गोविन्द ठाकुर
अभी तक जितने भी यात्राओं की राजनीति हुई कमोबेश सभी को सफलता मिली है। चाहे जिसके जो भी लक्ष्य रहा हो- लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से यात्रा ने धार्मिक ध्रुविकरण को समर्पित रहा जिसका नतीजा बीजेपी को समय के साथ सत्ता हासिल हुई। इसमें कहने वाली बात नहीं है कि अयोध्या में राम मंदिर की नींव भी मजबूत हुई थी, हां, राजनीति में धर्म का बोलवाला यहीं से शुरु हुई थी। जातीय राजनीति के हिसाब से शरद यादव का मंडल रथ, चद्रशेखर का पदयात्रा भी राजनीति को बदलने वाला रहा। आज 30 साल बाद भी भारत कमोबेश इसी राजनीति के चारों ओर घुम रही है। ऐसे में राहुल गांधी का भारत जोड़ो यात्रा ध्रुवीकरण के उलट प्रतिध्रुविकरण की दिख रही है। यात्रा से पहले लोगों की यही धारणा थी कि कांग्रेस का पतन नजदीक है अब कांग्रेस की बूते की बात नहीं है मोदी के बीजेपी से टक्कर लेना। नतीजे के तौर पर मोदी विरोधी मत कभी ममता बनर्जी की ओर तो कभी अरवींद केजरीवाल की ओर जाती दिख रही थी। खासकर आम आदमी पार्टी और केजरीवाल इससे लाभ लोकर खुद को अखिल भारतीय रुप देने में चुट गये। पंजाब सफलता भी मिली तो दुसरे राज्यों में आधार मजबूत किया साथ ही कांग्रेस की परंपरागत वोट को अपनी ओर करने में सफल भी रहे। मगर अब लगता है कि वह सिलसिला रुकने जा रही है हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने से मैसेज दिया है कि कांग्रेस पतन के रास्ते पर रुक गई है। फिर 2023 में 9 राज्यों में चुनाव हो रहे हैं जिसका मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही है।
यात्रा से बीजेपी और आरएसएस विरोधी दलों और मतों को मैसेज दिया है कि कांग्रेस ही विपक्षी गठबंधन का मुख्य आधार रहने वाला है। राहुल एक गंभ्भीर राजनेता के तौर पर उभरे हैं कांग्रेसियों की पस्त हो चुकी हौसले को एक नई धार दी है। अब वे सोचने लगे हैं कि वह मोदी की करसमायी नेत-त्व का मुकाबला कर सकते हैं। हलांकि यात्रा को देखें तो अभी तक यह यात्रा कांग्रेस को मजबूत करने से अधिक राहुल की पप्पु वाली छवि को सुधारने में लगी रही है जिसमें उसे सफलता भी मिली है। जानकारों की माने तो कांग्रेस अब चलना शुरु किया है। लेकिन उसे अगर मोदी सरकार को टक्कर देनी है तो उसे एक मजबूत गठबंधन करनी ही होगी वरना 2024 में भी कुछ सपलता के बाद भी बीजेपी को नहीं रोक सकती है। डरो मत की छवि से उसे अब इडी और सीबीआई की छवि पर कोई असर नहीं होने जा रही है क्योंकि राहुल ने एक अलग पहचान और समर्थन जुटा लिए हैं।
कांग्रेस सूत्र बताते हैं कि बीजेपी के खिलाफ वे अब विरोधी दलों को इकठ्ठा करेंगे जो कमोबेश राज्यों के आधार पर होंगे। मतलब है कि कांग्रेस सभी राज्यों में अपने सहियोगी दलों के साथ कुछ सीटे लेकर गठबंधन करेगी और जहां वह बीजेपी के साथ सीधे टक्कर में है वहां वह अकेले बीजेपी का मुकाबला करेगी। बिहार में वह महागठबंधन के सहियोगी है तो महाराष्टृ में महाअघाड़ी में शामिल है, बंगाल में ममता के साथ नहीं तो वामदलों के साथ जा सकती है। बांकि जगहों पर जो उसके सहियोगी है उसके साथ वह गठबंधन में होगी।