नरेंद्र तिवारी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस समय अमेरिका में भारत के लोकतंत्र की मजबूती का उदाहरण दे रहे थै, ठीक उसी दौरान विपक्षी दल एकजुटता के प्रयास में जुटे हुए दिखाई दे रहे थै। जून की 23 तारीख को बिहार के पटना में भारत के अधिकांश विपक्षी दल वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से मुकाबले की रणनीति बना रहे थै। देश मे विपक्षी पार्टियों की बैठक में हुए मंथन से अमृत निकलेगा। इस बात पर देश की 15 से अधिक सियासी पार्टियों ने अपनी सहमति जताई है। यह अलग बात है कि इन दलों में आंतरिक कलह भी दिखाई दे रही है, किन्तु इन दलों के बीच दिख रहे मतभेदों के मध्य से ही 2024 का मंत्र निकलेगा। ऐसी आशा मजबूत विपक्ष के लिए की जानी चाहिए। पटना में हुए महागठबंधन की बैठक पर भाजपा आरोप लगा रही है। भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि महागठबंधन का प्रयास बिना दूल्हे की बारात है। किंतु लगातार दो चुनावो में दिल्ली की सत्ता से दूर यह विपक्षी दल यह समझते है की गठबंधन में जो सबसे बड़ा दल होगा उसका प्रधानमंत्री का उम्मीदवार होगा याने दूल्हा भी तय हो जाएगा। रविशंकर प्रसाद द्वारा उठाए सवाल का जवाब आगामी दिनों में विपक्ष द्वारा दे दिया जाएगा ऐसा विश्वास करना चाहिए। विपक्षी दलों की पटना में हुई बैठक के बाद कुछ टीवी चैनलों में विपक्षी दलों के मध्य व्याप्त मतभेदों की चर्चा इतनी अधिक की जा रही थी जैसे भाजपा के सामने विपक्ष ने एक होने की कोशिश कर अपराध कर दिया हो। इन चैनलों द्वारा बैठक को बेअसर दिखाने का प्रयास बेहद हास्यास्पद प्रतीत हो रहा था। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने विपक्षी दलों के मेल को बेमेल बताते हुए कहा कि उन्हें अचंभा हो रहा है कि नीतीश और लालू जी को राहुल की दादी ने जेल में डाला था। आज वह राहुल से गले मिल रहे है। जेपी ने उद्धव ठाकरे की उपस्थिति पर भी तंज कसते हुए कहा कि हिन्दू शिवसेना का महागठबंधन के साथ बैठना भी आश्चर्यजनक है। उद्धव के पिता बाला साहब ठाकरे कहते थै, कांग्रेस के साथ जाने के बजाय अपनी दुकानदारी बन्द करना चाहूंगा। भाजपा अध्यक्ष को यह भी सोचना चाहिए कि शिवसेना और नीतीश जैसे विश्वनीय साथी एनडीए से अलग क्यों हुए है। दरअसल प्रजातंत्र में मजबूत विपक्ष का होना बेहद जरूरी है। विपक्षी एकता पर भाजपा का हमलावर होना राजनीतिक लिहाज से उचित माना जा सकता है, किन्तु प्रजातंत्र की मजबूती के लिए विपक्षी एकता का स्वागत किया जाना चाहिए। मीडिया चैनलों का रुख भी विपक्षी दलों की इस बैठक के दोष गिनाता दिखाई दे रहा था। असल मे भारत के वर्तमान हालातों के मध्यनजर विपक्षी एकता की जरूरत अनिवार्य दिखाई दे रही है। इस हेतु पटना की बैठक के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को धन्यवाद दिया जाना चाहिए। उन्होंने विपक्ष को मजबूत किये जाने के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस क्रम में शरद पवार की भी सराहनीय भूमिका रही है। जिन्होंने यह कहकर की अब मुझे कोई पद का मोह नहीं है। ईमानदारी से विपक्षी एकता के प्रयास करता रहूंगा। विपक्षी एकता का यह प्रयास भले आंतरिक कलह में उलझा हुआ हो, किंतु इस प्रयास को कमजोर प्रयास कहना जल्दबाजी होगीं। कुछ भी हो पटना में विपक्ष एकत्रित हुआ। देश के 15 से अधिक दलों का यह महजुटान भाजपा विरोधी सोच रखने वाले दलों और राजनीतिक कार्यकर्ताओ को ताकत देगा ऐसा मानकर चला जा सकता है। पटना में देश की प्रमुख विपक्षी पार्टियों के नेता एकत्रित हुए इनमें कांग्रेस अध्यक्ष एकनाथ खरगे, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी,पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन, तमिलनाडू के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पंवार, शिवसेना के उद्धव ठाकरे, भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के डी राजा, मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी के सीताराम येचुरी, नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला, पीपुल्स पार्टी की महबूबा मुक्ति शामिल रही। मेजबान के रूप में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव उपस्थित रहे। काश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के विपक्षी दलों की पटना में हुई बैठक में सभी दलों के प्रमुखों ने एकजुटता का परिचय दिया। एकस्वर में एक साथ रहने और चुनाव लड़ने के संकल्प को दोहराया। इन विपक्षी दलों ने एक स्वर में कहा कि देश की वर्तमान सरकार संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर कर रही है। धर्म निरपेक्षता की भावनाओ को आहत कर रही है। पटना में आयोजित सामूहिक प्रेस वार्ता में सम्पूर्ण विपक्षी दलों ने एक साथ रहने और भाजपा से एक और लड़ने के संकल्प को दोहराया है। विपक्षी दलों की चार घण्टे चली बैठक में हुए निर्णय को मामूली अंतर्विरोधों के कारण पूर्ण रूप से खारिज किया जाना राजनीतिक नासमझी होगी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार देश के वरिष्ठ नेता है। गठबन्धन की राजनीति में माहिर नीतीश ने 1977 हुए विपक्षी एकता के प्रयास को निकट से देखा और समझा है। जय प्रकाश नारायण के शिष्य नीतीश ने पटना में विपक्षी एकता की बैठक को अंजाम देकर यह बतलाने की कोशिश की है कि समय बलवान है। राजनीति में मिलकर लड़ने से दुश्मन को परास्त किया जा सकता है। यह सही है कि 1977 ओर 2023 के समय मे बहुत अंतर है। किंतु यह भी सही है कि प्रजातंत्र में जनता द्वारा सरकार चुनी जाती है। सामूहिक रूप से विपक्ष जनता में यह विश्वास जगाने की कोशिश करनी चाहिए कि हम एक है। लालूप्रसाद यादव ने भी कहा अब वह फिट है। लालू भी जयप्रकाश के करीबी रहे है। विपक्षी एकता में उनकी भूमिका भी बहुत अहम है। उनके प्रतिनिधि के रूप में तेजस्वी अब बड़ी भूमिका निभाते दिख रहे है। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखलेश मुलायम सिंह यादव ने पटना में विपक्षी एकता के साथ सुर मिलाए। पटना में जुटे देश के प्रमुख दलों के मंथन को एक विचारधारा के दलों का मिलकर चलने ओर मिलकर लड़ने की कोशिश के रूप में देखा जाना चाहिए। देश मे गठबंधन की राजनीति के प्रयोग इससे पहले भी हुए है। 1977 का उदाहरण तो देश के सामने है। मनमोहन सिंह सयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के दो बार प्रधानमंत्री रहे है। सयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का यह प्रयोग भारतीय राजनीति के इतिहास में सफलतम प्रयोग के रूप में देखा जा सकता है। भाजपा के नैतृत्व वाला गठबंधन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नाम से जाना जाता है। देश मे अभी भाजपा के नैतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार काबिज है। भाजपा इस गठबंधन का सबसे बड़ा दल है। अतएव गठबंधन की राजनीति नई नहीं है। इसका पहले भी सफलतम प्रयोग हुआ है। पटना में हुई महागठबंधन की बैठक में सबसे बड़ा दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रूप में शामिल हुआ है। इस गठबंधन को मजबूत रखने की सबसे अधिक जवाबदेही ही कांग्रेस की बनती है। कांग्रेस देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल है। देश के हर राज्य में कांग्रेस की मौजूदगी से इंकार नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रीय दल होने के कारण गठबंधन की मजबूती का सबसे अधिक फायदा भी कांग्रेस को मिलने की संभावना है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस बात को महसूस भी किया है। उन्होंने प्रेस वार्ता में कहा की हिंदुस्तान की नींव पर आक्रमण किया जा रहा है। हम एक साथ रहेंगे। विचारधारा की रखा करेंगे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भी इस महजुटान में महती भूमिका रही है। उन्होंने इस दौरान बड़ी मुखरता से कहा कि सभी दल एकजुट है। सब मिलकर चुनाव लड़ेंगे। इतिहास का आगाज यहां से हुआ था। भाजपा इतिहास को बदलना चाहती है। हम इतिहास को बचाना चाहतें है। हमारा उद्देश्य इस फासिस्ट सरकार के खिलाफ मुखर होकर बोलना है। ममता की मुखरता विपक्षी दलों में साहस पैदा करने वाली मानी जा सकती है। पटना की बैठक में एकता का प्रदर्शन करने के बाद इन दलों ने अगली बैठक हिमाचल में करने का निर्णय लिया है। भाजपा विरोधी दलों के इस महागठबंधन की बैठक में बसपा सुप्रीमो मायावती का शामिल नहीं होना आश्चर्यजनक है। मायावती का महागठबंधन से अलग राग अलापना उनके कमजोर होने का कारण भी बन सकता है। गठबंधन में शामिल इन दलों के प्रादेशिक हित भी जुड़े हुए है। भाजपा विरोधी इस गठबंधन की राह में राजनीतिक दलों के प्रादेशिक हित राह का रोड़ा शाबित हो सकतें है। एतएव एकता की कोशिश बहुत सम्भलकर करना होगी। इन्ही प्रादेशिक हितों के कारण जहां तेलगांना के मुख्यमंत्री केसीआर बैठक के पूर्व ही इससे अलग हो गए जबकि वें विपक्षी दलों को एकत्रित करने की मुहिम में अव्वल नजर आ रहे थै। केजरीवाल और कांग्रेस के मध्य भी इसी प्रकार की समस्या है। कुलमिलाकर इन अंतर्विरोधों के बावजूद बिहार के पटना में देश के विपक्षी दलों ने एकता का शानदार प्रदर्शन किया है। हिमाचल के शिमला में अगली बैठक होगीं। इस महागठबंधन में और भी दल जुड़ेंगे और कुछ अलग भी हो सकते है। मिलकर लड़ने का यह कदम कितना कारगर साबित होगा यह तो आने वाले समय मे गठबंधन की प्रक्रिया से मालूम होगा फिलहाल विपक्ष एक जाजम पर बैठा हुआ दिखाई दिया। यह विपक्ष के लिए जितनी खुशी की बात है भाजपा के लिए उतनी ही चिंता का कारण है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह, स्मृति ईरानी, सुशील मोदी का पटना की बैठक पर शब्दो के बाण चलाना महागठबंधन की बैठक से उपजी चिंता के कारण ही है। देश को मजबूत और विश्वनीय विपक्ष की जरूरत उतनी ही है जितनी एक स्थायी सरकार की। विपक्ष जनहित के प्रहरी के रूप में कार्य करता है। सरकार की उन नीतियों और कार्यक्रमों की आलोचना करता है जो उन्हें लगता है कि जनता की भलाई के अनुरूप नही हैं। एक रचनात्मक और विश्वनीय विपक्ष की आवश्यकता के मध्यनजर बिहार के पटना में विपक्षी दलों की आयोजित बैठक को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाना प्रजातंत्र के हित मे है। पटना में महागठबंधन के मंथन से निकलेगा मजबूत विपक्ष का मंत्र जो देश के प्रजातंत्र की मजबूती में सहायक होगा।