ललित गर्ग
भारत की धार्मिक परम्परा में स्वामी प्रज्ञानन्दजी महाराज ऐसे व्यक्तित्व का नाम हैं, जिन्होंने धर्म के शुद्ध, मौलिक और वास्तविक स्वरूप को प्रकट करने में अपनी पूरी शक्ति लगाई। शांति एवं प्रज्ञा की भावना का वैश्विक संचार करते हुए उन्होंने धर्म के बंद दरवाजों और खिड़कियों को खोलकर उसमें ताजगी और प्रकाश भरने का दुःसाध्य कार्य किया। इक्कीसवीं सदी में धर्म के नए एवं क्रांतिकारी स्वरूप को प्रकट करने का श्रेय उनको जाता है। क्योंकि आपकी करुणा में सबके साथ सहअस्तित्व का भाव रहा। निष्पक्षता में सबके प्रति गहरा विश्वास रहा। विकास की यात्रा में सबके अभ्युदय की अभीप्सा रही। साथ ही साथ वे शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय उपक्रम करके सरस्वती के मंदिर में ज्ञान का ऐसा महायज्ञ शुरू किया कि आराधना स्वयं ऋचाएं बन गई। उनमें आत्मा की ऐसी ज्योति जगी मानो अतीन्द्रिय ज्ञान पैदा हो गया। आत्मविश्वास के ऊंचे शिखर पर खड़े होकर उन्हांेने कभी स्वयं में कार्यक्षमता का अभाव नहीं देखा। उनके पुरुषार्थ ने उन लोगों को जगाया है जो सुखवाद और सुविधावाद के आदि बन गये थे। वे अपने जीवन के हर क्षण को सार्थक करने के लिए शिव-योग एवं गायत्री मंत्र के माध्यम से मानवता को उपकृत करते रहे और असंख्य किरणों को सूरज बनाने के उपक्रम में जुटे रहे।
स्वामी प्रज्ञानंदजी महाराज अंतरराष्ट्रीय प्रज्ञा मिशन के संस्थापक, आव्हान अखाड़े के महामंडलेश्वर और दिल्ली संत महामंडल में 15 साल अध्यक्ष रहे। ‘फाउण्डेशन फॉर रिलीजस हार्मोनी एण्ड यूनिवर्सिल पीस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन के सूत्रधार एवं विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मार्गदर्शक मंडल के सदस्य भी रहे। कटंगी ( मध्यप्रदेश ) में 3 सितंबर 1945 को जन्मे महामंडलेश्वर प्रज्ञानंद महाराज के शिष्य विश्वभर में अनेक देशों में हैं। 75 देशों में उन्होंने भारतीय संस्कृति एवं अध्यात्म की पताका लहराई। मां रामबाई और पिता ठाकुर ढेलम सिंह के 4 पुत्र और 4 पुत्रियों में वे सबसे बड़े पुत्र थे। 30 वर्ष के संन्यास जीवन को जीते हुए उन्होंने विदेशों में भारत के अध्यात्म एवं शांति का शंखनाद किया। साउथ अमेरिका में आज भी शाम 7 बजे सूरीनाम रेडियो और टेलीविजन में गायत्री संध्या होती है एवं दिन में अनेक बार नियत समय पर गायत्री मंत्र स्वामीजी की आवाज में प्रसारित किया जाता है, जिसे महाराजजी ने शुरू किया था। उन्होंने गायत्री मंत्र का महत्व बताते हुए कई विदेशियों को गायत्री मंत्र सिखाया। स्वामी प्रज्ञानंद महाराज ने शिकागो में श्रीकृष्ण की प्रतिष्ठा भी एक शाकाहारी श्रद्धालु के करकमलों से करायी। स्वामीजी ने विदेशों में शाकाहार-क्रांति की एवं असंख्य विदेशियों को शाकाहारी बनाया। जब भी कोई शिष्य उनसे दीक्षा लेता था तो स्वामीजी उसे सबसे पहले शाकाहार का संकल्प दिलाते थे। उन्होंने अपनी विदेश यात्राओं में शाकाहार की पाठशाला चलाते हुए करीब एक लाख लोगों को शाकाहार का संकल्प दिलाया।
शिव के अनन्य भक्त होने के कारण कटंगी में राजसूय यज्ञ की शुरूआत के साथ ही प्रज्ञाधाम में विश्व के सबसे बड़े पारदेश्वर शिवलिंग की स्थापना आपने महाशिवरात्रि के अवसर पर की। आज भी राजसूय यज्ञ के बारे में कटंगी की जनता कहती हैं ‘भूतों ना भविष्यति’ महायज्ञ में इतनी जनता आयी, कई किलोमीटर दूर तक जन मानस के सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे। जिसमें नागा साधु भी शामिल हुए थे। तब से आज तक हर वर्ष विराट राजसूय महायज्ञ की यह परम्परा चल रही है। समय-समय पर हैल्थ कैम्प एवं निर्धन अकिंचन कन्याओं का विवाह, शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति योजना, निःशुल्क वस्त्र वितरित करना, स्वामीजी का सेवाभाव था। वे पीड़ित मानवता के मसीहा थे। स्वामी प्रज्ञानन्दजी महाराज एक पुरुषार्थी पुरुष का महापुरुष के रूप में जाना-पहचाना नाम है। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व की अनगिनत उपलब्धियां आज सनातन धर्म के उज्ज्वल इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ बन चुकी है। आपने शिक्षा, साहित्य, सेवा, संगठन, संस्कृति एवं साधना सभी के साथ जीवन मूल्यों को तलाशा, उन्हें जीवनशैली से जोड़ा और इस प्रकार पगडंडी पर भटकते मनुष्य के लिए राजपथ प्रशस्त कर दिया। उनके पुरुषार्थी जीवन की एक पहचान है शिक्षा। वे चाहते हैं कि शिक्षा का प्रचार-प्रसार उन बच्चों के बीच हो, जहां से विकास की धाराएं अभी तक दूर हैं। इसके लिये स्वामी प्रज्ञानन्द शिक्षा महाविद्यालय, कटंगी, गुरु प्रज्ञानन्द इंटरनेशनल स्कूल कटंगी आदि स्कूल, कॉलेज के द्वारा बच्चों को शिक्षा देने का महान् कार्य आप करते रहे थे। 80 के दशक में वे जबलपुर विश्वविद्यालय से प्रोफेसरी के पद से इस्तीफा देकर अध्यात्म की तरफ आए। सबसे पहले गायत्री परिवार के आचार्य श्रीराम शर्मा के उत्तराधिकारी बने लेकिन बाद में उत्तराधिकारी बदल जाने से उन्होंने अपनी अलग पीठ कोली और साईं प्रज्ञा पीठ के नाम से दिल्ली में साकेत आश्रम में स्थापित की।
स्वामी प्रज्ञानन्दजी महाराज तनाव के भीड़ में शांति का संदेश थे, अशांत मन के लिए समाधि का नाद थे। संघर्ष के क्षणों में संतुलन का उपदेश थे। चंचल चित्त के लिए एकाग्र की प्रेरणा थे। जो स्वयं जागृत थे और जन-जन को जागृत करने के अभियान के साथ सक्रिय रहे। आपका पूरा जीवन ही संयम, विवेक, आस्था, संकल्प और कर्मठता की एक भाव यात्रा थी। आपने पूरे विश्व को ही विद्यालय मानकर माँ गायत्री के मंत्र से अभिस्नात करने लगे, सर्वप्रथम अपने गृह नगर कटंगी आये जो कैमोर भांडेर पर्वतों के बीच बसा अनुपम सौन्दर्य की छटा बिखरे निदान के समीप महायज्ञ स्थल का चयन कर 108 कुंडीय गायत्री महायज्ञ का महा-अनुष्ठान सामाजिक समरसता के उन्नायक बनकर किया। फिर तो नगर-नगर, देश-देश, पूरा विश्व में ऐसे महा-अनुष्ठान किये। कौमार्य व्रत धारण कर हिमालय की कन्दराओं में रहने वाले ब्रह्मनिष्ठ स्वामी सच्चिदानंद गिरिजी महाराज से संन्यास की दीक्षा लेकर अपने जीवन का मूल उद्देश्य मानकर हर परिवार को गायत्री मंत्र से दीक्षित करतें, मांस, मदिरा, ध्रूमपान से मुक्त कराना ही अब उनका जीवन का लक्ष्य बन गया।
स्वामी प्रज्ञानन्दजी महाराज अपनी पहली विदेश यात्रा के लिये केन्या गये, केन्या से अमरीका, इंग्लैंड, कनाडा, सूरीनाम, फिजी, मारीशस, साउथ अफ्रीका, हालैण्ड, त्रिनिडाड एवं वोत्स्वाना आदि 75 देशों की यात्रा में आपने भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक मूल्यों का शंखनाद किया। विदेश यात्रा के प्रवास से आने के बाद, विश्व माता गायत्री ट्रस्ट एवं सांई प्रज्ञा धाम, साकेत दिल्ली की स्थापना हुई। आज साकेत का मार्ग ‘प्रज्ञा मार्ग’ के रूप में देश विदेश में आध्यात्मिक दूतावास के रूप में विख्यात है। फिर ‘अन्तर्राष्ट्रीय प्रज्ञा मिशन’ अखिल भारतीय प्रज्ञा मित्र परिवार की स्थापना हुई। इन संस्थाओं के माध्यम से आपने आध्यात्मिक मूल्यों एवं राष्ट्रीयता की ज्योत जलाई। ‘भारत देश नहीं, सन्देश है’- मिशन को आगे बढ़ाया। अध्यात्मिक, धार्मिक, जटिल, विषयों पर विचार देने के लिए यूनिवर्सिटी एवं कॉलेजों में देश-विदेश में अक्सर आपको बुलाया जाता रहा है। स्वामी प्रज्ञानंदजी महाराज को द ग्लोबल ओपन यूनिवर्सिटी नीदरलैंड द्वारा ‘डॉक्टर ऑफ डिविनिटी’ की उपाधि से भी सम्मानित किया गया।
स्वामी प्रज्ञानन्दजी का जीवन महान आत्माओं की उच्च परंपरा का एक जीवंत उदाहरण है, वे ऐसे क्रांतिकारी द्रष्टा हैं जो समाज में अज्ञानता और दुखों के अंधकार को दूर करने के लिए सच्चे ज्ञान को प्रतिष्ठापित करते रहे हैं। उनकी मानवीय संवेदना ने पूरी मानवता को करुणा से भिगोया है। इसीलिए वे बुराइयों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए आदमी को सही मायने में आदमी बनाने के लिए तत्पर हैं। उन्होंने पद प्रतिष्ठा पाने की न कभी चाह की और न कभी चरित्र को हाशिये में डाला। उनके केंद्र में सदा पवित्रता और साधुता रही। जो भी उनकी संतता की छांव में आता, विभाव स्वभाव में बदल जाता। मन सुख, शांति और समाधि से भर जाता। उन्होंने उम्र की दीर्घा को रचनात्मक उपलब्धियों से यूं सजाया है कि सदियों तक आदमी के लिए ऊंचाइयों पर चढ़ने के लिए सीढ़िया बन गई। उनकी अलौकिकताएं एवं विलक्षणताएं श्रद्धा, आस्था और समर्पण की आदर्श संस्कृति है जो मानवीय चेतना को जगाने में सक्षम है। आज हर कोई उनकी पावन स्मृति करते हुए जिनमें ऐसे नेतृत्वकर्ता का दर्शन होता था जो अपने विशिष्ट विचारों व ज्ञान के प्रकाश से उत्तम जीवन जीने के मार्ग को रोशन किया है। स्वामी प्रज्ञानन्दजी महाराज केवल संत ही नहीं, महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और संस्कृति प्रेमी भी है। उनकी जन्म जयन्ती 3 सितम्बर, 2024 को दिल्ली के सिरी फोर्ट सभागार में अन्तर्राष्ट्रीय स्वामी प्रज्ञानन्द सम्मान में सनातन एवं सामाजिक समरसता के साथ मजबूत राष्ट्र निर्माण में लगी शक्तियों को सम्मानित किया जायेगा।