कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया सरकार के नये आरक्षण फैसले ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है !

The new reservation decision of Karnataka Chief Minister Siddaramaiah government has created a political storm!

अशोक भाटिया

देश में आरक्षण देने के नाम पर सियासी पार्टियां अपनी रोटी सेंकती रहती हैं और चुनाव आते ही आरक्षण का मुद्दा जोर-शोर से उठने लगता है। आने वाले समय में देश के कई राज्यों में चुनाव होने हैं, हाल में कर्नाटक सरकार द्वारा मुस्लिम ठेकेदारों को निविदाओं में 4% आरक्षण देने के फैसले ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। सिद्धारमैया मंत्रिमंडल ने शनिवार को कर्नाटक सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता (केटीपीपी) अधिनियम में संशोधन को मंजूरी दे दी, जिससे 1 करोड़ रुपये तक के टेंडरों में मुस्लिम ठेकेदारों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण का रास्ता साफ हो गया, जिससे लोगों में आक्रोश फैल गया। भाजपा ने कांग्रेस पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया है।

भाजपा के रविशंकर प्रसाद ने कहा स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, अलग विश्वविद्यालय, अलग निर्वाचन क्षेत्र जैसे छोटे-छोटे मुद्दों ने अंततः स्वतंत्रता के दौरान भारत के विभाजन का कारण बना। भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने इसे धर्मांतरण को बढ़ावा देने वाला कदम बताते हुए कहा कि यह सरकार वोट बैंक की राजनीति के लिए सत्ता और सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग कर रही है और हमारी अर्थव्यवस्था को राजनीतिक अवसरवाद के खेल के मैदान में बदल रही है। बीजेपी ने कहा कि ने कहा कि संविधान के तहत धर्म आधारित आरक्षण अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना भले ही चले गए हों, लेकिन अपने पीछे वे लोग छोड़ गए हैं जो उनकी राजनीति करते हैं। प्रसाद ने कहा कि देश में बड़ी संख्या में मुसलमान अब ऐसी राजनीति पसंद नहीं करते।” प्रसाद ने कहा कि भाजपा मौलाना अबुल कलाम आजाद और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम जैसी मुस्लिम हस्तियों का सम्मान करती है। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने अंडमान और निकोबार क्षेत्र में एक द्वीप का नाम परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हामिद के नाम पर रखा है। प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस नेता इन दिनों भाजपा पर निशाना साधने के लिए भीम राव आंबेडकर की तस्वीरें लेकर घूमते हैं। उन्होंने आंबेडकर द्वारा प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की इस बात के लिए की गई आलोचना का हवाला दिया कि नेहरू मुसलमानों के लिए बोलते हैं, लेकिन अनुसूचित जातियों के कल्याण की बात नहीं करतें।

कांग्रेस पर तंज कसते हुए प्रसाद ने कहा, वे कई बार हारने के बाद भी सबक नहीं ले रहे हैं। कर्नाटक में यह आरक्षण राहुल गांधी के संरक्षण में बढ़ाया गया है। सिद्धारमैया इमें खुद इसकी घोषणा करने की न तो हिम्मत है और न ही राजनीतिक ताकत। उन्होंने आगे राहुल गांधी पर वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, राहुल गांधी सोचते हैं कि वह इस वोट बैंक की राजनीति से नेतृत्व कर सकते हैं। कांग्रेस जो तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति के नए मानक स्थापित कर रही है, वे देश के लिए हानिकारक हैं।

मालूम हो कि हमारे देश में कुल पांच राज्य ऐसे हैं, जहां सभी मुसलमानों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। और ये पांचों राज्य दक्षिण भारत से हैं। इनमें तेलंगाना है, आन्ध्र प्रदेश है, कर्नाटक है, केरल है और तमिलनाडु है। असल में भारत का संविधान धर्म के आधार पर किसी समुदाय को आरक्षण देने की बात नहीं कहता। बल्कि ये समाज में पिछड़े हुए लोगों के उत्थान के लिए आरक्षण की व्यवस्था को लागू करने की बात कहता है। और इस हिसाब से देखें तो धर्म के आधार पर किसी पूरे समुदाय को आरक्षण देना सही नहीं है और ये भारत के संविधान के भी खिलाफ है।दूसरा वर्ग है, वोक्कालिगा समुदाय का, जिसे OBC की श्रेणी में अब तक चार प्रतिशत आरक्षण मिल रहा था, लेकिन मुस्लिम आरक्षण खत्म होने के बाद ये कोटा चार प्रतिशत से 6 प्रतिशत हो गया है।

जिस तरह 6 करोड़ की आबादी वाले कर्नाटक में लगभग 80 लाख मुस्लिम आबादी है, ठीक उसी तरह साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले तेलंगाना में 45 लाख मुसलमान रहते हैं। इसके अलावा आंध्र प्रदेश की कुल आबादी 4 करोड़ 90 लाख है। जिनमें 36 लाख मुसलमान हैं। और केरल की आबादी 3 करोड़ 30 लाख है, जिनमें 90 लाख मुसलमान हैं। और तमिलनाडु की कुल आबादी 7 करोड़ 20 लाख है, जिनमें 42 लाख मुसलमान हैं।

गौरतलब है सुप्रीम कोर्ट इसके पहले कह चुका है कि आरक्षण का आधार धर्म नहीं हो सकता है।अदालत ने यह टिप्पणी पश्चिम बंगाल सरकार की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान की थी । पश्चिम बंगाल सरकार ने यह याचिका कलकत्ता हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने के लिए दायर की थी, जिसमें 2010 से पश्चिम बंगाल में कई जातियों को दिए गए ओबीसी दर्जे को रद्द कर दिया गया था। सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल ने दलील दी कि यह आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं बल्कि पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया। कलकत्ता हाई कोर्ट ने अपना फैसला इस साल 22 मई को सुनाया था।पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच सुनवाई कर रही है।अदालत ने पांच अगस्त को हुई सुनवाई में पश्चिम बंगाल सरकार से ओबीसी लिस्ट में शामिल की गई नई जातियों के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन और पब्लिक सेक्टर की नौकरियों में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व पर आंकड़े उपलब्ध मांगे थे।इस मामले की अगली सुनवाई सात जनवरी को होगी।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने फैसले में ‘इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार’ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाया था । ‘इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार’ मामले में सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों के पीठ ने 1992 में माना था कि ओबीसी की पहचान केवल धर्म के आधार पर नहीं की जा सकती और उन्हें आरक्षण नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि सभी राज्यों को राज्य ओबीसी सूची में किसी जाति को शामिल करने और उनकी पहचान करने के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस गवई ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं हो सकता। इस पर राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह धर्म के आधार पर नहीं है।यह पिछड़ेपन के आधार पर है।उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यकों की आबादी 27-28 फीसदी है। सुनवाई के दौरान जब सिब्बल ने कहा कि क्या सैद्धांतिक रूप से मुस्लिम आरक्षण के हकदार नहीं हैं। इस पर जस्टिस गवई ने कहा,”आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं हो सकता है।” इस पर सिब्बल ने कहा,”यह आरक्षण धर्म पर आधारित नहीं है, बल्कि पिछड़ेपन पर आधारित है जिसे न्यायालय ने बरकरार रखा है।हिंदुओं के लिए भी यह पिछड़ेपन का आधार है। पिछड़ापन समाज के सभी वर्गों के लिए आम है।”

मोरारजी देसाई की सरकार ने पिछड़ी जातियों के शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन का पता लगाने के लिए बीपी मंडल के नेतृत्व में मंडल आयोग का गठन एक जनवरी 1979 को किया था। मंडल आयोग ने 1980 में अपनी रिपोर्ट पेश की। इस आयोग ने पिछड़ी जातियों के लिए 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की थी।उस समय केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार थी, लेकिन उसने रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया। उनके बाद आई राजीव गांधी की सरकार ने भी इस दिशा में कुछ नहीं किया। कांग्रेस से बगावत कर निकले वीपी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का निर्णय लिया।

सरकार ने तीन हजार 743 जातियों को मिलाकर उन्हें ओबीसी में 27 फीसदी आरक्षण दिया गया। उसी मंडल आयोग ने मुस्लिम समुदाय की कुछ जातियों को भी ओबीसी में शामिल किया था । उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, केरल और असम जैसे राज्यों में मुसलमानों की कुछ जातियां ओबीसी का आरक्षण ले रही हैं।

लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल पीडीटी अचारी कहते हैं कि राज्य सरकार को इस बात का अख्तियार है कि वह रिजर्वेशन दे सकता है। यही कारण है कि अलग अलग राज्यों ने रिजर्वेशन दे रखा है। कर्नाटक, तामिलनाडु और केरल आदि में मुस्लिम को ओबीसी कैटिगरी में राज्य सरकार ने रखा है। इसके तहत सरकारी नौकरी और एजुकेशनल संस्थानों में रिजर्वेशन दिया जाता रहा है। यहां नया सिर्फ यह है कि टेंडर प्रक्रिया में रिजर्वेशन दिया गया है। कैबिनेट फैसला ले सकती है और इसमें कोई शक नहीं है। यह अलग बात है कि इस फैसले को संवैधानिक कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। संसद या विधानसभा से पास किसी भी कानून को संवैधानिक अदालत में चुनौती दी जा सकती है। तब अदालत स्क्रूटनी करती है और यह देखती है कि कानून या सरकार का फैसला संविधान के दायरे में है या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ज्ञानंत सिंह बताते हैं कि शीर्ष अदालत में सरकारी नौकरी में रिजर्वेशन से संबंधित मसला आया है और मौजूदा मामला टेंडर से संबंधित है। संवैधानिक तौर पर यह रिजर्वेशन शायद ही टिक पाए। क्योंकि संविधान में आर्टिकल 15 व 16 में रिजर्वेशन दिए जाने का प्रावधान है। एजुकेशनल इंस्टिट्यूट में दाखिले के लिए आर्टिकल 15 के तहत प्रावधान है और सरकारी नौकरी में रिजर्वेशन का प्रावधान आर्टिकल 16 में है।

पिछली कर्नाटक सरकार (बीजेपी सरकार) ने अप्रैल 2024 में मुस्लिम ओबीसी के रिजर्वेशन को खत्म कर दिया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। कर्नाटक के मुस्लिम कम्युनिटी की ओर से कहा गया था कि कर्नाटक सरकार ने मुस्लिम ओबीसी का चार फीसदी रिजर्वेशन जो खत्म किया है, उसके लिए कोई उनके पास कोई स्टडी नहीं है। वहीं 26 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक सरकार ने कहा था कि मुस्लिम समुदाय को धर्म के आधार पर नौकरी में रिजर्वेशन न देने का जो फैसला किया गया है वह सोच विचार कर किया गया क्योंकि यह रिजर्वेशन असंवैधानिक है और संविधान के अनुच्छेद-14 व 16 के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम रिजर्वेशन का वह मामला अभी भी पेंडिंग है।

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार