
ललित गर्ग
विश्व की गम्भीर समस्याओं में प्रमुख है तम्बाकू और उससे जुड़े नशीले पदार्थों का उत्पादन, तस्करी और सेवन में निरन्तर वृद्धि होना। नई पीढ़ी इस जाल में बुरी तरह कैद हो चुकी है। आज हर तीसरा व्यक्ति विशेषतः महिलाएं किसी-न-किसी रूप में तम्बाकू को अपना चुकी है। बीड़ी-सिगरेट के अलावा तम्बाकू के छोटे-छोटे पाउचों से लेकर तेज मादक पदार्थों, औषधियों तक की सहज उपलब्धता इस आदत को बढ़ाने का प्रमुख कारण है। इस दीवानगी को ओढ़ने के लिए प्रचार माध्यमों ने भी भटकाया है। इसीलिये विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विश्व तंबाकू निषेध दिवस-31 मई को दुनियाभर में मनाया जाता है। डब्ल्यूएचओ हर साल इस दिवस पर एक थीम निर्धारित करता है। साल 2025 की थीम ‘अनमास्किंग द अपीलः तम्बाकू और निकोटीन उत्पादों पर उद्योग की रणनीति को उजागर करना’ है। यह दिवस तंबाकू के उपयोग के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक जनजागृति अभियान एवं एक दुनियाभर में आयोज्य महत्वपूर्ण दिवस है। इसका उद्देश्य तंबाकू के सेवन के जोखिमों को उजागर करना और दुनिया भर के लोगों को धूम्रपान या किसी भी रूप में तंबाकू का उपयोग छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करना है। बड़ा प्रश्न है कि एक नशेड़ी पीढ़ी का देश एवं दुनिया कैसे आदर्श हो सकती है? इस दुर्व्यसन के आदी लोग सुधरने को तैयार नहीं हैं। नशे की गंभीरता एवं विकरालता को देखते हुए साल 1987 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सदस्य देशों ने एक प्रस्ताव पारित किया और हर 31 मई को विश्व तम्बाकू विरोधी दिवस मनाने का फैसला किया गया।
यह दिन सरकारों से तंबाकू के उपयोग से निपटने, सेकेंड हैंड धुएं के संपर्क को कम करने और स्वस्थ विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए नीतियों को मजबूत करने का आह्वान भी करता है। ऐसे दिवस को मनाने की उपयोगिता एवं सार्थकता तभी है जब नशे की अंधी गलियों में भटक चुके युवाओं को बाहर निकालना विश्व की हर सरकार का नैतिक एवं प्राथमिक कर्तव्य हो, क्योंकि युवा पीढ़ी नशे की गुलाम हो चुकी है। लेकिन यह विडम्बनापूर्ण है कि सरकारों के लिये यह दिवस कोरा आयोजनात्मक है, प्रयोजनात्मक नहीं। क्योंकि सरकार विवेक से नहीं, स्वार्थ से काम ले रही है। नशे की बुराइयों से लोगों को आगाह भी करती है और शराब, तम्बाकू, सिगरेट का उत्पादन भी बढ़ा रही है। राजस्व प्राप्ति के लिए जनता की जिन्दगी से खेलना क्या किसी लोककल्याणकारी सरकार का काम होना चाहिए?
तंबाकू का सेवन व्यक्तिगत स्वास्थ्य और समाज दोनों पर घातक प्रभाव डालता है, जो कैंसर, हृदय रोग और श्वसन संबंधी समस्याओं जैसी रोकथाम योग्य बीमारियों का एक प्रमुख कारण बना हुआ है। इस दिवस का लक्ष्य एक ऐसी दुनिया बनाना है जहाँ तम्बाकू निषेध का सकारात्मक वातावरण बने एवं कम लोग तम्बाकू से संबंधित बीमारियों से पीड़ित हों। यह दिवस स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढ़ियों को तम्बाकू के खतरों से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है। तम्बाकू का सेवन दुनिया भर में रोके जा सकने वाली मौतों के प्रमुख कारणों में से एक है, हर साल लाखों लोग तम्बाकू से जुड़ी बीमारियों की वजह से अपनी जान गंवा देते हैं। इसके सेवन से होने वाली अनेक घातक एवं जानलेवा बीमारियों का व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। तम्बाकू सेवन के दीर्घकालिक परिणाम न केवल धूम्रपान करने वाले को प्रभावित करते हैं, बल्कि सेकेंड हैंड धुएं के संपर्क में भी योगदान करते हैं, जो बच्चों और कमजोर आबादी सहित धूम्रपान न करने वालों को नुकसान पहुंचाता है।
आज छोटे-छोटे बच्चे एवं महिलाएं नशे के आदी हो चुकी हैं। वे ऐसे नशे करती है कि रुह कांपती है। नशा आज एक फैशन बन चुका है। नशे के कारण हम एक विकलांग एवं बीमार पीढ़ी का निर्माण हो रहा हैं। नशे की संस्कृति युवा पीढ़ी को गुमराह कर रही है। अगर यही प्रवृत्ति रही तो सरकार, सेना और समाज के ऊंचे पदों के लिए शरीर और दिमाग से स्वस्थ व्यक्ति नहीं मिलेंगे। प्रसिद्ध फुटबाल खिलाड़ी मैराडोना, पॉप संगीत गायक एल्विस प्रिंसले, तेज धावक बेन जॉनसन, युवकों का चहेता गायक माईकल जैक्सन, ऐसे कितने ही खिलाड़ी, गायक, सिनेमा कलाकार नशे की आदत से या तो अपनी जीवन लीला समाप्त कर चुके हैं या बरबाद हो चुके हैं। नशे की यह जमीन कितने-कितने आसमान खा गई। विश्वस्तर की ये प्रतिभाएं कीर्तिमान तो स्थापित कर सकती हैं, पर नई पीढ़ी के लिए स्वस्थ विरासत नहीं छोड़ पा रही हैं।
तम्बाकू का उपयोग एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है जो वैश्विक स्तर पर व्यक्तियों और समुदायों को प्रभावित करती है। यह अत्यधिक नशे की लत है, मुख्य रूप से निकोटीन की उपस्थिति के कारण, जिससे व्यक्तियों के लिए बिना सहायता के इसे छोड़ना बेहद मुश्किल हो जाता है। इसके परिणाम भयानक हैं, हर साल 8 मिलियन से अधिक मौतें तम्बाकू से संबंधित बीमारियों के कारण होती हैं। भारत में गुटखा सहित धुआं रहित तंबाकू का उपयोग एक खतरनाक कुचलन है, जिससे गंभीर किस्म की बीमारियां होती हैं। विशेष रूप से गुटखा से कैंसर का खतरा होता है और इसी वजह से साल 2002 से ही गुटखा पर नियंत्रण के प्रयास चलते रहे हैं। साल 2012 से भारतीय राज्यों द्वारा प्रतिबंधित होने के बावजूद गुटखा व्यापक रूप से उपयोग में है। गुटखा लॉबी देश भर में बहुत मजबूत है और इससे सरकारों व उनमें शामिल लोगों को गलत ढंग से भारी कमाई होती है। सबसे पहला राज्य मध्य प्रदेश है, जिसने गुटखा पर प्रतिबंध लगाया था, पर क्या वहां सफलता मिली? बिहार, गुजरात जैसे राज्य, जहां कहने को तो शराब प्रतिबंधित है, पर क्या वहां शराब का मिलना बंद हो गया है? ठीक इसी तरह से गुटखा के साथ हुआ है। लगातार चेतावनियों व विज्ञापनों के बावजूद गुटखा या तंबाकू का सेवन घट नहीं रहा है।
गुटखों और पान मसालों से जुड़ी समस्याओं को अभी भी हम गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। भारत में जनसंख्या-आधारित कैंसर रजिस्ट्री में पाया गया कि 55 प्रतिशत कैंसर तंबाकू के उपयोग से संबंधित थे। भारत तंबाकू उत्पादों का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है। भारत में तंबाकू छोड़ने की दर सबसे कम है, यहां सिर्फ 20 प्रतिशत पुरुष तंबाकू के दुर्व्यसन को छोड़ पाते हैं। जीवन का माप सफलता नहीं, सार्थकता होती है। सफलता तो गलत तरीकों से भी प्राप्त की जा सकती है। जिनको शरीर की ताकत खैरात में मिली हो वे जीवन की लड़ाई कैसे लड़ सकते हैं? तंबाकू का सेवन कई रूपों में किया जा सकता है जैसे सिगरेट, सिगार, बीड़ी, मलाईदार तंबाकू के रंग की वस्तु (टूथ पेस्ट), क्रिटेक्स, पाईप्स, गुटका, तंबाकू चबाना, सुर्ती-खैनी (हाथ से मल के खाने वाला तंबाकू), तंबाकू के रंग की वस्तु, जल पाईप्स, स्नस आदि। कितने ही परिवारों की सुख-शांति ये तम्बाकू उत्पाद नष्ट कर रहे हैं। बूढ़े मां-बाप की दवा नहीं, बच्चों के लिए कपड़े-किताब नहीं, पत्नी के गले में मंगलसूत्र नहीं, चूल्हे पर दाल-रोटी नहीं, पर नशा चाहिए। करोड़ों लोग अपनी अमूल्य देह में बीमार फेफड़े और जिगर लिए एक जिन्दा लाश बने जी रहे हैं पौरुषहीन भीड़ का अंग बन कर। दुर्भाग्यवश इस गलत आदत को स्टेटस सिंबल मानकर अक्सर नवयुवक एवं महिलाएं अपनाते हैं और दूसरों के सामने दिखाते हैं। इससे प्रजनन शक्ति कम हो जाती है। यदि कोई गर्भवती महिला धूम्रपान करती है तो या तो शिशु की मृत्यु हो जाती है या फिर कोई विकृति उत्पन्न हो जाती है। लंदन के मेडिकल जर्नल द्वारा किये गये नए अध्ययन में पाया गया कि धूम्रपान करने वाले लोगों के आसपास रहने से भी गर्भ में पल रहे बच्चे में विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के डॉ. जोनाथन विनिकॉफ के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान माता-पिता दोनों को स्मोकिंग से दूर रहना चाहिए। लगता है विश्व जनसंख्या का अच्छा खासा भाग नशीले पदार्थों के सेवन का आदी हो चुका है। अगर आंकड़ों को सम्मुख रखकर विश्व मानचित्र (ग्लोब) को देखें, तो हमें सारा ग्लोब नशे में झूमता दिखाई देगा।