संदीप ठाकुर
भारतीय राजनीति में भाजपा ने एक नई साेच काे जन्म दिया है। राज्य में
चुनाव जीत सकाे ताे जीताे,नहीं जीत सके ताे वहां जैसे तैसे कर अपनी सरकार
बना लाे। पता नहीं क्याें भाजपा हर चुनाव काे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना
लेती है। उसका लक्ष्य हर हाल में सत्ता हासिल करना होता है। जहां वह हार
जाती है या सत्ता से बाहर हो जाती है वहां वह नतीजे को हजम नहीं कर पाती
और जीती हुई या सत्तारूढ़ हुई पार्टी को लगातार येन केन प्रकारेण अस्थिर
कर वहां काबिज हाे जाती है। भाजपा की ऐसी करतूत के उदाहरण भरे पड़े हैं।
सवाल यह है कि भाजपा काे हार बर्दाश्त क्यों नहीं है ? क्यों हर चुनाव
काे पार्टी अपनी नाक और प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेती है। बदले की भावना
से भरपूर ऐसी राजनीति इस देश में 2014 से पहले नहीं थी। सवाल यह है कि
लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार काे गिरा कर अपनी सरकार बनाना क्या
प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा नहीं है ? क्या भाजपा की यह
हठधर्मिता प्रजातंत्र के लिए घातक नहीं है ?
देश भर के राज्यों पर नजर डालें ताे भाजपा की जनता विरोधी इस करतूत का
नमूना साफ साफ देखने काे मिलता है। शुरुआत देश का राजधानी दिल्ली से करते
हैं क्योंकि सबसे क्लासिक केस दिल्ली का ही है। दिल्ली में भाजपा
लगातार हार रही है। विधानसभा बनने के बाद 1993 के पहले चुनाव में भाजपा
जीती थी। उसके बाद लगातार छह विधानसभा चुनावों में भाजपा हारी है। पिछले
दो चुनावों में तो उसकी दुर्गति हुई है। 2015 के चुनाव में उसे 70 में से
सिर्फ तीन सीटें मिली थीं और 2020 में वह महज आठ सीट जीत पाई। लेकिन
दिल्ली की अनोखी प्रशासकीय संरचना का लाभ उठा कर भाजपा ने लगातार सरकार
को परेशान किए रखा। बाद में तो संसद के कानून बना कर ही केंद्र ने अपने
द्वारा नियुक्त उप राज्यपाल को ही दिल्ली सरकार घोषित कर दिया। इतना ही
नहीं किसी न किसी तरह से राज्य सरकार के कामकाज में केंद्र ने लगातार
दखल बनाए हुए है। दिल्ली में कोई भी व्यवस्था तब तक लागू नहीं हाे सकती
जब तक कि उपराज्यपाल उसे मंजूरी न दे दे। दिल्ली सरकार की नाक में दम
केंद्र ने इसलिए कर रखा है क्योंकि दिल्ली में भाजपा की सरकार नहीं है।
एक एक करके राज्य सरकार के मंत्रियों की धरपकड़ शुरू हुई है। एक मंत्री
सत्येंद्र जैन हवाला के जरिए लेन-देन करने के आरोप में जेल में बंद हैं
तो दूसरे मंत्री मनीष सिसोदिया के यहां शराब नीति को लेकर छापा पड़ा है।
सिसोदिया खुद ही कह रहे हैं कि वे जल्दी ही जेल जा सकते हैं। इस बीच बस
खरीद में कथित घोटाले का हल्ला मचा है, जिसमें कई लोगों की जांच की
संभावना है। राज्य सरकार के अधिकारी लगातार निशाने पर हैं। उप राज्यपाल
ने कई अधिकारियों को निलंबित कर दिया है और कई अधिकारियों के खिलाफ जांच
की सिफारिश की है। इस घटनाक्रम के बीच दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी
पार्टी ने आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार गिराने की कोशिश कर रही है।
मध्य प्रदेश में भी लगातार 15 साल सत्ता में रहने के बाद भाजपा हारी और
सत्ता से बाहर हुई लेकिन उसे न अपनी हार कबूल हुई और न नतीजे हजम हुए।
सो, उसने सरकार को अस्थिर करने का प्रयास जारी रखा और डेढ़ साल बाद ही
कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार गिरा कर अपनी सरकार बना ली। कर्नाटक की
कहानी भी कुछ ऐसी है। 2018 के चुनाव में भाजपा सरकार बनाने लायक बहुमत
हासिल नहीं कर सकी थी और कांग्रेस-जेडीएस ने चुनाव के बाद गठबंधन करके
सरकार बना ली। वहां भी भाजपा ने डेढ़ साल में सरकार गिरा दी और अपनी
सरकार बना ली। पश्चिम बंगाल का मामला गजब का है। याद कीजिए बंगाल के
चुनाव काे। भाजपा ने बंगाल का चुनाव करो या मरो वाले अंदाज में लड़ा था।
ममता बनर्जी की पार्टी के दर्जनों बड़े नेताओं को तोड़ कर भाजपा में
शामिल किया गया था। चुनाव आयोग ने इस तरह से कार्यक्रम बनाया था कि
कोरोना वायरस की दूसरी लहर के पीक समय में भी दो महीने तक चुनाव चलता
रहा। इसके बावजूद भाजपा चुनाव हार गई। आलम यह है कि भाजपा ने अपने सभी
विधायकों और अनेक दूसरे देशों को केंद्रीय सुरक्षा बलों की सुरक्षा दे
रखी है। सत्तारूढ़ दल के नेताओं के खिलाफ लगातार केंद्रीय एजेंसियों के
छापे चल रहे हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करीबी नेताओं के साथ साथ
परिवार के सदस्यों के खिलाफ जांच चल रही है और गिरफ्तारी की तलवार लटकी
है। ममता की पार्टी के अनेक नेता गिरफ्तार हो चुके हैं और भाजपा के नेता
दावा कर रहे हैं कि तीन चौथाई बहुमत वाली ममता बनर्जी की सरकार जल्द ही
गिरा देंगे।
महाराष्ट्र में भाजपा सत्ता से बाहर हुई। चुनाव बाद गठबंधन करके तीन
पार्टियों ने सरकार बनाई। लेकिन नतीजों के बाद से ही पहले तो भाजपा ने
एनसीपी के अजित पवार की मदद से अपनी सरकार बनाई लेकिन वह सरकार चार दिन
में गिर गई। उसके बाद भी भाजपा ने प्रयास नहीं छोड़ा और अंततः ढाई साल के
बाद भाजपा ने महा विकास अघाड़ी की सरकार गिरा दी। चाहे इसके लिए उसे
शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे को सीएम बनाना पड़ा और खुद अपने पूर्व
मुख्यमंत्री को उप मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। इसी तरह मध्य प्रदेश में भी
लगातार 15 साल सत्ता में रहने के बाद भाजपा हारी और सत्ता से बाहर हुई
लेकिन उसे न अपनी हार कबूल हुई और न नतीजे हजम हुए। सो, उसने सरकार को
अस्थिर करने का प्रयास जारी रखा और डेढ़ साल बाद ही कांग्रेस की पूर्ण
बहुमत की सरकार गिरा कर अपनी सरकार बना ली। जब तक उद्धव ठाकरे की सरकार
चली तब तक शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस नेताओं के खिलाफ केंद्रीय
एजेंसियों की जांच चलती रही।
यह कितनी खतरनाक सोच हैं? भाजपा का लक्ष्य हर हाल में सत्ता हासिल करना
होता है और जहां वह हार जाती है या सत्ता से बाहर हो जाती है वहां वह
नतीजे को हजम नहीं कर पाती है। वह जीती हुई या सत्तारूढ़ हुई पार्टी को
लगातार अस्थिर करने की कोशिश करती है, जिससे अराजकता की स्थिति पैदा होती
है। महाराष्ट्र में भाजपा सत्ता से बाहर हुई। चुनाव बाद गठबंधन करके तीन
पार्टियों ने सरकार बनाई। लेकिन नतीजों के बाद से ही पहले तो भाजपा ने
एनसीपी के अजित पवार की मदद से अपनी सरकार बनाई लेकिन वह सरकार चार दिन
में गिर गई। उसके बाद भी भाजपा ने प्रयास नहीं छोड़ा और अंततः ढाई साल के
बाद भाजपा ने महा विकास अघाड़ी की सरकार गिरा दी। चाहे इसके लिए उसे शिव
सेना के बागी एकनाथ शिंदे को सीएम बनाना पड़ा और खुद अपने पूर्व
मुख्यमंत्री को उप मुख्यमंत्री बनाना पड़ा।