हिजाब विवाद : क्रिया से ख़तरनाक प्रतिक्रिया

The Hijab Controversy: Dangerous Reactions from Actions

निर्मल रानी

देश में पिछले दिनों उस समय हिजाब को लेकर फिर एक बहस छिड़ गयी जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गत 15 दिसंबर को पटना में एक सरकारी कार्यक्रम में नव नियुक्त आयुष डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र वितरित करते समय एक मुस्लिम महिला डॉक्टर नुसरत परवीन जोकि चेहरा ढंकने वाला हिजाब पहने हुई थीं, का हिजाब सार्वजनिक मंच से उसके चेहरे से खींच कर उतारने की कोशिश की। उस समय डॉक्टर नुसरत परवीन स्टेज पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों नियुक्ति पत्र ग्रहण करने हेतु आमंत्रित की गयी थी। इस घटना ने वहां मौजूद सभी लोगों को स्तब्ध कर दिया। इस घटना से संबंधित वायरल वीडीओ में देखा जा सकता है कि घटना के समय जहाँ डॉक्टर नुसरत असहज दिखीं वहीं उसी मंच पर मौजूद बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी न केवल घटना से हतप्रभ नज़र आये बल्कि उन्होंने नीतीश की ओर हाथ बढ़ाते हुये उन्हें हिजाब खींचने से रोकने की कोशिश भी की। जबकि उसी मंच पर मौजूद कुछ लोग हंसते हुये भी दिखायी दिये। इस घटना से एक बात तो साबित हो ही गयी कि नितीश कुमार जैसे अनुभवी राजनेता लगभग 75 वर्ष की आयु तक पहुँचने के बाद अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं। इसी वजह से वे पहले भी महिलाओं को लेकर की गयी एक अत्यंत अभद्र टिप्पणी के लिये आलोचना का पात्र बन चुके हैं। कभी कभी सार्वजनिक मंचों पर उनकी बेतुकी बातें व उनकी असामान्य हरकतें भी यही संकेत देती कि अब वे उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच चुके हैं जहां उन्हें सार्वजनिक सक्रिय राजनैतिक जीवन से सन्यास ले लेना चाहिये।
परन्तु इस घटना के बाद जिस तरह से इसे परिभाषित करने की कोशिश की गयी वह और भी हैरान करने वाली बात थी। हिजाब खींचने की बहस को नितीश कुमार की मनोदशा से जोड़कर देखने के बजाये हिजाब धारण करने न करने को लेकर ही बहस छिड़ गयी। इस्लाम व मुस्लिम विरोध की राजनीति पर अपनी दुकानें चलाने वाले कुछ नेता तो बेशर्मी की सभी हदें पार करते हुये नितीश कुमार के बचाव में उतर आये। कांग्रेस,आर जे डी व अन्य कई विपक्षी दलों ने इसे महिलाओं और मुस्लिम समुदाय का अपमान बताया। किसी ने नितीश से मुआफ़ी की मांग की तो किसी ने इस्तीफ़ा माँगा। जबकि कुछ ने नीतीश की मानसिक स्थिति पर भी सवाल उठाए। परन्तु इस विषय पर सबसे घटिया,ओछी अपमानजनक प्रतिक्रिया देने वाले दो नेता ऐसे भी हैं जो केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री जैसे संवैधानिक पदों पर बैठकर इस मुद्दे पर ज़हर उगल रहे हैं तथा अपनी अशिष्ट शब्दावली से देश की संवैधानिक मर्यादाओं का मज़ाक़ उड़ा रहे हैं। इनमें नितीश कुमार के हिजाब विवाद पर अपनी पहली प्रतिक्रिया संसद भवन में देने वाले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने नीतीश कुमार का खुलकर बचाव करते हुये कहा कि ‘नितीश ने कुछ भी ग़लत नहीं किया है। नियुक्ति पत्र लेने आए व्यक्ति को चेहरा दिखाना चाहिए। क्या भारत कोई इस्लामिक देश है? एयरपोर्ट, पासपोर्ट या वोटिंग के समय चेहरा दिखाना पड़ता है, तो यहां क्यों नहीं’? जब उनसे सवाल किया गया कि ख़बर है कि महिला डॉक्टर नुसरत परवीन के नौकरी छोड़ने की ख़बर है इस पर गिरिराज सिंह ग़ुस्से में यह कहते सुनाई दिये कि “नौकरी करे या जहन्नुम में जाए”। उनका यह बयान सबसे ज़्यादा विवादित रहा और इसे सांप्रदायिक व अपमानजनक बयान के रूप में देखा गया।

ऐसा ही निम्नस्तरीय बयान उत्तर प्रदेश सरकार में मत्स्य पालन मंत्री संजय निषाद द्वारा दिया गया। उन्होंने भी नीतीश कुमार का समर्थन करते हुये कहा कि “अरे वो भी तो आदमी हैं न… नक़ाब छू दिया तो इतना बवाल? कहीं और छू देते तो क्या हो जाता?” संजय निषाद के इस बयान को भी महिला गरिमा को आहत करने की नज़रों से देखा गया। जे डी यू के नेता व बिहार के अल्पसंख्यक मंत्री ज़मा ख़ान ने नितीश के प्रति अपनी वफ़ादारी का सुबूत देते हुये यह कहा कि यह “पिता जैसा स्नेह” था। तो कुछ मुस्लिम व महिला संगठनों द्वारा इस मामले में एफ़ आई आर दर्ज कराने व कई जगह नितीश के विरुद्ध प्रदर्शन करने व उनका पुतला जलाने की भी ख़बरें हैं। परन्तु सबसे बड़ी चिंता का विषय तो यही है कि इस घटना को लेकर नितीश के मानसिक स्वास्थ पर चर्चा होने के बजाये जिसतरह हिजाब पर ही बहस छेड़ दी गयी और वह भी अपने कुतर्कों के द्वारा, इससे यह साबित होता है कि साम्प्रदायिकता की राजनीति करने वाले मुस्लिम विरोध या इस्लामी प्रतीकों के विरोध का कोई भी अवसर गंवाना नहीं चाहते। अन्यथा किसी केंद्रीय मंत्री के इस बेहूदे कुतर्क का क्या अर्थ कि एयरपोर्ट, पासपोर्ट या वोटिंग के समय चेहरा दिखाना पड़ता है, तो यहां क्यों नहीं? संविधान की शपथ लेने वाले इस केंद्रीय मंत्री गिरिराज को पता नहीं कि एयरपोर्ट, पासपोर्ट या वोटिंग के समय महिला सुरक्षा कर्मियों द्वारा किसी महिला की स्वेच्छा से उसके अपने हाथों से हिजाब या पर्दा हटाने को कहा जाता है न कि नितीश कुमार की तरह बदतमीज़ी से किसी के चेहरे से हिजाब खींचा जाता है ? ऊपर से पीड़िता को ही यह कहना कि वह “नौकरी करे या जहन्नुम में जाए”, इस तरह की शब्दावली देश का एक केंद्रीय मंत्री इस्तेमाल कर रहा है ?

बुर्क़ा पर्दा या हिजाब को लेकर ख़ुद विश्व मुस्लिम जगत में ही बड़ा घमासान है। दुनिया के कई अलग अलग इस्लामी देश अलग अलग तरह के परदे या हिजाब की पैरवी करते रहे हैं। जबकि विश्व का एक बड़ा उदारवादी व प्रगतिशील वर्ग ऐसा भी है जो इस तरह की बंदिशों को ग़ैर ज़रूरी समझता है। कोई इसे इस्लामिक व शरिया से जुड़ी व्यवस्था बताता है तो कोई इसे सामाजिक या भौगोलिक ज़रूरतों का हिस्सा बताता है। कई महिलायें स्वयं इसका विरोध करती हैं तो कई इसे अपनी इस्मत से जोड़कर देखती हैं। परन्तु यहाँ बहस इन विषयों पर नहीं होनी चाहिये बल्कि बहस का विषय नितीश कुमार द्वारा हिजाब को लेकर की गयी उनकी अभद्र क्रिया होनी चाहिये। और इस क्रिया से भी ख़तरनाक उन प्रतिक्रियाओं पर चर्चा होनी चाहिये जोकि उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे मंत्री स्तर के लोगों द्वारा व्यक्त की गयी हैं।