अफगानिस्तान के मामले में भारत ने ज‍िस तरह की भूमिका ली है, उससे मुस्‍ल‍िम देशों में उसकी साख बढ़ी है

The role India has taken in the Afghanistan issue has enhanced its credibility in Muslim countries.

अशोक भाटिया

जिस तेजी से विश्व राजनीतिक परिदृश्य पर नई दोस्ती एक साथ आ रही है और पुरानी दोस्ती टूट रही है, उससे यह जानना मुश्किल है कि किसे दोस्त माना जाए और किसे दुश्मन माना जाए। जिस अमेरिका के साथ भारत ने पिछले 25 सालों से संबंधों को मजबूत करने की कोशिश की है और अमेरिका से पूरी प्रतिक्रिया मिली है, उसने भारत के दुश्मन नंबर पाकिस्तान को चूमना शुरू कर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दुश्मनों के बजाय दोस्तों को प्रताड़ित कर रहे हैं। वे सौदों में रुचि रखते हैं और प्रक्रिया से नफरत करते हैं। इसलिए, यह स्वाभाविक है कि वे भारत की तुलना में तानाशाही के रास्ते पर चलने वाले पाकिस्तान को अधिक पसंद करते हैं, जो लोकतांत्रिक मार्ग पर चलता है।

उधर पाकिस्तान जो लंबे समय से खुद को इस्लामिक जगत का लीडर बताता रहा है और यह मानता रहा है कि सभी मुस्लिम देश हर मुद्दे पर उसका साथ देंगे। कश्मीर मुद्दे को इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) में उठाने की उसकी कोशिशें इस रणनीति का हिस्सा रही हैं। लेकिन हाल के घटनाक्रम और OIC के भीतर से ही भारत को लेकर नरम होते रुख ने पाकिस्तान को परेशान कर द‍िया है। जैसा कि ऑपरेशन सिंदूर या अफगानिस्तान के साथ सीमा पर तनाव के दौरान देखा गया। तुर्की और अजरबैजान को छोड़कर ज्‍यादातर प्रमुख मुस्लिम देशों ने पाकिस्तान का खुला समर्थन नहीं किया। यहां तक कि उसके पारंपरिक सहयोगी सऊदी अरब और यूएई ने भी भारत के साथ रिश्तों को तवज्‍जो दी।

अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच पिछले कुछ दिनों से खींचतान चल रही है और इस कड़वाहट के खत्म होने के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि पाकिस्तान के बराबर दक्षिण एशिया में कोई और अधिक परेशानी वाला देश न हो, यह आवश्यकता तब और भी स्पष्ट हो जाती है जब बांग्लादेश जैसा पुराना सहयोगी अफगानिस्तान में तालिबान शासकों के प्रति शत्रुतापूर्ण हो जाता है। दूसरा, हमें एक नकदी व्यापारी बनने की आवश्यकता है, चाबहार का बंदरगाह जिसे हम ईरान में विकसित कर रहे हैं, जिसके लिए मध्य एशिया के लिए व्यापार मार्ग सुनिश्चित करने के लिए तालिबान की अनुकूलता की आवश्यकता है। यह है। पिछले साल जून में पाकिस्तान और चीन के विदेश मंत्रियों ने काबुल में मुलाकात की थी और अफगानिस्तान के माध्यम से पाकिस्तान-चीन आर्थिक गलियारे के विस्तार पर चर्चा की थी। एक व्यापार मार्ग को चुनौती देने के लिए, यह जरूरी है कि दूसरा व्यापार मार्ग चालू हो जाए। अगर वह बनना चाहता था, तो उसे तालिबान के साथ सुलह करनी होगी। अफगानिस्तान और पाकिस्तान इस समय गहन टकराव में लगे हुए हैं, और बेहतर है कि वे इस भ्रम में न रहें कि वे दोनों तरफ से पाकिस्तान को घेरने में सक्षम होंगे क्योंकि तालिबान के पास पाकिस्तान को घेरने के लिए सैन्य ताकत नहीं है, और इस क्षेत्र में चीन के व्यापारिक हितों के कारण, अगर संघर्ष एक निश्चित बिंदु से आगे बढ़ जाता है तो चीन मध्यस्थता करेगा भारत को इसके लिए इंतजार नहीं करना चाहिए और सतर्क कदम उठाने चाहिए। तालिबान की इस गारंटी का स्वागत किया जाएगा कि वे अफगान धरती पर भारत विरोधी गतिविधियों की अनुमति नहीं देंगे, जिसके बाद वहां निवेश बढ़ाना होगा, जो खैबर दर्रे की ओर जाता है, जिसने दर्रे को पार करने वाली महान शक्तियों के अपमान को देखा है, और केवल खैबर दर्रे में सावधानी का यह खेल खेलने की सलाह दी जाती है।

यूएई और सऊदी अरब जैसे खाड़ी देश अब पाकिस्तान की कश्मीर केंद्रित कूटनीति से दूरी बना रहे हैं। ये देश अब अपनी ऊर्जा जरूरतों, निवेश, व्यापार और प्रवासी भारतीयों की विशाल संख्या के कारण भारत को एक महत्वपूर्ण साझेदार मानते हैं। हाल ही में, यूएई और सऊदी अरब ने पाकिस्तान के कुछ शहरों के नागरिकों को वीजा देने पर प्रतिबंध लगाने जैसे कदम उठाए हैं, जो पाकिस्तान के प्रति उनके बदलते नजरिए को दर्शाते हैं। ये देश भारत में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहे हैं और भारत के साथ स्‍ट्रेटजि‍क पार्टनरश‍िप बढ़ा रहे हैं।

मुस्लिम मुल्‍क, खासकर खाड़ी देश अब अपनी अर्थव्यवस्थाओं की निर्भरता तेल से हटाकर इन्‍वेस्‍टमेंट पर करना चाहते हैं। भारत की मजबूत और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था उनके लिए एक आकर्षक बाजार और इन्‍वेस्‍टमेंट डेस्‍ट‍िनेशन है। वे आतंक, अस्थिरता और संघर्ष की राजनीति से दूर हटकर लंबे समय तक वाली आर्थिक साझोदारी चाहते हैं, जो सिर्फ भारत उन्‍हें दे सकता है। यही वजह है क‍ि मुस्लिम देशों में भारत को लेकर नजरिया काफी हद तक बदल गया है। अब वे पाकिस्तान के मुकाबले भारत को एक ज्यादा स्थिर, आर्थिक रूप से मजबूत और भरोसेमंद साझेदार के रूप में देखते हैं।1, भारत, दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और खाड़ी देशों के लिए एक बड़ा व्यापारिक भागीदार है। लाखों भारतीय प्रोफेशनल्‍स खाड़ी देशों की इकोनॉमी में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बहरीन, UAE, फिलिस्तीन और सऊदी अरब जैसे देशों से सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिलना, इन देशों के साथ भारत के प्रगाढ़ होते संबंधों को दर्शाता है।2, मिस्र के साथ भारत के संबंध अशोक के शिलालेखों तक पुराने हैं। महात्मा गांधी और साद जघलौल ने दोनों देशों के र‍िश्तों को एक नया मुकाम द‍िया था। इस तरह के गहरे सभ्यतागत संबंध कई मुस्लिम देशों के साथ भारत के हैं, जो केवल धर्म पर आधारित नहीं हैं, बल्कि इतिहास और साझा मूल्यों पर टिके हैं।3, तुर्की और पाकिस्तान के बीच सैन्य सहयोग भारत के लिए चिंता का विषय रहा है, लेकिन दूसरी तरफ, भारत कई अरब देशों के साथ सैन्य अभ्यास और रक्षा सहयोग बढ़ा रहा है। यह ज‍ियोपॉल‍िटकल बैलेंस को भारत के पक्ष में झुकाता है।

अफगानिस्तान के मामले में भारत ने ज‍िस तरह की भूमिका ली है, उससे मुस्‍ल‍िम देशों में साख बढ़ी है। भारत वहां अरबों डॉलर का इन्‍वेस्‍टमेंट क‍िया है। स्कूल, सड़कें और यहां तक कि अफगान संसद भवन का निर्माण भी कराया। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद भी भारत ने इंगेजमेंट विदाउट रिकॉग्निशन की नीति अपनाई और काफी मदद की।भारत की इस नीत‍ि ने अफगानिस्तान के लोगों का द‍िल जीत ल‍िया। पाकिस्तान से बढ़ते तनाव के बीच तालिबान के साथ भारत का ‘टेक्निकल मिशन’ के माध्यम से सीमित जुड़ाव पाकिस्तान के विरोधियों के साथ संबंध बनाने की चाणक्य नीति जैसा है, जिससे मुस्लिम देशों में भी भारत की कूटनीतिक कुशलता का संदेश जाता है।

फिलिस्तीन का मुद्दा मुस्‍ल‍िम देशों के ल‍िए द‍िल से जुड़ा हुआ है। चाहे ईरान हो, कतर, मिस्र, सऊदी या फ‍िर यूएई सब वहां शांत‍ि चाहते हैं। एक स्‍वतंत्र फ‍िल‍िस्‍तीन बनाने की ख्‍वाह‍िश रखते हैं। ऐसे वक्‍त में जब पूरी दुन‍िया अमेर‍िका के आगे जी हजूरी करने में लगी है, भारत फ‍िल‍िस्‍तीन की आवाज बनकर डटकर खड़ा है। लगातार अमीर देशों को चेता रहा है क‍ि फ‍िल‍िस्‍तीन की बात सुने। फ‍िल‍िस्‍तीन से क‍िए वादे पूरे करो। भारत ने वहां मदद भी भेजी है। इन सब चीजों ने मुस्‍ल‍िम देशों को भारत के साथ जोड़ने में बड़ी भूमिका निभाई है। मिस्र के विदेश मंत्री का यह दौरा स्वयं भारत के बढ़ते प्रभाव का प्रमाण है। इसके अलावा, खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत तेज होना भारत के साथ रिश्तों की नई कहानी कहता है।