यूपीएससी को लेकर रुचि घटती जा रही है दक्षिण भारत के नौजवानों की

आर.के. सिन्हा

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के साल 2021 के नतीजों के आने के बाद सफल कैंडिडेंट्स के मीडिया में इंटरव्यू लिए जा रहे हैं। बेशक, सफल कैंडिडेंट प्रसन्न हैं। अब उनके सामने असली चुनौती देश के चोटी के बाबू के रूप में देश की सेवा करने की होगी। पर यूपीएससी की परीक्षा के परिणामों का गहराई से अध्ययन करने की जरूरत है। ये जानना दिलचस्प होगा कि यूपीएससी की परीक्षा में कौन बैठ रहे हैं और सफल हो रहे हैं। इससे बहुत सारी चीजें शीशे की तरह से साफ होकर हमारे सामने आ जाएंगी। आप जरा सफल कैंडिडेटस के नामों पर गौर करें। आपको उन नामों को पढ़कर लगेगा कि मानो सारे होनहार नौजवान बिहार और हिन्दी भाषी राज्यों से ही हैं। सफल होने वाले कैंडिडेट्स में दक्षिण भारत के राज्यों जैसे तमिलनाडू, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश के रहने वालों की संख्या बेहद कम है। कमोबेश ये ही स्थिति महाराष्ट्र तथा गुजरात के संबंध में भी कही जा सकती है। हालांकि देश के आजाद होने के शुरूआती सालों के बाद दक्षिण भारत से खासी संख्या में नौजवान यूपीएससी की परीक्षा को पास करके भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) तथा भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में शामिल होते थे। भारत के मौजूदा विदेश मंत्री एस. जयशंकर के पिता के. सुब्रमण्यम भी उन दक्षिण भारतीय आईएएस अफसरों में से थे। लेकिन, इधर बीते लगभग दो दशकों से देखनें आ में आ रहा है कि दक्षिण भारत के नौजवानों की यूपीएससी की परीक्षा को लेकर रुचि घटती जा रही है। इसकी क्या वजह हो सकती है? गंभीरता से अध्ययन करने में लगता ये है कि भारत में आई टी सेक्टर के उदय के बाद इस क्षेत्र में जितनी बेहतर नौकरियों के अवसर पैदा हो रहे हैं उसके चलते दक्षिण भारत के युवा ने अपना रास्ता बदल लिया है। वे आईटी सेक्टर में बड़े स्तर पर किस्मत आजमाने लगे हैं। आईटी में उन्हें सरकारी नौकरी की अपेक्षा कहीं अधिक बेहतर सैलरी मिलती है। उनके पास अपना कामकाज शुरू करने के भी मौके रहते हैं। ये सारा देश जानता है कि भारत में बैंगलुरू, हैदराबाद और कुछ हद तक चेन्नई आईटी हब के रूप में उभरे हैं। इधर लाखों नौजवान विभिन्न आई टी कंपनियों में काम करके शानदार सैलरी कमा रहे हैं। फिर सरकारी दफ्तरों के विपरीत प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में काम का माहौल बेहतर रहता है। इनमें सरकारी दफ्तरों की तरह सामंती वातावरण भी नहीं रहता। रोज की चिक-चिक से भी इंसान का पाला नहीं पड़ता। सरकारी दफ्तरों में बॉस अपने जूनियर साथियों के साथ जिस तरह से पेश आते हैं, वह भी प्राइवेट नौकरियों में नहीं होता।

दरअसल देश के बहुत से सूबों के युवाओं के अब नायक बिल गेट्स की कंपनी माइक्रोसाफ्ट के सीईओ सत्या नडेला तथा गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई जैसे सफल पेशेवर हैं। ये मिडिल क्लास परिवारों से थे। अब ये और इनके जैसे अनेक भारतीय नौजवान अमेरिका या भारत में ही आई टी कंपनियों में काम करके या उद्य़मी बनकर हर साल करोड़ों रुपए कमा रहे हैं। ये लाखों नौजवानों को ज़ॉब भी दे रहे हैं। यूपीएससी की परीक्षा से तमिलनाडू के युवा भी दूर हो रहे हैं। वे होंगे ही। अब उन्हें अपने राज्य में ही श्रेष्ठ नौकरियों उपलब्ध हैं। किसे नहीं पता कि तमिलनाडू निर्विवाद रूप से भारत के आटो सेक्टर की एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरा है। तमिलनाडू के श्रीपेरुमदूर में अनेक आटो कंपनियां पहुंच चुकी हैं। ये जगह चेन्नई से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इधर सबसे पहले साउथ कोरिया की हुंडुई ने अपनी कार का उत्पादन करने वाली इकाई स्थापित की। उसके चलते यहां पर 50 छोटी आटो पार्ट बनाने वाली इकाइयां भी आ गईं। हुंदुई के 1996 में इधर आने से इस छोटे से शहर किस्मत ही बदल गई। देशभर से इधर नौकरी करने के लिए पेशेवर आने लगे। हुंडुई ने इधर 5000 हजार करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है। इसके बाद यहां पर फ्रांस की ग्लास मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी सेंट-गोबिन ने दस्तक दी करीब 600 करोड़ रुपये के निवेश के साथ। इसने आगे चलकर 800 करोड़ रुपये का और निवेश किया। यहां ही 2005 में नोकिया ने सेलफोन बनाने चालू किए। जे.जयललिता ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में श्रीपेरुंबदूर को देश के औद्यगिक मानचित्र में लाकर खड़ा कर दिया। उन्हीं की नीतियों के चलते तमिलनाडू आटो के बाद आई टी सेक्टर का भी हब बना। आज तमिलनाडू तथा देश के लाखों नौजवानों को इन कंपनियों में रोजगार मिला हुआ है। भारत की 50 फीसद कारें यहां पर बनकर सड़कों पर दौड़ती हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि तमिलनाडू में निवेश करने वाली कंपनियों को घूस नहीं खिलानी नहीं पड़ती। अगर तमिलनाडू को पसंद करती हैं आटो कंपनियां तो इसकी वजहें हैं। यहां पर यूनियनबाजी नहीं होती, बिजली आपूर्ति शानदार है तथा सड़कों का सुंदर जाल बिछा है। उद्योग परिसंघ एसोचैम के एक अध्ययन के मुताबिक, विकास के नौ मानदंडों में से आठ में तमिलनाडु सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य बनकर उभरा है। अर्थव्यवस्था, बिजली, सड़क और स्वास्थ्य जैसे मानकों पर तमिलनाडु शीर्ष पर चल रहा है। देखिए जिन-जिन राज्यों में औद्योगिक विकास हो रहा है, वहां के नौजवान यूपीएससी की परीक्षा के प्रति दिलचस्पी कम लेने लगे हैं।

तमिलनाडू से मिलती-जुलती स्थितियां महाराष्ट्र तथा गुजरात की भी है। ये तो देश के औद्योगिक रूप से सबसे बेहतर प्रदेशों में हैं। आपको मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, सूरत जैसे शहरों के गिनती के ही युवक मिलेंगे जो यूपीएससी की परीक्षा को देते हैं। उनके लिए यूपीएससी परीक्षा का कोई मतलब नहीं रहा। उन्हें सब कुछ अपने ही राज्यों में मिल रहा है। अब फिर से कुछ हिन्दी भाषी राज्यों पर लौटते हैं। बिहार को लेते हैं। वहां पर हर दूसरा युवक यूपीएससी की परीक्षा को देकर बड़ा साहब बनने के ख्वाब देखता है। उसकी वजह भी जान लें। बिहार में औद्योगिकरण ठप पड़ा हुआ है। राज्य के उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन कोशिश कर रहे हैं कि बिहार में प्राइवेट सेक्टर का निवेश आए। फिलहाल वहां पर प्राईवट सेक्टर में जॉब नहीं है। इसलिए सबका जोर सरकारी नौकरियों पर है। कहने का मतलब ये है कि जिन राज्यों में औद्योगिक विकास अच्छे स्तर पर हो चुका है, वहां के नौजवान सरकारी बाबू बनने की दौड़ से अपने को अलग कर चुके हैं।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)