समीर रंजन नायक
ईसमे कोई शक नेहीं कि बह जीबन मे एक अकेला निडर और बफादार पैदल यात्रा है l अपने प्रारभिक जीबन खोने के बाद, उन्होंने एक सफल चुनाव के दोरान अपने छोटे बेटो को खोया दिआ l तभी उसके पति कि मौत हो गेंई l ब्यपक आर्थिक सामाजिक ओर पारीबारीक नुकसान डिफीरसन के दिन गए l लेकिन उसके लिए हार असम्भव थी पाटी ने उन्हों राजयपाल के रूप मे बिस्वस करने का कामा सौंपा l देस का पहली स्वदेसी महिला के राजयपाल नमित किया गया था l 5साल के लिए झाड़खड के पहले राजयपाल बने l कहने की जरूरत नहीं है कि झाड़खड की जनता अभी भी तङप रही है l ईसलिए यह जीबन यात्रा सिर्फ भारत के लिए नहीं है ईस मे कोई शक नहीं कि पुरि दुनिया सभी लड़कीयो को पेरित करगी l एक आदिबासी लड़की अब लाख मे आपन जीबन सम्पत नहीं करेगी महिला कक्तिकरण का इससे अछा उदाहरण ओर किया हों सकता है मुझे ममीद है कि आनेबाले दिन मे उन्हें जनता का राष्ट्पति माना जाए गा l उन्हें ओड़िशा के लोग की आसा और बिस्वास है l यादि बिस्व समुदाय ने ओबामा को हूंआईट हाउस मे ब्लेंक मेन कहकर नोबेल शांति पुरस्कार दिया है l, तो भारतीय को एक अनुभबी स्वदेशी महिला को प्रथम नागरिक के रूप मे सन्मानित कर के इतिहास बनाने मे समय बर्बाद नेहीं करना चाहिए l द्रोपती जी के के से बिता बचपन उस पर एक न जर डाल ते है lमयूरभंज जिले में जन्मी द्रौपदी मुर्मू की उच्च शिक्षा भुवनेश्वर में हुई थी। उन्होंने यूनिट -2 गर्ल्स हाई स्कूल, रमादेवी महिला कॉलेज से स्नातक किया। मयूरभंज राजा के दरबार में सिविल सेवक रहे बिरंची नारायण टुडू की बेटी द्रौपदी ने उबरबाडो प्राइमरी स्कूल से सातवीं कक्षा पास की। सेनाई को भी इस बात की चिंता थी कि आगे क्या किया जाए। उनके दादा, स्वर्गीय कार्तिक चंद्र मांझी, उस समय मंत्री थे, इसलिए उन्होंने उस समय मंत्री के रूप में अपनी क्षमता में यूनिट -2 गर्ल्स हाई स्कूल में दाखिला लिया। स्वदेशी छात्र डॉर्मिटरी में रहते थे और 1970 से 1974 तक हाई स्कूल में पढ़ते थे।उन्होंने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा सफलतापूर्वक पूरी की, लेकिन उन्हें कॉलेज जाने का अवसर नहीं मिला। क्योंकि कॉलेज जाने के लिए अप्लाई करना था। और जब आप इसे जानते हैं, तो आवेदन समाप्त हो गया है। इसलिए पढ़ाई का एक साल बर्बाद हो गया। अगले वर्ष, हालांकि, उन्हें रमादेवी महिला कॉलेज में पढ़ने का अवसर मिला। इंदिरा गांधी आदिवासी छात्रावास में रहीं और पाठ को ध्यान से पढ़ा। 4 साल की पढ़ाई में वे कभी फेल नहीं हुए। आदिवासी लड़की होने के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने आमने सामने जवाब दिया। उन्होंने तत्कालीन आदिवासी छात्रावास मैट्रन ब्रजेश्वरी मिश्रा की शिक्षण शैली और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर कानन मंजरी मिश्रा की शिक्षण शैली की हमेशा प्रशंसा की है। वह हॉस्टल मेस के प्रबंधन के भी प्रभारी थे।
उनका जीवन पाठ पढ़ने के लिए संघर्षपूर्ण रहा। पापा महीने में सिर्फ 10 रुपये भेजते थे। सबसे सस्ते समय में भी यह उतना ही महत्वहीन था। आर्थिक तंगी के बीच दिन बिता रहे हैं। दोस्तों के बुलाने पर भी वह कॉलेज कैंटीन में बिल्कुल नहीं जा रहा था। क्योंकि दोस्तों की तुलना में खाना आसान था। लेकिन उसके लिए खिलाना असंभव था। हालाँकि वे चार साल तक भुवनेश्वर में रहे और पढ़ाई की, लेकिन उन्हें बाजार में घूमना और फिल्में देखना मुश्किल हो गया। उस समय रवि ताकीज़ एकमात्र सिनेमा हॉल था। जहां उन्होंने सिर्फ ‘गॉसिप इज ट्रू’ फिल्म देखी।
बीए से स्नातक करने के बाद, उन्हें और अधिक पढ़ने का अवसर नहीं मिला। इस बिंदु पर उन्हें सचिवालय में नौकरी मिल गई। सचिवालय में नौकरी मिलने के कुछ ही महीनों के भीतर इस जोड़े ने शादी कर ली। बैंक अधिकारी श्यामचरण मुर्मू से शादी के बाद, उनका द्रौपदी टुडू से निधन हो गया। लेकिन उन्हें सचिवालय में लंबे समय तक काम करने का सौभाग्य नहीं मिला। विभिन्न पारिवारिक समस्याओं ने उन्हें चलने से रोका। नौकरी छोड़ने के बाद बुजुर्ग सास अपने ससुर की देखभाल के लिए भुवनेश्वर से लौटी थी। बाद में, श्री अरविंद को पूर्ण शिक्षा केंद्र में पढ़ाने का अवसर मिला और वे 1994से 1997वर्ष तक कार्यरत रहे।