
अशोक भाटिया
गर्भवती महिला को अस्पताल में दाखिल न करने के आरोप में दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल घिरता जा रहा है। इस मामले में अब कांग्रेस ने एसआईटी जांच कराने की मांग की है। कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने पुणे में एक गर्भवती महिला की मौत की जांच एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नेतृत्व में विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने की शुक्रवार को मांग की। दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल तब निशाने पर आया जब उसने मार्च के आखिरी हफ्ते में 10 लाख रुपये की अग्रिम राशि जमा न करने पर गर्भवती महिला तनीषा भिसे को भर्ती करने से कथित तौर पर इनकार कर दिया। बाद में महिला ने जुड़वां बेटियों को जन्म देने के बाद दूसरे अस्पताल में दम तोड़ दिया। घटना की जांच कर रही चार सदस्यीय समिति ने इंगित किया है कि अस्पताल ने धर्मार्थ अस्पतालों पर आपातकालीन मामलों में अग्रिम भुगतान मांगने पर रोक संबंधी नियमों का उल्लंघन किया है।कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘इस प्रकरण की जांच सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नेतृत्व में एसआईटी द्वारा की जानी चाहिए। जिम्मेदार चिकित्सकों और अस्पताल के कर्मचारियों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया जाना चाहिए।”
गौरतलब है कि फरवरी में राज्य सरकार ने पुणे में दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल को लगभग आठ हजार वर्ग फीट जमीन एक रुपये के मामूली वार्षिक किराए पर दी है। इससे पहले अस्पताल के लिए दी गई जमीन भी मामूली किराए पर दी गई थी। अब दी गई जमीन की कीमत मौजूदा बाजार मूल्य पर कम से कम 10 करोड़ रुपये होगी। लेकिन अस्पताल ने इलाज करने से मना कर दिया क्योंकि उसने 10 लाख रुपये का अग्रिम भुगतान नहीं किया और मरीज की मौत हो गई। अगर अस्पताल को इतनी छूट देने के बावजूद इस तरह से इलाज किया जा रहा है तो इसका क्या मतलब है, अस्पतालों को इतनी छूट क्यों दी जानी चाहिए?
दीनानाथ अस्पताल की घटना के बाद सरकार की ओर से तीन जांच समितियां गठित की गई थीं, लेकिन अब तक के अनुभव को देखते हुए सरकार की ओर से बहुत कम बदलाव की उम्मीद क्योकि दो रिपोर्टों में अस्पताल को दोषी ठहराया गया है, जबकि तीसरी रिपोर्ट में लीपापोती की कोशिश की गई है। दावा है कि ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकार इसमें संलिप्त लोगों को बचाने की कोशिश कर रही है।इस मुद्दे पर मंगेशकर परिवार की कथित चुप्पी पर भी सवाल उठाया जा रहा है ।दरअसल इसके बजाय, डॉक्टरों के संघों और सामाजिक संगठनों को संचार गतिविधियों, स्व-नियमन, अविश्वास के माहौल को दूर करने और डॉक्टरों पर हमलों के मामले में पुलिस द्वारा सख्त कार्रवाई करने के लिए एक साथ आना होगा।
दीनानाथ अस्पताल में हुई ताजा घटना के बाद प्रदेशभर से निजी अस्पताल, राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ताओं, सोशल मीडिया आदि पर कड़ी प्रतिक्रिया आई है।लोगों के रिएक्शन से डॉक्टर भी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। यदि इस स्थिति में तेजी से सुधार नहीं किया गया, तो समाज को कई गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। राज्य सरकार और स्थानीय निकायों के स्वास्थ्य विभाग, जो निजी अस्पतालों को विनियमित करने के लिए जिम्मेदार हैं, बुरी तरह विफल रहे हैं, इसलिए डॉक्टरों, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए), सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों को एक साथ लाने और तुरंत एक संवाद प्रक्रिया शुरू करने की तत्काल आवश्यकता है ।
इसके लिए आईएमए के साथ-साथ सामाजिक संगठनों के माध्यम से विभिन्न शहरों में संचार कार्यक्रम और दीर्घकालिक पर्याप्त गतिविधियां शुरू की जा सकेंगी। प्रदेश में बड़ी संख्या में डॉक्टर भी हैं जो सेवा भाव के साथ ईमानदारी से प्रैक्टिस करते हैं। चिकित्सा पेशे में कदाचार को रोकने में ऐसे डॉक्टरों की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। दीनानाथ अस्पताल में मरणासन्न गर्भवती महिला के इलाज में देरी हुई, क्योंकि वह 10 लाख रुपये की एकमुश्त जमा राशि का भुगतान करने में विफल रही। परिजनों का आरोप है कि महिला की मौत हो चुकी है। घटना के चार-पांच दिन बाद सोशल मीडिया पर इसके बारे में लिखा गया। शिवसेना उद्धव ठाकरे समूह की प्रवक्ता सुषमा अंधारे ने उसी के बारे में एक फेसबुक पोस्ट लिखा। विधायक अमित गोरखे का एक वीडियो भी वायरल हुआ था।
ट्रिगर पॉइंट जमा के रूप में 10 लाख रुपये की बड़ी राशि की मांग थी, जब तक कि जमा राशि का भुगतान नहीं किया जाता था, तब तक एक बहुत गर्भवती महिला के लिए इलाज शुरू नहीं किया गया था। महिला विधायक अमित गोरखे के निजी सहायक की पत्नी थी। मंत्रालय से कॉल के बावजूद, महिला का इलाज नहीं किया गया।इसलिए आम लोगों को किस दर्द से गुजरना पड़ता है, यह बताया जाने लगा। सोशल मीडिया पर कड़ी प्रतिक्रिया के बाद पुणे के प्रमुख न्यूज चैनलों के रिपोर्टरों ने दीनानाथ अस्पताल के गेट से लाइव रिपोर्टिंग शुरू कर दी। इसके बाद विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया, जिसके बाद इस मुद्दे ने राज्यव्यापी आकार ले लिया। दीनानाथ अस्पताल की घटना एक अस्पताल तक सीमित नहीं थी, बल्कि सभी निजी अस्पतालों के कदाचार को उजागर करती थी। निजी अस्पतालों से भारी जमा राशि की मांग करना, अत्यधिक बिल वसूलना, अनावश्यक महंगे परीक्षणों को मजबूर करना।यह घटना, जिसके कारण अक्सर अनावश्यक सर्जरी, दवाओं की अत्यधिक कीमतें आदि होती हैं, सुर्खियों में आ गई।
डॉक्टरों के संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पुणे चैप्टर ने इस संबंध में एक बयान जारी कर कहा कि दीनानाथ की घटना के बाद डॉक्टरों में असुरक्षा और भय का माहौल था। इसने यह भी आशंका व्यक्त की कि छोटे अस्पताल प्रभावित होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि बिना डिपॉजिट लिए हम इलाज नहीं करा पाएंगे। डॉक्टरों का मुख्य संगठन आईएमए इसमें अहम भूमिका निभा सकता है। संचार के लिए आपको सबसे पहले अपना हाथ उठाना होगा। सबसे पहले, आपको डॉक्टर द्वारा किसी भी गलत काम का समर्थन किए बिना गलती को गलती कहने का साहस होना चाहिए। साथ ही, हमें बड़ी जमा, अनुचित बिलिंग, षड्यंत्र प्रथाओं की मांग के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना होगा। हमें अपने एसोसिएशन के सदस्य डॉक्टरों को निर्देशित करके स्व-नियमन के मार्ग का पालन करना होगा, फिर हमें विभिन्न सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों, स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत करनी होगी। अन्यथा, इस तनावपूर्ण स्थिति में कुछ सकारात्मक बदलाव हो सकते हैं। अगर दोनों पक्ष अतिवादी रुख अपनाते हैं तो आने वाले दिनों में स्थिति बिगड़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।
मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टरों पर हमलों की अक्सर खबरें आती हैं। दीनानाथ की घटना के बाद, भाजपा महिला कार्यकर्ताओं द्वारा डॉ घैसास की मां के अस्पताल में तोड़फोड़ की गई। कुछ प्रदर्शनकारियों ने दीनानाथ अस्पताल के बोर्डों को काला कर दिया, अस्पताल के अधिकारियों पर चिल्लर फेंके। इस तरह के विरोध और हिंसक प्रतिक्रियाओं की सभी तिमाहियों से कड़ी निंदा की जानी चाहिए।यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि समाज को गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि डॉक्टर मरणासन्न बीमार रोगियों का इलाज नहीं कर पाएंगे।
स्वास्थ्य अधिकार एनजीओ लगातार मांग कर रहे हैं कि निजी अस्पतालों को सरकार द्वारा ठीक से विनियमित किया जाए, खासकर कोविड के दौरान, जब अत्यधिक बिलिंग के कई उदाहरण सामने आए, जिसके बाद संशोधित अधिनियम में कुछ महत्वपूर्ण संशोधनों के साथ 14 जनवरी, 2021 को महाराष्ट्र नर्सिंग होम अधिनियम में संशोधन किया गया। रोगी अधिकारों का प्रमाण पत्र और बीएमसी के शिकायत निवारण प्रकोष्ठ के टोल-फ्री नंबर को सामने के क्षेत्र में रखना अनिवार्य कर दिया गया था। हालांकि, कई निजी अस्पताल सामने के क्षेत्रों में रेट शीट लगाने और तदनुसार बिल वसूलने की प्रथा का पालन नहीं कर रहे हैं।
अधिनियम में गंभीर रोगियों के तत्काल उपचार, उनसे जमा राशि की मांग नहीं करने, बिलों का भुगतान न करने के कारण निकायों को नहीं रोकने, रोगियों को समय-समय पर उनकी बीमारी के बारे में सभी जानकारी प्रदान करने, रोगियों को सभी परीक्षण रिपोर्ट और अन्य उपचार दस्तावेज प्रदान करने का प्रावधान है। कानून द्वारा एक शिकायत निवारण प्रकोष्ठ स्थापित करना अनिवार्य है ताकि रिश्तेदार शिकायत कर सकें। शिकायत निवारण प्रकोष्ठ नगर निगम (अधिकार क्षेत्र), जिला परिषद (तालुका स्तर) और सिविल अस्पताल (सभी ग्राम पंचायत) में स्थापित किए जाने की उम्मीद है। यदि भर्ती मरीज के किसी रिश्तेदार द्वारा शिकायत की जाती है, तो इन कोशिकाओं के लिए 24 घंटे के भीतर डिस्चार्ज किए गए रोगी की शिकायतों को सुनना और एक महीने के भीतर फैसला देना अनिवार्य है। हालांकि, सरकार को एक सूची प्रकाशित करनी चाहिए कि राज्य भर में ऐसी कितनी सुनवाई की गई। वह संख्या किसी की उंगलियों पर गिनती के करीब भी नहीं आएगी।
कुल मिलाकर लगता है कि सरकार हमारे बनाए नियमों को भूल गई है। निजी अस्पतालों के उचित नियमन न होने के कारण कई समस्याएं हैं। दीनानाथ की घटना के बाद सरकार द्वारा तीन जांच समितियों का गठन किया गया। साथ ही, सरकार वादा कर रही है कि हम ऐसा करेंगे। लेकिन अब तक के अनुभव को देखते हुए सरकार से बहुत बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इसके बजाय, डॉक्टरों के संघों और सामाजिक संगठनों को संवाद गतिविधियों को शुरू करने के लिए एक साथ आना चाहिए। स्वनियमन, अविश्वास का माहौल हटाना, समाज से भी डॉक्टरों के खिलाफ हिंसक प्रतिक्रिया दर्ज होने पर पुलिस प्रशासन द्वारा सख्त कार्रवाई आदि सुधारों को लागू करना होगा।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार