प्रदीप शर्मा
राष्ट्रपति के साथ अब उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर भी सियासी हलचल तेज हो गई है। छह अगस्त को उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होना है। 19 जुलाई तक नामांकन होगा। लेकिन अब तक न तो भाजपा की अगुआई वाली एनडीए और न ही विपक्ष की तरफ से कोई उम्मीदवार घोषित किया गया है। ऐसे में नामों को लेकर कयासबाजी भी जारी है।
संसद के दोनों सदनों में सदस्यों के आंकड़ों पर नजर डालें तो भाजपा काफी मजबूत दिख रही है। इतना की खुद के दम पर अपने प्रत्याशी को उपराष्ट्रपति बनवा सकती है। ऐसे में विपक्ष के सामने कई चुनौतियां हैं।
उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज के जरिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति से होता है। संसद के दोनों सदनों के सदस्य इसमें हिस्सा लेते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में निर्वाचित सांसदों के साथ-साथ विधायक भी मतदान करते हैं, लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव में केवल लोकसभा और राज्यसभा के सांसद ही वोट डाल सकते हैं।
राष्ट्रपति चुनाव में मनोनीत सांसद वोट नहीं डाल सकते हैं, लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव में ऐसा नहीं है। उपराष्ट्रपति चुनाव में ऐसे सदस्य भी वोट कर सकते हैं। राज्यसभा में 12 मनोनीत सदस्य होते हैं। अभी इनमें से तीन खाली हैं। हालांकि, उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले इन तीन सीटों को भरा जा सकता है।
अभी लोकसभा में सदस्यों की संख्या पूरी है 543 सांसद हैं। वहीं, राज्यसभा में कुल 245 सदस्य होते हैं। इनमें 12 नामित सांसद रहते हैं। मौजूदा समय में आठ सीटें खाली हैं। इनमें चार जम्मू कश्मीर विधानसभा भंग होने के कारण जबकि एक सीट त्रिपुरा के नए मुख्यमंत्री बने माणिक साहा ने छोड़ी है। तीन अन्य नामित सदस्यों की सीट भी खाली है। सरकार उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले नामित सदस्यों के लिए खाली सीटें भी भर सकती है।
विपक्ष के किसी दल ने अब तक उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर कोई पहल नहीं की है। राष्ट्रपति चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने इसकी जिम्मेदारी उठाई थी। जिसके बाद विपक्ष के अन्य दल भी एकजुट हुए थे। इस बार ऐसा कुछ नहीं दिखाई दे रहा है। वह भी तब जब नामांकन को अब केवल सात दिन बचे हैं। ऐसे में संभव है कि विपक्ष इस बार कोई उम्मीदवार ही न खड़ा करे।
दूसरा यह भी हो सकता है कि विपक्ष की तरफ से सांकेतिक तौर पर किसी को उम्मीदवार बना दिया जाए। यह इसलिए क्योंकि कांग्रेस, टीआरएस, सपा जैसे दल भाजपा को वॉकओवर नहीं देना चाहते हैं। ऐसे में विपक्ष के अन्य नेताओं से बात करके कांग्रेस खुद ही किसी को सांकेतिक तौर पर उम्मीदवार बना सकती है।
यह भी चर्चा है कि उप राष्ट्रपति पद के साझा उम्मीदवार के नाम पर चर्चा करने के लिए अगले एक दो दिनों में विभिन्न विपक्षी दलों के नेता बैठक करेंगे और इसमें राकांपा प्रमुख शरद पवार भी शामिल होंगे। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस, वाम दल, तृणमूल कांग्रेस, राकांपा, द्रमुक, राजद, सपा और अन्य विपक्षी दलों के नेता इस बैठक में शामिल होंगे।
देश के दूसरे नंबर के संवैधानिक पद के लिए विपक्षी दलों ने अब तक किसी उम्मीदवार के नाम का सुझाव नहीं दिया है। सत्तारूढ़ राजग ने भी अभी तक उप राष्ट्रपति पद के लिए अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। हालांकि, कई नामों पर चर्चा है जिसमें भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी का नाम भी शामिल है।
मौजूदा समय में लोकसभा में भाजपा के 303 सदस्य हैं, जबकि राज्यसभा में 91 हैं। राज्यसभा में इन 91 के अलावा पांच नामित सदस्य भी भाजपा को वोट दे सकते हैं। इस तरह से भाजपा के पास मौजूदा समय 394 वोट आसानी से हो जाते हैं। इनमें पांच नामित सदस्यों के वोट जोड़ दें तो ये संख्या 399 हो जा रही है। मतलब साफ है भाजपा उपराष्ट्रपति उम्मीदवार को खुद के बल पर आसानी से जीत दिला सकती है।
अगर सहयोगी दलों को भी इसमें शामिल कर लें तो भाजपा और मजबूत हो जाएगी। अभी लोकसभा में 31 और राज्यसभा में 16 सांसदों का समर्थन भाजपा को मिला हुआ है। इनमें जेडीयू, आरपीआई, लोक जन शक्ति पार्टी, अपना दल, एआईएडीएमके, एनपीपी जैसी पार्टियां शामिल हैं। इनके वोट जोड़कर भाजपा के पास 446 वोट हो जाते हैं।
बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, बसपा, शिरोमणि अकाली दल जैसे कुछ और दलों ने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया है। अगर ये दल उपराष्ट्रपति चुनाव में भी एनडीए उम्मीदवार का समर्थन करते हैं आंकड़ा और बड़ा हो जाएगा।
बीजेडी के पास अभी लोकसभा और राज्यसभा के कुल 21, वाईएसआर कांग्रेस के पास 31, बसपा के पास 11, शिरोमणि अकाली दल के दो सदस्य हैं। इन सभी के मतों को अगर जोड़ लें तो भाजपा का आंकड़ा 500 के पार हो जाएगा। चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को 511 वोट मिल सकते हैं। मतलब जीत के लिए निर्धारित 393 या 391 मतों से कहीं ज्यादा वोट भाजपा उम्मीदवार को मिल जाएंगे।