विपक्षी राजनीतिक दलों की एकता में कई बाधाएँ है

विनोद तकियावाला

विश्व के राजनीतिक मानचित्र में भारत की अपनी अलग पहचान है।चाहे वह एक प्रजातंत्रिक देशों की श्रेणी का हो या आर्थिक अर्थ व्यवस्था के अगाड़ी देशो की श्रेणी में हो।भारत व भारतीयों की पहचान व परचम समय समय पर हर क्षेत्र में तिरंगा फहरा करकी आन वान शान में चार चाँद लगाया है।खैर आज हम भारत या भारतीय की विशिष्ट उपलब्धियों पर चर्चा नही कर रहा हुँ बल्कि भारत राजनीति के परिपेक्ष में सता पक्ष व विपक्ष के द्वारा अगामी वर्ष 24 में लोक सभा के चुनावी शतरंज में बिछाई गई विसात को लेकर कर रहे है।

हालाकि यह कटु सत्य है। राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या स्थाई दुश्मन नही होता है।खास इस दौर में जब भारतीय राजनीति में गठबन्ध राजनीति के उपवन में क्षेत्रीय दलों की अंहम भुमिका हो ।इसका सबसे बड़ा उद्धाहरण केन्द्र में एन डी ए की सरकार है।विपक्ष में यु पी ए के कई क्षेत्रीय दलों की अपनी अलग पहचान है,जो कि वर्तमान में भारतीय राजनीति में समय -समय अपनी अंहम भुमिका निभाई है।आज हम देश की राजधानी दिल्ली की राजनीति जहाँ केन्द्र सरकार व दिल्ली की केजरीवाल सरकार के मध्य अधिकार क्षेत्र को लेकर आये दिनों टकराव को देखने को मिलता है।दिल्ली के उपराज्यपाल विनय सक्सेना के माध्यम दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार को स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए बाधाऐ उत्पन्न किया है।परेशान हो कर दिल्ली सरकार अपनी फरियाद को देश के सबसे बडे न्यायालय में पहुँच गए।अतः सर्वोच्य न्यायालय द्वारा दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसाला सुनाते हुए केन्द्र सरकार व दिल्ली सरकार के कार्य क्षेत्र की स्पष्ट करते हुए केन्द्र सरकार के पास -पुलिश भुमि,कानुन व्यवस्था को छोड़ अन्य सभी सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली सरकार के पास रहेगी।इस पर केन्द्र में,भाजपा सरकार द्वारा एक अध्यादेश जारी कर दिया गया कि चुँकि दिल्ली एक पूर्ण राज्य नही है।यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र व केन्द्र शासित प्रदेश है यहाँ विदेश के राजनायिक देश की राजधानी के राज्य भवन आदि है।हालाकि राजनीतिज्ञ जानकारों का कहना है अध्यादेश को संसद में लाकर पारित करना होगा।जो केन्द्र सरकार के लिए इतना आसान नही है।दुसरीओर केंद्र के द्वारा लाये गए इस अध्यादेश के खिलाफ संसद में क्या आम आदमी पार्टी को कांग्रेस पार्टी के अन्य विपक्षी पार्टी का साथ मिलेगा।आप को बता दे कि इसको ध्यान में रखते हुए आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस का समर्थन मांगा था।दिल्ली में अधिकारियों से जुड़े केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटा रही आम आदमी पार्टी(आप)को कांग्रेस का साथ मिल सकता है।सूत्रों का कहना है कि संसद में ये अध्यादेश का मुद्दा आने पर कांग्रेस आप और अन्य पार्टियों के साथ खड़ी हो सकती है ‘हालांकि,कांग्रेस के आप के साथ गठबंधन या अन्य मुद्दों पर साथ देने की संभावना नहीं है।क्योंकि कांग्रेस को लगता है कि आप नेता कई मौकों पर पार्टी पर निशाना बनाती रही हैं।केंद्र सरकार ने बीते महीने दानिक्स कैडर के ग्रुप-ए अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण गठित करने के उद्देश्य से एक अध्यादेश जारी किया था।दिल्ली की आप सरकार इसका विरोध कर रही है।केजरीवाल ने इस अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटाने के लिए विपक्षी दलों के कई नेताओं से मुलाकात की है।आप चाहती है कि संसद में इससे संबंधित विधेयक पारित न हो पाए।इसके लिए वो सभी विपक्षी दलों से संसद में इसका विरोध करने का आग्रह कर रही है। केजरीवाल की अपील पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार,पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी,एनसीपी चीफ शरद पवार, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन समेत कई नेता आप को अपनी समर्थन करने की बात कह चुके हैं।

पटना में विगत 23 जून की बैठक में यह मुद्धा भी उठा है।विपक्षी दलों की बैठक में आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने जोर दिया कि बैठक के बाद कांग्रेस घोषणा करे कि वह इस मुद्दे पर हमारी समर्थन करेगी तब बनर्जी ने इस पर हस्तक्षेप किया।इस बैठक के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने भाषण में आप का इस मुद्दे पर सैद्धांतिक समर्थन किया और कहा कि उनकी पार्टी किसी असंवैधानिक कार्य का समर्थन नहीं करेगी।उन्होंने बताया कि खरगे ने कहा कि उनकी पार्टी ने मुद्दे पर चर्चा की एक व्यवस्था बनाई है और उचित समय पर वह घोषणा करेगीI केजरीवाल के नाराजगी पर वहां मौजूद सभी विपक्षी सदस्यों ने कांग्रेस का पक्ष लिया और कहा कि पार्टी का रुख इस मुद्दे पर तार्किक है।राहुल गांधी ने अपने भाषण के दौरान अध्यादेश का मुद्दा नहीं उठाया। उन्होने जोर देकर कहा कि वह बैठक में खुले मन से आए हैं और यहां मौजूद पार्टियों के प्रति पसंद या नापंसद की पूर्व याद को मिटाकर आए हैं।राहुल गांधी ने कहा कि वह और उनकी पार्टी विपक्षी एकता कायम रखने के लिए कुछ भी करेगी। उन्होंने सुझाव दिया कि बीजेपी को हराने के लिए उसके वित्तीय, संस्थागत और संवैधानिक का एकाधिकार तोड़ना होगा।

इस बैठक में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केजरीवाल और राहुल गांधी से लगभग समान दूरी पर बैठी थीं।जब इस मुद्दे पर चर्चा हुई तब उन्होंने हस्तक्षेप किया और कहा कि वे चाय बिस्कुट खाएं. ममता बनर्जी ने कहा कि बहुत सी समस्याओं का समाधान अच्छी चाय की कप और बिस्कुट पर हो सकता है।’’बैठक के दौरान अपने संबोधन में बनर्जी ने कहा कि यह अहम है कि सभी पार्टी सुनिश्चित करें कि वे कांग्रेस का उन स्थानों पर समर्थन करें जहां वह मजबूत है. उन्होंने कहा कि बीजेपी विपक्ष से नहीं बल्कि भारत के लोगों से लड़ रही है।राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने जोरदार तरीके से स्वागत किया और बैठक में उन्होंने दूसरे वक्ता के तौर पर अपना भाषण दिया।उन्होंने सुझाव दिया कि 2024 के आम चुनाव में विपक्ष की लड़ाई प्रत्येक राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के नेतृत्व में लड़ी जाए।लालू यादव ने कांग्रेस से बड़ा दिल रखने का अनुरोध करते हुए सभी को सुनने के बाद अंत में बोलने पर पार्टी की भावना की प्रशंसा की।केजरीवाल ने कहा कि वर्ष 2024 के चुनाव का मूलमंत्र ‘‘राष्ट्र पहले, पार्टी दूसरे’ पर होना चाहिए।उन्होंने कहा कि जब पार्टी अपने विरोधी साझेदार के लिए सीटें छोड़ेंगी तब उनकी जीत संयुक्त मोर्चा के तौर पर होनी चाहिए।उन्होंने कहा कि यह पार्टियों के लिए विस्तार का समय नहीं है और ध्यान केवल चुनाव पर नहीं होना चाहिए बल्कि मुद्दों पर भी समझौता होना चाहिएI

लोक सभा के चुनाव में अभी वक्त है उससे पहले राजस्थान ‘मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़ समेत पाँच राज्यों के विधान सभा के चुनाव होने वाले है।इस से पहले नए संसद में जल्दी मानुसन सत्र होने वाला है जिसमें केन्द्र सरकार के द्वारा लाई गई अध्यादेश को संसद में पास करवाने का भरसक प्रयास करेगी तो वही दिल्ली के मुख्य मंत्री व उसके सहयोगी राजनीतिज्ञ मित्र इसे पास होने से रोकने का प्रयास करेगी।ऐसे कांग्रेस पार्टी के भुमिका को ले कर भारतीय राजनीतिज्ञ के पंडितो की चिंता व चिन्तन की चर्चा चहुँ दिशा में होने लगी है। बिहार की राजधानी व ऐतिहासिक नगरी पटना में विपक्षी राजनीतिक दलो की एकता की इस बैठक सभी 16 राजनीतिक दलों के नेताओं ने जुलाई माह की पहले हफ्ते पुनः एक बैठक शिमला में आयोजित करने पर सहमति जताई है। आप को बता दे कि शिमला एक ऐसी जगह है जहाँ पर कई इतिहासिक सम्मेलन व समझौता हुए है। हालाकि इस बात इन्कार नही किया जा सकता विपक्षी एकता मंच मे देश की सवसे बडी व पुरानी कांग्रेस पार्टी व दिल्ली व पंजाब के सता पर आसीन आप के मुख्य संचेतक अरविन्द केजरीवाल की आपसी ठकराव व मनमुटाव सें कई बाधायें है। भारतीय राजनीति में परिवर्तन की माँग दबे जुबान से हो रही है। यह तभी सम्भव है जब सभी विपक्षी पार्टी के राजनेता अपनी नीजी स्वार्थ व सता के सिंघासन सुःख को भुलाकर जनता व देश के हित को सर्वोपरि मानते हुए केद्र की वर्तमान भाजपा सरकार को सन 24 के लोक सभा चुनाव में पराजित कर बाहर का दिखा पायेगा।