
6 सितम्बर की रात निकलेगा 25 से अधिक चलित झंकियों का कारवां
सेंधवा (नरेंद्र तिवारी) बड़वानी जिले के सबसे बड़े शहर सेंधवा में गणेश उत्सव इतिहास काफ़ी पुराना है। यह उत्सव शहर और क्षेत्र के निवासियों का सबसे बड़ा सांस्कृतिक उत्सव बन गया है। शनिवार की रातभर शहर की सड़को पर झिलमिलाती झांकियों का काफिला ढ़ोल ताशो और डीजे की धुन पर थिरकने को तैयार रहेगा। समय के साथ उत्सव में काफ़ी बदलाव होते जा रहे है। अनंत चतुर्थी का यह चल समारोह शहर के क्लाकारों, करतबबाजो, पहलवानो को अपनी कला के प्रदर्शन का अवसर प्रदान करता था। गणेश उत्सव और चल समारोह ने शहर के कई नामी लोगो के नाम को रोशन किया।
शहर के 74 वर्षीय सामजिक कार्यकर्ता बद्री प्रसाद शर्मा के अनुसार सेंधवा में गणेश उत्सव की शुरुवात काफ़ी पुरानी है उनकी स्मृति के अनुसार 1960 में रामचंद्र मुकरदम ने गणेश प्रतिमा की स्थापना की थी। उन्होंने बैलगाडी पर सजा कर अनंत चतुर्थी को विसर्जन किया था। इसी दौरान भीमराव लाइन मेन नामक व्यक्ति ने मोतीबाग चौराहे के दाजी भवन पर गणपति जी को वाहन मुसक पर विराजित कर शिव-पार्वती की परिक्रमा की झांकी का प्रदर्शन किया था। बकौल बद्रीप्रसाद शर्मा शहर के सार्वजनिक गणेश उत्सव मंडल की यह शुरुवात मानी जा सकती है। महाराष्ट्र से सटा और इंदौर से 150 किलोमीटर की दुरी पर स्थित इस शहर में इन दोनों ही स्थानों के संस्कृति का प्रभाव पड़ा। इंदौर में मीलों द्वारा चलित झाँकिया निकालने की परम्परा से प्रभावित शहर की तत्कालीन गड्ढे वाली जिनिंग (सत्यम कोटेक्स) के मालिक बसंत अग्रवाल द्वारा स्थानीय जिनिंग मजदूरों एवं व्यापारियों के सहयोग से वर्ष 1961 से नियमित चलित झांकी की शुरुवात की जो कुछ बरसो तक चलती रही। इस परम्परा को हिन्दू समाज सेवा संगठन के बैनर तले खेमराज सेठ मित्तल ने अपने हाथों में लिया। हिन्दूसमाज सेवा संगठन अपनी झांकी में धार्मिक दृश्यों का चित्रण करता था। खेमराज सेठ मित्तल के पुत्र मुकेश मित्तल के अनुसार करीब 70 के दशक में उनके पिता ने हिन्दू समाज सेवा संगठन के बैनर तले चलित झंकियों की आरम्भ किया। झंकियों के निर्माण के लिए नागलवाड़ी के प्रसिद्ध मूर्तिकार उत्तम राठौड़ झंकियों के लिए मूर्तियों का निर्माण करते थै। धामनोद के मांगीलाल पेंटर कलर एवं ब्रश से बेक ग्राउंड बनाते थै। इक बाऱ पुष्कर विमान लम्बे चेसीस पर बना दिया गया जिसके शहर के मुख्य मार्गो से निकलने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा।
झंकियों की इस परम्परा में महाराष्ट्र समाज सेवा संगठन का उदय भी लगभग इसी समय का है। इस संगठन के कलाकार आर्थिक तंगी के दौर में अपने हाथों से मूर्तियों, पोस्टरो और झंकियों को संजाने का कार्य करते थै, इस संगठन द्वारा शहर में कलात्मक झंकियों का प्रदर्शन लम्बे दौर तक किया गया। शुरुवाती दौर में यहां कर्मा सर जो स्वयं इक अध्यापक होकर भी इस झांकी के लिए पेंटिंग करते थै, गोविन्द पेंटर भी इसी संगठन की देन है जो पेशे से चालक थै किंतु अनंत चतुर्थी की चलित झांकी निर्माण के लिए कामकाज छोड़ झांकी निर्माण में जुट जाते थै। हरी चौधरी, हिरामन वारुले अप्पा, बापू डैनी, प्रकाश निकुम्भ, पुरुषोत्तम रावल भी झंकियों में महती भूमिका निभाते थै। गोविन्द शर्मा अपनी जोशीली आवाज में महाराष्ट्र समाज सेवा संगठन की झांकी प्रस्तुतीकरण करते थै। वर्ष 1984 में बनी कालंका माता की झांकी आज भी शहर के लोगो याद है। पालीवाल समाज सेवा संगठन भी इस कढ़ी में जुडा जिन्होंने चलित और स्थाई झांकियों का सिलसिला लम्बे समय तक जारी रखा। इस कढ़ी में जय भवानी एकता संगठन का 1980 दशक में खासे जोश के साथ उतरा जिन्होंने सार्वजनिक गणेश उत्सव मंडल में स्थानीय कलाकारों एवं बाहर से बुलाई चलित झंकियों का निर्माण किया। शंकर सैनी, जयस जैन, सुभाष मित्तल, कालू कामदार, बंसीलाल ठाकरे, मुकेश अग्रवाल सहित अनेको कार्यकर्ता झांकी निर्माण में महती भूमिका निभाते थै। दिनेश गंज दारु गोदाम एकता संगठन जो अब निमाड़ का सबसे बड़ा गणेश उत्सव पांडाल विगत बरसो से बना रहा है। चलित झांकियों में भी भाग लेता था। रम्मू काका, घनश्याम शर्मा, गुल्ली शर्मा, संजय यादव दिनेश गंज की चलित झांकी का प्रतिनिधित्व करते थै। महाराज गकू एकता संगठन, युवा हिन्दू समाज सेवा संगठन, जवाहर गंज मित्र मंडल, आजाद नुककड़, प्रेस नुककड़ मोतिबाग भी समय के साथ उभरने वाले गणेश मंडल है।बद्री प्रसाद शर्मा के अनुसार चल समारोह 1969 तक मौलाना आजाद मार्ग से होता हुआ एबी रोड, गुरुद्वारा मार्ग पर पहुँचता था। किसी भी धार्मिक स्थानों को ढकने की परम्परा नहीं थी। ग़ुलाल का प्रचलन नहीं था। स्थानीय क्लाकारों के ढप (चमड़े से बना बाजा) बजते थै उसी पर लाठिया घुमाई जाती थी अन्य करतब किये जाते थै। अखाड़े सभी संगठन के होते थै। खेमराज सेठ साईकिल से प्रदर्शन करते थै। सुरेश ब्रुसली जो पेशे से चालक थै उन्होंने शहर के चल समारोह में नान चाकू के प्रदर्शन की शुरुवात की थी। मोहन गुर्जर दांतो से साईकिल घुमाने का करतब दिखाते थै। गणेश उत्सव आरम्भ होने के पूर्व अखाड़े अपनी तैयारियां शुरू कर देते थै जिस संगठन का अखाडा अव्वल एवं श्रेष्ट प्रदर्शन करता शहर में उनका नाम होता था। समय के साथ अखाड़ों का लोप होता जा रहा है। ग़ुलाल उड़ाने का प्रचलन बढ़ने से चल समारोह में रूचि कम हो गयी है। डीजे पर फुहड नाच ने भी सांस्कृतिक उत्सव महत्ता को कमजोर किया है। शहर का गणेश उसत्व काफ़ी चर्चित से इस उत्सव से जुड़े अच्छे बुरे अनुभव शहर ने भोगे है। अब भी यह उसत्व शहर का सबसे बड़ा सांस्कृतिक उत्सव है। वर्तमान में जहाँ 10 दिवसीय गणेश उत्सव की परम्परा को दिनेशगंज एकता संगठन संजय यादव के नैतृत्व में विशाल पांडाल के निर्माण के साथ इस परम्परा बखूबी निर्वाह करता आ रहा है। 6 सितम्बर 2025 को शहर में 25 से अधिक झाँकिया धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों के साथ चल समारोह का हिस्सा बनने जा रही है। बरमुड़ा अखाडा एवं अम्बेडर युवा शक्ति अखाडा अपने शानदार करतबो की प्रस्तुति देगा। वहीं श्रीराम मित्र मंडल पुराना बस स्टैंड इक लौटा जल सभी समस्याओ का हल, मौसम चौराहा एकता संगठन संभाजी महाराज, विकास आर्य मित्र मंडल नर्मदा मैय्या, सालासर बालाजी मित्र मंडल महाकाल मंदिर उज्जैन, जय भवानी मित्र मंडल मिशन सिंदूर, बागेश्वर सरकार मित्र मंडल प्रेमानन्द महाराज, संतोषी माता मित्र मंडल लव जिहाद, जवाहर गंज मित्र मंडल कृष्ण लीला, आजाद नुककड़ कृष्ण लीला, विवेक तिवारी मित्र मंडल सीताहरण, किला गेट मित्र मंडल छावा फ़िल्म, हर सिद्धि गणेश मंडल रामेश्वरम, जोगवाडा रोड मित्र मंडल राम केवट विषय पर झाँकियां प्रस्तुत करने जा रहे है। अनंत चतुर्थी का उत्सव हमारी सांस्कृतिक परम्परा को मजबूत करने का अवसर है।