गोपेन्द्र नाथ भट्ट
राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलने की उम्मीद फिर से जगी है। अब राजस्थानी भाषा को शीघ्र ही संवैधानिक मान्यता मिल सकती है। इसके पीछें राजस्थान के शिक्षा मन्त्री मदन दिलावर की पहल पर राज्य के मुख्य सचिव सुधांश पंत द्वारा केन्द्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन को लिखा गया पत्र बताया जा रहा है जिसमें उन्होंने राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की सिफारिश की है। मुख्य सचिव पंत ने अपने पत्र में केन्द्रीय गृह सचिव को लिखा है कि भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में और भी भाषाओं को सम्मिलित करने एवं वस्तुनिष्ठ मानदंड तैयार करने के लिए सीताकांत महापात्र की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिश में विभिन्न भाषाओं को संवैधानिक दर्जा देने के लिए पात्र बताया गया है। समिति की सिफारिश गृह मंत्रालय में विचाराधीन है लेकिन देश विदेश में दस करोड़ से भी अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली राजस्थानी भाषा को अब तक संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया हैं। मुख्य सचिव ने अपने पत्र में केन्द्र सरकार से आग्रह किया है कि राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में सम्मिलित कराने की कार्यवाही के संबंध में तुरन्त यथोचित आदेश प्रदान किए जाए।
काफ़ी अर्से बाद प्रदेश के मुख्य सचिव द्वारा केन्द्र सरकार को ऐसा पत्र लिखा जाना राजस्थानवासियों के लिए यह एक बड़ी खुशखबरी है। वैसे भी यह राजस्थान का दुर्भाग्य ही है कि राजस्थान विधानसभा द्वारा 25 अगस्त 2003 को सर्वसम्मति से पारित लिए गए संकल्प के बावजूद विगत 21 वर्षों से केन्द्र सरकार के पास यह विषय लंबित पड़ा हुआ है। इस संकल्प में राजस्थान के सभी जिलों में बोली जाने वाली उप भाषाओं को (भारतीय भाषायी सर्वेक्षण एवं प्रमाणिक जनगणना आंकड़ों अनुसार) ‘राजस्थानी’ में समाहित किया हुआ है। संसद के दोनों सदनों राज्य सभा और लोकसभा में प्रदेश के सांसदों एवं राज्य विधानसभा में प्रदेश के विधायकों ने अनेकों बार राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं सूची में सम्मिलित करने की मांग की हैं। इसके अलावा राजस्थान के सभी ज़िलों और देश की राजधानी नई दिल्ली में भी कई बार विशाल धरना एवं प्रदर्शन किए गए हैं तथा समय-समय पर राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, केन्द्रीय गृह मन्त्री और अन्य केन्द्रीय मंत्रियों को ज्ञापन दिये गये हैं। केन्द्र में एनडीए की सरकार आने के बाद भी प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृह मन्त्री अमित शाह सहित लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, केन्द्रीय क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और राजस्थान के सभी सांसद गणों को भी ज्ञापन सौंप कर संसद में राजस्थानी भाषा को मान्यता सम्बन्धी विधेयक पारित कराने का अनुरोध किया गया है। प्रदेश के सांसद गण इस मामले को कई बार संसद में उठा चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी पूर्व में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारत का मान बढ़ाने वाले जोधपुर में जाये जन्मे जस्टिस दलवीर भंडारी को राजस्थानी भाषा को शीघ्र आठवीं सूची में सम्मिलित करने का विश्वास दिलाया था। उसी के अनुसरण में यदि संसद में ‘राजस्थानी भाषा’ को आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करवाने संबंधित विधेयक लाने का निर्णय किया जायें तों वर्षों से लंबित यह मांग पूरी हो सकती है। इसके अभाव में राजस्थान में नई शिक्षा नीति का लाभ भी मातृभाषा राजस्थानी को नही मिल पा रहा है,जबकि केन्द्र सरकार द्वारा पारित राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बच्चों को अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा देने के प्रावधान अनुसार राजस्थानी भाषा को प्रदेश की दूसरी राजभाषा का दर्जा दिये जाने की माँग निरन्तर की जा रही हैं। राजस्थान के मुर्घन्य पत्रकार पदम मेहता ने तो इसे अपने जीवन का अंतिम लक्ष्य बना रखा है और वे हर संसद सत्र में प्रदेश के सांसदों और केन्द्र में शीर्ष पदों पर बैठे हुए विशिष्ठ व्यक्तियों का ध्यान इस ओर आकर्षित करते हैं।
26 जनवरी 1950 को संविधान की आठवीं अनुसूची में प्रारम्भ में जिन चौदह भाषाओं को संवैधानिक मान्यता दी गई थी उसमें असमिया, बंगाली, गुजराती,हिंदी कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल,तेलुगु और उर्दू शामिल थी। इसके पश्चात 1967 में सिंधी,1992 में कोंकणी,मणिपुरी एवं नेपाली और 2004 में बोडो, डोगरी, मेथेली एवं संथाली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था लेकिन उसके बाद किसी भाषा को यह सौभाग्य नहीं मिला है। राजस्थानी भाषा केंद्रीय साहित्य अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त है तथा देश विदेश के विभिन्न महाविद्यालयों, संघ सेवा आयोग और अन्य संस्थाओं ने इसे मान्यता दे रखी है तथा राजस्थान साहित्य के शोध कर्ताओं को जेआरएफ प्रदान की जाती है। साथ ही कुछ राजकीय उच्च माध्यमिक विद्धालयों, महाविद्यालयों और विश्व विध्यालयों में राजस्थानी भाषा के पाठ्यक्रम भी संचालित है। केंद्रीय साहित्य अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त चौबीस भाषाओं में अंग्रेजी को छोड़ कर राजस्थानी ही एक मात्र ऐसी भाषा रह गई है कि जो कि संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने से वंचित है, जबकि जनगणना के प्रमाणिक आंकड़ों के अनुसार आठवीं अनुसूची में अब तक सम्मिलित कुल 22 भाषाओं में से 17 भाषाओं के बोलने वालों की संख्या से राजस्थानी भाषियों की संख्या कहीं अधिक है I केवल हिंदी सहित शेष 5 भाषाओं के बोलने वाले (मातृभाषा लिखाने वाले) राजस्थानी से अधिक है। यही नहीं राजस्थान में हिंदी मातृभाषा लिखाने वालों की अपेक्षा मातृभाषा राजस्थानी लिखाने वाले (वृहद रूप में राजस्थान विधानसभा द्वारा पारित संकल्प की परिभाषा अनुसार) ढाई गुना है। यह एक तथ्य है कि राजस्थान में हिंदी को मातृभाषा लिखाने वालों की अपेक्षा राजस्थानी को मातृभाषा लिखाने वाले ढाई गुना अधिक हैं I यह भी एक ऐतिहासिक सत्य है कि ‘गुजराती’ भाषा भी 14-15वीं शताब्दी तक पश्चिमी राजस्थान (मरु गुर्जरी) का ही एक भाग थी। नरसी मेहता एवं मीरांबाई के पद इसी भाषा में रचित हैं, जो एक समान लगते हैं। हिंदी का आदिकाल राजस्थानी ही है। राजस्थानी, हिंदी, संस्कृत, मराठी, कोंकणी, नेपाली सहित दस भाषाओं की लिपि भी देवनागरी ही है।
राजस्थानी भाषा और संस्कृति प्रचार मंडल के अध्यक्ष और इसरो के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. सुरेंद्र सिंह पोखरणा के अनुसार राजस्थानी भाषा में लगभग ढाई लाख शब्द है और लगभग चार लाख पुस्तके उपलब्ध है। यह बहुत ही समृद्ध भाषा है और ज्ञान का भंडार है। राजस्थान के लोगों की मातृभाषा है। इस भाषा में राजस्थान के महान सपूतो और शूरवीरों की कहानिया है। राजस्थानी भाषा में कई सांस्कृतिक और शुभ प्रसंगो पर गाए जाने वाले लाखो गीतों और भजनो और कहावतों का भंडार हैं। इस ज्ञान भंडार में कई ऐसे विषय भी है जो वर्तमान विश्व की समस्याओ का अचूक समाधान भी दे सकते हैं।
राजस्थानी भाषा को देश-विदेश के भाषाविदों द्वारा एक महान देश प्रेम सिखाने वाली, विपुल शब्द भंडार युक्त, समृद्ध तथा स्वतंत्र भाषा माना गया है जिसके बारे में अनगिनत अकाट्य प्रमाण केन्द्रीय गृह मंत्रालय को समय-समय पर प्रेषित किये हुए हैं। 18 वर्ष पूर्व तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री द्वारा दिनांक 18 दिसम्बर 06 को लोकसभा में सीताकांत महापात्र समिति की सिफारिशों के आधार पर मानदंड निर्धारित करते हुए राजस्थानी एवं भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने संबंधी प्रक्रिया शुरू करने की जानकारी दी गई थी।
राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का मामला देश की चौदह भाषाओं को 1950 में दी गई मान्यता के समय से ही चल रहा है लेकिन आज़ादी के 75 वर्ष के बाद भी यह मामला अधरझूल में अटका पड़ा है जबकि राजस्थान विधानसभा में 21 वर्षों पूर्व 25 अगस्त 2003 को इस सम्बन्ध में सर्व सम्मति से एक संकल्प पारित कर केन्द्र सरकार को एक प्रस्ताव भेज दिया गया था। किसी भी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए विधानसभा से संकल्प पारित कराना एक अनिवार्य शर्त है।
केन्द्र में चाहें कांग्रेस की यूपीए सरकार रही हों अथवा भाजपा की एनडीए सरकार सभी ने संसद में बकाया अधिकारिक बयानों द्वारा राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के आश्वासन दिए हैं, लेकिन अभी तक राजस्थानी भाषा को मान्यता नही मिलना सरकारी उदासीनता ही कही जा सकती है। हालाँकि इसके लिए दलगत राजनीति और प्रदेश में भाषायी आन्दोलन से जुड़ी फिरकेबाजी भी कम ज़िम्मेदार नही है। राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए पिछलें सात दशकों में राजस्थान और दिल्ली में कई बड़े आंदोलन हुए ।साथ ही लोकसभा राज्यसभा और राज्य विधानसभा में पक्ष विपक्ष के अनेको नेताओं अनेक बार व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से आवाज़ उठाई । कई भाषायी संगठनों ने अनेक ज्ञापन भी दिए। राजस्थानी भाषा मान्यता समिति की बेनर तले नई दिल्ली के जंतर मन्तर पर विशाल प्रदर्शन किया गया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ज्ञापन भी दिया गया लेकिन दुर्भाग्य से मान्यता का मामला अभी तक आगे नही बढ़ पाया। देश की संसद में प्रधानमंत्री से लेकर केन्द्रीय गृह मंत्री और अन्य मन्त्रियों ने कई बार मान्यता को लेकर बयान और आश्वासन भी दिये लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात ही रहा है। लाख प्रयासों के बाद भी अपेक्षित नतीजा नही निकलता देख अन्ततःथक हार कर राजस्थानी के साथ भोजपुरी और उत्तर-पूर्व की भोती भाषा को भी जोड़ इनसे जुड़े प्रदेशों के सांसदों ने सामूहिक रूप से भी मान्यता का मामला उठाया तथा संयुक्त रूप से नियोजित प्रयास किए । यह सामूहिक माँग प्रधानमंत्री और गृह मंत्री तक पहुँचाई गई लेकिन उन्हें भी आखिर में निराशा ही हाथ लगी हैं।
ऐसा नही है कि भाजपा के नेताओं ने यह माँग नही उठाई । लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, केन्द्रीय मन्त्री गजेन्द्र सिंह शेखावत,केन्द्रीय विधि और न्याय मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, पूर्व राज्य मन्त्री पी पी चौधरी सहित प्रदेश के सभी पक्ष-विपक्ष के सांसदों ने एक स्वर में कई बार संसद में यह माँग रखी हैं। सांसदों और विधायकों के साथ ही पार्टी नेताओं ने भी विभिन्न मंचों पर इसे उठाया है और प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री को पत्र भी लिखे है।राजस्थान के अनेक संगठनों, साहित्यकारों,भाषा प्रेमियों द्वारा विभिन्न मंचों से इस माँग को नियमित उठाया जा रहा है। सात करोड़ से अधिक राजस्थानवासी बार बार कह रहें है कि और कितनी बार संसद में राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग बुलन्द होगी?
राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने से न केवल राजस्थान के लाखों बेरोज़गार युवकों को रोज़गार मिल सकेगा वरण राजस्थानी भाषा बोलने वाले दस करोड़ से अधिक लोगों की भावनाओं का सम्मान होगा तथा राजस्थानी को उसका भाषाई सम्मान और गौरव भी प्राप्त हो सकेंगा ।देश-विदेश में फैले 10 करोड़ से अधिक राजस्थानियों के मन में मातृभाषा को सम्मान एवं हक नहीं मिलने से बहुत पीड़ा हैं। अत: कई दशकों से लंबित उक्त मांग को पूरी कर ‘राजस्थानी भाषा’ को अपना हक एवं सम्मान दिलाने के लिए केन्द्र सरकार के स्तर पर तत्काल निर्णय लिया जाना अत्यावश्यक है। केन्द्र सरकार को चाहिए कि राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए संसद में तत्काल विधेयक पारित करा राजस्थानी को अपना हक़ और मान सम्मान दिलायें I साथ ही राजस्थानी के साथ भोजपुरी को भी संवैधानिक मान्यता का मामला विचाराधीन है। इस संवेदनशील मामले के समाधान से करोड़ों लोगों का केंद्र के प्रति विशेष कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के प्रति सम्मान बढ़ेगा I
इन सभी तथ्यों के आधार पर अब देखना है कि देश विदेश में दस करोड़ से भी अधिक लोगों की धड़कन राजस्थानी भाषा को संविधानिक मान्यता का सोभाग्य कब मिलेगा?अब यह भी देखना है कि क्या आज़ादी के अमृत काल में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता के साथ अपना गौरव हासिल होगा? साथ ही राजस्थानी को प्रदेश की दूसरी राजभाषा का दर्जा कब तक मिलेगा? यह देखना भी सुखदायी होगा !