
सुनील कुमार महला
महज़ तीन-चार महीने ही बीते होंगे कि अयान और सान्वी अपने तीन बच्चों–रेयान, अनन्या और अद्विका के साथ गाँव से आकर एक बड़े मेट्रो सिटी में बस गए थे। गाँव में खेत, ट्यूब वैल, खेतों में लहलहाती फसलें तो वहीं चरागाहों में चरते ढ़ोर, तालाब, जोहड़ और खुली हवा थी, लेकिन शहर में तेज़ रफ्तार जिंदगी, ट्रैफिक व फैक्ट्रियों का शोर और धुंआ, और हर तरफ भाग-दौड़ और आपा-धापी भरा माहौल था। शहर की सुबह हल्की-सी धुंध और तेज़ रफ्तार के संग जागती थी। सड़कों पर दूध और अख़बार वाले साइकिलें दौड़ाते निकल जाते, तो कहीं ऑटो और बसों की घरघराहट सुनाई देती। गाड़ियों के हॉर्न, चाय की दुकानों से उठती भाप, और फुटपाथ पर जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाते लोग—सब मिलकर एक अलग-सी भागदौड़ का संगीत रचते। आसमान में उगता सूरज कांच की ऊँची इमारतों पर सुनहरी चमक बिखेर देता, और पार्कों में कुछ लोग अब भी मॉर्निंग वॉक या योग में मग्न रहते। इस भीड़-भाड़ के बीच, हर कोई अपने दिन की दौड़ शुरू करने को तैयार दिखता। शुरुआत में तो बच्चे शहर आकर काफी खुश हुए।उनके तीन बच्चे—रेयान, अनन्या और अद्विका—नई-नई चीज़ों में खोए रहते और उन्हें शहर में आकर एक अलग ही रोमांच का अनुभव हुआ, लेकिन जैसे-जैसे समय के पंख लगते जा रहे थे, उनका यह रोमांच जैसे खत्म सा हो रहा था। कुछ ही समय में उन्होंने यह महसूस किया कि यहां की जिंदगी में शोरगुल, प्रदूषण और हर कहीं तन्हाइयों का ही आलम है, मन की शांति बहुत कम या न के बराबर ही है। सान्वी को सबसे ज्यादा चिंता इस बात की थी, कि शहर की आपाधापी भरी जिंदगी में उसके बच्चों का ध्यान पढ़ाई और संस्कारों से भटक न जाए। वह चाहती थी कि उसके बच्चे अन्य बच्चों की भांति सिर्फ और परीक्षाओं में अंकों और प्रतियोगिता के पीछे न भागें, बल्कि जीवन में ‘धैर्य’ और ‘आत्मसंयम’ भी सीखें। अयान का भी यह मानना था कि जीवन में सफलता सिर्फ और सिर्फ मेहनत से नहीं, बल्कि सही मनोवृत्ति से मिलती है। सफलता के लिए स्पष्ट लक्ष्यों के साथ धैर्य और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखना बहुत ही महत्वपूर्ण और आवश्यक है। एक दिन की बात है। सुबह के समय सान्वी घर में झाड़ू-पौंछा कर रही थी। तभी उनके मोहल्ले में लाउडस्पीकर की आवाज उसके कानों में गूंजी—’सुनिए…सुनिए…सुनिए…आपके शहर में आगामी सप्ताह भव्य जन्माष्टमी उत्सव, मटकी-फोड़, झूलन और भजन-संध्या का आयोजन किया जा रहा है। आप सभी से निवेदन है कि आप इस पावन अवसर पर सभी जरूर-जरूर पधारें और पुण्य के भागीदार बनें !’ सान्वी झाड़ू पौंछा करते-करते यह सब बड़े ध्यान से सुन रही थी। लाउडस्पीकर पर घोषणा सुनकर वह मन ही मन जैसे मुस्काई और दौड़कर अयान के कमरे में आई और उससे कहने लगी-‘ सुना आपने ? अपने शहर में जन्माष्टमी उत्सव का आयोजन किया जा रहा है।ये अच्छा मौका है, बच्चों को भगवान् कृष्ण जी का असली संदेश समझाने का।’ अयान ,सान्वी की बातों से जैसे सहमत था। वह सान्वी की बात सुनकर मन ही मन मुस्काया और सान्वी को कहा-‘तुम बिल्कुल ठीक कहती हो। अच्छा तो मेरे लिए एक गरमागरम चाय तो दे दो।’ सान्वी ने अपने पति अयान की बात सुनी और चाय बनाने के लिए रसोई में आ गई। थोड़ी देर बाद उसने अयान को चाय सर्व की और उसने खुद भी चाय की चुस्कियां लीं। बाद में वह घर के काम-काज में व्यस्त हो गई।उसे पता ही नहीं चला, धीरे धीरे शाम होने लगी थी। शाम को सब खाने की मेज़ पर बैठे थे।सान्वी ने बच्चों से पूछा—’ अच्छा बताओ तो, कि हम जन्माष्टमी क्यों मनाते हैं ?’ रेयान बोला—’क्योंकि इस पावन दिन , कृष्ण भगवान का जन्म हुआ था।’ अनन्या ने भी चहककर कहा—’और इस दिन भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की झांकियां निकाली जाती हैं, लड्डू गोपाल जी की पूजा-अर्चना की जाती है, हंसी-ठिठोली होती है,जागरण किए जाते हैं, और हम माखन-मिश्री खाते हैं!’ तभी अद्विका भी मासूमियत से बोली—’और इस दिन दही की मटकी(दही हांडी) भी फोड़ते हैं!’ अयान ने हंसते हुए हामी में अपना सिर हिलाया—’ बेटा ! ये सब सही है, लेकिन इसकी असली वजह कुछ और है।’ इसी बीच, सान्वी ने थोड़ा गंभीर होकर कहा—’बेटा, मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि हमारे मन की गलत आदतें—जैसे गुस्सा, लालच, आलस्य—हमारे दुखों का मूल कारण हैं। भगवान कृष्ण ने हमें यह सिखाया है कि व्रत, तप और उपासना से हम इन्हें नियंत्रित कर सकते हैं।’ इस पर रेयान ने अपनी भौंहें सिकोड़कर पूछा—’लेकिन ये सब करना इतना जरूरी क्यों है?’ तभी अयान ने जवाब दिया—’क्योंकि जब मन पर हमारा नियंत्रण होता है, तो डर और अज्ञान का अंधेरा अपने आप मिट जाता है। तब ही मनुष्य को असली सुख की प्राप्ति होती है। बेटा ! मन ही वास्तव में मनुष्य की सभी शक्तियों का स्त्रोत है। मन की शक्ति से ही मनुष्य जीतता है और मन की दुर्बलता से ही हार जाता है। मन ‘चेतन’ और ‘अचेतन’ दोनों ही स्तरों पर व्यक्ति के संपूर्ण व्यवहार और व्यक्तित्व को प्रभावित करता है।मन की स्थिरता और शुद्धता से ही हमारे संकल्प को दृढ़ता प्राप्त होती है।’ सान्वी ने तुरंत एक विचार रखा—’क्यों न इस जन्माष्टमी हम सब बिना गुस्से, नाराज़गी या शिकायत के इस त्योहार को हर्षोल्लास और खुशियों संग मनायें ?’ बच्चे थोड़े चौंके। ‘मतलब, होमवर्क ज्यादा हो तो भी कुछ न बोलें?’ अनन्या ने संदेह से पूछा। ‘हाँ,’ सान्वी हँस पड़ी—’और अगर खिलौना टूट भी जाए, तो भी नहीं।’जन्माष्टमी का दिन आया। सुबह से ही घर में मीठी-सी शांति थी। उस दिन अनन्या अपनी मम्मी सान्वी के कहने पर रसोई घर में गैस चूल्हे पर दूध गर्म कर रही थी, दरअसल वह अपने पापा के मोबाइल में विडियो गेम खेल रही थी कि अचानक दूध उबलकर गैस चूल्हे और आसपास फैल गया, लेकिन उसने बिना शिकायत के, बिना कुछ कहे खुद ही उसे साफ कर दिया। रेयान की ऑनलाइन क्लास में आज नेटवर्क नहीं आ रहा था, पर उसने नाराज़ होने की बजाय अपनी टेक्स्ट बुक निकाल ली और उसे पढ़ने लगा। उधर, अद्विका चुपचाप ड्रॉइंग बनाने में व्यस्त नजर आ रही थी। अयान और सान्वी ने एक-दूसरे को देखा—मानो घर में हवा भी हल्की हो गई हो। साढ़े तीन बज चुके थे। दोपहर की चाय बनी, अयान और सान्वी ने चाय का सेवन किया। चाय पीने के बाद सान्वी कपड़ों को इस्त्री करने में व्यस्त हो गई। उधर, दोपहर में अयान ने बच्चों को झूले पर बैठाकर भगवान कृष्ण की कहानियाँ सुनाईं— ‘बेटा ! कृष्ण कभी कठिनाइयों से नहीं भागे, बस मुस्कुराकर उनका सामना किया।’ उस दिन शाम को मोहल्ले में मटकी-फोड़ प्रतियोगिता शुरू हुई। ऊँची मटकी देखकर अनन्या पीछे हटने लगी—’ अरे ! ये तो बहुत ऊँची बांधी गई है!’ तभी रेयान ने उसका हाथ थामा—’डर को मन में जगह मत देना, याद है ?’ कुछ देर बाद टीमवर्क से उन्होंने मटकी फोड़ दी। माखन, मिश्री और खिलौनों की बारिश से सब खिलखिला कर हँस पड़े। रात को घर लौटते समय सान्वी ने पूछा—’तो, आज कैसा लगा?’ रेयान ने कहा—’गुस्सा न करने से दिन आसान लग रहा था। आज तो समय का जैसे पता ही नहीं चला।’ अनन्या बोली—’और डर अपने आप कम हो गया।’ अद्विका खुशी से बोली—’….और हम जीते भी !’ अयान ने धीरे से कहा—’यही है जन्माष्टमी का असली व्रत—अपने मन को काबू में रखना, डर और अज्ञान को दूर करना, और हमेशा खुश रहना।’ उस दिन के बाद, महीने में एक दिन जैसे उनका ‘मनोवृत्ति व्रत’ का दिन बनने लगा था और धीरे-धीरे उनकी यह आदत उनकी रोज़मर्रा की जिंदगी में उतर गई। शहर का शोर अब भी था, लेकिन इस परिवार के भीतर एक शांत झील थी—जहाँ लहरें आतीं, पर उन्हें डुबो नहीं पातीं। और हर साल जन्माष्टमी पर, वे उस दिन को याद करते, जब उन्होंने माखन और मिश्री के साथ-साथ मन की ‘मीठी शांति’ का भी स्वाद चखा था। उन्होंने यह सीख लिया था कि प्रेम, क्षमा, और अध्यात्म के मार्ग पर चलकर, हम अपने भीतर की बुराई पर विजय प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को सकारात्मकता और खुशी से भर सकते हैं।