महागठबंधन की ढीली होती गांठें

सुशील दीक्षित विचित्र

आईएनडीआईए बन तो गया लेकिन नाम रखने के अलावा ऐसा अभी तक कुछ नहीं हुआ जिससे लगता कि आईएनडीआईए कोई चमत्कार करने जा रहा है | जो खबरें बाहर निकल कर आ रही हैं कि संगठन की एकजुट रहने की सम्भावनायें कम होती जा रही हैं हैं | लगभग प्रति दिन गठबंधन के एक दल की दूसरे दल से तकरार सुनाई पड़ती है | तकरार के एक सिरे पर कांग्रेस होती है , दूसरे सिरे पर अन्य घटक दल | आलम यह है कि दल मिले लेकिन दिल नहीं मिले और इसलिए नहीं मिले क्यूंकि कोई भी अपनी जमीन पर दुसरे को खड़े नहीं होने दे रहा है लेकिन दुसरे की जमीन पर अपना दावा कर रहा है |

महागठबंधन का हिस्सा आम आदमी पार्टी शुरू से ही बगावती तेवर दिखा रही है | पंजाब में कांग्रेस नेता सुखपाल खैरा की गिरफ्तारी के बाद आप और कांग्रेस के बीच नया विवाद शुरू हो गया | कांग्रेस द्वारा तेवर सख्त करने पर आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कुछ लीपापोती जैसी बात बनायी | उन्होंने इस बात में बोला बहुत कुछ लेकिन कहा कुछ नहीं या जो कहा उसके कोई ऐसे मतलब नहीं निकलते जो समस्या को समाधान की ओर ले जा सकें | उन्होंने यह तो कहा कि आईएनडीआईए गठबंधन मजबूत है लेकिन खैरा की गिरफ्तारी के मामले में वे कांग्रेस को पुलिस के पाद जाने की सलाह दे रहे हैं | उधर कांग्रेस इसे बदले की कार्यवाही बता रही है | उसका तर्क है कि वर्षो पुराने मामले में कार्यवाही करके आम आदमी पार्टी अपनी खुन्नस निकाल रही है | हालांकि कांग्रेस का यह तर्क किसी के गले नहीं उतर रहा है क्योंकि आम आदम पार्टी से कांग्रेस ही अधिक खुन्नस खाये हुए है | आप ने सबसे अधिक नुक्सान भी कांग्रेस का ही किया | पंजाब और दिल्ली में उसने ही कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया और उसी ने गुजरात में अपनी टांग फंसा कर कांग्रेस को हराने में अपना अहम् योगदान दिया |

केजरीवाल का दावा आप की गतिविधियां देखते हुए खरा नहीं लगता कि उनकी पार्टी आईएनडीआईए गठबंधन के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है | उन्होंने राजस्थान और मध्यप्रदेश की सभी सीटों पर लड़ने का एलान किया है | इन राज्यों में कांग्रेस भाजपा की मुख्य प्रतिद्वन्दी पार्टी है | केजरीवाल ने इन राज्यों में चुनाव लड़ने की घोषणा करके एक तरह से कांग्रेस के पांव पर ही पांव रखा है | कांग्रेस इसे स्वीकार करेगी इसमें संदेह है और इसमें भी सनेह है कि आम आदमी पार्टी अपने विस्तार से वाज आयेगी | टकराव का रास्ता दोनों अपनाये हुए हैं फिर भी दोनों चाहते हैं कि गठबंधन मजबूत हो | भाजपा के खिलाफ एकजुट हो कर लड़ा जाये लेकिन चाहने भर से राजनीतिक आकांक्षायें पूरी नहीं होती | इसके पीछे त्याग करना पड़ता है जो फिलहाल तो कोई करता नहीं दीखता |

भाजपा को हारने की चाहत लिए आईएनडीआईए का एक और घटक दल पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ टीएमसी भी गठबन्धन में शामिल है लेकिन राज्य में उसकी कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी से पटरी नहीं बैठती | वाम दल भी टीएमसी से दूरी बनाये रखना चाहती है | मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने तो साफ़ साफ़ कह दिया कि आईएनडीआईए कोई चुनावी गठबंधन नहीं है और वह समन्वय समिति में अपना प्रतिनिधि शामिल नहीं करेगी | पश्चिम बंगाल माकपा के सोचिए सलीम ने स्पष्ट किया की आईएनडीआईए कोई चुनावी गठबंधन नहीं बल्कि भाजपा विरोधी ब्लाक है | आईएनडीआईए के नाम पर चुनाव नहीं लड़े जायेंगे और बंगाल में उनकी पार्टी के टीएमसी और भाजपा से लड़ाई जारी रहेगी | इसके बाद बंगाल में गठबंधन के एकजुट रहने की सम्भावनायें समाप्त मानी जा रही हैं |

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की बहुत खस्ता हालत है | आईएनडीआईए की आड़ में वह अपने अस्तित्व को बचाने का सपना देख यही है लेकिन समाजवादी पार्टी के सुप्रीमों अखिलेश यादव ने साफ़ कर दिया कि वह सीटें लेंगे नहीं बल्कि देंगे | कांग्रेस के लिए उन्होंने पांच सीटें छोड़ने की बात कही जबकि कांग्रेस सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा करके गठबंधन के लिए यहां भी राह बहुत संकुचित कर दी है | मध्यप्रदेश और बिहार में भी गठबंधन की मजबूती के कोई मजबूत संकेत नहीं मिल रहे है | एमपी में कांग्रेस को जहां आम आदमी पार्टी चुनौती देने को कटिबद्ध है वहीं समाजवादी पार्टी भी पैर पसारने की कोशिश में हैं | आईएनडीआईए की परिकल्पना बिहार से शुरू हुई थी और इसे शुरू किया था बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने लेकिन इस समय वे और उनकी पार्टी जेडीयू सबसे अधिक बेजार है | बिहार से नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षा में शेष विपक्ष को एक मंच पर लान निकले थे लेकिन लालू यादव ने ऐसा कुचक्र रचा कि खु का राजनीतिक भविष्य और जेडीयू का अस्तित्व ही संकट में पड़ता दिख रहा है |

अगर गठबंधन मजबूत हो कर भाजपा के खिलाफ मोर्चा नहीं लगा पाया तो इससे विपक्ष को खासतौर से कांग्रेस को सबसे अधिक हानि होगी | इसीलिये वह महागठबन्ह की वकालत तो कर रही है लेकिन बड़ी पार्टी होने के बावजूद बड़ा दिल नहीं दिखा पा रही है | अन्य घटक दल भी एकता के लिए जरूरी नरमी नहीं दिखा रहे हैं | सभी अपनी अपनी जगह अपने अपने राज्य में दूसरे दल को घुसने भी नहीं देना चाहते है | फिर भी दावा कर रहे हैं की गठबंधन एकजुट हो कर लड़ेगा लेकिन यह दावा चुनाव आने तक टिका रहेगा इस पर विश्वास करना अब बहुत मुश्किल लगने लगा है |