शिशिर शुक्ला
किसी देश के युवावर्ग में उस देश के भविष्य की एक झलक दिखाई देती है। राष्ट्र का भविष्य उज्ज्वल होने के लिए यह नितांत आवश्यक है कि, वहां की युवापीढ़ी राष्ट्रहित व कल्याण को अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए अपने कदमों को सदा सन्मार्ग पर बढ़ाए एवं देश की प्रगति में ही स्वयं की उन्नति का दर्शन करे। किंतु दुर्भाग्यवश, यह सिद्धांत केवल आदर्श एवं उपदेश के रूप में ही विद्यमान है, व्यावहारिक क्रियान्वयन से संभवतः इसका कोई लेना देना नहीं है। हमारे देश की युवा पीढ़ी दिन प्रतिदिन एक आत्मघाती बुराई की चपेट में आती जा रही है। समाज व राष्ट्र को प्रतिदिन खोखला करने पर उतारू इस खतरनाक बुराई का नाम है -नशा। वैसे तो नशे से अभिप्राय है- किसी चीज की लत लग जाना, फिर वो लत चाहे जिसकी हो। किंतु जब नशा शब्द सामाजिक पटल पर प्रक्षेपित होता है, तो वह केवल और केवल बुरी आदतों की ओर ही संकेत करता हुआ प्रतीत होता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो नशे का सीधा सा अर्थ है- मादक द्रव्य, शराब, तंबाकू, ड्रग, सिगरेट, गुटखा इत्यादि की लत से व्यक्तित्व का विकृत होना, यद्यपि आधुनिक युग में तो तकनीकी ने कुछ अन्य नशे जैसे सोशल मीडिया, वीडियो गेम्स, स्मार्टफोन आदि भी सर्वसुलभ करा दिए हैं।
किसी भवन की नींव के साथ यदि खिलवाड़ किया जाए, तो उस भवन की मजबूती को आखिर कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है।
एक गंभीर प्रश्न यह उठता है कि आखिर क्या कारण है कि देश का ऊर्जावान युवा नशे के सम्मोहनपाश में फंसकर उत्साह एवं ऊर्जा से विहीन होकर अपने भविष्य को चौपट करता जा रहा है। आज अतिव्यस्तता, दौड़ और प्रतिस्पर्धा का समय है। तकनीकी के मानव जीवन में बढ़ते हुए हस्तक्षेप, शहरीकरण, औद्योगीकरण, जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि आदि अनेक ऐसे कारक हैं, जिन्होंने मानव जीवन का स्वरूप ही परिवर्तित करके रख दिया है। आज से पचास या सौ वर्ष पूर्व जीवन आनंद व सुख का एक पर्याय हुआ करता था क्योंकि मानव पूर्णतया प्रकृति की गोद में रहकर जीवन को जीता था। आज मानव का मशीनीकरण हो चुका है। समाज में दिन-प्रतिदिन जन्म लेते नए नए फैशन, प्रतिपल मानव को आघात पहुंचाते अनेक तनाव, शनैः शनैः युवा व्यक्तित्व से खत्म होती सहनशीलता आदि ने आज युवा वर्ग को अवसाद एवं मानसिक विकारों के रास्ते बर्बादी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। जिस युवा में जोश, उत्साह एवं ऊर्जा का संगम दृष्टिगोचर होना चाहिए, उसमें बेबसी, लाचारी, पथभ्रष्टता, पतन, हिंसा में संलिप्तता, तनाव, स्वास्थ्यह्रास, शारीरिक व मानसिक रोग, जीवन के प्रति हताशा, और न जाने कितने दुर्गुणों व दोषों का संगम दिखाई दे रहा है। नतीजतन आज का युवावर्ग विवेकशून्य होकर नशे को अपना मित्र समझकर अपनी सभी समस्याएं, पूर्णसमाधान की आशा से, उसे सौंप दे रहा है। अपनी विफलता से उत्पन्न तनाव से पीछा छुड़ाने का और कोई जरिया शायद उसे नजर नहीं आता है। वह इस बात से सर्वथा अनभिज्ञ होता है कि नशे का सहारा लेकर, वह खुद अपना ही शत्रु बन बैठा है। एक बार शुरुआत होने पर नशा धीरे-धीरे उसकी जरूरत बन जाता है और उसके शरीर व मन को धीमे धीमे खोखला करते हुए, एक दिन उसे जीवित लाश में परिवर्तित कर देता है।
युवाओं में एक वर्ग ऐसा भी है जो नशे को एक फैशन और शौक की नजर से देखता है। कारण यह है कि यह वर्ग धन से अत्यधिक संपन्न होता है और विशेष रूप से टेलीविजन स्क्रीन पर गुटखे का प्रचार करते हुए फिल्म स्टारों को अपना रोल मॉडल मानता है। ये रोल मॉडल भी पान मसाला व गुटखा का प्रचार इस तरह से करते हैं, जैसे कि वे कोई महान सामाजिक कार्य कर रहे हों। यद्यपि उनका उद्देश्य तो महज प्रचार करके अपना पैसा सीधा करना होता है, किंतु युवावर्ग को दिग्भ्रमित करने के लिए इतना पर्याप्त हो जाता है। युवाओं के इस वर्ग के लिए एक अच्छी पार्टी व मीटिंग वह होती है जिसमें उनके साथ साथ नशा भी सम्मिलित होता है। आश्चर्य की बात यह है कि पुरुष वर्ग के साथ-साथ महिला वर्ग भी खूब जोर शोर से नशे के मार्ग का अनुसरण कर रहा है। युवाओं को शिकार बनाकर, नशा सीधे-सीधे देश के विकास एवं भविष्य पर प्रहार कर रहा है।
मानव प्रकृति का सबसे बुद्धिमान व ताकतवर प्राणी है। प्रकृति ने उसे जीवन को आनंद से जीने का अवसर दिया है किंतु उसके लिए शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का होना नितांत आवश्यक है। युवावर्ग, जोकि देश का सबसे बड़ा संसाधन है, यदि पतनोन्मुख हुआ, तो देश निश्चित ही अंधकार के गर्त की ओर अग्रसर हो जाएगा। आज हमारी यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि हम विभिन्न जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से युवावर्ग के मन मस्तिष्क में यह विचार बिठाने का प्रयत्न करें, कि मादक पदार्थ के नशे से कहीं बेहतर नशा है -सफलता का, मंजिल को पाने का और देश सेवा का। जिस दिन युवा पीढ़ी इन नशों को जेहन में उतार लेगी, देश के विकास की समस्त बाधाओं का निवारण स्वतः ही हो जाएगा।