भारतीय चेतना, समता और न्याय के मार्गदर्शक एवं भारतीय संविधान के महान शिल्पकार

The guiding light of Indian consciousness, equality and justice and the great architect of the Indian Constitution

वासुदेव देवनानी

भारत के इतिहास में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनकी विचारधारा, संघर्ष और दृष्टि आने वाली सदियों तक समाज का मार्गदर्शन करती है। डॉ भीमराव राम अम्बेडकर ऐसे ही महामानव थे, जिन्होंने भारतीय समाज को समानता, न्याय और मानवाधिकारों की नई दिशा प्रदान की वरन् वे भारतीय संविधान के महान शिल्पकार थे । 6 दिसंबर 1956 को उनका शरीर भले ही पंचतत्व में विलीन हो गया, परंतु उनकी विचारधारा आज भी भारतीय लोकतंत्र की सबसे मजबूत नींव के रूप में जीवित है। 6 दिसंबर के दिन को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके महान कार्यों को स्मरण करने, उनके विचारों को पुनः समझने और समाज में समता-सम्मान स्थापित करने की दिशा में दृढ़ प्रतिज्ञा लेने का यह पुनीत अवसर है ।

डॉ. अम्बेडकर ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में बौद्ध धर्म अंगीकार किया और लाखों लोगों को सामाजिक सम्मान की दिशा दिखाई। अतः उनके देहावसान को ‘महापरिनिर्वाण’ कहना उनके आध्यात्मिक और सामाजिक पुनर्जागरण के योगदान का सम्मान है। यह दिवस न केवल एक महान नेता के निधन का स्मरण है, बल्कि यह उनके सामाजिक क्रांति के संदेशों के पुनर्पाठ करने का भी दिन है। हर वर्ष लाखों लोग मुंबई के दादर स्थित दीक्षाभूमि पर उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं। केन्द्र और राज्य सरकारें, सामाजिक संगठन और शैक्षणिक संस्थान भी इस दिन विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

डॉ. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू (मध्य प्रदेश) में हुआ। पिछड़ी जाति में जन्म लेने के कारण बचपन में उन्हें भेदभाव और अपमान का सामना करना पड़ा। स्कूल में उन्हें अलग बैठाया जाता था, पानी भी अलग बर्तन से मिलता था। यही पीड़ा उनके सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष का प्रेरक स्रोत बनी। उच्च शिक्षा के लिए वे अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय और इंग्लैंड के लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स पहुँचे। वहां से उन्होंने अर्थशास्त्र, राजनीति, विधि और समाजशास्त्र में गहन अध्ययन किया। दुनिया के श्रेष्ठ विद्वानों में गिने जाने वाले डॉ अम्बेडकर ने यह सिद्ध किया कि प्रतिभा जन्म नहीं देखती, अवसर मिले तो कोई भी ऊँचाइयों को छू सकता है।

भारतीय संविधान के शिल्पकार

जब स्वतंत्र भारत का संविधान तैयार हो रहा था, तब देश ने जिस व्यक्ति पर सबसे अधिक भरोसा किया वह डॉ. अम्बेडकर थे। संविधान सभा ने 29अगस्त 1947 को उन्हें ड्राफ्टिंग कमेटी का चेयरमैन नियुक्त किया।उन्होंने एक ऐसे संविधान का निर्माण किया जिसमें समानता,स्वतंत्रता,न्याय,बंधुत्व तथा मानवाधिकारों का समन्वय था ।उन्होंने अस्पृश्यता उन्मूलन, सामाजिक न्याय, कानून के समक्ष समानता और अवसर की समानता जैसे प्रावधानों को संविधान का मूल तत्व बनाया। अनुच्छेद 17 के तहत अस्पृश्यता को अपराध घोषित करना, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए विशेष संरक्षण तथा प्रतिनिधित्व के उपाय अम्बेडकर की दूरदर्शिता का परिणाम हैं।अम्बेडकर का मानना था कि “राजनीतिक लोकतंत्र तभी टिक सकता है जब सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र भी स्थापित हो।” यही कारण है कि संविधान में सामाजिक और आर्थिक न्याय का ढांचा स्पष्ट रूप से स्थापित किया गया।

सामाजिक क्रांति के सूत्रधार

डॉ. अम्बेडकर केवल संविधान निर्माता ही नहीं, बल्कि एक महान सामाजिक क्रांतिकारी भी थे। उन्होंने दलितों, वंचितों, महिलाओं और कमजोर वर्गों के अधिकारों के लिए आजीवन संघर्ष किया।उनकी प्रमुख सामाजिक पहलों में कई अभियान शामिल थे जैसे -जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए अभियान,दलितों के लिए शिक्षण संस्थानों में समान अवसर,मंदिर प्रवेश आंदोलन,जल, मंदिर और सामाजिक संसाधनों पर बराबरी का अधिकार तथा ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’ का संदेश आदि शामिल थे । उन्होंने हिंदू कोड बिल के माध्यम से महिलाओं को संपत्ति अधिकार, विवाह एवं तलाक में समान अधिकार देने का ऐतिहासिक प्रयास किया। भले ही उस समय इसे पूर्ण रूप से पारित न किया जा सका, लेकिन बाद में यही प्रयास आधुनिक भारतीय समाज में महिला अधिकारों का आधार बना।

सामाजिक भेदभाव और अन्याय से आहत होकर डॉ. अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर की दीक्षा भूमि में बौद्ध धर्म को अपना कर सामाजिक समता, करुणा और न्याय के नए युग की शुरुआत की। डॉ. अम्बेडकर को अन्य धर्मों को में आने का निमंत्रण भी मिला था लेकिन अन्य धर्मों में जाने के बजाय उन्होंने राष्ट्र भक्ति का सन्देश देते हुए भारतीय संस्कृति से निकले बौद्ध धर्म को अपनाने का निर्णय लेकर देश भक्ति का परिचय दिया । उन्होंने कहा, “मैंने बौद्ध धर्म इसलिए अपनाया है ताकि जिन बंधनों ने मुझे अपमानित किया, उनसे मेरे समाज की मुक्ति हो सके।”बौद्ध धर्म उनके लिए केवल धार्मिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि यह सामाजिक आत्मसम्मान और बराबरी का आंदोलन भी था। उनके साथ लाखों लोगों ने सामूहिक रूप से बौद्ध दीक्षा ग्रहण की, जिसे भारत के सबसे बड़े सामाजिक सुधार आंदोलनों में गिना जाता है।

अम्बेडकर के विचारों की प्रासंगिकता

डॉ. अम्बेडकर की विचारधारा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।जब समाज में समानता की बात होती है,जब कमजोर वर्गों के अधिकारों की चर्चा होती है,जब संविधान की गरिमा का प्रश्न उठता है,तब डॉ. अम्बेडकर की याद स्वतः आ जाती है। वर्तमान डिजिटल युग, आर्थिक प्रगति और नई सामाजिक चुनौतियों के बीच भी अम्बेडकर का संदेश पथ-प्रदर्शक है। वे कहते थे—“मेरा जीवन संघर्षों की कहानी है, लेकिन मेरा संघर्ष समाज के लिए है।”

डॉ. अम्बेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि समानता और सम्मान प्रत्येक नागरिक का अधिकार है।भेदभाव और असमानता से मुक्त समाज ही वास्तविक लोकतंत्र है।संविधान सर्वोच्च है, और उसकी मूल भावना की रक्षा हम सबकी जिम्मेदारी है।शिक्षा, संगठन और संघर्ष इन तीन सिद्धांतों को जीवन में उतारकर ही समाज उन्नति कर सकता है।सामाजिक समरसता, मानवीय संवेदना और करुणा ही राष्ट्र निर्माण की असली शक्ति है।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस एक महान विद्वान, संवैधानिक विशेषज्ञ, समाज सुधारक, अर्थशास्त्री और मानवतावादी के प्रति कृतज्ञता का दिन है। डॉ. अम्बेडकर ने भारतीय समाज को वह दिशा दी जिसके बिना आधुनिक भारत की कल्पना ही अधूरी होती। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी शिक्षा, दृढ़ इच्छाशक्ति और मानवीय मूल्यों के साथ यदि कोई व्यक्ति काम करे, तो वह करोड़ों लोगों के जीवन में उजाला ला सकता है।डॉ अम्बेडकर के विचार, उनका साहस और उनका योगदान सदियों तक भारत को न्याय, समानता और प्रगति की ओर अग्रसर करते रहेंगे। यही उनके महापरिनिर्वाण दिवस पर उन्हें वास्तविक श्रद्धांजलि है।

(लेखक वासुदेव देवनानी राजस्थान विधानसभा के माननीय अध्यक्ष है)