सीता राम शर्मा ” चेतन “
आगामी दो वर्ष भारत के साथ पूरे विश्व के लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हैं । यह समय ना सिर्फ भारत के अगले पच्चीस-पचास वर्षों का भविष्य निर्धारित करेगा बल्कि इन दो वर्ष के वैश्विक घटनाक्रमों का अगली दो सदी तक प्रभाव भी प्रत्यक्ष दिखाई देगा । यदि आगामी दो वर्ष में भारत में वर्तमान भारतीय सत्ता ने खुद को मजबूत और स्थिर बनाए रखा तो निःसंदेह यह भारत के स्वर्णिम भविष्य का सबसे महत्वपूर्ण कालखंड सिद्ध होगा । गौरतलब है कि 2014 में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद से भारत आतंरिक और वैश्विक रुप से जिस तरह निरंतर सशक्त, समर्थ, समृद्ध तथा शक्तिशाली हुआ और हो रहा है गति की उस स्थिति को बनाए रखना बेहद जरुरी है, क्योंकि वर्तमान समय भारत के नव परिवर्तन और नवोत्थान के वैचारिक और व्यवहारिक राष्ट्रीय जीवन का बाल्यकाल है ! पिछले नौ वर्षों में जिस तरह से स्वच्छता, सुरक्षा, सामूहिकता, सुशासन, सुशिक्षा और सर्वोच्च कर्तव्यनिष्ठता के मानवीय, तकनीकी, सामाजिक, संवैधानिक और संस्थागत संसाधनों के संगठित विकास को गति दी गई है, वह किसी भी समृद्ध, सशक्त, सफल, सम्मानित और विकसित राष्ट्र के निर्माण की प्राथमिक और प्रारंभिक जरूरत होती है । सौभाग्य से भारत को यह स्थिति सर्वोच्च नेतृत्व के साथ अनुकूल वैश्विक वातावरण और विषम परिस्थितियों के बीच नसीब हुई है । उस नेतृत्व को नव विकास की बाल्यावस्था अर्थात दस वर्षीय अवस्था के बाद भी कम से कम अगले पांच वर्षों तक बनाए रखने की आवश्यकता आवश्यक रुप से रहेगी क्योंकि पिछले नौ वर्षों में जो सुधार और विकास कार्य प्रारंभ और पूर्ण हुए हैं उसे राष्ट्रीय स्वभाव बनाते हुए पूर्ण रूप से विकसित करने का यह महत्वपूर्ण कालखंड होगा । अगले छह वर्ष बदलाव को स्वभाव बनाने का समय है जिसमें नेतृत्व और सत्ता का बदलाव सिर्फ अभाव और भटकाव ही उत्पन्न करेगा, जिससे हर हाल में बचने की जरूरत है । हर हाल में इसलिए क्योंकि वर्तमान सरकार द्वारा हुए, हो रहे और अवश्यंभावी रुप से होने वाले संभावित बदलाव से देश का अधिकांश जनमानस जहां खुश, संतुष्ट, गौरवान्वित और आशावान है वहीं विपक्षी और विरोधी ताकतें डरी, घबराई और बौखलाई हुई है । यह सच बहुत आवश्यक रुप से हर भारतीय और उसके नेतृत्व को समझना होगा । वर्णित आगामी छह वर्ष का समय ना सिर्फ व्यतीत नौ वर्षीय विकास को ज्यादा सार्थक, सशक्त, समृद्ध और सुचारु बनाने तथा बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं बल्कि यह वह अविश्वसनीय अनमोल समय है जिसमें भारत अपनी उन कई कमियों और कमजोरियों से भी पार पा लेगा, जिसका अच्छा प्रभाव और परिणाम भारत सदियों तक भोगेगा और गलत तथा षड्यंत्रकारी ताकतें पूरी तरह नष्ट हो जाएंगी !
अब बात आगामी दो वर्षों के वैश्विक महत्व और उसमें संभावित उथल-पुथल तथा त्रासदी की, तो यह सर्वविदित है कि पिछले एक वर्ष से ज्यादा समय से चलता रुस-युक्रेन युद्ध का विस्तार अब बहुत लंबे समय से चली आ रही तृतीय विश्वयुद्ध की संभावनाओं को भयावह रुप में परिवर्तित करने के बहुत करीब है ! कहने सुनने को अब तक इस युद्ध को रुस-युक्रेन युद्ध कहा जा रहा है, पर सच्चाई यह है कि यह रुस के विरुद्ध युक्रेन के साथ कई नाटो देशों के द्वारा लड़ा जा रहा छद्म युद्ध है, जिसके बहुत निकट भविष्य में ही अत्यंत भयावह होने की आशंकाएं निरंतर बलवती होती चली जा रही हैं । यह स्थिति तब है, जब इस युद्ध को प्रारंभ करने की विवशता उत्पन्न करने वाले देश और उनका समूह निरंतर इस युद्ध पर अपने घड़ियाली आंसू बहाते हुए उसे रोकने का जाना समझा प्रायोजित असफल प्रयास जारी रखे हुए हैं । रुस को कमजोर और तबाह करने की नीति और नीयत से चलाया जा रहा यह युद्ध वास्तव में एक घोर षड्यंत्रकारी कूटनीतिक युद्ध है । जिसमें बहुत ज्यादा संभावना यह भी है कि इसमें मित्र और सहयोगी देशों के द्वारा भारी मात्रा में अर्थ और शस्त्र सहयोग की कई घोषणाएं रुस के विरुद्ध महज एक मनोवैज्ञानिक कूटनीतिक युद्ध का हिस्सा हो । बावजूद इसके इस युद्ध के परिणाम को लेकर इस बात में अंश मात्र भी संदेह नहीं है कि यदि युक्रेन रुस के सामने उसकी कुछ शर्तों पर नतमस्तक हो हार स्वीकार करते हुए युद्ध विराम को राजी नहीं हुआ और अमेरिका के साथ नाटो देशों की रुस के विरुद्ध षड्यंत्रकारी नीति जारी रही तो अंततः रुस का क्रोध तीसरे विश्व युद्ध का मुख्य कारण होगा, जिसकी आग में युक्रेन से ज्यादा नुकसान अमेरिका का होगा । पूर्ण संभावित उस तृतीय विश्वयुद्ध की स्थिति में कई देश अवसर का लाभ उठा आपसी कटूता और शत्रुता के तहत आपस में युद्धरत होंगे, इसमें भी कतई संदेह नहीं होना चाहिए । कुल मिलाकर रुस युक्रेन के बीच जारी युद्ध को तृतीय विश्वयुद्ध का प्रारंभ कहा और माना जा सकता है । जिसे रोकने के समय रहते ईमानदार प्रयास नहीं किए गए तो युद्ध विस्तार और परमाणु युद्ध से होने वाली भारी वैश्विक तबाही से उबरने में कम से कम दो सदी लग जाएगी ।
अंतिम बात यह कि वर्तमान समय, विशेषकर इक्कीसवीं सदी के आगामी दो वर्ष भारत के साथ पूरे विश्व के लिए बेहद महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे । वर्तमान दौर इस सदी के सबसे सक्षम, आक्रामक और शक्तिशाली शासकों के शासन का दौर है । जिसका प्रभाव दशकों तक बहुत स्पष्ट दिखाई भी देगा ।