सुनील कुमार महला
आज के इस युग में दिन-प्रतिदिन नई-नई बीमारियां सामने आ रहीं हैं। हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे में गुलियन बैरे सिंड्रोम के 100 से अधिक मामले दर्ज किए गए। ख़बरें बतातीं हैं कि इस दुर्लभ व घातक बीमारी से एक मरीज की मौत भी हो गई है। बताया जा रहा है कि गुलियन बैरे सिंड्रोम कोई संक्रामक बीमारी नहीं है, लेकिन फिर भी आश्चर्यजनक बात यह है कि इसके मामले बहुत ही तेजी से बढ़ रहे हैं। बताया यह भी जा रहा है कि इस बीमारी का पानी से भी कनेक्शन है। पाठकों को बताता चलूं कि महाराष्ट्र पहले से ही बर्ड फ्लू से खौफजदा है और अब यह महाराष्ट्र के समक्ष एक नया संकट आ खड़ा हुआ है।कुछ दिन पहले देश में एचएमपीवी वायरस के मामले बढ़ रहे थे।गुलियन-बैरे सिंड्रोम के बढ़ते मामलों को देखते हुए पुणे का स्वास्थ्य विभाग, सरकार भी अलर्ट पर है। वास्तव में यह एक ऑटो इम्यून डिजीज है, जो लाखों में किसी एक मरीज को होती है, लेकिन पुणे में लगातार बढ़ते मामलों को लेकर हर कोई हैरान है। हालांकि सरकार व प्रशासन अपना काम कर रहे हैं लेकिन आम आदमी को यह ध्यान रखना चाहिए कि यह समय घबराने का नहीं है, बल्कि सतर्कता बरतने व जिम्मेदारी का है। गौरतलब है कि जीबीएस एक ऑटोइम्यून बीमारी है,जिसमें शरीर की इम्यूनिटी(रोग प्रतिरोधक क्षमता) गलती से शरीर की सेल्स पर ही हमला करती है और इससे मरीज को कई तरह की गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होने लगती हैं। वास्तव में,गुलियन बैरे सिंड्रोम के होने का कारण इम्यून सिस्टम का शरीर की नवर्स पर हमला करना माना जाता है। पाठकों को बताता चलूं कि मरीजों के सैंपल में अस्पतालों के लैब की जांच में कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया का पता चला है। कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया पानी में भी पाया जाता है। अगर कोई व्यक्ति इस बैक्टीरिया वाले पानी को पी लेता है तो यह बैक्टीरिया उसके शरीर में चला जाता है।यह बैक्टीरिया उल्टी दस्त जैसे लक्षण पैदा करता है और कुछ मामलों में तो यह डायरिया का भी कारण बनता है। विशेषज्ञों ने यह बताया है कि इस बीमारी की शुरुआत अधिकतर मामलों में हाथ पैरों के सुन्न होने से होती हैं। इससे संक्रमित मरीज को हाथ पैरों में झुनझुनी भी होती है और कुछ मामलों में बुखार, हार्ट बीट का अचानक बढ़ना और सांस लेने में परेशानी भी हो सकती है।गुलियन बैरे सिंड्रोम के कारण मरीज को पैरालिसिस ( लकवा) भी हो सकता है और अगर ऐसा होता है तो मरीज की जान बचाना मुश्किल हो जाता है।कुछ मामलों में मरीज को हाई बीपी या फिर हार्ट अटैक तक आने की आशंका रहती है। मरीज को वेंटिलेटर की भी जरूरत पड़ सकती है और ये जानलेवा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ मामलों में प्लाजमा थेरेपी और इम्यूनोग्लोबिन थेरेपी की मदद से बीमारी को काबू में किया जा सकता है।चूंकि, यह संक्रामक बीमारी नहीं है तो इसके एक से दूसरे में फैलने का खतरा नहीं है, लेकिन अगर ये बैक्टीरिया के कारण हो रही है तो आने वाले दिनों में केस बढ़ने की आशंका है। यहां यह गौरतलब है कि 26 जून 2023 को, पेरू के राष्ट्रीय महामारी विज्ञान, रोकथाम और रोग नियंत्रण केंद्र (सीडीसी) ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के मामलों में असामान्य वृद्धि के कारण एक महामारी विज्ञान चेतावनी जारी की थी, जैसा कि मई 2019 में, पेरू में राष्ट्रीय निगरानी ने 1.2 मामलों/100,000 जनसंख्या की अपेक्षित घटना से अधिक जीबीएस मामलों में वृद्धि का पता लगाया था। पेरू में वर्ष 2023 में ही इस बीमारी के कारण देश को 90 दिनों की हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा करनी पड़ी थी।लिहाजा इसे हल्के में तो बिल्कुल भी नहीं लिया जा सकता है। इसका इलाज भी महंगा है, क्यों कि जिस इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन को इसके उपचार के लिए जरूरी बताया जा रहा है, उसकी निजी अस्पताल में कीमत करीब बीस हजार रुपये तक है और यह भी है कि बहुत बार मरीजों को ज्यादा इंजेक्शन देने पड़ते हैं, लेकिन यहां एक अच्छी बात यह है कि राज्य के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार द्वारा मरीजों के मुफ्त इलाज की घोषणा की गई है, जो कि बहुत ही सराहनीय है। इससे आम आदमी को कहीं न कहीं राहत की सांस मिल सकेगी। पाठक जानते होंगे कि कुछ समय पहले ही महाराष्ट्र के लातूर जिले में स्थित एक पोल्ट्री फार्म में करीब 4200 चूजे मृत पाए गए थे। अभी कुछ दिन पहले ही बर्ड फ्लू की वजह से लातूर में 60 कौओं की भी मौत हुई थी। कहना ग़लत नहीं होगा कि पहले से ही बर्ड फ्लू के संक्रमण से त्रस्त महाराष्ट्र में अब इस जीबीएस बीमारी ने वहां के स्वास्थ्य तंत्र पर दबाव बढ़ा दिया है। यह बहुत ही काबिले-तारीफ है कि केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सोमवार (27 जनवरी, 2025) को महाराष्ट्र के पुणे में गिलियन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस ) के संदिग्ध और पुष्ट मामलों में वृद्धि के मद्देनजर सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप और प्रबंधन शुरू करने में राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों की सहायता के लिए एक उच्च स्तरीय बहु-विषयक टीम तैनात कर दी है। बहरहाल, बचाव ही उपचार है, क्यों कि जीबीएस का कोई पुख्ता इलाज नहीं है। इसलिए उपचारों से लक्षणों में कमी लाकर ही मरीज को स्वस्थ किया जा सकता है। हमारा देश कोविड-19 जैसी खतरनाक महामारी के दंश पहले ही झेल चुका है। कहना ग़लत नहीं होगा कि जीबीएस जैसी बीमारियां कहीं न कहीं चिंताएं जगातीं हैं। वास्तव में,किसी भी बीमारी से बचने के लिए स्वस्थ जीवनशैली, अच्छा खान-पान, स्वच्छ पेयजल, शरीर को हाइड्रेट रखना, व्यायाम और इम्यूनिटी को बनाए रखना बहुत आवश्यक है। साफ-सफाई, स्वच्छता की आदतों पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। अधिक संपर्क से बचना भी बहुत ही महत्वपूर्ण व जरूरी है। हाथ धोना, खाद्य सुरक्षा, समय पर विभिन्न रोगों से बचने के लिए टीकाकरण और सबसे बड़ी बात जागरूकता बहुत ही जरूरी है।