कांग्रेस में केन्द्र और प्रदेश की सियासत का पहिया तेजी से घुम रहा है

  • प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री हाईकमान और विधायकों की राय से ही बनेगा
  • एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत कांग्रेस अध्यक्ष और गाँधी परिवार पर लागू नही
  • पायलट के मुख्यमंत्री के रुप में उड़ान भरने के अन्दाज़ सेराजनीतिक सरगर्मियाँ बढ़ी

नीति गोपेंद्र भट्ट

नई दिल्ली। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के एआईसीसी अध्यक्ष पद पर ताजपोशी निश्चित होने केसाथ ही रंग रंगीला राजस्थान में राजनीति के रंग भी हर रोज़ बदल रहे है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दिल्ली में सोनिया गांधी से भेंट और केरल के कोच्चि में राहुल गांधी की भारतजोड़ों यात्रा में भाग लेने के बाद शिरड़ी वाले साई बाबा के दर्शन करने और उसके पश्चात उनके गुलाबी नगरजयपुर पहुँचने पर उन्हें राजधानी की रंगत अलग ही रंग में डूबी दिखाई दी । बीएसपी से कांग्रेस में शामिल हुएउनके अपने एक मन्त्री राजेन्द्र सिंह गुडा ने घोषणा कर दी कि हमारे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीयअध्यक्ष बन कर दिल्ली जा रहें है इसलिए कांग्रेस हाई कमान सोनिया गांधी राहुल गांधी और प्रियंका गांधीआदि ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय ले लिया है और हम सभी बीएसपी से आए सभी छहविधायक और तेरह निर्दलीय विधायकों सहित पूरी कांग्रेस अब सचिन पायलट के पीछे खड़ी है। उन्होंने विश्वासपुर्वक कहा कि हम उनके नेतृत्व में राजस्थान विधानसभा का अगला चुनाव भी जीतेंगे।

इधर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पहलें कांग्रेस हाई कमान से मिल कर जयपुर पहुँचें और नए आत्म विश्वाससे लबरेज़ सचिन पायलट का राज्य विधानसभा में मुख्यमंत्री वाला अन्दाज़ और बॉडी लेंगवेज अलग ही कहानीबयां कर रही थी। बताते है कि विधानसभा के मुख्य द्वार पर उनकी अगवानी गुजरात प्रभारी डॉ रघु शर्मा औरगहलोत के क़ाबिना मन्त्री प्रताप सिंह खाचरियावास और पायलट समर्थक विधायकों ने की।

पायलट ने विधानसभा में स्पीकर डॉ सी पी जोशी से लम्बी मुलाक़ात की और सदन की हाँ लोबी में सत्ता पक्षके विधायकों से भी गर्म जोशी से मिलें तथा उनके साथ बैठ कर भावी योजना पर विचार विमर्श किया। मन्त्रीराजेन्द्र गुडा की तरह कई टीवी डिबेटस में भी सचिन पायलट को भावी मुख्यमंत्री बताया जा रहा है । साथ हीकहा गया कि राजस्थान की फ़िज़ा अब कुछ ही दिनों में बदलने वाली है।सचिन पायलट पिछलें कई दिनों सेयह बात करते आ रहें है।शनिवार तक एक दर्जन से अधिक गहलोत समर्थक सचिन पायलट से मिल चुके बतातेहै।

इधर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के तीन दिन बाद शुक्रवार शाम को जयपुर लौट कर आने और अपने मंत्रियोंऔर विधायकों से मुलाक़ात के बाद विश्वस्त सूत्रों से बाहर निकल कर आ रही खबरों के अनुसार बताया जारहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उनके उत्तराधिकारी के रूप में नएमुख्यमंत्री का चयन कांग्रेस हाई कमान और कांग्रेस विधायक दल के सदस्यों की राय से ही किया जायेगा औरमुख्यमंत्री का चुनाव करने के लिए विधायकों से राय शुमारी के लिए कांग्रेस के केन्द्रीय पर्यवेक्षकों का एक दलजयपुर आयेगा। अंदरखाने अभी भी यह प्रयास हों रहा है कि परम्परा से हट कर प्रदेश के आगामी बजट तकगहलोत ही मुख्यमंत्री बने रहें । हालाँकि इस बारे में राहुल गाँधी और स्वयं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बयानदेकर स्थिति स्पष्ट कर चुके है कि उदयपुर चिन्तन शिविर में लिए गए निर्णय के अनुसार पार्टी एक व्यक्ति एकपद की नीति का ही अनुसरण करेंगी।

वैसे इस फैसले में यह पेंच अभी भी फँसा हुआ है कि यह नियम कांग्रेसअध्यक्ष और गाँधी परिवार पर लागू नही होने की बात भी कही गई थी। गहलोत समर्थित मंत्री सुभाष गर्ग ने ट्वीटकर लिखा है कि नीलम संजीव रेड्डी 1960 से 1963 तक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहें थे। तब वे 20 मार्च1962 से 20 फरवरी 1964 तक आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। इस ट्वीट का सीएम सलाहकार संयम लोढ़ाने समर्थन करते हुए लिखा है कि राजनीतिक फैसले नियम के आधार नहीं किए जा सकते। वक्त कीनजाकत,जरुरत, राय, उपेक्षा सब का मिश्रण ही निर्णय की सफलता का मार्ग बना सकता है।

गहलोत-सचिन गुट में शुरू से ही चल रही रस्साकसी और शह मात के खेल में अब तक गहलोत गुट की ही चलती आ रही है लेकिन बताया जा रहा है कि इस बार सचिन गुट बाजी पलटने कीतैयारी में है । देखना होगा कि अशोक गहलोत की जादूगरी के आगे सचिन गुट की चाल इस बार शतरंज के इसखेल में किसको विजय दिलाती है। दोनों गुटों के नेताओं ने कांग्रेस हाईकमान के सामने राज्य विधानसभा कानवम्बर-दिसम्बर 2023 में होने वाले चुनाव को जीतने के लिए और प्रदेश में हर पाँच वर्ष में सरकार बदलने कीपरम्परा को तोड़ने के लिए अपना गुणा भाग और विश्लेषण प्रस्तुत कर उसी अनुरूप कोई फैसला लेने काआग्रह किया है।इस प्रकार कांग्रेस में चल रहें इन घटनाक्रमों से केन्द्र और प्रदेश की सियासत दिन बर दिन औरअधिक तेज तथा दिलचस्प बनती जा रही हैं।

क्या पायलट की उड़ान इस बार भी होगी ‘क्रैश’?

राजस्थान के तेजी से बदलते सियासी समीकरण के मध्य मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार सचिन पायलट नेविधायकों से मेलजोल शुरू कर दिया है। इस बीच बताया जा रहा है कि गहलोत गुट के विधायकों ने भी शक्तिप्रदर्शन की तैयारी कर ली है और वे शीघ्र ही नई दिल्ली कूच कर सकते हैं।

गहलोत 28 -29 सितंबर को अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन दाखिल कर सकते है । इससे पहले गहलोतसमर्थक मंत्री और विधायक भारी संख्या में दिल्ली पहुँचेंगे। अगर ऐसा हुआ तो यह अपने आप में गहलोत काशक्ति प्रदर्शन होगा और इसके जरिए वे हाई कमान को संकेत देंगे कि राजस्थान में मुख्यमंत्री पद पर किसकोबिठाया जाए।वैसे जब गहलोत खुद कांग्रेस के आलाकमान बनने जा रहे हैं तो फिर फैसले में उनकी राय कोक्या गांधी परिवार महत्वपूर्ण नहीं मानेगा?

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गहलोत इतनी आसानी से हार मानने वाले नहीं है। पायलट को उड़ानभरने से रोकने के लिए मार्ग में दीवार खड़ी कर सकते हैं। यहीं कारण है कि राजस्थान के भावी सीएम को लेकरफिलहाल सस्पेंस बना हुआ है। गहलोत समर्थक विधायक महेंद्र चौधरी का दावा है राज्य का बजट सीएमअशोक गहलोत ही पेश करेंगे। ऊंट किस करवट बैठेगा इसका पता तो कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनावपरिणाम के बाद ही सामने आएगा। लेकिन इतना तय है कि गहलोत आसानी से समर्पण करने वाले नेताओं मेंसेनहीं है। वे सियासी चाल चल अपने विरोधियों को हमेशा से चौंकाते रहे हैं। इस बार वे ऐसा कुछ कर पाएंगे यानहीं यह देखने वाली बात होगी।

मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत का यह तीसरा कार्यकाल है। वर्ष 1998 में मुख्यमंत्री बनने के लिएगहलोत का राजनीतिक कौशल काम आया। उस समय मुख्यमंत्री बनने के सबसे प्रबल दांवेदार परसराममदेरणा को पटकनी देकर गहलोत की ताजपोशी हुई थी। एक बार मुख्यमंत्री बनने के बाद गहलोत को पार्टी केभीतर कभी कोई चुनौती नहीं मिली। क्योकि पार्टी को भारी बहुमत मिला था। वर्ष 2008 में तत्कालीन प्रदेशअध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दांवेदार थे, लेकिन वे महज एक वोट के अंतर से चुनाव हारगए। ऐसे में गहलोत के लिए मैदान साफ। वर्ष 2018 में गहलोत को मुख्यमंत्री बनने के लिए कड़ी मशक्कतकरनी पड़ी। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सचिन पायलट ताल ठोक मैदान में आ डटे। आखिरकार अपने राजनीतिककौशल और गांधी परिवार के प्रति अपनी वफादारी के दम पर वे एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे।अब एक बार फिर पायलट ने उड़ान भरने की तैयारी कर ली है। गहलोत कैंप के विधायकों को विश्वास है किराजनीति का यह माहिर जादूगर एक बार फिर अपनी सियासी चालों से सभी को चौंका सकता है।