दीपक कुमार त्यागी
भारत को अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ी से आज़ाद हुए 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं, देश इस गौरवशाली अवसर को ‘अमृत महोत्सव’ के रूप में पूर्ण भव्यता के साथ मना रहा है। देश की आज़ादी के बाद भारत सरकार ने देशवासियों की मांग के अनुरूप समय-समय पर विभिन्न मोर्चों पर सफलता के नित-नये आयाम स्थापित करते हुए देश को विश्वगुरु बनने के मार्ग पर अग्रसित रखने का कार्य किया है। हालांकि 140 करोड़ की भारी भरकम जनसंख्या वाले भारत में संसाधनों की भारी कमी के चलते आज के समय में भी बहुत सारी ज्वलंत समस्याओं का अंबार लगा हुआ है। वैसे तो भारत सरकार व सिस्टम लगातार समस्याओं का समाधान जनहित व देशहित में निरंतर करती जा रही है। लेकिन फिर भी समस्याओं के समाधान की गति धीमी होने के चलते आज भी देश में बहुत सारे ऐसे मसले हैं जो कि आम जनमानस के लिए समस्या खड़ी करते रहते हैं। उनमें से ही एक समस्या देश में पुलिस व्यवस्था में सुधार व विभिन्न स्तर के सभी पुलिसकर्मियों की वर्षों से लंबित चली आ रही समस्याओं के समाधान की है। हालांकि देश में समय-समय पर पुलिस व्यवस्था में सुधार के लिए व पुलिसकर्मियों की लंबित मांगों को पूरा करने के लिए चर्चा चलती रहती है, लेकिन अफसोस आज भी व्यवस्था में पूरी तरह से सुधार नहीं हो पाया है और लंबित मांगों का अभी भी अंबार लगा हुआ है। आज भी अधिकांश लोगों को लगता है पुलिस व्यवस्था में धरातल पर कोई विशेष बदलाव नहीं हुआ है, उन्हें लगता है कि वास्तव में जिस तरह के पुलिस में बड़े बदलाव की आवश्यकता है, उस बदलाव के नाम पर केवल खानापूर्ति के लिए औपचारिकता निभाने से ज्यादा कुछ कार्य नहीं हो पा रहा है। जबकि आज भी देश में पुलिस बलों के हालात को देखें तो ‘जाके पांव न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई’ वाली कहावत उन पर एकदम सटीक बैठती है, जब हम पुलिस के संदर्भ में धरातल के हालात देखते हैं तो पाते हैं कि पुलिसकर्मी कुछ अपवादों को छोड़कर 24 घंटे धन्यवाद रहित जिम्मेदारी का निर्वहन करने में निष्ठा व ईमानदारी से व्यस्त हैं, एक पुलिसकर्मी पूर्ण तत्परता के साथ आंधी, तूफान, बारिश, भीषण गर्मी व सर्दी हर मौसम व विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी ड्यूटी को निभाने में लगा रहता है। देश में पुलिस बलों के शीर्ष अधिकारियों से लेकर के एक आम सिपाही तक को जिस तरह की विपरीत परिस्थितियों व संसाधनों के अभाव में रहकर कार्य करना पड़ता है, वह उन लोगों के बुलंद हौसले को दर्शाता है। हालांकि इस प्रकार की स्थिति के चलते पुलिस बलों में कार्यरत लोग अपना बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं और उन लोगों की कार्य करने की क्षमता व रोजमर्रा के व्यवहार पर भी बहुत ही जबरदस्त तरीके से नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो कि देश व सभ्य समाज के लिए उचित नहीं है। जबकि हम लोग यह अच्छे से जानते हैं कि हमारा देश अपने सभी निवासियों की भावनाओं के अनुरूप लोकतांत्रिक व्यवस्था को मानने वाला देश है। जहां केन्द्र व राज्य सरकारों के द्वारा सामंजस्य करके शासन व्यवस्था को चलाया जाता है, देश में शासन चलाने का मूल आधार लोकतंत्रिक व्यवस्था है, जिसमें हर व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्रता के साथ अपने अधिकार मिले हुए है, लेकिन आयेदिन काम के बोझ के तले दबी पुलिस इन अधिकारों का हनन जाने अंजाने में कर बैठती है। वैसे देश में जनमानस के सभी अधिकारों की रक्षा करने के लिए, देश के अंदरुनी सिस्टम को सही ढंग से चलाने के लिए, सभी वर्ग के लोगों को आपराधिक प्रवृत्ति वाले गुंडों से सुरक्षित रखने के लिए और राज्यों में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए हमारे सिस्टम को भी जनता के अनुपात में पर्याप्त पुलिस कर्मियों की आवश्यकता होती है, क्योंकि इन सभी पुलिस कर्मियों के ऊपर ही राज्यों में कानून व्यवस्था को पूर्ण नियंत्रण में रखते हुए अपने-अपने क्षेत्रों में अपराध घटित होने से रोकना व समय-समय पर क्षेत्र में घटित होने वाली विभिन्न प्रकार की आपराधिक घटनाओं की जांच करके न्यायालय के सामने मजबूत तरीके से सबूत रखकर के अपराधी को सजा दिलवाने की बेहद महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है, लेकिन अफसोस देश में तय मापदंड के अनुसार जनता के अनुपात में पुलिस कर्मियों की उपलब्धता नहीं है, जिसके चलते सभी कार्य की गुणवत्ता प्रभावित होती है। हालांकि देश व समाज की बेहतरी के लिए यह बेहद जरूरी है कि पुलिस के लोगों का व्यवहार हर तरह की विकट से विकट परिस्थितियों में भी हमेशा खास व आम-जनमानस के साथ मित्रवत और अच्छा रहे, लेकिन देश में पुलिसकर्मियों के काम के जबरदस्त बोझ में दबे हुए होने के चलते, उनके पास उच्च गुणवत्ता पूर्ण ढंग से कार्य करने के लिए संसाधनों की भारी कमी होने के चलते, वहीं देश के जनसंख्या के घनत्व के अनुरूप तय मानकों के अनुसार देश में पुलिस कर्मियों की उपलब्धता का ना होना, देश के आम जनमानस के साथ-साथ पुलिस कर्मियों की समस्याओं को भी गंभीर बना देता है, जिसके चलते आम जनमानस को तो असुविधा होती ही है, वहीं पुलिस कर्मियों की कार्यशैली व व्यवहार पर बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो कि आम जनता के बीच उनकी नकारात्मक छवि बनाने का कार्य करता है, वैसे इस तरह की स्थिति किसी भी दृष्टिकोण से हमारे सभ्य समाज व पुलिस बलों के कर्मियों के लिए बिल्कुल भी उचित नहीं है। वैसे भी देखा जाए तो आजकल देश-दुनिया में जिस तरह का बेहद भागदौड़ भरा माहौल चल रहा है, उस समय अपराध भी बहुत तेजी से बढ़ रहा है, तकनीक वाले इस दौर में छोटे-बड़े अपराधी तक भी अत्याधुनिक संसाधनों से लैस है, वहीं पुलिस आज भी अंग्रेजों के जमाने के कानून व हथियारों के बलबूते अपराधियों से मुकाबला कर रही है, जो बिल्कुल भी ठीक नहीं है। आज के अत्याधुनिक युग में पुलिस बलों की कार्यप्रणाली में हर हाल में कर्तव्यनिष्ठा, बेहद चुस्ती-फुर्ती, ईमानदारी, तेजतर्रार, व्यवहार कुशलता, शालीनता, अत्याधुनिक हथियारों व तकनीक का ज्ञान, साइबर सुरक्षा का ज्ञान, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ जांच करने की क्षमता व बहुत तेजी के साथ तत्काल निर्णय लेने की क्षमता आदि का एक बहुत ही बेहतरीन आपसी तालमेल के साथ समावेश होना बेहद जरूरी है, लेकिन विचारणीय तथ्य यह है कि क्या आज देश में ऐसे पुलिस बल उपलब्ध हैं।
देश के आम जनमानस को लगता है कि पुलिस बलों में कार्यरत लोगों का आम जनता के साथ जैसा व्यवहार होना चाहिए, उसकी कल्पना भी पूरे भारत में कहीं पर भी नहीं की जा सकती है, वहीं पुलिस बलों में कार्यरत लोगों को लगता है कि सिस्टम व आम जनमानस को केवल अपनी सुरक्षा की चिंता है, किसी का भी उनकी वर्षों से लंबित मांगों व गंभीर समस्याओं के चलते प्रदर्शन पर पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव पर ध्यान नहीं जाता है।
वैसे देखा जाये तो धरातल पर स्थित यह है कि देश के अधिकांश राज्यों में आज भी पुलिस विभाग में अंग्रेजी शासनकाल के समय के नियम-कायदे-कानून धड़ल्ले से चल रहे हैं, अधिकांश राज्यों में पुलिस महकमा बहुत लंबे समय से आधुनिक हथियार व अन्य बेहद जरूरी संशाधनों की भारी कमी और स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहे हैं, जिसका हमारे देश के हुड़दंगी लोग व अपराधियों के साथ-साथ लापरवाह व कुछ भ्रष्ट पुलिस कर्मी आदि सभी पूरा लाभ उठाते हैं, जो किसी भी दृष्टिकोण से देश व सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं है। देश के अलग-अलग राज्यों की बात करें तो सभी में पुलिस बलों को या तो उनके राज्य के कानूनों और रेगुलेशनों द्वारा अभिशासित किया जाता है, या फिर केंद्रीय कानून “पुलिस ऐक्ट,1861″ के आधार पर कानून बनाए गए हैं। हालांकि राज्यों के अपने पुलिस मैनुअल भी होते हैं जिनमें इस बात का पूरा विवरण होता है कि राज्य पुलिस बल का संगठन किस प्रकार कार्य करेगा, उनकी देश व समाज के प्रति क्या भूमिकाएं और क्या जिम्मेदारियां होंगी।
वैसे आज अधिकांश देशवासियों का मानना है कि समय के साथ देश में पुलिस बलों का धीरे-धीरे कुछ तो आधुनिकीकरण हुआ है, लेकिन वह आज के समय की मांग के अनुसार पर्याप्त नहीं है। आज भी देश में पुलिस के पास पर्याप्त संसाधन व पुलिस बल उपलब्ध ना होने के चलते उनके प्रदर्शन पर प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, इस तरह की हालात के चलते ही पुलिस बलों के कर्मियों के कार्य करने के तौर-तरीके व बोलने की शैली में कोई खास बदलाव धरातल पर नहीं आ पाया है।
*”देश के आम जनमानस की यह धारणा बन गयी है कि आज के आधुनिक भारत में भी पुलिस बलों के लोगों का व्यवहार देखकर लगता है कि आजादी से पहले भी पुलिस बलों के लोगों का अपना काम देश के आम जनमानस को डराना, धमकाना व दमन करना था। वहीं दुर्भाग्य से आज के समय में भी कुछ पुलिस वालों के व्यवहार की वजह से आज़ाद भारत में भी वही पुराने हालात बने हुए हैं, जो स्थिति देशवासियों के साथ-साथ पूर्ण ईमानदारी व निष्ठा से कार्य करने वाले बहुत सारे मेहनती पुलिस कर्मियों के मनोबल के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है। वैसे अब हम लोगों को पुलिस कर्मियों के प्रति बनी इस बेहद नकारात्मक मानसिकता से जल्द से जल्द उबरने की जरूरत है, उस नकारात्मक स्थिति को पूर्ण रूप से धरातल पर बदलने के लिए हमारे देश के कर्ताधर्ताओं व पुलिस बलों के शीर्ष नेतृत्व के पास बहुत सारी विशेष कार्य योजनाएं मौजूद हैं, लेकिन ना जाने क्यों आज भी हमारा सिस्टम व पुलिस का शीर्ष नेतृत्व धरातल पर इन ज्वलंत समस्याओं का स्थाई रूप से निदान कर पुलिस कर्मियों को राहत प्रदान करने की जरूरत क्यों नहीं समझता है।”*
आज देश में एक तरफ जहां आम जनमानस का विश्वास जीतने के लिए पुलिस कर्मियों की कार्यशैली व व्यवहार में बदलाव करने की तत्काल आवश्यकता है, वहीं दूसरी तरफ कदम-कदम पर अव्यवस्थाओं से जूझ रही पुलिस बलों के लोगों की सभी प्रकार की समस्याओं के निदान करते हुए वर्षों से लंबित उनकी मांगों को पूरा करते हुए आधुनिकीकरण करने की आवश्यकता है और धरातल पर पूर्ण ईमानदारी से पुलिस मैनुअल लागू करने की आवश्यकता है। लेकिन लगता है कि पुलिस को निष्पक्ष की जगह अपने हाथ की कठपुतली बनाकर रखने के चक्कर में इस सबकी जरूरत हमारे देश के सिस्टम में बैठे कुछ प्रभावशाली लोगों, नीतिनिर्माताओं व राजनीतिक व्यवस्था को संभालने वाले अधिकांश ताकतवर कर्णधारों ने शायद आज तक भी नहीं समझी है। शीर्ष पदों पर बैठे लोगों को यह समझना होगा कि आज भी आम व्यक्ति जितना किसी भी अपराधी से डरता है, उतना ही वह पुलिस से भी डरता है, देश में पुलिस अभी तक आज़ादी के 75 वर्ष बीतने के बाद भी आम जनमानस का विश्वास पूरी तरह से जीतने में कामयाब नहीं हो पायी है, जो स्थिति देश के आम-जनमानस व स्वयं पुलिस बलों के लिए उचित नहीं है। इसलिए आज समय की जबरदस्त मांग है कि देश में वर्षों से लंबित पुलिस कर्मियों की मांगों व पुलिस सुधारों पर अब केवल बात बनाने की जगह हर हाल में धरातल पर अमल होना चाहिए। लेकिन बेहद कड़वी सच्चाई यही है कि अभी तक चंद बदलावों को छोड़कर अधिकतर पुलिस सुधार के लिए होने वाले कार्य केवल सिस्टम के कागजी स्तर तक ही सीमित होकर फाईलों में दबकर ही रह गए हैं, जो आम जनमानस व पुलिसकर्मी दोनों के लिए ही बिल्कुल भी उचित नहीं है।
*” इसलिए समय रहते हुए हमारे देश के कर्ताधर्ताओं को यह समझने की आवश्यकता है कि लापरवाह व संसाधन विहीन अक्षम पुलिस तंत्र देशवासियों व आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है, जो किसी भी हाल में ठीक नहीं है। देश में पुलिस व्यवस्था को बेहतर करने के लिए आज निचले स्तर से लेकर के शीर्ष स्तर तक भी बहुत बड़े पैमाने पर बदलाव करने की तत्काल आवश्यकता है। पुलिस कर्मियों के व्यवहार में सुधार करने के लिए हर स्तर पर उनकी सभी छोटी व बड़ी समस्याओं का विस्तृत अध्ययन करके उनके निराकरण करने के लिए तुरंत पहल करनी होगी, जिससे कि वह भविष्य में शांतचित्त के साथ पूरी निष्ठा व ईमानदारी से अपनी ड्यूटी कर सकें।”*
वैसे तो पुलिस में सुधार करने के लिए राष्ट्रीय पुलिस आयोग की स्थापना वर्ष 1977 में कर दी गई थी, आयोग ने पुलिस में सुधार के लिए विभिन्न सिफारिश की थी, क्योंकि आयोग अच्छी तरह से जानता था कि सारी समस्याओं की केवल एक ही सबसे कारगर रामबाण दवा है, जो कि पुलिस बलों में आमूलचूल परिवर्तन करके बड़े पैमाने पर सुधार करने की है, हालांकि इस पर पिछले कई दशकों से लगातार बहस चल रही है, लेकिन अफसोस अभी तक भी धरातल पर कोई विशेष कारगर ठोस नतीजा नहीं निकला है। हालांकि सरकारों ने समय समय पर विभिन्न आयोगों के द्वारा की गयी पुलिस सुधार की कुछ सिफारिशों पर विचार किया है। लेकिन देश में पुलिस सुधारों को लेकर चर्चा तो बहुत ज्यादा होती रहती है, परंतु धरातल के हालात पर कभी कोई विशेष बड़े बदलाव नहीं किये गये हैं। वर्ष 1996 में पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने 1977-1981 के पुलिस आयोग की भुला दी गई सभी सुधार-सिफारिशों को लेकर के सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया था, लेकिन फिर भी पुलिस कर्मियों के हालात में धरातल पर ज्यादा कुछ बदलाव नहीं हुआ था। एकबार तो स्थिति यहां तक बन गयी थी कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा था कि ‘पुलिस सुधार की दिशा और दशा अपने आप तय हो रही है, हमारी तो कोई सुनता ही नहीं।’
हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने प्रकाश सिंह और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य के निर्णय में वर्ष 2006 में सात महत्वपूर्ण निर्देश दिये थे, जो कि राज्य सुरक्षा आयोग का गठन, पुलिस महानिदेशक का कार्यकाल और चयन, क्षेत्र स्तर के अधिकारियों का न्यूनतम कार्यकाल, विवेचना का कानून और व्यवस्था से पृथकीकरण, पुलिस स्थापना बोर्ड, पुलिस शिकायत प्राधिकरण थे। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्देशों के संदर्भ में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के द्वारा अनुपालन की स्थिति का निम्न मात्रात्मक मूल्यांकन विकसित किया गया, जो यह रेखांकित करता है कि राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों ने या तो सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त बेहद महत्वपूर्ण दिशा निर्देशों की विशेषताओं को सिरे से अस्वीकार कर दिया, अनदेखा कर दिया या फिर उन्हें बेहद कमज़ोर कर दिया है, जो बिल्कुल भी उचित नहीं हैं।
धरातल की स्थिति का आंकलन करें तो आज के समय में भी देश के अधिकांश राज्यों में पुलिस जिस तरह से रोजमर्रा के कार्यों में भी राजनेताओं, अधिकारियों व अन्य प्रभावशाली लोगों की सिफारिशों का दबाव झेलती है कहीं ना कहीं वह स्थिति निष्पक्ष व जल्द न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित करती है, आज पुलिस में बहुत ज्यादा सिफारिशों व हस्तक्षेप के चलते कुछ कर्मियों को तो ऐसी आदत हो गयी है कि वह बिना सिफारिश के कार्य करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं रहते हैं। हालांकि लोकतांत्रिक प्रणाली को मानने वाले हमारे देश में राजनीतिक सत्ता को किसी भी हाल में एक सिरे से नकार नहीं सकते हैं, लेकिन आज समय की मांग है कि देश में ऐसी पुलिस व्यवस्था बने कि अगर कोई भी शासन-प्रशासन व राजनीतिक या अन्य प्रभावशाली व्यक्ति पुलिस पर किसी भी प्रकार का अनुचित दबाव डालकर गलत कार्य करने वाले का सहयोग करने के लिए कहता है तो पुलिस को उसकी बात को बिल्कुल भी नहीं सुनना चाहिए और पूरी ईमानदारी से कानून के मुताबिक कार्य करना चाहिए। आज हमारे देश के आम जनमानस को एक ऐसी पुलिस व्यवस्था चाहिए, जिसका लोगों के बीच भय की जगह दिल से मान सम्मान हो, इसके लिए हमारे देश के सिस्टम को पुलिस कर्मियों की सभी समस्याओं का समाधान करके पुलिस को नागरिक-संवेदी बनाने का कार्य तेजी से करना होगा।
*”वैसे आज देश में पुलिस बलों में सुधार के लिए बहुत जरूरी है कि हम पुलिस कर्मियों के रोजमर्रा के दुःख दर्दों व उनकी वर्षों से लंबित सभी मांगों को विस्तारपूर्वक समझकर उनकी सभी समस्याओं का जल्द से जल्द धरातल पर स्थाई निदान करें। तब ही वह भविष्य में अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकते हैं।”*
इसके लिए आज सबसे पहले तो पुलिस बलों में दशकों से चली आ रही नियुक्ति प्रक्रिया में पूर्ण रूप से बदलाव करने की तत्काल आवश्यकता होगी, सभी पुलिस कर्मियों की नियुक्ति की प्रक्रिया भ्रष्टाचार से मुक्त होगी, खास तौर पर एक सिपाही से लेकर सब इंस्पेक्टर तक की नियुक्ति आज के आधुनिक काल में भ्रष्टाचार के चलते किसी भी काम की नहीं रह पाती है, इस स्थिति को रोकना होगा। वैसे भी आज की मौजूदा चयन प्रक्रिया में प्रशिक्षु पुलिस कर्मियों का प्रशिक्षण के दौरान पूरा ध्यान शारीरिक शक्ति को बढ़ाने में तो दिया जाता है, लेकिन उनको आज के समय के हिसाब से ना तो नियम कायदे कानून का ज्ञान दिया जाता , ना ही अपराध विज्ञान की विभिन्न बारिकियों से अवगत कराया जाता, ना ही अत्याधुनिक फोरेंसिक विज्ञान पढ़ाया जाता, ना ही सायबर अपराध के बारे में बताया जाता, ना ही वित्तीय धोखाधड़ी व घटना स्थल से सबूतों का संकलन और उचित प्रबंधन का विस्तृत ज्ञान दिया जाता, ना ही अपराधियों को हर हाल में सजा दिलवाने वाली निष्पक्ष जांच रिपोर्ट कैसे बने वह बताया जाता है, ना ही दुर्घटना में घायल के जीवन को बचाने के लिए प्राथमिक चिकित्सा कैसे करें आदि के संदर्भ में पूर्णतः नहीं सिखाया जाता है, जिसका लाभ अपराधी को मिलता है और वह निरंतर अपराध करता रहता है। वैसे भी समय-समय पर आने वाली विभिन्न रिपोर्टों का अध्ययन करें तो देश के अधिकांश राज्यों में जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से पुलिस कर्मियों की संख्या बहुत कम है, वहीं आज के आधुनिक काल के हिसाब से पूरी तरह से ट्रैंड पुलिस कर्मियों का बड़े पैमाने पर अभाव है, अधिकांश राज्यों में पुलिस बलों के पास चंद ही ट्रैंड पुलिस कर्मी मौजूद हैं, पुलिस बलों का बुनियादी ढांचा आज की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। आज भी पुलिस वालों को अपने खटारा वाहनों में आयेदिन धक्का लगाते हुए देखा जा सकता है, उनको दशकों पुराने जंग लगे हथियारों के दम पर अपनी जान जोखिम में डालकर जनता की सुरक्षा करने के लिए एक तरह से मजबूर किया जा रहा है, थानों में जब्त वाहन जंग खा रहे हैं, मालखाने में चुहे व दीमक मज़े उड़े रहे हैं। देश भर में राज्यवार पुलिस कर्मियों के वेतन, विभिन्न भत्तों व पेंशन में भारी असमानता है। यहां तक की सूत्रों के अनुसार धरातल का बेहद कड़वा सत्य यह है कि चौकी, थाने, वीवीआईपी ड्यूटी व पेट्रोलिंग वाहन, बेहद आवश्यक कार्य करने के लिए भी वाहनों के पर्याप्त मात्रा में डीजल व पेट्रोल के खर्चों के एक बड़े हिस्से का भी पुलिस कर्मियों को स्वयं ही जुगाड़ करना पड़ता है। चौकी व थानों के रोजमर्रा के विभिन्न खर्चों व चंद राजनेताओं और चंद शीर्ष अधिकारियों की अवैध मांगों की पूर्ति के लिए पुलिस कर्मियों को मजबूरन भ्रष्टाचार में लिप्त होना पड़ता है, जो सरासर ग़लत है। देश में पुलिस कर्मियों के लिए सुविधाओं का आलम यह है कि अधिकांश राज्यों में पुलिस कर्मियों के पास रहने के लिए पर्याप्त संख्या में सरकारी आवास तक नहीं हैं, सभी को सरकारी आवास की सुविधा मुहैया कराई जाए पुलिसकर्मियों की यह वर्षों पुरानी मांग ना जाने कब पूरी होगी। अधिकांश राज्यों के पुलिस मैस में खाने की व्यवस्था बदहाल है, अब तो इस हालात के देश में आयेदिन वीडियो वायरल होते रहते हैं, मैस में पुलिस कर्मियों को समय से गुणवत्तापूर्ण अच्छा भोजन उपलब्ध करवाना अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती है। शारीरिक क्षमता को बेहतर रखने के लिए 16-20 घंटे की अघोषित ड्यूटी करने की जगह समय से छुट्टी मिलने का पुलिस कर्मियों का दशकों पुराना सपना ना जाने आखिरकार कब पूरा हो पायेगा, कार्यक्षमता को बेहतर बनाए रखने के लिए ड्यूटी का समय 8 घंटे निर्धारित करवाना पुलिस कर्मियों का दशकों पुराना एक बहुत बड़ा सपना है। 30 दिवस का आकस्मिक अवकाश व 30 दिवस का इमरजेंसी अवकाश पुलिस कर्मियों की वर्षों पुरानी लंबित मांग है, पुलिस कर्मियों को अवकाश के मध्य में पड़ने वाला राजपत्रित अवकाश देना होगा। सभी कर्मियों को मोटरसाइकिल के पेट्रोल के लिए भत्ता दिया जाए, मोबाइल फोन के लिए भत्ता दिया जाये, ड्रेस के रखरखाव के लिए उचित भत्ता दिया जाये, पुलिसकर्मियों के परिजनों की बेहतर चिकित्सा की व्यवस्था की जाये। सब इंस्पेक्टरों को गृह जनपद छोड़कर तैनाती दी जाए। बॉर्डर स्कीम खत्म की जाए। पुलिसकर्मियों को शहादत पर सैनिक की तरह से शहीद का दर्जा दिया जाये, शाहदत व दुर्घटना पर जल्द उचित मुआवजा व परिजनों को जल्द से जल्द नौकरी दी जाये। पुलिस कर्मियों को आज के अनुसार तैयार रखने के लिए नौकरी के साथ-साथ पढ़ाई की व्यवस्था करवाई जाएं, पुलिस कर्मियों के बच्चों की शिक्षा के लिए उच्च स्तरीय गुणवत्ता पूर्ण पुलिस स्कूल बने, सेना की तरह कैंटीन की व्यवस्था लागू हो आदि वर्षों पुरानी लंबित मांगों को पूरा करके, पुलिस बलों से भ्रष्टाचार को काफी हद तक समाप्त किया जा सकता है। वैसे भी इक्कीसवीं सदी के आधुनिक भारत में अब वह समय आ गया है, जब देश के नीतिनिर्माताओं व सिस्टम को पुलिस कर्मियों की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए धरातल पर वास्तव में कार्य करना होगा, निष्पक्ष व न्याय की रक्षा के लिए पुलिस कर्मियों को किसी भी प्रकार के अनैतिक हस्तक्षेप व दबाव की गिरफ्त से मुक्त रखना होगा, पुलिस को आम जनमानस से मित्रवत व्यवहार करने वाला, शालीन, तेजतर्रार, व्यवहार कुशल बनाते हुए ‘शासक की गुलाम पुलिस’ की जगह ‘ आम जनता की दोस्त पुलिस’ में परिवर्तित करना होगा, तब ही देश में नियम कायदे व कानून का रामराज्य स्थापित होगा और आम जनमानस सुरक्षित होगा।