व्यापक वैश्विक परिवर्तन के दोराहे पर विश्व !

The world at the crossroads of massive global change!

सीता राम शर्मा ” चेतन “

परिवर्तन संसार का नियम है ! परिवर्तन अनवरत चलने वाली प्रकिया है ! इसमें विकास और विनाश दोनो की भागीदारी लगभग समानांतर है । गौरतलब है कि विकास विनाश का जन्मदाता और कारण बनता है और विनाश विकास का ! दिन और रात, अच्छाई और बुराई, धर्म और अधर्म के अंतर और संबध से ही संसार चलायमान है ! दोनों में बेहतर सामंजस्य स्थापित करने और एक दूसरे का सदुपयोग करने की क्षमता और उसका ज्ञान ईश्वर ने सिर्फ मानव शरीर एंव जगत को ही उपलब्ध कराया है ।

ईश्वर प्रदत मानवीय शरीर और उसकी अनंत क्षमता का सटीक आकलन, वर्णन अत्यंत दुर्लभ है । खैर, वैश्विक आध्यात्म के कई योगी, तपस्वी और मनीषी इस अत्यंत दुर्लभ ज्ञान को आत्म परिष्कार की साधना में रत हो बहुत हद तक सुलभ कराने का प्रयास करते रहे हैं, आज भी कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे । सौभाग्य से वैश्विक भूखंड का यह क्षेत्र जिसे विश्व भारत के नाम से जानता है, ऐसे प्रयासों में अग्रणी रहा है ! वसुधैव कुटुम्बकम के राष्ट्रीय आत्मीय मूल मंत्र और भाव-कर्म के साथ विश्वगुरु बनने की वर्तमान उत्कट आकांक्षा इसका ज्वलंत उदाहरण है । वर्तमान समय में जब वैश्विक परिदृश्य में विकास और विनाश दोनों अपने चरमोत्कर्ष पर हैं, आतंकवाद और युद्धोनमाद संभवतः भस्मासुर की अंतिम स्थिति में हैं, धर्म और अधर्म के बीच परिणामदायी संघर्ष प्रारंभ हो चुका है, तब ऐसा प्रतीत होता है कि विश्व व्यापक परिवर्तन के दोराहे पर खड़ा है ।

युद्ध और हिंसा को हम शांति और अहिंसा की तरह सृष्टि की प्रकृति प्रदत व्यवस्था कह सकते हैं । यह संभवतः सृष्टि के आरंभ से ही आरंभ हुई है और सृष्टि के अंत से ही इसका अंत होगा । हमारे लिए विचारणीय तथ्य और सत्य यह है कि हम ना तो सृष्टि के आरंभिक काल में है और ना ही अंतिम काल में । हम मान सकते हैं कि यह मध्य काल है । जिसमें हमें मध्यम मार्ग की आवश्यकता है । युद्ध और शांति तथा हिंसा और अहिंसा का मध्यम मार्ग शांति के लिए ही युद्ध और अहिंसा के लिए ही हिंसा के मार्ग पर चलना होता है । इससे अलग पूर्ण शांति और अहिंसा की स्थापना का जो एकमात्र विकल्प है वह एक ही समय में एकसाथ पूरे जीव जगत में एक चमत्कारी चेतना का सर्वव्यापी प्रादुर्भाव होना है, जो निकट भविष्य में होता नहीं दिखाई देता ।

अतः ऐसे ईश्वरीय चमत्कार की प्रतीक्षा किए बिना वर्तमान समय में आवश्यक शांति और अहिंसा के वैश्विक वातावरण को बनाने के लिए हमारी मनुष्य जाति के सामने जो एक सरल वैकल्पिक मार्ग है वह शांति के लिए ही युद्ध और अहिंसा के लिए ही हिंसा का मार्ग अपनाना है । बहुत हद तक अस्पष्ट रूप से ऐसा ही होना भी प्रारंभ हो चुका है । बेहतर होगा कि ऐसा शांति के लिए युद्ध भय और अहिंसा के लिए हिंसा भय से होने लगे । इसके लिए वैश्विक एकजुटता और एक सर्वमान्य वैश्विक संविधान की जरूरत होगी । बेहतर होगा कि ईश्वरीय प्रेरणा और सहयोग से यह काम वे करें जो इसमें ज्यादा सक्षम होते हुए भी इस राह की सबसे बड़ी बाधा हैं । पिछले कुछ वर्षों में उनकी मति, गति और शक्ति में एक सकारात्मक परिवर्तन होता दिखाई देता है !

वर्तमान और निकट भविष्य के कई शक्तिशाली देशों में वैश्विक मानवता को लेकर विशुद्ध या थोड़ा छद्म ही सही मानवीय दृष्टिकोण और सद्भाव दिखाई दे रहा है, उसे उचित दिशा देने का काम वैश्विक धार्मिक मनीषी शासकों को करना चाहिए । ऐसा प्रतीत होता है कि मानवता के कल्याण के लिए ईश्वरीय दृष्टि में एक हर्षदायी कंपन हो रहा है और जल्दी ही संधिकाल का यह परिवर्तनकारी समय दोराहे से सही मार्ग पर आगे बढ़ और चल कर वैश्विक मानवता के कल्याण का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में अपना श्रेष्ठ योगदान देगा । विश्व के कुछ शक्तिशाली और विकासशील देशों के साथ कई छोटे-छोटे देशों में हुए और हो रहे परिवर्तन अंततोगत्वा वैश्विक मानवता के कल्याण का मार्ग ही प्रशस्त करेंगे ।

अंत में बहुत स्पष्ट रुप से बात रुस-युक्रेन और इजराइल-हमास युद्ध के साथ वर्तमान वैश्विक राजनीति और कूटनीति के केंद्र बिंदु बने अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तो जितनी स्पष्टता से रुस-युक्रेन युद्ध का मुख्य दोषी युक्रेन को कहा जा सकता है उतनी ही स्पष्टता से इजराइल-हमास युद्ध का मुख्य गुनाहगार हमास के आतंकवादियों को कहा जाना चाहिए । यह अत्यंत चिंतनीय और दुखद पहलू है कि इन दोनों ही युद्धों में बहुतायत निर्दोष लोगों को ना सिर्फ अपनी जान गवानी पड़ी बल्कि उनसे बहुत ज्यादा लोगों को असहनीय कष्टों का सामना करना पड़ा और आगे भी करना पड़ेगा । रही बात अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की, तो एक राष्ट्रपति के रूप में अपने राष्ट्रीय हितों के लिए किसी भी तरह के कठोर फैसले लेने का उनको पूरा अधिकार है । रुस-युक्रेन और इजराइल-हमास युद्ध को समाप्त करवाने के उनके प्रयास के लिए वे वैश्विक समर्थन और प्रशंसा के अधिकारी हैं । लिखते-लिखते अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और युक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच हुई तीखी बहस को लेकर हो रही वैश्विक प्रतिक्रिया युरोपीय नेताओं में रुस के प्रति स्थायित्व पा चुकी भय और घृणा की मानसिकता के साथ उनकी वैश्विक अदूरदर्शिता का परिचायक है । उन्हें इस बात पर गंभीरतापूर्वक चिंतन करना चाहिए कि रुस का सबसे बड़ा शत्रु माना जाने वाला देश अमेरिका जब रुस के प्रति अपने शत्रुता के भाव को मित्रता में बदलना चाहता है तो वे ऐसा क्यों नहीं कर सकते ? यह सर्वमान्य सत्य है इस मानवीय संसार में ना कोई किसी का स्थाई मित्र है और ना ही शत्रु और शत्रुता का त्याग दोनों पक्षों के साथ निर्दोष मानवता के लिए भी हितकारी होता है । सत्य यह भी है कि भौतिक और सामरिक दृष्टि से तेजी से विकसित और ज्यादा विध्वंसक होती दुनिया को अब मानसिक रूप से भी ज्यादा संयमित और विकसित होने की जरूरत है और इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरत इस बात की है कि दुनियाभर के देशों में संपूर्ण मानवता की भलाई और उसके उज्ज्वल भविष्य का लक्ष्य सबसे प्रथम और सर्वोपरि हो । चुनाव के दौरान ट्रंप की हत्या का प्रयास विफल होना निःसंदेह ईश्वरीय इच्छा और चमत्कार था ।

ट्रंप ने यह महसूस और व्यक्त भी किया है । विश्व के सबसे ताकतवर देश कहे जाने वाले अमेरिका के शासक में आया यह सकारात्मक आध्यात्मिक मानवीय शांति का भाव और फलीभूत हो यह वैश्विक मानवीय समुदाय भी चाहता है । हालांकि राष्ट्रीय महानता के आभाषी ट्रंप को वैश्विक मानवता की भलाई के लिए थोड़ा धीर-गंभीर और संयमित होने के साथ अमेरिकन नीतिगत चरित्र को परिष्कृत करने की भी जरूरत है । ट्रंप ऐसा कर सकते हैं इस आशा के साथ मोदी और पुतिन जैसे कुछ वैश्विक नेताओं को उनसे आत्मीय विमर्श करने की जरूरत है । भारत पिछले एक दशक में आए परिवर्तन से अभिभूत हो वसुधैव कुटुम्बकम के अपने प्राचीन आत्मीय भाव और आचरण को साकार करने के लिए प्रयासरत है । ऐसे में यह अहसास और विश्वास प्रबल होता दिखाई देता है कि निकट भविष्य में मानवता और वैश्विक मानवीय जगत के कल्याण के लिए अब ऐसा कुछ बेहतर होने वाला है जिसकी कल्पना और भविष्यवाणी करते हुए वर्तमान समय को विश्व के कई महानतम ऋषियों, संतो और भविष्यवक्ताओं ने संधिकाल माना और कहा था !

अंत में मानवता और मानवीय संसार की भलाई के लिए जरुरी बात उन कुछ जरुरी बदलावों की जरूरत पर जिसके बिना हम अपने विश्व को शांतिपूर्ण, सुरक्षित और सही मायने में समृद्ध नहीं बना सकते । इसके लिए सबसे ज्यादा जरुरत है एक अत्यंत सशक्त और समर्थ वैश्विक संगठन और उसके वैश्विक संविधान की । वैश्विक संगठन ऐसा जो वर्तमान वैश्विक स्थिति और जरूरतों के अनुसार सर्वमान्य समृद्ध लोकतांत्रिक पद्धति पर बने और वैश्विक संविधान ऐसा जो किसी भी तरह के भेदभाव और अनुचित प्रभाव से मुक्त होने के साथ वैश्विक मानवता की शांति, सुरक्षा और कल्याण के लिए कठोरतम नीति-नियमों से युक्त हो । बेहतर होगा कि वैश्विक भलाई के लिए ट्रंप, पुतिन, मोदी, मेलोनी और मैक्रो जैसे समर्थ शासक अपने आंशिक मतभेद दूर कर एकजुट हो इस दिशा में त्वरित, और गंभीर प्रयास करें । त्वरित और गंभीर प्रयास इसलिए कि ऐसे प्रयास के लिए वर्तमान समय इक्कीसवीं सदी का सबसे उपयुक्त समय लगता है । यदि ये वैश्विक नेता जाति-धर्म, रंग-रूप, विकसित-अविकसित, समर्थ-असमर्थ और एशिया, अफ्रीका, युरोप के भिन्नता के भावों और अपने कुछ राष्ट्रीय स्वार्थों से उपर उठकर विश्व और मानवता की भलाई और विकास का लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ें तो सच मानिए संपूर्ण विश्व और वैश्विक मानवता सदैव इनकी आभारी, ऋणी रहेगी !