जिसने कक्षा को आंदोलन बना दिया — विजय गर्ग की कहानी

The one who turned the classroom into a movement - Story of Vijay Garg

रविवार दिल्ली नेटवर्क

विजय गर्ग केवल एक शिक्षक नहीं हैं — वे एक मार्गदर्शक हैं, एक विचारक हैं, और समाज के निर्माताओं में से एक हैं। उन्होंने शिक्षा को केवल पाठ्यक्रम की सीमा में नहीं बाँधा, बल्कि इसे जन आंदोलन बना दिया। डिजिटल माध्यमों के ज़रिए उन्होंने “न्यू नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी” की स्थापना की, जो विज्ञान और गणित के विद्यार्थियों के लिए अध्ययन सामग्री, मार्गदर्शन, प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकें, और सामान्य ज्ञान के स्त्रोत बिल्कुल निशुल्क उपलब्ध कराती है।

डिजिटल सेवा: ज्ञान का सशक्त माध्यम
विशेष रूप से व्हाट्सएप समूहों के ज़रिए उन्होंने सैकड़ों विद्यार्थियों को NEET, JEE, UPSC, IAS, ओलंपियाड्स और अन्य कठिन परीक्षाओं की तैयारी के लिए डिजिटल स्वरूप में पुस्तकें और गाइड्स उपलब्ध कराईं। ये सभी संसाधन निःशुल्क थे — और यही उनके प्रयास को अनूठा बनाता है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि तकनीक केवल सुविधा नहीं, बल्कि समान अवसरों का माध्यम भी हो सकती है।

लेखन: विचारों की मशाल
विजय गर्ग के लिए लेखन महज़ शौक नहीं, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी है। वे अब तक हज़ारों लेख अंग्रेज़ी, हिंदी और पंजाबी में राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पत्र–पत्रिकाओं में प्रकाशित कर चुके हैं।

जूनियर साइंस रिफ्रेशर जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में उनका नियमित कॉलम प्रकाशित होता रहा है। उनके लेख शिक्षा के साथ–साथ सामाजिक चेतना, पर्यावरण, विज्ञान संचार, जीवन कौशल और विद्यार्थियों की मनोवैज्ञानिक ज़रूरतों जैसे विविध विषयों पर केंद्रित होते हैं।

125 से अधिक पुस्तकें: ज्ञान का खज़ाना
एक लेखक के रूप में वे अब तक 125 से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं। ये पुस्तकें NPSE, NMMS, वैदिक गणित, सामाजिक विज्ञान, कक्षा 9वीं–10वीं के गणित और 12वीं कक्षा की गणित के त्वरित दोहराव के लिए समर्पित हैं।

उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने कठिन विषयों को सरल भाषा और रोचक उदाहरणों के माध्यम से सहज बना दिया। खासकर ग्रामीण पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों को उनके लेखन ने आत्मविश्वास दिया कि “सपना देखने का हक़ सबको है।”

विज्ञान के प्रति समर्पण
विज्ञान उनके लिए किताबों का विषय नहीं, बल्कि नवाचार का ज़रिया था। उन्होंने राष्ट्रीय विज्ञान मेले में दो बार और राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में तीन बार भाग लिया।

जय विजय पत्रिका में प्रकाशित उनके लेख कई बार प्रथम पुरस्कार जीत चुके हैं। उनके विद्यार्थियों की विज्ञान परियोजनाएँ राज्य स्तर पर चयनित और सम्मानित हो चुकी हैं — यह उनकी प्रेरणादायक शिक्षण शैली का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

सेवानिवृत्ति के बाद भी सेवा जारी
उन्होंने यह साबित किया कि सेवा से कभी सेवानिवृत्ति नहीं होती। शिक्षा विभाग से 58 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होने के बाद भी उनका जीवन ठहरा नहीं। वे नए विषयों पर पुस्तक लेखन, डिजिटल अध्ययन सामग्री का वितरण, और करियर काउंसलिंग में लगातार सक्रिय हैं।

वे विद्यार्थियों और अभिभावकों के लिए निशुल्क करियर मार्गदर्शन सत्र आयोजित करते हैं, जिनसे अब तक सैकड़ों परिवार लाभान्वित हो चुके हैं।

सम्मान और पहचान
शिक्षा विभाग ने उनके योगदान को विशेष प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित किया है, जिसे पंजाब शिक्षा सचिव द्वारा प्रदान किया गया।

लेकिन असली सम्मान वे मानते हैं — उन विद्यार्थियों की सफलता, जो उनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन से जीवन में आगे बढ़ रहे हैं।

परिवार और मूल्यपरंपरा
विजय गर्ग के परिवार में भी शिक्षा की गहरी जड़ें हैं। उनके पुत्र डॉ. अंकुश गर्ग, वर्तमान में सरकारी मेडिकल कॉलेज, श्रीनगर में रेडियोलॉजी में MD कर रहे हैं — यह प्रमाण है कि उन्होंने अगली पीढ़ी को भी उन्हीं मूल्यों से संस्कारित किया है।

थकावट नहीं, समर्पण की शक्ति
आज जब उम्र 62 को छू चुकी है, शरीर विश्राम चाहता है, तब विजय गर्ग का मन नई रचनाओं, नए विचारों, और नई सामाजिक योजनाओं में रमा हुआ है। वे जीवंत प्रमाण हैं कि सेवा और सृजन की कोई उम्र नहीं होती।

वे आज भी निरंतर सीख रहे हैं, सिखा रहे हैं, और समाज को दिशा दे रहे हैं।

एक विचार, जो संस्था बन गया
विजय गर्ग केवल शिक्षक नहीं हैं, वे एक विचारधारा हैं — सेवा और सादगी की विचारधारा। वह विचारधारा जो आज के समय में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो चुकी है।

ऐसे जीवन को केवल किसी पुस्तक का विषय नहीं होना चाहिए, बल्कि यह एक आंदोलन की शुरुआत हो — एक ऐसा आंदोलन जहाँ हर विद्यार्थी शिक्षक बने, और हर शिक्षक समाज का शिल्पकार।

विजय गर्ग की कहानी हमें यही सिखाती है —
कि शिक्षा का सबसे बड़ा स्वरूप वह है, जो जीवन बदल दे।