‘हीरलाबूंदी माता’ जतरा-समारोह में जनजातीय समुदाय ने डॉ राजाराम त्रिपाठी को किया सम्मानित

  • जिस जनजातीय समाज के उत्थान के लिए दिया पूरा जीवन , उनके बीच उनके हाथों सम्मानित होना, जीवन के सबसे बड़ा गौरव का क्षण
  • घने जंगलों के बीच होता है ‘हीरलाबूंदी माता’ का जतरा-समारोह, जहां जुटते हैं हजारों आदिवासी श्रद्धालु
  • जंगल, पेड़-पौधे, जीवजंतु हैं देवी मां के संगी-साथी, इनकी रक्षा करने से प्रसन्न होंगी माता : डॉ त्रिपाठी

रविवार दिल्ली नेटवर्क

चिखलपुटी की ग्राम देवी तथा अंचल की आराध्य देवी “हीरलाबूंदी माता” के वार्षिक जतरा पूजा समारोह में बीते कल शाम सात फरवरी को अंचल के जनजातीय समुदायों के समाज प्रमुखों, सरपंच तथा जनप्रतिनिधियों एवं देवी मां के माता पुजारी, गंयता पुजारी के द्वारा इस वर्ष‌ डॉ राजाराम त्रिपाठी को सम्मानित किया गया। डॉ त्रिपाठी को उनके द्वारा स्थापित संस्था ” मां दंतेश्वरी हर्बल समूह ” के जरिए पिछले कई दशकों से चिखलपुटी तथा आसपास के गांवों के जनजातीय समुदाय को अपने हर्बल फार्म में पूरे साल रोजगार उपलब्ध कराने,जैविक खेती तथा जड़ी बूटियों की खेती के निशुल्क प्रशिक्षण देने, कृषि नवाचारों, पर्यावरण संरक्षण तथा समाज सेवा के सतत किए जा रहे विभिन्न कार्यों के लिए तथा अपने कार्यों से अपने गांव चिखलपुटी जिला कोंडागांव तथा प्रदेश छत्तीसगढ़ का नाम देश-विदेश में रोशन करने के लिए विशेष रूप से शाल एवं श्रीफल से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही संस्था के ” मां दंतेश्वरी हर्बल समूह ” के निदेशक अनुराग कुमार को भी अंग वस्त्र से सम्मानित किया गया।

उल्लेखनीय है कि”हीरलाबूंदी माता” जिन्हें ‘कनकदेई’ माता के नाम से भी जाना जाता है, बस्तर कोंडागांव के चिकलपुटी गांव के के घने जंगल में विराजमान सर्वमान्य आराध्य ग्राम देवी हैं। जाहिर है वनवासियों की देवी हैं तो उनका निवास जंगलों में ही होगा। हालांकि यह जिला मुख्यालय से कोई विशेष ज्यादा दूर नहीं है, किंतु माता के स्थान तक पहुंचना बिल्कुल ही सरल नहीं है। अव्वल तो जंगल में कोई रास्ता है ही नहीं, बस देवकीनंदन खत्री के तिलिस्म की भांति पगडंडियों की कई भूलभुलैया हैं। लेकिन श्रद्धालुओं की सुविधा के दृष्टिकोण से साल में एक दिन होने वाली इस जतरा उत्सव में शामिल होने के लिए माता मंदिर तक पहुंचने के लिए गांव के श्रद्धालुओं के द्वारा श्रमदान करके काम चलाऊ रास्ता बना दिया जाता है। दोनों और चूने से निशान भी बना दिए जाते हैं,‌अन्यथा जंगल में भटक जाना सुनिश्चित है। मंदिर के नाम पर घास फूस का मात्र एक छप्पर मात्र है, जिसके नीचे माता विराजमान हैं। जाहिर है,जतरा पूजा के इस एक हफ्ते को छोड़ दें तो बाकी साल के 360 दिन माता खुले आकाश में इस जंगल के बीच हवा पानी बरसात से खेलते हुए उन्मुक्त प्रकृति परिसर में अपने संगी साथी पेड़ पौधों, जीव-जंतुओं के परिवार के साथ रहती हैं।

साल में एक दिन इनकी विशेष जतरा-पूजा होती है। इस वर्ष मंगलवार ,7 फरवरी को ग्राम देवी के जतरा उत्सव के अवसर इस अवसर पर ग्राम के माता पुजारी कचरू सोड़ी और गंयता पूरन सोड़ी द्वारा ” मां दंतेश्वरी हर्बल समूह ” को समाजसेवा के इन कार्यों आगे भी सफलता से जारी रखने हेतु ” माता हीरलाबूंदी ” की विशेष आराधना की गई तथा आशीर्वाद प्रदान किया गया किया। जतरा पूजा तथा सम्मान समारोह के अवसर पर कचरु सोढ़ी (माता पुजारी), पूरन सोढ़ी (गांयता), बालकिशन जी (ग्राम पटेल के प्रतिनिधि),विजय सोड़ी (सरपंच), रुपचंद नेताम, पईत भोयर, रतन सोढ़ी, भगत सोनवानी, सुरेराम, नेहरु कोर्राम, हंसराज सोढ़ी, संतु देहारी, संपदा समाज सेवी संस्थान की अध्यक्ष जसमती नेताम, मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के निदेशक अनुराग त्रिपाठी, शंकरनाग, कृष्णा नेताम, मैंगो नेताम के साथ ही जनजातीय समुदाय के आसपास के गांवों के सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहे।

इस अवसर पर डॉ त्रिपाठी ने कहा है कि हम सब की यही प्रार्थना है कि “हीरलाबूंदी माता” की कृपा चिखलपुटी गांव, कोंडागांव जिले पूरे छत्तीसगढ़ सहित सभी श्रद्धालुओं पर बनी रहे। उनकी कृपा से हमारा जनजातीय समुदाय फलता फूलता रहे, और उनके जीवन के मूलाधार,,उनके बचे खुचे जंगल भी अब बचे रहें, और फलते फूलते रहें।.. क्योंकि मुझे नहीं लगता कि बिना इस नैसर्गिक जंगल के,..बिना उन सैकड़ों प्रजाति के पेड़ पौधों के, जो सदियों-सदियों से माता के अकेलेपन के साथी और सहचर हैं,माता “हीरलाबूंदी” प्रसन्न रह पाएंगी। और मेरी छोटी सी समझ यह कहती है,,,उनकी सतत कृपा प्राप्त करने के लिए,,,उनकी सतत प्रसन्नता निश्चित रूप से जरूरी है.। उन्होंने आगे कहा कि‌ यूं तो बस्तर की माटी की कृपा, बुजुर्गों के आशीर्वाद, परिजनों के साथ तथा ‘ मां दंतेश्वरी समूह ‘ के अपने कर्मठ साथियों के बूते उन्हें देश विदेश मैं सैकड़ों अवार्ड तथा सम्मान प्राप्त हुए हैं। लेकिन जिस जनजातीय समाज के उत्थान के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया, उनके बीच उनके हाथों सम्मानित किया जाना उनके लिए सबसे बड़ा गौरव का विषय है। इस सम्मान से उन्हें अपने जनजातीय समुदाय के लिए और ज्यादा, और बेहतर कार्य करने की प्रेरणा तथा ऊर्जा मिलेगी।