बांसवाड़ा की धरती पर सोने की चमक

The shine of gold on the land of Banswara

दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी अंचल में उभरती एक नई उम्मीद

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

राजस्थान का आदिवासी बहुल बांसवाड़ा जिला, जो अब तक राजस्थान का चेरापूंजी और माही बांध के बेक वाटर में 100 टापुओं की भूमि ( सिटी ऑफ हंड्रेड आईलैंड) के रूप में जाना जाता था तथा हाल ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यहाँ राज्य के दूसरे परमाणु बिजली घर की आधारशिला रखी थी। इसके अलावा बांसवाड़ा अब धीरे-धीरे सोने के खजाने के रूप में भी अपनी नई पहचान बनाने जा रहा है। बांसवाड़ा में एक बार फिर सोने का भंडार मिलने की पुष्टि हुई है, जिससे बांसवाड़ा पूरे प्रदेश में चर्चा का केंद्र बन गया है।

सोने की तीसरी खान की आधिकारिक पुष्टि
घाटोल विधानसभा क्षेत्र के कांकरिया गांव में की गई है। भूवैज्ञानिकों को लगभग तीन किलोमीटर लंबे क्षेत्र में स्वर्ण अयस्क के ठोस संकेत मिले हैं।जल्द ही माइनिंग लाइसेंस जारी होने के बाद यहां खनन प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इससे पहले घाटोल के जगपुरिया और आनंदपुरी (भूखिया) के गांवों में भी सोने की खानों की पुष्टि हो चुकी है, जिससे यह इलाका अब राजस्थान के गोल्ड हब के रूप में उभर रहा है।

बांसवाड़ा में सोने के साथ अन्य खनिजों के भंडार होने की भी जांच की जा रही है। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, कांकरियागड़ा ब्लॉक में सोने के साथ-साथ तांबा (कॉपर), कोबाल्ट और निकेल जैसे अन्य कीमती खनिजों के भंडार भी मौजूद हैं। सरकार ने इस ब्लॉक में जी-2 (डीप सर्वे) स्तर की जांच शुरू करने की प्रक्रिया आगे बढ़ा दी है। इसके लिए 29 सितंबर को आवेदन भी मांगे गए थे, जिसकी अंतिम तिथि 14 अक्टूबर तय की गई थी । अब उम्मीद है कि 3 नवंबर तक आवेदन खुले रहेंगे, जिसके बाद सर्वाधिक बोली लगाने वाली कंपनी को क्षेत्र के पूर्वेक्षण का लाइसेंस जारी किया जाएगा। सोने का यह ब्लॉक कांकरियागड़ा, डूंगरियापाड़ा, देलवाड़ा रावना और देलवाड़ा लोकिया गांवों के 2.59 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। हालांकि,यह किसानों की कृषि भूमि पर है। सरकार का मानना है कि यदि खनन शुरू होता है तो यह न केवल जिले के आर्थिक विकास में सहायक होगा, बल्कि राजस्थान को खनिज संपदा के क्षेत्र में एक नई पहचान भी देगा।
बांसवाड़ा अब केवल टापुओं का नहीं, बल्कि सोने के खजाने का जिला बनने की ओर बढ़ रहा है।

राजस्थान की धरती हमेशा से खनिज संपदा के लिए प्रसिद्ध रही है । चाहे वह तांबा हो, जस्ता, संगमरमर या ग्रेनाइट परंतु अब इस मरूभूमि के दक्षिणी छोर, बांसवाड़ा जिले से जो खबरें आ रही हैं। वे इस भूभाग के आर्थिक भविष्य की दिशा बदल सकती हैं। यहाँ की मिट्टी के नीचे सोना छिपा है । वह धातु जिसने सदियों से मानव सभ्यता को आकर्षित किया है। हाल ही में राज्य के खनन विभाग और भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण की रिपोर्टों ने यह पुष्टि की है कि बांसवाड़ा जिले के भुखिया-जगपुरा और कांकड़िया-गारा क्षेत्र में सोने के बड़े भंडार मौजूद हैं। अनुमान है कि इस क्षेत्र में लगभग 113.52 मिलियन टन गोल्ड ऑर है, जिससे 222 टन से अधिक शुद्ध सोना निकाला जा सकता है।

बांसवाड़ा, जो दक्षिण राजस्थान के वागड़,मेवाड़ और मालवा की सीमाओं पर बसा आदिवासी बहुल जिला है, अब राजस्थान के खनन मानचित्र पर सुनहरी जगह बना रहा है। इस क्षेत्र में पहले से ही तांबा, निकल और कोबाल्ट जैसे धातुओं के संकेत मिले थे, लेकिन अब सोने की खोज ने इसे राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया है।खनन विभाग के अनुसार, भुखिया-जगपुरा ब्लॉक में लगभग 940 हेक्टेयर क्षेत्र में सोने की उपलब्धता के प्रमाण मिले हैं, जबकि कांकड़िया-गारा ब्लॉक (घाटोल तहसील) में करीब 205 हेक्टेयर में नयी संभावनाएँ उभरी हैं। इन दोनों ब्लॉकों की नीलामी की प्रक्रिया राज्य सरकार ने शुरू कर दी है और हाल ही में एक नीलामी को दस्तावेज़ी अनियमितताओं के चलते रद्द कर पुनः खोला गया है।

राजस्थान सरकार ने 2025 में सोने की खान के लिए “कॉम्पोजिट लाइसेंस” जारी करने हेतु निविदाएँ आमंत्रित की हैं। यह लाइसेंस खोज, खनन और उत्पादन तीनों कार्यों की अनुमति देता है।कांकड़िया-गारा ब्लॉक की बोली प्रक्रिया अगस्त 2025 में पुनः खोली गई है और अंतिम तिथि 3 नवंबर निर्धारित की गई है। यह राज्य की अब तक की सबसे चर्चित खनन परियोजनाओं में से एक मानी जा रही है। पहले दौर में मध्य प्रदेश की एक खनन कंपनी ने बोली जीती थी, लेकिन बाद में पूरी नीलामी रद्द करनी पड़ी। इस कदम से सरकार ने यह संकेत दिया कि अब खनन क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही सर्वोच्च प्राथमिकता होगी।

बांसवाड़ा में सोने की खानें केवल खनन की परियोजना नहीं हैं । वे इस क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक जीवन को गहराई से प्रभावित करने वाली विकास योजना भी हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, अगर यह परियोजना पूर्ण रूप से शुरू होती है, तो स्थानीय स्तर पर हजारों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होंगे।

खनन से होने वाले राजस्व से राज्य सरकार की आमदनी में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी। राजस्थान खनिज संसाधनों के मामले में पहले से अग्रणी है, और अब सोने की खानें उसे देश के “खनिज राजधानी” के रूप में नई पहचान दिला सकती हैं।

बांसवाड़ा जिला मुख्य रूप से भील और मीणा जनजातियों का क्षेत्र है। यहाँ के ग्रामीण जीवन की आर्थिक धुरी खेती, मजदूरी और वनों पर आधारित है। यदि खनन कार्य सही सामाजिक-संतुलन के साथ संचालित किए जाएँ, तो यह क्षेत्र शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और जलसंरचना में उल्लेखनीय प्रगति कर सकता है।

राज्य सरकार और केंद्र की नीतियों के तहत सी एस आर (कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व) के अंतर्गत यहाँ के आदिवासी युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर दिए जा सकते हैं। इससे न केवल आर्थिक स्तर सुधरेगा, बल्कि प्रवासन की समस्या भी घटेगी।

सोने का खनन जितना आकर्षक है, उतना ही पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील भी है। सोने के ऑर से धातु निकालने की प्रक्रिया में रासायनिक पदार्थ (जैसे साइनाइड) का उपयोग होता है, जो यदि नियंत्रित न हो तो जल और मिट्टी को प्रदूषित कर सकता है।बांसवाड़ा का यह इलाका वनों और नदियों (मुख्यतः माही नदी) के पास है, इसलिए सरकार को यहाँ पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन) को गंभीरता से लागू करना होगा। स्थानीय समुदायों की सहमति और पारदर्शिता भी इस परियोजना की दीर्घकालिक सफलता के लिए अनिवार्य होगी।

विदेशी कंपनियों और भारतीय खनन दिग्गजों ने इस क्षेत्र में रुचि दिखाई है। ब्रिटेन की कंपनियाँ पहले यहाँ अन्वेषण कर चुकी हैं। अब नई नीति के तहत घरेलू निवेशकों को प्राथमिकता दी जा रही है ताकि राज्य का अधिकतम लाभ स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर रहे।राजस्थान सरकार ने संकेत दिया है कि 2026 तक पहली खान में वाणिज्यिक उत्पादन शुरू करने की योजना है। यह कदम न केवल राज्य बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करेगा।

बांसवाड़ा के लिए यह खोज केवल आर्थिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक भी है। सदियों से यह क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए जाना जाता रहा है। अब यह अपनी धरती के प छिपी सुनहरी संपदा के कारण भारत के खनन-नक्शे पर चमक रहा है। यदि सरकार, कंपनियाँ और जनता मिलकर यह सुनहरी राह अपनाएँ, तो आने वाले वर्षों में बांसवाड़ा न केवल “सिटी ऑफ हंड्रेड आइलैंड्स” रहेगा, बल्कि “गोल्ड कैपिटल ऑफ राजस्थान” के नाम से भी जाना जाएगा।