सा क्षेत्र तक महिलाओं की शारीरिक और मानसिक दमखम को लेकर कई महत्वपूर्ण शोध प्रकाशित हुए। पर विकास के साथ समाज रचना में महिलाओं की हिस्सेदारी का सबक तब भी पूरा होना शेष रहा। यही कारण है कि विश्व बैंक से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक ने बार-बार विकास और लोक कल्याणकारी योजनाओं के सर्व-समावेशी होने की दरकार सामने रख रही है। इन तमाम सवालों और सरोकारों के साथ भारत के समकाल और देशकाल को देखना खासा दिलचस्प है।

समाज, राजनीति और लोकतंत्र की बात करें तो देश आपातकाल से पांच दशक आगे निकल चुका है। यह एक संयोग है कि इस वर्ष जब आखिरी विधानसभा चुनाव के रूप में बिहार में नई सरकार चुनी जानी है तो जयप्रकाश आंदोलन के भी पचास वर्ष पूरे हो रहे हैं। ऐतिहासिक रूप से बिहार इस आंदोलन का एक तरह से एपिक सेंटर था। इन पांच दशकों में जरूर गंगा में बहुत पानी पानी बह चुका है, पर समय के इस बहाव के बीच कुछ चीजें स्थिर भी हुई हैं और वे नई मिसालें और मानदंडों के साथ हमारे समय में लोकनीति और विकास को व्याख्यायित कर रही हैं। इस बात की बड़ी अहमियत है कि जिस बिहार में आकर महात्मा गांधी ने सत्याग्रह का अमोघ अस्त्र देश-दुनिया को दिया, आज उस सूबे की धरती पर महिलाओं ने एक बड़ी मूक क्रांति को सच कर दिखाया है। यह क्रांति महिला सशक्तीकरण की इकहरी समझ से आगे कई मायनों में सर्व-समावेशी है और इससे इस प्रदेश की महिलाओं के साथ ग्रामीण इलाकों में विकास और बदलाव का एक सर्वथा नया दौर सामने आया है। इस लिहाज से इन दिनों मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की खासी चर्चा है। आकार के लिहाज से यह देश की ऐसी सबसे बड़ी योजना है, जिसने न सिर्फ सामाजिक बदलाव की जमीन को मजबूत किया है, बल्कि इसे महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन का सर्वथा नया दौर शुरू हुआ है।

गौरतलब है कि बीते 26 सितंबर को जब यह योजना शुरू हुई तो 75 लाख से ज्यादा महिलाओं के बैंक खाते में दस-दस हजार रुपए ट्रांसफर किए गए। इसके कुछ ही दिन बाद 25 लाख और महिलाओं को इसमें जोड़ा गया और उनके भी खाते में पैसे पहुंचे। इस तरह 75 लाख का आंकड़ा देखते-देखते एक करोड़ पर पहुंच गया। राज्य क्या देश के स्तर पर पर भी यह संख्या ऐतिहासिक तौर असाधारण है। महिलाओं को यह राशि स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता के लिए दी जा रही हैं।

वस्तुत: चुनाव से पूर्व होने वाली तमाम तरह की अव्यावहारिक और हवाई घोषणाओं से अलग बिहार सरकार ने कैबिनेट स्तर पर बीते कुछ महीनें में कई अहम फैसले लिए हैं। इस क्रम में जो बड़ा फैसला राज्य सरकार ने किया है, वह है मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना। राज्य सरकार ने इस योजना को प्रदेश की महिलाओं की स्थिति और जरूरत को समझते हुए न सिर्फ फ्रेम किया, बल्कि इसके शीघ्र क्रियान्वयन को लेकर भी वह लगातार गंभीर रही। योजना के तहत जिन महिलाओं को दस हजार रुपए की मदद मिलीहै, उन्हें छह महीने बाद मूल्यांकन पर खरा उतरने पर दो लाख रुपए की अतिरिक्त सहायता दी जाएगी। साफ है कि एक ऐसे दौर में जब मुफ्त की रेवड़ी बांटकर सत्ता में आने का सियासी फार्मूला बढ़-चढ़कर आजमाया जा रहा है, बिहार सरकार की यह योजना महिला सशक्तीकरण और महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन के बड़े लक्ष्य को सामने रखकर आगे बढ़ रही है।

बात महिला सशक्तीकरण की हो रही है तो यह जान लेना जरूरी है बिहार में नीतीश सरकार की सबसे सफल योजनाओं में जीविका है। विश्व बैंक की मदद से वर्ष 2006 में शुरू इस योजना के बूते आज राज्य में एक करोड़ 40 लाख से अधिक महिलाएं 11 लाख स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से जीविका दीदी के रूप में पहचान बना चुकी हैं। ये महिलाएं सिलाई, बुनाई, कृषि, पशुपालन, किराना दुकान, मसाला निर्माण, मधुमक्खी पालन, बकरी पालन जैसे छोटे-छोटे उद्योगों के जरिए न केवल अपनी आमदनी बढ़ा रही हैं, बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे रही हैं। आज की तारीख में जीविका देश में महिला स्वरोजगार का सबसे बड़ा समूह है।

मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना जीविका के ही मॉडल का विस्तृत रूप है। ऐसा इसलिए क्योंकि जीविका स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) से जुड़ी महिलाओं को ही इस योजना का लाभ मिल रहा है। इन महिलाओं को सरकार की आर्थिक मदद स्वरोजगार शुरू करने, छोटे-मोटे बिजनेस शुरू करने या वर्तमान में चल रहे व्यवसायों को बढ़ाने में सहायता के उद्देश्य से दी जा रही है। इससे बड़ी किसी योजना की सफलता और उपयोगिता क्या होगी कि इसके लिए 1.05 करोड़ जीविका दीदियों ने, जबकि 1.40 लाख से अधिक महिलाओं ने समूह से जुड़ने के लिए आवेदन किया।

जो लोग बिहार की राजनीतिक-सामाजिक स्थिति को कम से कम बीते दो दशकों से गौर से देख रहे हैं, वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस विवेक की जरूर दाद देते हैं कि इन वर्षों में उन्होंने सूबे की महिलाओं को सिर्फ मतदाता नहीं रहने दिया, बल्कि उन्हें सामाजिक परिवर्तन की धुरी बनाया। भूले नहीं हैं लोग कि देश में मंडल और कमंडल की राजनीति के अश्वमेध का घोड़ा एक साथ दौड़ा तो बिहार की जनता ने राजनीति से जुड़े सामाजिक सरोकारों का तार्किक चुनाव किया। आज इस बात को लेकर एक बड़ी आम स्वीकृति है कि बीते दो दशक में राजनीतिक स्थिरता के साथ बिहार ने विकास और सामाजिक बदलाव की जो राह पकड़ी है, वो अपनी यात्रा में तो लंबी है ही, देश के सामने परिवर्तन, विकास और राजनीति का एक संतुलित मॉडल भी है। इस मॉडल के नायक निस्संदेह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं, जिनकी मौजूदगी आज प्रदेश में हर राजनीतिक गठजोड़ के लिए अपरिहार्य बनी हुई है। उनकी मौजूदगी एक तरफ सांप्रदायिकता के खिलाफ सद्भाव की राजनीति का आश्वासन है, तो वहीं महिलाओं और अति पिछड़ों के कल्याण को लेकर बीते दो दशक में उन्होंने सफलता की एक लंबी पटकथा लिखी है।

नए विकासवादी अभिप्रायों और लक्ष्यों के साथ बिहार को लेकर इस रूप में चर्चा का आज की तारीख में महत्व इसलिए भी है कि इससे विकास के साथ सामाजिक बदलाव के लक्ष्य को साधने वाली राजनीति की भूमिका नए सिरे से रेखांकित होती है। यह भूमिका हमारा ध्यान उस मूक क्रांति की तरफ ले जाती है जिसके बारे में बीते दो दशक में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से लेकर विश्व मुद्रा कोष तक ने विमर्श और समकालीन नैतिक दरकार के लिहाज से काफी कुछ कहा और लिखा है। यहां तक कि दुनियाभर की सरकारों के बीच कोरोना महामारी के बाद यह नैतिक दरकार उनकी नीतिगत प्राथमिकता की एक बड़ी कसौटी बन चुकी है। बिहार आज इस कसौटी पर खरा उतरता दिख रहा है तो यह देश में राज्यों के नए वर्ग चरित्र का भी उद्घाटन है। इस चरित्र के साथ हम बदलते देश-समाज के साथ राज्यों की नई बन रही पहचान को देख सकते हैं। यह पहचान विकास के साथ सामाजिक बदलाव के ऊंचे लक्ष्य को जिस तरह स्पर्श कर रही है, वह शानदार है। खासतौर पर बिहार के लिए यह गर्व की बात है कि देश में पंचायतीराज व्यवस्था और नगर निकायों में महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण सबसे पहले देने वाले इस सूबे के पास आज महिला स्वावलंबन का अपना मॉडल तो है ही, सुशासन के रूप में नीति और राजकाज का साफ-सुथरा विवेक भी है।