
ललित गर्ग
टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली वैश्विक संस्था वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की नई रिपोर्ट में आतंकवादी गतिविधियों में डिजिटल तकनीकों के बढ़ते उपयोग पर चिंता जताई गई है। इस रिपोर्ट ने वैश्विक सुरक्षा के समक्ष एक नई और गहन चुनौती की ओर संकेत करते हुए आतंकवादी गतिविधियों में डिजिटल तकनीकों के बढ़ते प्रयोग को गहन चिन्ताजनक बताया है। रिपोर्ट में ई-कॉमर्स, ऑनलाइन भुगतान, सोशल मीडिया, क्रिप्टोकरेंसी और डार्कनेट जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण और संचालन के बढ़ते खतरे पर न केवल प्रकाश डाला गया है बल्कि गंभीर चिंता जताई गई है। रिपोर्ट ने आतंकवाद के एक अलग ही पहलू की ओर ध्यान खींचा है। इसमें बताया गया है कि टेक्नॉलजी तक आतंकी संगठनों की आसान पहुंच उन्हें और खतरनाक बना रही है। इससे निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर नई रणनीति एवं नियंत्रण नीति की जरूरत है। विशेष रूप से पाकिस्तान जैसे देशों में पलने-बढ़ने वाले आतंकी संगठन इन तकनीकों का उपयोग कर न केवल फंडिंग जुटा रहे हैं, बल्कि गोपनीयता और पहुँच के नए मार्ग भी तलाश रहे हैं। इसके अलावा, आतंकवादी संगठन अब विकेंद्रीकृत मॉडल की ओर बढ़ रहे हैं, जैसेकि अल-कायदा क्षेत्रीय इकाइयों के माध्यम से स्थानीय स्तर पर धन जुटाना और संचालन करना। भारत ने समय-समय पर पाकिस्तान पोषित एवं पल्लवित आतंकवाद को बेनकाब करते हुए दुनिया से मिल रहे आर्थिक सहयोग पर चिन्ता जताई और कठोर कार्रवाई की मांग की, इस रिपोर्ट को भारत के रुख का समर्थन करने वाले एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
एफएटीएफ के मुताबिक, 2019 में पुलवामा और 2022 में गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में हुए आतंकी हमलों के लिए ऑनलाइन प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल किया गया। पुलवामा में आतंकियों ने आईईडी का इस्तेमाल किया था और इसे बनाने के लिए एल्युमिनियम पाउडर एमेजन से खरीदा गया था। गोरखपुर में हुए हमले में पैसों के लेनदेन में ऑनलाइन जरिया अपनाया गया। गोरखपुर वाले केस में आतंकी विचारधारा से प्रभावित शख्स ने इंटरनैशनल थर्ड पार्टी ट्रांजैक्शन और वीपीएन सर्विस का उपयोग किया था। इस तरह से उसने आईएसआईएल के समर्थन में विदेश में धन भेजा था और उसे भी बाहर से आर्थिक मदद मिली थी। वीपीएन एक डिजिटल तकनीक है जो इंटरनेट उपयोगकर्ता की लोकेशन और पहचान को छुपाती है। जब कोई व्यक्ति वीपीएन का उपयोग करता है, तो उसका इंटरनेट ट्रैफिक एक एन्क्रिप्टेड सुरंग के माध्यम से किसी अन्य देश के सर्वर से होकर गुजरता है। इससे उसकी वास्तविक पहचान छिप जाती है और वह सेंसरशिप, ट्रैकिंग और जियो-रिस्ट्रिक्शन से बच सकता है।
2024 तक दुनिया में 150 करोड़ से अधिक वीपीएन यूज़र्स हैं। इनमें से बड़ी संख्या एशिया और मध्य पूर्व से है, जहां सेंसरशिप या निगरानी से बचने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। भारत में 12 से 14 करोड़ वीपीएन उपयोगकर्ता हैं। भारत वीपीएन यूज़र्स की संख्या में दुनिया के शीर्ष 3 देशों में शामिल है। वीपीएन का उपयोग कर आतंकी सोशल मीडिया और गुप्त चैनलों के ज़रिए युवाओं को बरगलाने और भर्ती करने का काम करते हैं। कुछ आतंकवादी समूह वीपीएन नेटवर्क का प्रयोग कर सरकारी वेबसाइटों, रक्षा प्रतिष्ठानों और बैंकिंग सिस्टम पर साइबर हमला करते हैं। दुनिया की एक तिहाई आबादी ऑनलाइन शॉपिंग करती है। इस साल ग्लोबल ई-कॉमर्स मार्केट के 7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। भारत इस लिस्ट में फिलहाल सातवें नंबर पर है। लेकिन सवाल यह है कि इस डेटा के बीच अगर कुछ संदिग्ध लोग कुछ हजार डॉलर की खरीददारी करते हैं, जिसका इस्तेमाल आगे जाकर किसी आतंकी हमले में होता है, तो उसे चिह्नित कैसे किया जाए? एफएटीएफ ने कुछ दिनों पहले पहलगाम को लेकर कहा था कि इतना बड़ा आतंकी हमला बाहरी आर्थिक मदद के बिना संभव नहीं हो सकता। उसकी हालिया रिपोर्ट इसी बात को और पुष्ट कर देती है। आतंकियों ने अपने काम का तरीका बदल लिया है। वे इंटरनेट की दुनिया की ओट ले रहे हैं, जो ज्यादा खतरनाक है।
एफएटीएफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकवादी समूहों ने अब पारंपरिक धन स्रोतों के साथ-साथ क्रिप्टोकरेंसी जैसे डिजिटल वित्तीय माध्यमों का भी उपयोग करना शुरू कर दिया है। ये माध्यम उन्हें सरकार की नजरों से बचाते हुए सीमाओं के पार फंडिंग जुटाने की सहूलियत देते हैं। साथ ही, एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप्स, फेक सोशल मीडिया अकाउंट्स, और ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर वे अपने नेटवर्क का विस्तार कर रहे हैं। पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट से बाहर भले हो गया हो, लेकिन उसके खिलाफ लगे आरोपों में कोई कमी नहीं आई है। अनेक ग्लोबल इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स और एफएटीएफ ऑब्ज़र्वेशन्स इस बात की पुष्टि करती हैं कि पाकिस्तान में आतंकी गुटों को डिजिटल इकोसिस्टम का खुले तौर पर उपयोग करने दिया जा रहा है, या कभी-कभी सरकार की मौन सहमति से। उदाहरण के रूप में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों ने बिटकॉइन और अन्य डिजिटल टोकन के जरिए फंड जुटाने की नई तरकीबें अपनाई हैं। कई मामलों में आतंकी फंडिंग के लिए फर्जी चैरिटेबल ट्रस्ट और सामाजिक मीडिया अभियानों का सहारा लिया गया है। ‘ग़ज़वा-ए-हिंद’ जैसे डिजिटल प्रोपेगेंडा प्लेटफॉर्म्स पाकिस्तानी ज़मीन से संचालित होकर भारत में कट्टरपंथ को बढ़ावा देने में लगे हैं।
भारत के विरुद्ध हाइब्रिड वारफेयर और साइबर जिहाद की रणनीति पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों की नीति का हिस्सा बन चुकी है। एफएटीएफ की रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दक्षिण एशिया में भारत सबसे अधिक प्रभावित देश है, जहां डिजिटल माध्यम से न केवल फंडिंग, बल्कि ब्रेनवॉशिंग और भर्ती का कार्य भी तेजी से हो रहा है। जम्मू-कश्मीर में सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं को आतंकी संगठनों की ओर आकर्षित किया जाता है। उत्तर पूर्व में उग्रवादी संगठनों को डिजिटल भुगतान और चैनलों के माध्यम से सहायता मिलती रही है। एफएटीएफ ने पाकिस्तान समेत उन सभी देशों से अपेक्षा की है कि वे डिजिटल वित्तीय निगरानी तंत्र को मजबूत करें। क्रिप्टो ट्रांजैक्शन पर नियमित रिपोर्टिंग सुनिश्चित करें। आतंकी संगठनों के ऑनलाइन अस्तित्व को समाप्त करने के लिए तकनीकी टूल्स विकसित करें। एफएटीएफ का चेतावनी के स्वरों में यह भी कहना है कि यदि आतंक के गढ़ एवं आतंकवाद को पोषित करने वाले इन देशों ने इन सिफारिशों पर अमल नहीं किया तो उन्हें ‘हाई रिस्क जॉन’ की सूची में डाला जा सकता है। भारत को इस डिजिटल आतंकी खतरे से निपटने के लिए सभी सुरक्षा एजेंसियों के समन्वय से एक संयुक्त रणनीति बनानी चाहिए-क्रिप्टो ट्रांजैक्शन की रियल-टाइम निगरानी, साइबर आतंकवाद पर विशेष फोर्स का गठन, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से आतंकी कंटेंट की पहचान और हटाने के लिए मजबूत कानून, डार्क वेब और फेक डोनेशन चैनलों की सतत निगरानी आदि कदम उठाने चाहिए।
डिजिटल तकनीक ने जहां मानव जीवन को सरल और तेज़ किया है, वहीं इसका दुरुपयोग करके आतंकवाद को नया चेहरा देने की कोशिशें चिंता का विषय हैं। एफएटीएफ की चेतावनी को गंभीरता से लेने और वैश्विक सहयोग को मजबूत करने की जरूरत है। विशेष रूप से पाकिस्तान जैसे देशों पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना होगा ताकि वे अपनी धरती पर पनप रहे आतंकवाद एवं डिजिटल आतंकवाद के अड्डों को समाप्त करें। तभी एक सुरक्षित डिजिटल विश्व और शांतिपूर्ण वैश्विक समाज की कल्पना की जा सकती है। एफएटीएफ रिपोर्ट विश्लेषण करती है कि आतंकवादियों ने अपने आतंकवादी उद्देश्यों के लिए वैश्विक दर्शकों से धन जुटाने के लिए सोशल मीडिया पर धन उगाहने वाले प्लेटफॉर्म और क्राउडफंडिंग माध्यमों से आतंकवाद के वित्तपोषण प्राप्त किया है। आतंकवादी संगठन पारंपरिक तरीकों के साथ-साथ डिजिटल तरीकों से भी धन जुटाकर आतंकवाद को अंजाम दे रहे हैं।
भारत ने एफएटीएफ रिपोर्ट को अपने रुख के समर्थन में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है, जिसमें पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों पर कार्रवाई की मांग की गई है। यह रिपोर्ट आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समन्वय की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। यह रिपोर्ट आतंकवाद के वित्तपोषण और संचालन में शामिल देशों और व्यक्तियों पर दबाव बढ़ाने और आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए नीतियों और रणनीतियों को विकसित करने में सहायक हो सकती है।