गौरैया के बिना जीवन संगीत अधूरा

The music of life is incomplete without sparrows

ललित गर्ग

गौैरैया विलुप्त होने की कगार पर पंहुची विश्व की सबसे पुरानी पक्षी प्रजाति है। सुदूर अतीत से पिछले एक-दो दशक तक हमारे घर-आंगन में फुदकने वाली एवं हमारे जीवन संगीत का अहम हिस्सा गौरैया आज विलुप्ति के कगार पर है। घरों को अपनी चीं-चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती। इस छोटे आकार वाले खूबसूरत एवं शांतिपूूर्ण पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते हुए बड़े हुआ करते थे। ज्यादा से ज्यादा लोग गौरैया के साथ इंसानी संपर्क के महत्व को समझेे एवं इस नन्हें से परिंदे को बचाने के उद्देश्य से ही प्रतिवर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। नेचर फोरेवर सोसाइटी (भारत) और इको-सिस एक्शन फाउंडेशन (फ्रांस) के मिले जुले प्रयास के कारण इस दिवस को मनाने की शुरुआत 2010 में हुई। नासिक निवासी भारतीय प्रकृति एवं संरक्षणवादी डॉ.मोहम्मद दिलावर ने घरेलू गौरैया पक्षियों की सहायता हेतु नेचर फोरेवर सोसाइटी की स्थापना की थी। इनके इस कार्य को देखते हुए टाइम ने 2008 में इन्हें हिरोज ऑफ दी एनवायरमेंट नाम दिया था। पर्यावरण के संरक्षण और इस कार्य में मदद की सराहना करने हेतु एनएफएस ने 20 मार्च 2011 में गुजरात के अहमदाबाद शहर में गौरैया पुरस्कार की शुरुआत की थी। गौरैया पक्षी प्रकृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 2025 में विश्व गौरैया दिवस का थीम ‘प्रकृति के नन्हे दूतों को श्रद्धांजलि’ है।

भारत में गौरैया आम जनजीवन का हिस्सा हुआ करती थी, उनकी संख्या घटने के पीछे कई कारण हैं। बढ़ता शहरीकरण और पेड़ों की कटाई उनके घोंसले बनाने की जगहें खत्म कर रहे हैं। मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन उनकी प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर रहे हैं। कीटनाशकों और रसायनों के बढ़ते उपयोग के कारण उनके भोजन के स्रोत कम हो रहे हैं।

इसके अलावा, आधुनिक घरों की वास्तुकला में ऐसी संरचनाएं नहीं होतीं जहां गौरैया अपना घोंसला बना सके, जिससे उनके अस्तित्व पर संकट बढ़ता जा रहा है। विशेषतः यह पक्षी मानवीय लोभ की भेंट तो चढ़ ही रहे हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण भी इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए पक्षियों का शिकार एवं अवैध व्यापार जारी है। माइक्रोवेव प्रदूषण जैसे कारण इनकी घटती संख्या के लिए जिम्मेदार हैं। जन्म के शुरुआती पंद्रह दिनों में गौरैया के बच्चों का भोजन कीट-पतंग होते हैं। पर आजकल हमारे बगीचों में विदेशी पौधे ज्यादा उगाते हैं, जो कीट-पतंगों को आकर्षित नहीं कर पाते। जीवन के अनेकानेक सुख, संतोष एवं रोमांच में से एक यह भी है कि हम कुछ समय पक्षियों के साथ बिताने में लगाते रहे हैं, अब ऐसा क्यों नहीं कर पाते? क्यों हमारी सोच एवं जीवनशैली का प्रकृति-प्रेम विलुप्त हो रहा है? मनुष्य के हाथों से रचे कृत्रिम संसार की परिधि में प्रकृति, पर्यावरण, वन्यजीव-जंगल एवं पक्षियों का कलरव एवं जीवन-ऊर्जा का लगातार खत्म होते जाना जीवन से मृत्यु की ओर बढ़ने का संकेत है।

विश्व गौरैया दिवस गौरेया के संरक्षण और उसके सामने आने वाली चुनौतियों के प्रति जागरूक करने के लिये मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि पक्षियों की सुरक्षा केवल उनके अस्तित्व के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए भी जरूरी है। जैसे-जैसे पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे गौरैया और अन्य शहरी पक्षियों की सुरक्षा और भी महत्वपूर्ण हो गई है। दिल्ली में तो गौरैया इस कदर दुर्लभ हो गई है कि ढूंढे से भी यह पक्षी देखने को नहीं मिलता, इसलिए वर्ष 2012 में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य-पक्षी घोषित कर दिया था। गौरैया के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा मानवता पर भी एक प्रश्नचिह्न भी है। गौरेया जैसे बेजुबान पक्षियों का बड़ी संख्या में विलुप्त होना पर्यावरण संतुलन के लिये तो बड़ा खतरा है ही लेकिन इसका असर मानव जीवन पर भी होगा। यह धरती केवल इंसानों के लिये नहीं है, बल्कि वन्य जीवों के लिये भी है, इसलिये पक्षियों का विलुप्त होना या मरना हमारे लिये चिन्ता का बड़ा कारण बनना चाहिए।

मौजूदा समय में पशुओं एवं पक्षियों की संख्या का लगातार घटना एक अत्यन्त चिन्ताजनक स्थिति है। मानवीय व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण घटक है संवेदनशीलता, जो व्यक्तित्व का गरिमा प्रदान करता है, उसे गहराई एवं ऊंचाई प्रदान करता है, इसके अभाव में मानव दानव बन जाता है, गौरैया जैसे पक्षियों के प्रति बरती जा रही संवेदनहीनता इसी की परिचायक है।

मनुष्य का लोभ एवं संवेदनहीनता भी त्रासदी की हद तक बढ़ी है, जो वन्यजीवों, पक्षियों, प्रकृति एवं पर्यावरण के असंतुलन एवं विनाश का बड़ा सबब बना है। दरअसल हमारे यहां बड़े जीवों के संरक्षण पर तो ध्यान दिया जाता है, पर गौरेया जैसे छोटे पक्षियों के संरक्षण पर उतना नहीं। अब भी यदि हम जैव विविधता को बचाने का सामूहिक प्रयास न करें, तो बहुत देर हो जाएगी। पक्षी विज्ञानी हेमंत सिंह के अनुसार गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास का प्राणी बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले। ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस’ ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को ‘रेड लिस्ट’ में डाला है। आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक गौरैया की आबादी में करीब 60 फीसदी की कमी आई है। यह हृ्रास ग्रामीण और शहरी, दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है। पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के अनुसार गौरैया की आबादी घटकर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।

हर परिस्थितियों में खुद को अनुकूल बना लेने वाली यह चिड़िया अब भारत ही नहीं, यूरोप के कई बड़े हिस्सों में भी काफी कम रह गई है। ब्रिटेन, इटली, फ्राँस, जर्मनी और चेक गणराज्य जैसे देशों में इनकी संख्या जहाँ तेजी से गिर रही है, तो नीदरलैंड में तो इन्हें ‘दुर्लभ प्रजाति’ के वर्ग में रखा गया है। कई बार लोग अपने घरों में इस पक्षी के घोंसले को बसने से पहले ही उजाड़ देते हैं। कई बार बच्चे इन्हें पकड़कर पहचान के लिए इनके पैर में धागा बांधकर इन्हें छोड़ देते हैं। इससे कई बार किसी पेड़ की टहनी या शाखाओं में अटक कर इस पक्षी की जान चली जाती है। इतना ही नहीं कई बार बच्चे गौरैया को पकड़कर इसके पंखों को रंग देते हैं, जिससे उसे उड़ने में दिक्कत होती है और उसके स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है। पक्षी विज्ञानियों के अनुसार गौरैया को फिर से बुलाने के लिए लोगों को अपने घरों में कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध कराने चाहिए, जहां वे आसानी से अपने घोंसले बना सकें और उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सकें। गौरैया आजकल अपने अस्तित्व के लिए मनुष्यों और अपने आसपास के वातावरण से काफी जद्दोजहद कर रही है। ऐसे समय में हमें इन पक्षियों के लिए वातावरण को इनके प्रति अनुकूल बनाने में सहायता प्रदान करनी चाहिए। तभी ये हमारे बीच चह चहायेंगे।

मनुष्यों को गौरैया के लिए कुछ ना कुछ तो करना ही होगा, वरना यह भी मॉरीशस के डोडो पक्षी और गिद्ध की तरह पूरी तरह से विलुप्त हो जायेंगे। घरेलू गौरैया पृथ्वी पर सबसे आम और सबसे पुरानी पक्षी प्रजातियों में से एक है। हमें पक्षियों के स्वास्थ्य के प्रति भी सजग होना चाहिए। सरकारों को भी पक्षियों के इलाज एवं जीवन-सुरक्षा के पुख्ते प्रबंध करने चाहिए। भारत की संस्कृति में पक्षियों को दाना एवं पानी डालने की व्यवस्था जीवनशैली का अंग रहा है, इन वर्षों में हमारी यह संस्कृति लुुप्त हो रही है, जो गौरेया के विलुप्त होने का बड़ा कारण है।