उत्तर प्रदेश में तकनीकी शिक्षा को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा टाटा टेक्नोलॉजीज के साथ ऐतिहासिक करार, तस्वीर बदलेगी

The historic agreement with Tata Technologies will take technical education in Uttar Pradesh to new heights, the picture will change

बृज खंडेलवाल

उत्तर प्रदेश में तकनीकी शिक्षा की तस्वीर लंबे समय से चिंताजनक रही है। राज्य के पॉलिटेक्निक और इंजीनियरिंग कॉलेजों में आधुनिक प्रयोगशालाओं व उपकरणों की कमी और कमजोर प्रशिक्षण स्तर के कारण डिग्री-डिप्लोमा धारक युवा उद्योगों की जरूरतों के अनुरूप कौशल हासिल नहीं कर पाते। शिक्षा और उद्योग के बीच गहराती खाई के चलते लाखों युवा रोजगार की दौड़ में पिछड़ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि व्यावहारिक प्रशिक्षण, आधुनिक बुनियादी ढांचा और उद्योगों से मजबूत तालमेल के बिना यह चुनौती हल नहीं हो सकती।

इस दिशा में योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। टाटा टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (टीटीएल) के साथ हाल ही में हुए ऐतिहासिक समझौते के तहत राज्य के 150 राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) और 121 सरकारी पॉलिटेक्निक्स को अत्याधुनिक तकनीक से लैस किया जाएगा। यह पहल न केवल युवाओं के लिए रोजगार के नए द्वार खोलेगी, बल्कि उत्तर प्रदेश को आर्थिक आत्मनिर्भरता की राह पर ले जाएगी। करीब 6,935.8 करोड़ रुपये की लागत वाली इस महापरियोजना में टाटा टेक्नोलॉजीज 87 प्रतिशत योगदान देगी, जबकि शेष राशि और सिविल ढांचे का खर्च राज्य सरकार वहन करेगी।

परियोजना का पहला चरण 2025-26 तक 50 आईटीआई और 45 पॉलिटेक्निक्स को हाईटेक बनाएगा, जबकि दूसरा चरण 2026 से 2028 तक शेष 100 आईटीआई और 76 पॉलिटेक्निक्स का उन्नयन करेगा। इसका लक्ष्य हर साल 35,000 युवाओं को विश्वस्तरीय प्रशिक्षण देना है। टाटा टेक्नोलॉजीज 11 दीर्घकालिक और 23 अल्पकालिक कोर्स शुरू करेगी, जिनमें रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऑटोमेशन, स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग और ग्रीन एनर्जी जैसे क्षेत्र शामिल होंगे। ये कोर्स टाटा के विशेषज्ञों और प्राविधिक शिक्षा विभाग के प्रशिक्षकों द्वारा संचालित होंगे, साथ ही छात्रों को टाटा समूह सहित राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कंपनियों में ऑन-जॉब ट्रेनिंग और अप्रेंटिसशिप के अवसर मिलेंगे।

इंडस्ट्री कैप्टेंस ने इस करार को ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था के लक्ष्य की दिशा में मील का पत्थर बताया है। यह साझेदारी उत्तर प्रदेश की तकनीकी शिक्षा को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी। टाटा टेक्नोलॉजीज के अधिकारियों ने भी युवाओं को विश्वस्तरीय कौशल प्रदान करने की प्रतिबद्धता जताई, साथ ही इसे राष्ट्र निर्माण की दिशा में एक कदम बताया। सरकार ने स्पष्ट किया कि यह आईटीआई का निजीकरण नहीं, बल्कि एक सहयोगी मॉडल है, जिसमें टाटा तकनीकी उन्नयन और प्रशिक्षण प्रदान करेगी, जबकि प्रशासनिक और वित्तीय जिम्मेदारी राज्य सरकार की रहेगी।

हालांकि, इस महत्वाकांक्षी योजना के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। तीन साल में 271 संस्थानों का उन्नयन एक जटिल लक्ष्य है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षकों की कमी और परियोजना लागत में 5,472 करोड़ से 6,935.8 करोड़ रुपये तक की वृद्धि को लेकर पारदर्शिता के सवाल उठ रहे हैं। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि लागत वृद्धि का औचित्य स्पष्ट हो और सरकारी हिस्सेदारी को 20 प्रतिशत तक बढ़ाने पर विचार किया जाए। साथ ही, कोर्स स्थानीय उद्योगों, जैसे ऑटोमोबाइल, हस्तशिल्प, कृषि प्रौद्योगिकी और ग्रीन एनर्जी, की जरूरतों के अनुरूप हों। त्रैमासिक स्किल ऑडिट, उद्योगों से फीडबैक और डिजिटल स्किलिंग डैशबोर्ड की स्थापना भी जरूरी है।

भारत के अन्य राज्यों में ऐसी साझेदारियों ने उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। मैसूर के उद्योगपति जगन बेंजामिन के मुताबिक कर्नाटक में सिस्को नेटवर्किंग अकादमी ने 150 से अधिक आईटीआई में साइबर सुरक्षा और नेटवर्किंग प्रशिक्षण देकर 50,000 से ज्यादा छात्रों को 85 प्रतिशत प्लेसमेंट दर के साथ रोजगार दिलाया है। तमिलनाडु में श्वाब फाउंडेशन के साथ उद्योग 4.0 केंद्रित प्रशिक्षण और महाराष्ट्र में सीमेंस द्वारा 80 आईटीआई में स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग लैब्स की स्थापना इसके उदाहरण हैं।

एजुकेशनल कंसल्टेंट एन गणेशन के मुताबिक यदि उत्तर प्रदेश में यह परियोजना स्थानीय जरूरतों पर केंद्रित रही और पारदर्शिता बरती गई, तो यह न केवल युवाओं को रोजगार देगी, बल्कि राज्य को तकनीकी और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित होगी।