मनोहर मनोज
नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत सतत विकास लक्ष्य रिपोर्ट (एसडीजी) 2024 ने भारतीय अर्थव्यवस्था की बड़ी ही गुलाबी तस्वीर पेश की है। एसडीजी के कुल 16 निर्धारित क्षेत्रों में से असमानता पैरामीटर को छोडक़र लगभग 15 क्षेत्रों में भारत की अर्थव्यवस्था ने पर्याप्त बढोत्तरी हासिल की हैं। एसडीजी 2024 के जो दो महत्वपूर्ण बिंदू प्रदर्शित हुए हैं उसमे अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में आई बेहतरी है तो दूसरी ओर देश के अधिकतर राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों का प्रदर्शन ना केवल शानदार है बल्कि उनमे आपसे में कड़ी प्रतिस्पर्धा भी परिलक्षित हुई है। इसकेे परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था का कुल प्राप्तांक इस बार 71 है, जो वर्ष 2020-21 में प्रस्तुत पिछली एसडीजी रिपोर्ट में 66 था। गौरतलब है कि सतत विकास लक्ष्य रिपोर्ट वर्ष 2018 में शुरू की गई थी तब भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन का कुल अंक योग 57 था। इसके बाद वर्ष 2019-20 में यह अंक बढकर 60 तथा वर्ष 2020-21 में 66 अंक हो गया था।
गौरतलब है कि सतत विकास लक्ष्य के निर्धारित पैमाने आगामी वर्ष 2030 तक के दीर्घकालीन वैश्विक सतत विकास एजेंडे के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को ध्यान में रखकर नीति आयोग द्वारा तैयार जाता है।
नवीनतम एसडीजी इंडिया इंडेक्स 2023-24 भारत के केन्द्रीय सांखियकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय संकेतक ढांचे (एनआईएफ) से जुड़े 113 बिंदू पर देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की प्रगति को मापने का प्रयास है।
इसमे 16 एसडीजी क्षेत्र निर्धारित किये गए हैं जिसमे 1 नगण्य गरीबी, 2. नगण्य भूख 3 अच्छा स्वास्थ्य और खुशहाली 4. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा 5. लैंगिक समानता 6 स्वच्छ जल एवं सफाई 7. सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा 8 अच्छा काम और आर्थिक विकास 9 उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढाँचे का विकास 10 असमानता में कमी 11 टिकाऊ शहर और समुदाय 12 जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन 13 जलवायीव सक्रियता 14 जलीय विकास 15 भूमि पर जीवन 16. शांति, न्याय और मजबूत संस्थाएं।
पहले लक्ष्य यानी शून्य गरीबी के पैमाने पर एसडीजी में 12 अंकों की बढोत्तरी होकर यह 60 से 72 पर पहुंच गई है। आठवें लक्ष्य यानी उत्कृष्ट कार्य और आर्थिक विकास में 7 अंकों की बढत होकर 61 से 68 पर, तेरहवें लक्ष्य यानी जलवायीय सक्र्रियता मानक 13 अंक बढकर 54 से 67 हो गया है और लक्ष्य संखया 15 यानी जमीन पर जीवन, 9 अंक बढकर 66 से 75 हो गया है। रिपोर्ट का सबसे चिंताजनक बिंदु लक्ष्य संखया 10 यानी असमानताओं में आई कमी वाला हैै जिसमे प्राप्त अंक 65 हैं। यह अंक न केवल पिछली एसडीजी रिपोर्ट 2020-21 से कम है, बल्कि 2018 की पहली एसडीजी रिपोर्ट में प्रदर्शित 71 अंक से भी कम है। यानी भारत की असमानता को लेकर पिछले साल आक्सफेम रिपोर्ट की सच्चाई एसडीजी रिपोर्ट ने भी पुष्ट कर दी है।
एसडीजी 2024 रिपोर्ट की जो प्रमुख उपलब्धियाँ बताई गई है उसमे पहला पीएम आवास योजना के तहत ग्रामीण और शहरी दोनो क्षेत्र में बने 4 करोड़ से अधिक घर, ग्रामीण भारत में 11 करोड़ शौचालय और लगभग 2.23 लाख सामुदायिक शौचालयों का निर्माण, उज्ज्वला योजना के तहत 10 करोड़ एलपीजी कनेक्शन। 15 करोड़ से अधिक घरों में नल जल कनेक्शन जो योजना देर से लाई गई लेकिन जल्दी प्रसरित हुईं। 30 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को पीएम आयुष्मान योजना के तहत लाया जाना ।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के तहत 80 करोड़ लोगों का कवरेज। आरोग्य मंदिर नाम से 1.5 लाख प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना। पीएम जनधन के तहत खुले 52 करोड़ बैंक खाते के जरिये 34 लाख करोड़ की राशि का डीबीटी ट्रांसफर। पीएम कौशल भारत मिशन से 2 करोड़ युवाओं का कौशल विकास । स्वरोजगार और स्ट्रीट वेंडर गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए लाई गई पीएम मुद्रा ऋण योजना से 43 करोड़ लोगों के बीच 22.5 लाख करोड़ रुपये का ऋण वितरण। स्टार्ट अप और स्टैंड अप योजनाओं से देश में उद्यमिता के लिए एक नया माहौल । सौभाग्या योजना से सभी के लिए बिजली का लक्ष्य हासिल करना। ऊर्जा और नवीकरणीय ऊर्जा विशेष रूप से सौर ऊर्जा का उत्पादन 2.82 गीगावॉट से बढक़र 73.32 हो जाना तथा पिछले 6 वर्षों के दौरान बिजली उत्पादन में 100 गिगावॉट की वृद्धि तथा देश में डिजिटल बुनियादी ढांचे का विस्तार जिससे इसकी लागत 97 प्रतिशत कम हो गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रदर्शन को देखें तो इसमे देश के उत्तरी और पूर्वी राज्यों का प्रदर्शन बेहद उल्लेखनीय रहा है। उत्तराखंड और केरल ने अधिकतम 79 अंक ,तमिलनाडु ने 78 अंक हासिल किये हैं। बिहार (57), झारखंड (62), नागालैंड और मेघालय (63 ) जैसे राज्यों को छोडक़र, सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश का प्राप्तांक 65 से ऊपर हैं।
2018 और 2023-24 के बीच सबसे तेजी से आगे बढऩे वाले राज्यों में यूपी हैं ( 25 अंक ), इसके बाद जम्मू-कश्मीर (21), उत्तराखंड (19), सिक्किम (18), हरियाणा (17), असम, त्रिपुरा और पंजाब (सभी 16), एमपी और ओडिशा 15-15 अंक हैं।
देखा जाए तो पिछले 25 वर्षों के दौरान भारत की जो विकास गाथा रही है वह उल्लेखनीय होने के साथ विविधतापूर्ण और नवीन भी रही है। इसमे कुछ बेहतर तरीके से डिज़ाइन और लक्षित योजनाओं मसलन जनधन योजना जिसमे करीब 52 करोड़ बैंक खाते खोले गए, दूसरा सौभाग्य योजना, जिसने देश को पूरी तरह से विद्युतीकृत कर दिया, और देश के हर घर तक बिजली कनेक्शन की पहुंच सुनिश्चित हुई और तीसरी पीएम आवास योजना का बढ़ता दायरा उल्लेखनीय है। कुल मिलाकर पिछले दस सालों में देश के करीब 25 करोड़ नागरिक गरीबी रेखा से ऊपर उठे हैं। अभी बीपीएल आबादी देश की कुल जनसंखया का 11 प्रतिशत है। हालाँकि, उज्ज्वला, शौचालय निर्माण, नल जल कनेक्शन, जन सुरक्षा जैसी योजनाओं को लेकर कई मतभिन्नताएं रही है जिसमे हमारे प्रशासनिक तंत्र की भ्रष्टाचार की कई कहानी जुड़ी होती हैं। बहुत से उज्ज्वला लाभार्थियों ने सिर्फ इसलिए गैस चूल्हा जलाना छोड़ दिया, क्योंकि एलपीजी सिलेंडर बहुत महंगा था। इसी तरह मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान शौचालय निर्माण को एक मिशन के रूप में लिया गया था, लेकिन उसके बाद यह योजना शिथिल रूप में आ गई। अब यह देखा जा रहा है देश के कई गांवों में महिलाएं सूर्यास्त के बाद पास के खेतों में फिर से जाने लगी हैं। अटल पेंशन योजना जैसी जन सुरक्षा योजना कुछ हद तक ग्रामीण और कमजोर वृद्ध लोगों की सामाजिक सुरक्षा की जरूरत को पूरा करती है, लेकिन वास्तव में देश को एक राष्ट्रव्यापी पेंशन योजना की आवश्यकता है, जिसमें 60 से ऊपर की लगभग 15 करोड़ की आबादी को कम से कम रु. 1000 प्रति माह प्रदान किया जाए। चौथा, पीएम आरोग्य योजना जैसी योजना निश्चित रूप से गरीब लोगों को टाइप 3 बीमारी के लिए कवर करने वाली एक बीमा योजना है, लेकिन हमारी मौजूदा स्वास्थ्य नीति और प्रणाली देश की करीब 100 करोड़ आबादी की दैनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं की पूर्ति में अक्षम है जो पूरी तरह से सरकार पर निर्भर हैं। बहुत कम लोगों को निजी अस्पताल नेटवर्क से रियायती सीजीएचएस दरों पर दैनिक उपचार की आवश्यकताएं पूरी हो पाती है। मुफत खाद्यान्न को भी एक अच्छी कल्याणकारी नीति नहीं कहा जा रहा है, जिससे सरकार पर तीन लाख करोड़ की सब्सिडी का भारी बोझ आ रहा है। दूसरा इससे कृषि को बाजार का लाभ मिलने से वंचित होना पड़ता है और तीसरा यह योजना 80 करोड़ आबादी को अकर्मण्य और परजीवी बना रही है। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था को अभी और कई संतुलित सुलझी और समुचित नीतियों की दरकार है।