
- राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद मदन राठौड़ के एक अतारांकित प्रश्न के जवाब में केन्द्रीय गृह राज्य मन्त्री नित्यानंद राय का जवाब
- किसी भी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने पर विचार करने के लिए कोई निश्चित मानदंड निर्धारित नहीं इसलिए समय सीमा बताना संभव नहीं !!
नीति गोपेन्द्र भट्ट
नई दिल्ली : भारत सरकार ने इस बात को स्वीकार किया है कि संसद में समय-समय कई भारतीय भाषाओं जिसमें राजस्थानी और भोजपुरी भी सम्मिलित है को मान्यता देने के लिए उन्हें संविधान की आठवी अनुसूची में शामिल करने की माँग उठती रही है । हालाँकि, किसी भी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने पर विचार करने के लिए कोई निश्चित मानदंड और समय सीमा निर्धारित नहीं है।
राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद मदन राठौड़ के एक अतारांकित प्रश्न के जवाब में केन्द्रीय गृह राज्य मन्त्री नित्यानंद राय ने राज्य सभा में लिखित में यह जानकारी दी ।
केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री राय ने कहा कि बोलियों और भाषाओं का विकास एक गतिशील प्रक्रिया है, जो सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास से प्रभावित होती है।उन्होंने कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में किसी भाषा को शामिल करने के मानदण्ड और समय निर्धारित करना बहुत मुश्किल काम है । उस बारे में पूर्व में गठित पाहवा (1996) और सीताकान्त महापात्रा (2003) समितियों ने प्रयास किए थे लेकिन उनकी अनुशंसाओं पर कोई निर्णायक फैसला नहीं हों पाया ।
केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री राय ने बताया कि भारत सरकार विभिन्न भारतीय भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने सम्बन्धी जन भावनाओं का सम्मान करती है लेकिन इस संबंध में कोई मानदण्ड तय नहीं होने से इन्हें संवैधानिक मान्यता दिए जाने की कोई निश्चित समय सीमा नहीं बता सकती । उन्होंने अवगत कराया कि संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए भाषाओं के लिए कोई मानदंड तय करना बहुत मुश्किल है। पाहवा (1996) और सीताकांत महापात्र (2003) समितियों के माध्यम से ऐसे निश्चित मानदंड विकसित करने के पहले किए गए प्रयास अनिर्णायक रहे हैं।
राय ने बताया कि भारत सरकार आठवीं अनुसूची में अन्य भाषाओं को शामिल करने की भावनाओं और आवश्यकताओं के प्रति सचेत है। इन भावनाओं और अन्य प्रासंगिक विचारों को ध्यान में रखते हुए ऐसे अनुरोधों पर विचार किया जाना चाहिए। चूँकि वर्तमान में, संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए किसी भी भाषा के लिए कोई निश्चित मानदंड नहीं हैं, इसलिए संविधान की आठवीं अनुसूची में और अधिक भाषाओं को शामिल करने की माँगों पर विचार करने के लिए कोई समय-सीमा तय नहीं की जा सकती।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में परिकल्पित भारतीय भाषाओं के समग्र और बहु-विषयक विकास के लिए रास्ते तलाशने और सिफारिश करने हेतु ‘भारतीय भाषा समिति’ नामक एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया गया है। समिति का कार्य, अन्य बातों के साथ-साथ, देश के विभिन्न संस्थानों में मौजूदा भाषा शिक्षण और अनुसंधान के पुनरोद्धार और इसके विस्तार से संबंधित सभी मामलों पर केन्द्र सरकार को सलाह देना है।