नफ़रत फैलाने वालों की हकीकत समझने की ज़रूरत

The need to understand the reality of those who spread hatred

के. पी. मलिक

पिछले दिनों कांवड़ यात्रियों की पवित्रता कायम रखने के नाम पर जिस प्रकार से हिंदुओं-मुसलमानों के बीच नफरत का जहर बोने की कोशिश हुई, उससे न सिर्फ दोनों धर्मों के लोगों को नुकसान हो रहा है, बल्कि जो बच्चे आज अभी तक नफरत से अनजान हैं, उनके अंदर एक खतरनाक नफरत पैदा करने की कोशिश की जा रही है। मैं ये नहीं कह रहा हूं कि किसी मुसलमान को या किसी हिंदू को एक-दूसरे की धार्मिक भावनाएं आहत करने का कोई हक है, लेकिन मैं ये भी मानता हूं कि जिस प्रकार से दोनों धर्मों के बीच एक सेकुलर विचारधारा सदियों से बनी हुई है, जिसे गंगा-जमुनी तहजीब भी कुछ लोग कहते हैं, उसे खत्म करने की कोशिशें करना देश को एक गृह युद्ध की तरफ धकेलने जैसा है, जिसका अंजाम बहुत खराब होगा। मैंने ऐसे कई लोग देखे हैं, जो किसी से कोई भेदभाव नहीं करते, किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं करते, बल्कि दूसरे धर्म के लोगों की इज्जत करते हैं, उनके साथ मिलकर उनके त्योहारों में हिस्सा लेते हैं और जब भी कोई मुसीबत किसी पर आती है, तो बिना धर्म और जाति देखे उसकी मदद भी करते हैं। लेकिन आज कुछ लोगों द्वारा नफरत की एक ऐसी जहरीली हवा चलाने की कोशिश की जा रही है, जिससे दोनों धर्मों में झगड़ा हमेशा-हमेशा की नफरत में बदल सके और इसका फायदा कम न करके नफरत की राजनीति करने वाले सियासी दलों को मिलता रहे। मैं हमेशा अपने चैनल की डिबेट और लेखो में भी कहता हूं कि चंद ज़ाहिल के लोग इधर भी हैं और उधर भी। यही इस तरह की नफरत फैलाने का एक सबसे बड़ा कारण बनते हैं। जबकि बहुतायत में अच्छे लोगों की संख्या दोनों और है। क्या कोई जाति धर्म ऐसा है, जिसमें बुरे लोग न हों? जिसमें 100 फीसदी लोग ईमानदार, अच्छे और मेहनती हों? सभी समाजों और धर्मों में अच्छे और बुरे सब तरह के लोग हैं। फिर बुरे लोगों पर सीधे कार्यवाही न करके लोगों को आपस में लड़ाने का षड्यंत्र सियासी लोग क्यों रचते रहते हैं?

साल 2013 में मैंने मुजफ्फरनगर के दंगों में जो नुकसान हिंदुओं और मुसलमानों का देखा है, उससे किसी आम हिंदू को या किसी आम मुसलमान को कौनसा फायदा हुआ? लेकिन आखिर में कुछ नेताओं को ही फायदा मिला और इस दंगे में जिन लोगों के घर उजड़ गए, उनमें से कई जेलों में बंद हैं और कई दंगों का दर्द लेकर बेघर इधर-उधर भटक रहे हैं। इसलिए लोगों को समझना होगा कि वो आपस में किसी के भड़काने या बहकाने में न आएं और भाईचारे की एक मिसाल पेश करें, जिससे देश को कोई नुकसान न हों। पहले ही लंबे समय तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा हिंदुस्तान आज तक विकास की उंचाइयां नहीं छू सका है, ऐसे में अगर हम लोग आपस में ऐसे ही लड़ते रहेंगे, तो फिर ये भूल जाना चाहिए कि लोगों की और देश की तरक्की हो सकेगी। फिर रही मांस खाने की बात, तो मैं ऐसे कई हिंदुओं के ठेकेदारों को जानता हूं, जो कट्टरता के सिवाय कोई बात नहीं करते, लेकिन वो प्योर मांसाहारी हैं और मदिरा पान भी करते हैं। बल्कि जब खाने को मिले, तो मुसलमानों के बीच बैठकर मुर्गे की टांगें चीरने में, बकरे की बोटियां उड़ाने में और यहां तक कि कई तो और भी बहुत कुछ खाने से परहेज नहीं करते। वहीं पश्चिमी यूपी के कई मुसलमानों को भी जानता हूं जो आज़ भी शाकाहारी हैं। हां, किसी का ईमान भ्रष्ट करने के लिए खाने में थूकना, उसे जूठा करना गलत है। ऐसे लोग किसी भी धर्म के हों, उन्हें सजा मिलनी चाहिए। किसी का जूठा कोई कोई भी नहीं खाएगा। सरकारों को इस तरह की गंदगी करके दूसरों का ईमान भ्रष्ट करने वालों पर सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। इसके अलावा नाम बदलकर अपना धंधा करने वालों पर कार्यवाही होनी चाहिए, लेकिन जो लोग किसी की भावनाओं को किसी भी हालत में आहत नहीं करते, उन्हें धंधा करने से रोकना भी गलत है।

ग्रामीण क्षेत्रों में हमने कभी इस तरह की नफरत को पहले नहीं देखा, अगर कहीं हिंदू-मुसलमानों में कहा-सुनी हो भी जाती थी, तो उसे पंचायत में, खासतौर पर खाप पंचायतों में निपटाकर दोषियों को सजा दी जाती थी। जाट समाज ने हमेशा दोनों धर्मों के लिए एक पुल का काम किया है और अपनी न्याय व्यवस्था यानि खाप पंचायतों के माध्यम से हमेशा हिंदू-मुसलमानों को भाईचारे की डोर से बांधे रखने की कोशिश की है।

सामाजिक कार्यकर्ता और विचारक जितेंद्र सहरावत कहते हैं कि एक बार धार्मिक अफीम के नशे से बाहर निकलकर मनुष्य को जिंदगी को जीना सीखना चाहिए। नफरत फैलाने वाले और नफरत की भाषा बोलने वाले नफरती लोग इस बात पर विचार करें कि अगर वो इतने ही सक्षम हैं कि हर काम खुद कर सकते हैं, तो फिर उन्हें पहले ये सब करके दिखाना चाहिए और कम से कम उन लोगों को नफरत की आग में नहीं झोंकना चाहिए, जो अपनी जिंदगी सर्व समाज के बीच चैन से जी रहे हैं। ये मक्कार ख़ुद कितना मुस्लिमों के द्वारा दिए जा रहे सामानों, उनके हाथ के हुनर आदि क्षेत्र की सेवाओं का त्याग कर रहे हैं? हरिद्वार के ज्वालापुर में कांवड़ बनाने वाले अधिकतर मुसलमान हैं। जय श्रीराम लिखकर भगवा झंडा बनाने वाले तक मुसलमान ही हैं, लेकिन ये नफरती लोग उन्हीं झंडों को लेकर नफरत फैलाते हैं। मुस्लिम देशों में हिंदू व्यापारी भरे पड़े हैं और मुस्लिमों के नाम पर स्लोटर हाउस व मांस निर्यात करने की कंपनी बनाकर मुस्लिम और ईसाई देशों मांस बेचने वाले बीस बड़े निर्यातक हिंदू हैं। इसके अलावा मुस्लिम देशों का तेल, खजूर, नमक और न जाने क्या-क्या हमें मंगाना पड़ता है, तो नफरत फैलाने वाले, चाहे वो कोई नेता हो या कोई दूसरा, सब खाना छोड़ देना चाहिए और मुस्लिम देशों से आने वाली हर तरह की चीजों के आयात पर रोक लगा देनी चाहिए। इसके अलावा मुस्लिम देशों में नौकरी करने वाले हिंदुओं को वापस बुलाकर उन्हें उसी लेवल की नौकरी देनी चाहिए और उनका अगर वहां व्यापार है, तो उन्हें उसी स्तर का व्यापार यहां देना चाहिए। लेकिन ये सब करना इनके वश की बात नहीं है, इसलिए ये सिर्फ मानसिक ग़ुलामों को नफ़रत की सामग्री परोसकर अपना राजनीतिक फायदा चाहते हैं और कुछ राजनीतिक दल इस प्रकार की नफरत फैलाने में माहिर है और सत्ता के लिए इन ग़ुलामों का वोट पाने के लिए कुछ भी कर सकते है। ये सियासी दल आज नफरत की आग में खुशी-खुशी कूदकर आत्महत्या करने पर आमादा गुलामों को मानव बम बनाकर उनका इस्तेमाल देश को बर्बाद करने के लिए कर रही है। जिससे समाज में आग लगी रहे जिससे सत्ता सत्ता में इनकी भागीदारी बनी रहे। लेकिन इतने पर भी कुछ लोगों को इनका इतना दोहरा चरित्र नजर नहीं आ रहा है। इसलिए नफरत करने वालों को नफरत फैलाने वालो की हकीकत समझनी होगी कि वो उन्हें किस प्रकार से इस्तेमाल कर रहे हैं? इसके अलावा इन मानसिक नफरती गुलामों की स्थिति पर बड़े दुख और अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि अगर इन्हें किसी नफरत की आग में अपनी जान भी गंवानी पड़ी, तो कोई पार्टी और कोई नेता इनके परिवार की मदद नहीं करेगा और न ही इनके नाम की श्रद्धांजलि तक देगा। ऐसे तमाम उदाहरण भरे पड़े हैं।

बहरहाल आज पश्चिमी यूपी का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता सरकार के अटपटे फरमान पर सरकार में रहकर केवल दिखावे के लिए विरोध कर रहे हैं। हमको लगता है कहीं ऐसा ना हो की ज्यादा सख्त बयान देने पर मंत्रालय ही जाता रहे। मेरे ख्याल से सियासी दलों और नेताओं के बहकावे में आने वाले एक बार इस दृष्टि से विचार करें कि उनके बहुत से काम बिना मुस्लिमों के नहीं चल सकते। आज लेबर, मिस्त्री, कारपेंटर, प्लंबर, पेंटर, मैकेनिक, मशीनों के ऑप्रेटर, सिलाई वाले, सैलून वाले और यहां तक कि घरों में काम आने वाले सामान को बनाने वाले ज्यादातर मुस्लिम ही हैं। तो ऐसे में इन कट्टरवादियों को क्या मुस्लिम लेबर, मुस्लिम मिस्त्री, मुस्लिम कारपेंटर, मुस्लिम प्लम्बर, मुस्लिम पेंटर, मुस्लिम मैकेनिक, मुस्लिम मशीनों के ऑपरेटर और शहर के हर कोने में खुले सैलून वालों से काम करवाना बंद नहीं कर देना चाहिए। और मेरे ख्याल से खुद ही इन कामों में लग जाना चाहिए। लेकिन खुद तो इनको तिलक लगाकर, गले में भगवा गमछा डालकर नफरत फैलानी है और जो लोग समाज में रह रहे हैं, जिन्हें हर रोज एक-दूसरे से काम पड़ता है, उन्हें तो न अब्दूल से परहेज है और न अतुल से कोई परहेज है। उनके लिए सब बराबर हैं। ऐसे में ये नफरत फैलाने वाले उनके कामों में क्यों अड़चन पैदा कर रहे हैं? रही बात मुसलमानों से नफरत की, तो हर प्रकार से वही लोग उनका खुद ही वायकाट करें, जो उनसे दूरी बनाने की बात कर रहे हैं, अगर उनके सभी काम बंद न हो जाएं, तो कहना। जब आप नया मकान बनाओगे, तो पत्थर काटने, टाइल, मॉल्डिंग का काम करने वाले तो सबसे ज्यादा मुस्लिम ही मिलेंगे, तो उनसे काम क्यों करवाते हो? वहीं देशभर के किसानों को अपनी खेती के आवश्यक छोटे-बड़े औजार, जैसे खुरपा, हसिया, दराती, गंडासी, कस्सी, कुल्हाड़ी आदि भी तो मुस्लिम ही बनाते हैं। हालांकि किसानों को इस नफरत से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन फिर भी जो लोग नफरत फैलाने वालों की बातों में आ रहे हैं, वो हर चीज से परहेज करें और खुद ही सभी चीजें बनाएं, तो फिर उनकी मुहिम को सफल और सही माना जाए। इसके अलावा न जाने कितने ही फल बेचने वाले, खाने की चीजें बेचने वाले, सब्जी बेचने वाले मुस्लिम ही तो हैं। मैं तो फल और सब्जियां अक्सर मुस्लिमों से ही खरीदीं होंगी, लेकिन मेरा तो कभी ईमान भ्रष्ट नहीं हुआ? इसलिए ये फालतू के राजनीतिक चोंचलों में ना घुसकर अपना ईमान खुद संभालें और हां अगर कोई दुकानदार किसी चीज को गंदा करके या उसमें जान बूझकर गंदगी डालकर उसे खराब करके खिलाने की कोशिश कर रहा है, तो उसके खिलाफ रिपोर्ट लिखवाकर कार्यवाही की मांग करें, फिर चाहे वो मुस्लिम हो या हिंदू या किसी अन्य धर्म को हो। इसी प्रकार से मैं उन मुसलमानों से भी कहना चाहूंगा जो इस नफरत में साझीदार बन रहे हैं और दूसरों का ईमान खराब करने की कोशिश कर रहे हैं कि ये लोग भी अपने ईमान पर रहें और अपनी कुरान की हिदायतों को ध्यान में रखकर एक नेक मुसलमान बनें, न कि किसी का धर्म भ्रष्ट करके अपने लिए जहन्नुम का रास्ता खोलें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)