पूरी दुनिया गांधी की कायल, पर हम नाम मिटाने में मशगूल

The whole world admires Gandhi, but we are busy erasing his name

दिलीप कुमार पाठक

मनरेगा से गांधी जी के नाम को हटाना केवल और केवल घटिया राजनीति का नमूना है, ये देश दुनिया के लिए हैरान करने वाला है l क्या गांधी का नाम इतना भारी था कि उसे हटाना पड़ा?

आज संपूर्ण विश्व न केवल महात्मा गांधी को नमन करता है, बल्कि उनके सिद्धांतों को जीवन के आधार स्तंभ के रूप में स्वीकार करता है। वे मात्र एक ऐतिहासिक पुरुष नहीं, बल्कि एक ‘शाश्वत वैश्विक आइकन’ हैं, जिनके विचार समय की सीमाओं को लांघकर हर युग में प्रासंगिक बने हुए हैं।

विश्व के महानतम विभूतियों की श्रेणी में गांधी जी का नाम सर्वोच्च सम्मान के साथ अंकित है। उनके विचार आज भी मानवता के लिए एक मशाल की तरह हैं, जो घृणा और हिंसा के अंधकार में शांति, सत्य और अहिंसा का मार्ग प्रशस्त करते हैं। गांधी जी केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि एक ‘विश्व-पथप्रदर्शक’ हैं। अपनी अडिग विचारधारा और नैतिक बल के कारण वे सीमाओं से परे, विश्व के करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करते हैं। उनकी विरासत आज भी एक बेहतर और न्यायपूर्ण दुनिया के निर्माण की प्रेरणा देती है। गांधी जी कितने महान हैं इस बात से समझा जा सकता है कि जब भारत में G – 20 समिट हुआ तब दुनिया के शीर्ष नेताओं ने नंगे पैर जाकर गांधी जी के समाधि स्थल राजघाट पर श्रद्धांजलि अर्पित की थी, आज भी जब दुनिया का कोई शीर्षस्थ इंसान आता है तो वो सबसे पहले गांधी जी को प्रणाम करने आता है, क्योंकि हमारे देश में गांधी जी से ज़्यादा सुन्दर, विराट, अतुलनीय विरासत कुछ और नहीं है l

महात्मा गांधी की वैचारिक आभा आज संपूर्ण विश्व में दैदीप्यमान है। वर्तमान में दुनिया के 100 से अधिक देशों में उनकी प्रतिमाएं स्थापित हैं, जो इस बात का प्रमाण हैं कि वे आधुनिक इतिहास की उन विरलतम हस्तियों में शुमार हैं जिनकी स्मृतियों को विदेशों ने सर्वाधिक सम्मान के साथ संजोया है। 2025 तक के नवीनतम आंकड़ों और सूचना के अधिकार (RTI) के अनुसार, विश्व के कम से कम 102 राष्ट्रों में बापू की मूर्तियां और स्मारक श्रद्धा का केंद्र बने हुए हैं। इनमें से 82 देशों में उनकी भव्य पूर्ण आकार की प्रतिमाएं राष्ट्रपिता के कद की वैश्विक स्वीकृति को दर्शाती हैं। अमेरिका वह राष्ट्र है जहाँ भारत के बाहर गांधी जी के सर्वाधिक स्मारक स्थित हैं। इसके अतिरिक्त ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, रूस, चीन, स्विट्जरलैंड और अर्जेंटीना जैसे शक्तिशाली देशों के प्रमुख नगरों में उनकी प्रतिमाएं शांति और सद्भाव का संदेश दे रही हैं। गांधी जी का सम्मान केवल मूर्तियों तक सीमित नहीं है; विश्व के 150 के करीब देशों ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किए हैं और अनगिनत सड़कों व शैक्षणिक संस्थानों का नामकरण उनके नाम पर किया गया है। लंदन का पार्लियामेंट स्क्वायर, न्यूयॉर्क का यूनियन स्क्वायर और जोहान्सबर्ग की गलियां आज भी उनके सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों की गवाह हैं। आज समूचा विश्व बापू के जीवन दर्शन का अध्ययन कर रहा है। यह भारतवर्ष का परम सौभाग्य और गौरव है कि ऐसे महामानव हमारे पूर्वज रहे हैं, जिन्होंने न केवल भारत को स्वतंत्र कराया, बल्कि पूरी मानवता को जीने की एक नवीन दृष्टि प्रदान की।

पूरी दुनिया जब हमारे पूर्वज गांधी जी को पूज रही है यहां तक कि यूरोप, अमेरिका में गांधी जी को ईसा मसीह की तरह माना जाता है, लेकिन हम कितने कृतघ्न हैं कि हम आज गांधी जी के नाम को योजनाओं से हटा रहे हैं! दुनिया जब इस बात को जानेगी तो हम पर हँसेगी कि इससे कृतघ्न क्या कोई समाज हो सकता है, जिसकी रोज वंदना होना चाहिए, उनके प्रति हम असम्मान ज़ाहिर करें? मोदी सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि नाम बदलने से नहीं, गांधी के सिद्धांतों पर चलने से होगा ‘विकसित भारत’।

ये बात मैं इसलिए भी कर रहा हूं क्योंकि मोदी सरकार ने मनरेगा यानि ‘गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम’ से गांधी जी का नाम हटा दिया है, जो सुनकर ही मन कचोट कर रह गया l नए अधिनियम (VB-G RAM G Act, 2025) के तहत योजना के नाम से ‘महात्मा गांधी’ हटा दिया गया है। पहले इसकी फंडिंग केंद्र सरकार करती थी, लेकिन अब केंद्र और राज्य की फंडिंग का अनुपात बदल गया है। पहले केंद्र सरकार 90% खर्च उठाती थी, लेकिन अब यह 60% (केंद्र) और 40% (राज्य) कर दिया गया है। अगर राज्यों के पास बजट न हुआ और राज्य सरकारों ने इसे लागू करने से इंकार किया तो सरकार के पास इसका कोई समाधान है?? लगता है जैसे मोदी सरकार कोई भी काम सनसनी फैलाने के लिए ही कर रही है क्योंकि निर्णयों में कोई दूरदर्शिता नहीं है, चूंकि कई बार मोदी सरकार ने आलोचनाओं या खुद भी मूल्यांकन के बाद कई बार अपने नियमो, कानूनो को खुद ही बदला है l परंतु इस बार देश के महान राष्ट्रपिता का नाम देश की सबसे बड़ी जनकल्याण योजना से उनका नाम हटाना घटिया राजनीतिक कुचक्र को दर्शाता है l