असरदार कहानी, दमदार एक्टर और थ्रिलर का कॉकटेल है फिल्म ‘वध’

संदीप ठाकुर

किसी फीचर फिल्म में किसी पत्रिका काे भी अहम किरदार के रूप में पेश किया
जा सकता है ऐसा पहली बार मुझे ” वध ” फिल्म में देखने काे मिला। 2 घंटे
की हिंदी फीचर फिल्म ” वध ” असरदार कहानी, दमदार एक्टर और थ्रिलर का
कॉकटेल है। वर्सटाइल एक्टर संजय मिश्रा उम्र के जिस पड़ाव में हैं वहां
फीचर फिल्म में लीड रोल मिलना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। हालिया
रिलीज फिल्म ” वध” में संजय मिश्रा लीड रोल में हैं। निर्देशक जसपाल
सिंह संधू की ” वध ” एक ऐसे बुजुर्ग दंपती की कहानी है,जहां हीरो और
हीरोइन दोनों ही अधेड़ हैं। संजय मिश्रा ने बूढ़े खुद्दार पिता के दर्द,
आर्थिक परेशानियों और मिस्ट्री वाले एंगल को जिस संजीदगी के साथ पर्दे पर
उकेरा है वह अपने आप लाजवाब है। दूसरी तरफ, नीना गुप्ता ने भी अपने
किरदार के साथ भरपूर न्याय किया है। सादगी भरे मां और राजदार पत्नी के
किरदार को उन्होंने काफी अच्छे से निभाया है। इस फिल्म के स्टाेरी और
स्क्रीनप्ले की खासियत यह है कि कहानी रिश्तों के ताने-बाने में कहीं
उलझती नहीं है। बल्कि सपाट चलती रहती है। यह फिल्म महज अपराध की रोमांचक
कहानी नहीं बल्कि इस बात को भी रेखांकित करती है कि हर माता पिता को अपने
बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए, मगर यह
प्रयास पुत्र मोह में अंधे हो कर न करें.।

फिल्म की कहानी कुछ यूं है। शंभू नाथ मिश्रा (संजय मिश्रा) एक बेहद ही
खुद्दार सेवानिवृत्त स्कूल मास्टर हैं। वे मनोहर कहानियों के बेहद शौकीन
हैं। शंभूनाथ की पत्नी मंजू मिश्रा (नीना गुप्ता) घुटनों की बीमारी से
पीड़ित है। यह दंपती विदेश में बेटे दिवाकर मिश्रा उर्फ गुड्डू (दिवाकर
कुमार) की उच्च शिक्षा और उसे सेटल करने के लिए स्थानीय गुंडे प्रजापति
पांडे (सौरभ सचदेवा) से मोटे ब्याज पर एक बड़ी रकम उधार लेता है। पांडे जब
भी वसूली के लिए आता है, ब्राह्मण परिवार के घर न केवल शराब और मांस लाकर
उसका सेवन करता है बल्कि लड़कियों को लाकर अय्याशी भी करता है। प्रताड़ित
शंभूनाथ मजबूरी से अपमान के घूंट पीकर रह जाता है। पांडे से अपमानित होने
वाला शंभूनाथ विदेश में बस चुके बेटे गुड्डू की घोर उपेक्षा का शिकार भी
होता है। मगर इसके बावजूद जिंदगी से शिकवा नहीं रखता। अपनी पत्नी से
प्रेम करता है, पड़ोस के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता है, मगर एक दिन हालात ऐसे
बनते हैं कि उसके सब्र का बांध टूट जाता है और फिर हाेता है वध…. किसका
…? मिश्रा परिवार जुर्म का इकरार भी कर लेता है। मिश्रा परिवार क्या
फंस जाता है या बच जाता है ? इस परिवार का आखिर होता क्या है ? यही फ़िल्म
क़ि आगे की कहानी है। यह जानने लिए आपको हॉल तक जाना चाहिए। कहानी में
फ्रेशनेस है लेकिन रोमांच की कमी है। फिल्म काे पहले हाफ में कसने के साथ
साथ फ्लो को और बेहतर बनाया जा सकता था। फिल्म में गाना न डाल निर्देशक
ले समझदारी का परिचय दिया है। संजय मिश्रा की पहचान हास्य कलाकार के रूप
में रही है। लेकिन फिल्म ‘आंखों देखी’ से उनके अभिनय का एक नया आयाम
लोगों के सामने आया। उसके बाद कड़वी हवा, ‘कांचली’,‘होली काउ’ जैसी कई
फिल्मों में उनके अभिनय को काफी सराहा गया। इसी क्रम में फिल्म ‘वध’ में
वह अपने अभिनय को एक नया आयाम, नई ऊंचाइयां प्रदान करते दिख रहे हैं।
मंजू मिश्रा के किरदार में नीना गुप्ता के हिस्से कम संवाद आए हैं, मगर
उनका अभिनय गजब का है। प्रजापति पांडे के किरदार में सौरभ सचदेवा प्रभावी
रहे हैं। भ्रष्ट पुलिस अफसर शक्ति सिंह के किरदार में मानव विज अपनी
पहचान छोड़ जाते हैं। कुल मिलाकर यदि आपको सस्पेंस पसंद है और उम्दा
एक्टिंग देखना चाहते हैं तो यह फिल्म आपके लिए है।

निर्माता…लव रंजन, अंकुर गर्ग,जतिन चौधरी,मयंक जौहरी,नीरज रुहिल

लेखक व निर्देशक… जसपाल सिंह संधू व राजीव बरनवाल

कलाकार…संजय मिश्रा, नीना गुप्ता, मानव विज,सौरभ सचदेवा, दिवाकर कुमार,
तान्या लाल, उमेश कौशिक अभितोष सिंह राजपूत व अन्य

अवधि... दो घंटे