फुर्सत से पढ़ने के लिए हैं फुर्सत के झोंके

There are leisure time to read leisurely

अशोक मधुप

बिजनौर की अनिदीपक (श्रीमती) लंबे समय से कवितांए लिख रही हैं किंतु उनकी कविताओं का संग्रह फुर्सत के झोंके हाल ही में बाजार में आया।यह संकलन कवयित्री की रचनाओं की गंभीरता बताता है।कवयित्री का नया नाम होने के कारण शुरूआत में भले ही नया सा लगे किंतु पुस्तक पढ़नी शुरू करने के बाद उसे समाप्त करके ही रूका जाता है। कविताओं में दर्शन के साथ −साथ कवयित्री का गंभीर चिंतन भी पता चलता है।

21 जनवरी 1971 को जनपद के एतिहासिक महत्व के नांगल सोती में जन्मी अनीदीपम एम.ए हैं ।क्रेटिव राइटिंग में उन्होंने डिप्लोमा किया ।पुस्तक की भूमिका में वह कहती हैं कि पांच −भाई बहिनों में वह सबसे छोटी है।सबसे बड़े भाई बाहर पढ़ते थे।वे बचपन से ही मेरे पढ़ने के लिए चंपक, लोटपोट आदि बाल पत्रिकाएं लाते थे।इससे स्कूली शिक्षा के साथ साथ साहित्य में भी रूचि होने लगी।16 कमरों वाले बड़े घर में बड़ी− बड़ी दो अलमारियों में मुंशी प्रेमचंद,जयशंकर प्रसाद, रविन्द्र नाथ टैगौर के उपन्यास, महात्मा गांधी की आत्मकथा और चंद्रकांता आदि बहुमूल्य पुस्तकें सुंदर नगीनों की तरह रखी रहतीं।समय− समय पर आंगन में चटाई बिछाकर पुस्तकों को धूप लगाई जाती तो पढ़ा भी जाता। छोटे भाई की लग्न और प्रोत्साहन से हाई स्कूल में मेरे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने के बाद हमारे घर में टेलीविजन आया।रामायण, विक्रम बेताल , चंद्रकांता आदि हिंदी के सीरियल हम देखते−सुनते। दीदी के साथ मैंने शुद्ध हिंदी में बातचीत करनी शुरू की।छोटो− छोटे विचार कविताओं का रूप लेने लगे।लेखन चलता रहा।इसी बीच शादी हो गई। परिवार में दो बच्चे हुए।बच्चों के बड़े होने पर युवावस्था का शौक फिर शुरू हो गया।

अनिदीपम की रचनांए नजीबाबाद के आकाशवाणी केंद्र से निरंतर लम्बे समय से प्रसारित होती और विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपती रही हैं।ग्रहणी होकर भी वह लगातार लिख रही हैं। इनकी पहली पुस्तक फुर्सत है छपी। फुर्सत के झोंके इनकी दूसरी पुस्तक है।इनकी कविताओं में दर्शन के साथ समाज को अलग से समझने की सोच है।

शुभ दीपावली शीर्षक की कविता में अनीदीपम कहती हैं−स्याह ओढ़नी पर /टँके सिलवरी सितारे… दीप मालाओं से सजा/ सुनहरी गोटा /सौंदर्य बोध कराता है,/ अमावस्या का।

गोरी चिट्टी पूर्णिमा /ईर्ष्यावश खिसियाकर /लुप्त हो जाती है /जब-/झिलमिलाती अद्भुत त्योहारों से लदी/ मावस/ बाँटती फिरती है-/रंग-बिरंगी खुशियाँ… मीठी उमंगें…/सकारात्मकता के दिये/सुगंधित आशाओं की धूप/खिलखिलाहट भरे सुंदर सपने…/अपने सखा कार्तिक के संग।

दिवाली निर्धनों की में कवयित्री कहती हैं कि चाँद का भी /अपहरण होता है/ अमावस्या के हाथों । फिरौती में/ माँगे जाते हैं.. /रोशनी के साधन लाखों । राशन में मिला/ महीने भर का घासलेट,दिया सलाई ,मोमबाती, झरोखों से आती/ टिमटिमाहट/ महलों की/ प्रतिवर्ष/ निर्धनता/दिवाली के दियों में/ कलेजा जलाती।

हर माह नामक कविता में वह कहती हैं कि अमावस्या भी,/ करती है श्रृंगार /पूर्णिमा के दिन../.चाँद की बड़ी-सी बिंदी /लगाती है- साँवले चेहरे पर /जरा-सी हँसी पर/ चमक जाते हैं /बत्तीसों तारे।निकल पड़ती है-/जुगनुओं को साथ लेकर/ संघर्षरत, /हताश पीड़ितों के बीच,/ हौसला बढ़ाने हर माह !

निगरानी नामक कविता कहती हैं −अटारी की पहरेदारी करते /दरवाज़े हैं बंद/ छत बेचारी ऊँघ-ऊँघ /रोशनदानों से झाँका करती।तपती धूप, ज्येष्ठ दोपहरी/ पेड़ों की छाया भाँय-भाँय /खूँखार हो उठती।’समय का कुछ पता नहीं’ यही सोच खूँसर बुढ़िया /लाठी टेक-टेक/ आमों के पेड़ों की निगरानी करती /झोपड़-पट्टी के निर्धन बच्चे /ललचाई लार लिए /कभी लदे पेड़… कभी खाली पेट… और कभी तंबू में/ बाट जोहती माँ /चंद सिक्कों को तरसती ! विश्वासघात में वह कहती हैं कि प्यार के टुकड़े, विश्वास की फाँक /जब कर दी उसने /खूब रोया कोमल मन/ खत्म हो चुकी थी जिजीविषा। शिथिल देह, छटपटाती आत्मा को, कोई न दे सका ढाड़स। दिन से रात/ रात से दिन/ वार से महीने /न जाने कब गुजर गए /वर्ष शातिर चोरों की तरह !

समुद्र खुश है में कवयित्री कहती हैं−देखा है मैंने… राह के चिराग को/ अँधेरा करते।देखा है मैंने…पूर्णिमा की रात को /अमावस्या करते।देखा है…सूरज की पहली किरण को /कोख फूँकते। देखा है…अनाथ बनते चाँद को।

समुद्र खुश है/ बाँटता है जल /माँ के आँसुओं को/ निःशुल्क !

कविताओं और पुस्तक को सुंदर रूप देने में प्रकाशक ने भी बड़ी मेहनत की है।पुस्तक के साथ− साथ पुस्तक कविता को भी शानदार क्लेवर दिया है।

पुस्तक समीक्षा
फुर्सत के झोंके
कवयित्री अनिदीपम
प्रकाशक वनिका पब्लिकेशन्स बिजनौर