काशी को क्योटो बनाने की जिद उसके मूल स्वरूप को नष्ट करना है : कीर्ति प्रकाश पांडेय

The insistence on making Kashi a Kyoto is to destroy its original form: Kirti Prakash Pandey

रविवार दिल्ली नेटवर्क

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश कांग्रेस के सूचना का अधिकार विभाग के सचिव कीर्ति प्रकाश पांडेय का कहना है कि वे काशी के वासी हैं और काशी को उसके मूल स्वरूप में ही देखना चाहते हैं। काशी को क्योटो बनाने की जिद उसके मूल स्वरूप को नष्ट करने जैसा है।

प्रदेश में कांग्रेस पार्टी से जुड़े पांडेय कई व्यापारिक संगठनों से भी जुड़े हैं। उनका कहना है कि प्रदेश सरकार के इशारे पर वाराणसी में गंगा के उस पार रेती पर दो बार नए प्रयोग किए गए जो दोनों ही सफल नहीं हो पाए। पहला प्रयोग काशी की संस्कृति के विपरित जा कर धर्म नगरी काशी में गंगा के उस पार टेंट सिटी का निर्माण कराया गया। जिसमें पाश्चात्य संस्कृति से ओत-प्रोत सामग्री तथा कल्चर की भरमार थी। पैसे से वहा सब कुछ उपलब्ध था। चाहे वो भोज्य सामग्री नानवेज हो या पाश्चात संगीत के साथ ही मंदिरापान आदि। बाबा विश्वनाथजी के सामने मां गंगा के गोद में जहा भागवत ज्ञान की बात होनी चाहिये वहा ऐसी टेंट सिटी का कोई आचित्य समझ से परे हैं। आरटीआई के साथियो ने इसका पुरजोर विरोध किया। बावजूद इसके सरकार के कुछ आगे करने से पहले ही न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी।

दूसरा प्रयोग भी इसी मां ग॔गा पर हुआ। रामनगर से गंगा की धारा को दो भागो में बाटने का असम्भव प्रयास किया गया। गंगा के उस पार बालू को हटा कर दो नहर के समान गढ्ढे बनाये गए जो बाढ़ के आते ही अपने आप समाप्त हो गये। उनका कहना है कि पूरे भारत मे उत्तर प्रदेश एक सबसे महत्वपूर्ण प्रदेश है जहां की राजनीत पूरे देश को प्रभावित करती है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू जी से लेकर छोटे कद तथा बडी सोच, व्यक्तित्व वाले लाल बहादुर शास्त्री के साथ ही युवा तुर्क चन्द्रशेखर सिहं ने देश की सेवा की है। यह बात अलग है कि देश जब अभाव में था तब जितने विकास का कार्य हुआ उसकी तुलना मे वर्तमान समय मे जब देश कई क्षेत्रो मे आत्मनिर्भर हो चुका है तो विकास के स्थान मदिर- मस्जिद, हिन्दू -मुस्लिम जैसे विषयों से जूझ रहा है। देश के सामने कई गंभीर मुद्दे है, जिसमें युवाओं के सामने बेरोजगारी, किसानो के लिए एमएसपी, व्यापारियों के सामने जीएसटी तथा आम जनमानस के सामने बेतहाशा बढती महगाई इत्यादि पर कोई कार्य नहीं हो रहा। सरकार विपक्ष को घेरकर धाराशाही करने में लगा है। धर्म के नाम पर मंदिरो का व्यवसायीकरण कर दिया जाना कहां तक उचित है?