अंकुर सिंह
राजू और उसके दोस्तों जैसे ही स्टेशन पर पहुंचे उन्हें पता चला उनकी ट्रेन दो घंटे लेट हैं। उसके बाद वह सभी एक बेंच पर बैठ अपने-अपने स्मार्टफोन पर अँगुलियों को घुमाने लगे। सब अपने मोबाइल में व्यस्त थे, तभी राजू का ध्यान बगल के बेंच पर बैठे कुछ लोगों पर गया जिनकी औसत आयु पचास वर्ष थी। वह लोग आपस में देश-विदेश से जुड़े राजनीति, महंगाई, चिकित्सा, शिक्षा, इत्यादि मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान कर रहे थे और कुछ मुद्दों पर आपसी बहस भी। इसी क्रम में वह लोग बढ़ते भ्रष्टाचार पर बात करने लगे। उन लोगों की बातें राजू काफी गौर से सुन रहा था।
उनके बातें ने राजू को उसके गांव की याद दिला दिया कि कैसे उसने गांव के आँगनबाड़ी में काम करने वाली प्रर्मिला काकी के भ्रष्टाचारों के खिलाफ आवाज उठाते हुए उनके विभाग से निष्पक्ष जांच करने का निवेदन किया था। विभाग ने भी मामले में तत्परता दिखाते हुए तत्काल एक जांच टीम गाँव में भेज दिया था। तब राजू ने उन्हें प्रर्मिला काकी के रजिस्टर को दिखाते हुए कहा- “देखिए सर, रजिस्टर में ऐसे लोगों का नाम भी लाभार्थी के रूप में लिखा गया है जो वर्षों से गाँव नहीं आए और इनमें से कुछ तो सरकारी नौकरी करते हुए शहर में ही बस गए है।”
प्रर्मिला काकी भी लगाए जा रहे आरोपों का जवाब देने में कभी सकपकाती तो कभी उसे बेबुनियाद कहते हुए अपने पति विनोद के तरफ देख इशारों में पूछती कि क्या कहना है ? आखिरकर, अंत में जांच टीम ने निर्णय लिया कि गांव के पन्द्रह-बीस घरों में सर्वे करा के देख लिया जाए की उन्हें आँगनबाड़ी की सुविधाएँ मिलती है या नहीं। राजू भी जांच टीम के इस निर्णय पर सहमत हो गया। आखिर हो भी क्यों न पिछले कई वर्षों से उसने गाँव के लोगों से कहते हुए जो सुना था- “अरे बच्चवा ! विनोदवा क मेहरारु आँगनबाड़ी से मिले वाला समानवा कोनो महीना देवेले कोनों महीना ना देवेले, आखिर सरकार त हर महीने भेजत होई न, लगला प्रर्मिलियाँ कुल बेच देवेले।”
राजू ने भी सोचा जो लोग वर्षों से प्रर्मिला काकी के कामों का उलहना देते हैं। वह लोग टीम के सामने अपनी बात जरूर रखेंगे कि काकी कैसे उनके दुधमुंहे बच्चों को सरकार द्वारा मिलने वाले लाभों से वंचित रखती है। ये सोच राजू भी जांच टीम, प्रर्मिला काकी और आस-पास के कुछ लोगों को साथ लेकर घर-घर सर्वे कराने लगा।
ये क्या ?, लोगों की प्रतिक्रिया देख राजू एकदम से सन्न हो गया। कल तक जो लोग प्रर्मिला काकी के कार्यों में कमियां गिना रहे थे, वही आज उनके पक्ष में सकारात्मक जवाब दे रहें है। ये देख राजू ने लोगों से कहा- “आप लोग डरिए मत, जो सच है वह साहब के सामने बता दीजिए। आप लोगों के दुधमुंहे बच्चे को उसका पूरा हक मिले, इसके लिए ये जांच टीम अपने गाँव में आई हैं।”
इसपर कल तक शिकायत करने वाले बहुत सारे लोग निरुत्तर हो सिर नीचे झुका लिए मानों उनकी अंतरात्मा मर सी गई हो। कुछ ने थोड़ी हिम्म्मत दिखा राजू से हाथ जोड़ते हुए कहा- “बाबू, हम लोगन जानत हई, कि विनोदवा क मेहरारू बच्चन लोगन के मिले वाला राशन बेच खाले। पर बेटवा !, आज अफसर लोगन के सामने बोल के विनोदवा से दुश्मनी के मोल लेई। ऊ विधायक जी क खास बा औरु दरोगा सिपाही लोगन से कह-सुन के कोनो मर-मुकदमा में फंसा दि हमने के।”
सर्वे पूरा होने पर जांच टीम ने प्रर्मिला को आंख दिखाते हुए कहा- “देखिए सर्वे के अनुसार आपने लोगों तक सरकारी सुविधाएं तो पहुंचाई है। परंतु, आपके रजिस्टर के ऐसे भी लाभार्थियों के नाम है जो कई सालों से बाहर रहकर नौकरी करते है, इसके कारण आप पर विभागीय करवाई होगी।”
इतना कह जांच टीम जाने को तैयार होने लगी तभी प्रर्मिला काकी के पति विनोद उन्हें बंद मुट्ठी पकड़ाते हुए निवेदन भरे स्वर में धीरे से कहा “सर, थोड़ा रहम करियेगा हम लोग भी आपके अपने है।”
यह सब देख राजू खुद को असहाय महसूस कर सोच रहा था कि गाँव के लोग आज तक प्रर्मिला काकी के कार्यों पर बड़ी-बड़ी तंज कसते और उन्हें भ्रष्ट कहते थे। परन्तु, आज यही लोग एक डर के कारण अपने हक की बात कहने की जगह चुप्पी साध एक भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे है।
इन्ही सब में राजू खोया था तभी उसे लगा कि कोई उसे हिलाकर आवाज दे रहा हैं। राजू ने पीछे मुड़कर देखा तो उसके दोस्त थे और ट्रेन आने वाली है ये बताते हुए पूछने लगे – “क्या हुआ राजू, कहा खो गए थे? काफी देर से हमसब तुम्हें आवाज दे रहे थे।”
राजू ने अपने बैग को कंधे पर टाँगते हुए कहा “कहीं नहीं यार, चलो अब अपनी ट्रेन पकड़ते है, भ्रष्टाचार बहुत है।”