सोनल मानसिंह की नृत्य और आध्यात्मिक यात्रा का गहराई

The depth of Sonal Mansingh's dance and spiritual journey

सोनल मानसिंह की आत्मकथा: नृत्य और दृढ़ता का संगम

विवेक शुक्ला

भारतीय शास्त्रीय नृत्य की दुनिया में सोनल मानसिंह एक अनमोल रत्न हैं। पद्म विभूषण से सम्मानित, ओडिसी और भरतनाट्यम की महान नृत्यांगना और सांस्कृतिक दूत, सोनल मानसिंह ने अपनी कला से लाखों लोगों का दिल जीता है। उनकी आत्मकथा, ‘एक ज़िगज़ैग मन’, जो अगस्त 2025 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और वितस्ता प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुई, एक सामान्य आत्मकथा नहीं है। यह 208 पेज की यह किताब 26 अध्यायों में उनके जीवन, नृत्य, और आध्यात्मिकता की एक जीवंत कहानी है, जो पाठकों को भारतीय सौंदर्य और पर्यावरण के करीब लाती है।

, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, ने अपने विद्वतापूर्ण प्राक्कथन में लिखा है, “सोनल मानसिंह ने नाट्य, नृत्य और नृत्त को खूबसूरती से समझाया है। नाट्य रस पर आधारित है, नृत्य भावनाओं पर और नृत्त ताल और लय पर। भगवान शिव का सूर्यास्त के समय किया गया नृत्य आनंद की अभिव्यक्ति है, बिना किसी उद्देश्य के।”

सोनल मानसिंह की लेखनी उनके नृत्य की तरह ही है—अप्रत्याशित, भावपूर्ण और गहरी। किताब का शीर्षक, ‘एक ज़िगज़ैग मन’, उनके जीवन दर्शन को दर्शाता है—यह कोई सीधी राह नहीं, बल्कि एक घुमावदार यात्रा है, जिसमें कई मोड़, खोजें और दृढ़ता भरे कदम हैं। वह अपने जीवन को समय के क्रम में नहीं, बल्कि अलग-अलग थीम के माध्यम से प्रस्तुत करती हैं, जो नृत्त की स्वतंत्र भावना को दर्शाता है।

शुरुआती अध्यायों में वह अपनी कला की नींव बताती हैं—“गुरु-शिष्य परंपरा” और “एक शास्त्रीय नृत्यांगना का निर्माण”। वह अपने गुरुओं—प्रो. यू.एस. कृष्ण राव, श्रीमती चंद्रभागा देवी, मैलापुर गौरी अम्मा, वेम्पट्टि चिन्ना सत्यम और केलुचरण महापात्र—को श्रद्धांजलि देती हैं। वह अपनी कठिन साधना का वर्णन करती हैं, जहां पसीने से भरे स्टूडियो में घंटों अभ्यास ने न केवल तकनीक, बल्कि एक दार्शनिक आधार भी बनाया। वह लिखती हैं, “नृत्य सिर्फ हाव-भाव नहीं है; यह रचनात्मकता है, आत्मा और ईश्वर के साथ संवाद है।”

इस किताब को खास बनाता है इसका पर्यावरण और आध्यात्मिक दृष्टिकोण। “यमुना—कृष्ण लीला की साक्षी” और “सप्त नदी” जैसे अध्याय इसे एक काव्यात्मक रचना बनाते हैं। सोनल यमुना को सिर्फ एक प्रदूषित नदी नहीं, बल्कि कृष्ण और राधा की दिव्य प्रेमकथा की साक्षी मानती हैं। वह लिखती हैं, “यमुना मेरी रगों में बहती है, उसकी मंद ध्वनियाँ मेरे अभिनय में उतरती हैं।” यह पर्यावरण संकट के बीच एक पुकार है कि हम अपनी पवित्र नदियों को बचाएँ। “सप्त नदी” अध्याय में वह गंगा, यमुना, सरस्वती और अन्य नदियों को जीवन की लय और हमारी संस्कृति का आधार बताती हैं।

सोनल की कहानी उनकी मुश्किलों से और भी प्रेरक बनती है। 1974 में एक भयानक कार दुर्घटना ने उनके करियर को लगभग खत्म कर दिया था, लेकिन उनकी दृढ़ता और आध्यात्मिक गहराई ने उन्हें आगे बढ़ाया। वह पारिवारिक रूढ़ियों, वैवाहिक चुनौतियों और सामाजिक बाधाओं को पार कर सेंटर फॉर इंडियन क्लासिकल डांस की स्थापना की।

इस किताब की खूबी है सोनल की लेखन शैली—संस्कृत की गहराई और आम बोलचाल का मिश्रण। वह लिखती हैं, “हर साँस एक मुद्रा है, हर धड़कन एक ताल—जब साधारण में अनंत छिपा है, तो असाधारण की खोज क्यों?” उनकी भाषा इतनी सरल और चित्रमय है कि नाट्यशास्त्र से अनजान पाठक भी इसे समझ सकते हैं।

किताब का एक प्रमुख आकर्षण गुरु-शिष्य परंपरा का वर्णन है। सोनल जी भारतीय संस्कृति, साहित्य और आध्यात्मिकता की गहन जानकार हैं। वह महाकाव्यों, विश्व सभ्यताओं और बहुभाषी ज्ञान को अपनी नृत्य कला में समाहित करती हैं। किताब में वह बताती हैं कि कैसे गुरु-शिष्य संबंध भारतीय कला की रीढ़ है। यह परंपरा न केवल ज्ञान का हस्तांतरण है, बल्कि जीवन का सार भी। पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने किताब की चर्चा में कहा, “सोनल जी का जीवन जिद नहीं, बल्कि दृढ़ विश्वास का प्रतीक है। उनके लिए नृत्य महज तकनीक नहीं, बल्कि ध्यान, तपस्या और योग का रूप है।” यह उद्धरण किताब की गहराई को रेखांकित करता है, जहां कला को सामाजिक जागरूकता और पर्यावरण संरक्षण से जोड़ा गया है।

सोनल जी की लेखन शैली सरल लेकिन प्रभावशाली है। वह अपनी जिंदगी के अनोखे पलों को आत्म-प्रकाशन के रूप में पेश करती हैं। किताब में नृत्य की दुनिया के अलावा नदी संस्कृति, कला की धर्मनिरपेक्षता और भारतीय विरासत की बहुस्तरीयता जैसे विषय भी शामिल हैं। वह कहती हैं, “एक कलाकार का माइंड, हृदय और भावनाएं कई परतों से गुजरती हैं, लेकिन सात्विक सार को दर्शकों तक पहुंचाती हैं और उन्हें नए आयामों में ले जाती हैं।” यह वाक्य किताब के शीर्षक की व्याख्या करता है- जैसे पहाड़ों में ट्रेन जिगजैग चलकर मंजिल तक पहुंचती है, वैसे ही कलाकार का सफर स्पष्टता और उद्देश्य की ओर जाता है।

यह किताब आत्मकथा से आगे बढ़कर रचनात्मकता, साहस और भारतीय संस्कृति की कहानी है। यह नृत्य, पर्यावरण और आत्म-खोज का एक प्रेरक मिश्रण है। जो लोग भारतीय विरासत या व्यक्तिगत विकास में रुचि रखते हैं, उनके लिए यह किताब आत्मा को जगाती है। यह साबित करती है कि नृत्य और जीवन एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिसे पूरी लगन से जीना चाहिए।