ललित गर्ग
‘शायर-ए-जमाल’-सौन्दर्य का कवि कहलाने वाले फिराक गोरखपुरी उर्दू शायरी का देश एवं दुनिया का एक फनकार हैं जिसका रचना-संसार जीते-जी ही नहीं, मरकर भी गूंज रहा है। गोरखपुर को जिन वजहों से दुनिया भर में पहचान मिली, फिराक गोरखपुरी को हमें उनमें आगे की पंक्ति में रखना ही होगा। नाम के आगे गोरखपुरी लगाकर उन्होंने उर्दू अदब की दुनिया में गोरखपुर को जो ऊंचाई दी, गोरखपुर ही नहीं बल्कि समूचे पूर्वांचल के लोग इसके लिए गौरव का अनुभव करते हैं। शायरी कहने के अपने अलमस्त और बेलौस अंदाज को लेकर वह शायरों में ही नहीं, आमजन के बीच भी हमेशा चर्चा का विषय रहे।
रघुपति सहाय से फिराक गोरखपुरी बने, वे भारत के एक प्रसिद्ध उर्दू शायर, कवि, लेखक और आलोचक थे। उनकी साहित्यिक प्रतिभा कविता, गजल और निबंध सहित विभिन्न शैलियों में फैली हुई है। प्रगतिशील लेखक आंदोलन के एक प्रमुख व्यक्तित्व, गोरखपुरी की रचनाओं में मानवीय भावनाओं और सामाजिक मुद्दों की गहरी समझ झलकती है। उनकी काव्यात्मक अभिव्यक्ति ने शास्त्रीय लालित्य को आधुनिक संवेदनाओं के साथ जोड़ा, जिन्होंने शायरी को लोक बोलियों से जोड़कर उसमें नई लोच, नई रंगत, नई ऊर्जा उत्पन्न की। उन्हें फारसी, हिन्दी, ब्रजभाषा और भारतीय संस्कृति की गहरी समझ थी, इन्हीं कारणों से उनकी शायरी में भारत की विविधताओं युक्त सांझी रची-बसी हुई है। वे जन-कवि और सौन्दर्य के परम उपासक के रूप में असंख्य लोगों के दिल और दिमाग में रचे-बसे हैं।
फिराक गोरखपुरी का जन्म 28 अगस्त 1896 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ। वे एक अमीर परिवार से संबंधित थे। उनके पिता का नाम मुंशी गोरख प्रसाद था, वे पेशे से वकील थे, किन्तु शायरी में उनका बहुत नाम था। इसी कारण फिराक को शायरी की प्रेरणा पिता से भी मिली। बचपन के चमकते-दमकते वैभव के बावजूद उनकी नजरें हमेशा जमीन की ओर देखती रही।
उनकी जिन्दगी और रचनाओं का सफर न केवल रोचक रहा, बल्कि प्रेरणा का स्रोत भी रहा। उर्दू कविता के प्रति उनके मन मे छोटी आयु में ही रुझान था। बाल्यावस्था में ही उन्होंने उर्दू में कविताएं लिखना आरंभ कर दी। वे साहिर, इकबाल, फैज, तथा कैफी आजमी से अत्यधिक प्रभावित हुए। रामकृष्ण परमहंस की कहानियों से आरंभ करने के बाद उन्होंने अरबी, फारसी और अंग्रेजी में शिक्षा ग्रहण की। पढ़ाई में वे बड़े ही योग्य एवं होनहार विद्यार्थी थे। सन् 1917 में डिप्टी कलेक्टर के पद के लिए चुने गए परंतु महात्मा गांधी के स्वराज्य आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्होंने 1918 में पद से त्यागपत्र दे दिया। 1920 में स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के कारण उनको डेढ़ वर्ष की जेल की यात्रा सहन करनी पड़ी। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक भी रहे। उनका कहना था कि उर्दू केवल मुसलमानों की भाषा नहीं है बल्कि आम भारतवासियों की भाषा है। पंडित जवाहरलाल नेहरू उनकी इस सोच से अत्यधिक प्रभावित हुए, उन्होंने फिराक को राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया। नेहरू ने फिराक को जेल से छूटने के बाद अखिल भारतीय कांग्रेस के कार्यालय में अन्डर सेक्रेटरी बना दिया। लगभग 50 वर्षों तक वे सांप्रदायिक सद्भाव एवं सौहार्द के लिए काम करते रहे। फिराक की कविता में कुछ स्थानों पर रूमानियत देखी जा सकती है उन्होंने वियोग, श्रृंगार के सुंदर चित्र अंकित किए हैं।
अपनी हाजिर जवाबी की वजह से फिराक काफी मशहूर थे। उनका बातचीत का लहजा इतना चुटीला होता था कि एक बार कोई उनके पास बैठ जाए तो उठता नहीं था। वह जो भी बोलते थे, बेधड़क बोलते थे और अंदाज ऐसा कि महफिल ठहाकों में भर उठती थी। वे जिन्दादिल इंसान थे तो चित्रता में मित्रता के प्रतीक थे। समस्याओं के आर-पार जाने की क्षमता, वास्तविकताओं पर पड़े आवरणों को तोड़ देने की ताकत, मनुष्य की चिन्ता, सौन्दर्य की अभिव्यक्ति उनकी शायरी एवं सृजन में भी दिखाई पड़ती है। इतिहास और वर्तमान-दोनों जगह वह उत्पीड़न के खिलाफ थे और उसकी अभिव्यक्ति में पूरी तरह भयमुक्त थे। उनके जीवन के सारे सिद्धांत मानवीयता की गहराई से जुड़े थे और उस पर वह अटल भी रहते थे किन्तु किसी भी प्रकार की रूढ़ि या पूर्वाग्रह उन्हें छू तक नहीं पाती। वह हर प्रकार से मुक्त स्वभाव के थे और यह मुक्त स्वरूप भीतर की मुक्ति का प्रकट रूप है। यह उनके व्यक्तित्व की बड़ी उपलब्धि है। स्वभाव में एक औलियापन है, फक्कड़पन है और अलमस्त अंदाज है। किसी को उनका व्यक्तित्व भाया तो किसी को वह बिल्कुल पसंद नहीं आए लेकिन उनके शेरों की कद्र हर किसी ने पूरी तबीयत से की। उनका लोहा तब भी जग ने माना और आज भी मान रहा है। वे सदियों तक इसी तरह अपनी शायरी के कारण जीवंत बने रहेंगे।
उनकी जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा इलहाबाद बीता। और यहीं से वे शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचे। इलाहाबाद में फिराक, महादेवी वर्मा और निराला को मिलाकर उस दौर के साहित्य की दुनिया की त्रिवेणी बनती थी। उनकी अनौपचारिक संगोष्ठियों में अंग्रेजी के विद्वानों के साथ-साथ तुलसी, कालिदास और मीर के पाठ भी समानांतर चलते थे। गहरी-गहरी और गोल-गोल डस लेने वाली आंखों में उनके व्यक्तित्व का फक्कड़पन खूब जाहिर होता था। फिराक के पिता भी अच्छे शायर थे, इसलिए उनके आवास लक्ष्मी निवास पर साहित्यकारों की खूब महफिल सजती थी। महफिल सजाने वालों में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द भी शामिल थे। कई बार प्रेमचंद वहां रुक भी जाते थे, जब फिराक की पत्नी को उनके लिए परहेजी खाना बनाना पड़ता था। इस दौरान फिराक का प्रेमचंद से एक खास रिश्ता बन गया था। फिराक की बेटी प्रेमा देवी ने अपने एक संस्मरण में लिखा है कि लक्ष्मी निवास पर पंडित नेहरू भी कई बार आए थे क्योंकि नेहरू के वे काफी नजदीक थे।
फिराक भरी-पूरी संभावनाओं का नाम रहा है, जहां साहित्य की अनेक सरिताएं प्रवहमान रही हैं। फिराक तबीयत से भले ही हर किसी को बागी नजर आए लेकिन उनकी शायरी सहज थी। उनके शेरों में संवेदनाएं, नेकदिली और जिंदादिली का अहसास कोई भी कर सकता है। उर्दू गजल के पारंपरिक अंदाज में बिना किसी छेड़छाड़ के नए लहजे की शायरी की जो अद्भुत मिसाल उन्होंने पेश की, उससे शायरी के कद्रदानों के अलावा मशहूर शायर भी उनके कायल हो गए। निदा फाजली जैसे शायर ने तो शायरी की दुनिया में गालिब और मीर के बाद फिराक को तीसरे पायदान पर रखा है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और महादेवी वर्मा जैसे साहित्यकारों के सान्निध्य में उन्होंने अपनी शायरी को ऊंचाई दी। पद्मश्री अली सरदार जाफरी ने फिराक को उर्दू शायरी की नई आवाज करार दिया। जोश मलीहाबादी ने कहा कि फिराक उर्दू के उस्ताद शायरों में एक बड़े नामवर गोशे के मालिक हैं। साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ तिवारी ने फक्कड़, मूडी, गुस्सैल आदि अनेक परिचय के धनी फिराक को शायरी के दुनिया का बेताज बादशाह कहा है। यही कारण है कि मिर्जा गालिब और अमीर खुसरो की तरह ही फिराक गोरखपुरी के जीवन पर भी कई फिल्में बन चुकी हैं। एक फिर फिल्म गवर्नमेंट आफ इंडिया के फिल्म डिविजन ने भी बनाई है। फिराक के जीवन पर कई किताबें भी लिखी गईं हैं। उनकी स्वयं की अनेक पुस्तक हैं, जिनमें प्रमुख हैं- गुल-ए-नगमा, बज्म-ए-जिंदगी, रंगे शायरी, मशअल, रूह-ए-कायनात, नग्मा-ए-साज, गजलिस्तान, शेरिस्तान, शबनमिस्तान, रूप, धरती की करवट, गुलबाग, रम्ज व कायनात, चिरागा, शोअला व साज, हजार दास्तान, हिंडोला, जुगनू, नकूश, आधी रात, परछाइया और ताराना-ए-इश्क, सत्यम शिवम सुंदरम। इसके अलावा फिराक ने एक उपन्यास ‘साधु और कुटिया’ तथा कई कहानियां भी लिखीं हैं। वे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हुए हैं- 1960 में साहित्य अकादमी अवार्ड, 1968 में साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में पद्मभूषण सम्मान, 1969 में गुल-ए-नगमा के लिए ज्ञानपीठ अवार्ड एवं 1969 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार। वे ऐसे लेखक एवं शायर हैं, जिनके जीवन की चादर पर सकारात्मकता, संवेदना एवं प्रेम के रंग बिखरे हुए है। फिराक दार्शनिक कवि-शायर हैं तो सनातन सत्य एवं जीवनमूल्यों को सहजता से उद्घाटित करने वाले जादूगर भी है। वे उर्दू नक्षत्र का ऐसा जगमगाता सितारा हैं, जिसकी रोशनी शायरी को सराबोर करती रहेगी, इस अलमस्त शायर की शायरी की गूंज हमारे दिल और दिमाग में हमेशा जिन्दा रहेगी। उन्हीं के शब्दों में कहें तो-
ऐ मौत आके खामोश कर गई तू,
सदियों दिलों के अन्दर हम गूंजते रहेंगे।