अंगदान के प्रति सामाजिक धारणाओं को बदलने की जरूरत है

There is a need to change social perceptions towards organ donation

सुनील कुमार महला

प्रत्येक वर्ष 27 नवंबर को ‘राष्ट्रीय अंगदान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। दरअसल,यह दिवस अंगदान के महत्व को समझाने, समाज तथा देश में अंग-दान के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि अंगदान से समाज में मानवता, सहानुभूति और सेवा भाव को बढ़ावा मिलता है। हालांकि, यहां यह गौरतलब है कि प्रारंभ में (वर्ष 2010 से) भारत में राष्ट्रीय अंगदान दिवस 27 नवंबर को मनाया जाता था, लेकिन भारत के पहले सफल मृतक दाता हृदय प्रत्यारोपण के उपलक्ष्य में वर्ष 2023 में इसे 3 अगस्त को स्थानांतरित कर दिया गया। यह प्रत्यारोपण वर्ष 1994 में हुआ था। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है, तथा वर्ष 2025 के लिये इसकी थीम ‘आह्वान का उत्तर देना’ रखी गई थी, जैसा कि इसे अंगदान और प्रत्यारोपण गठबंधन द्वारा निर्धारित किया गया है। अंगदान के बारे में बहुत-से लोग यह मानते हैं कि केवल हृदय, किडनी या लीवर ही दान किए जा सकते हैं, जबकि वास्तव में अंगों के साथ-साथ त्वचा, हड्डियाँ, नसें, कॉर्निया, हृदय वाल्व और यहां तक कि हाथ या चेहरा जैसे विशेष अंग भी दान किए जा सकते हैं।यानी एक व्यक्ति अपने दान से कई लोगों की ज़िंदगी बदल सकता है। सच तो यह है कि अंगदान एक ऐसा मानवीय कार्य है, जिसमें किसी व्यक्ति के देहांत के बाद या जीवित रहते हुए (जैसे किडनी, लिवर का हिस्सा) दूसरे व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। पाठकों को बताता चलूं कि नेत्र (कॉर्निया), हृदय वाल्व, हड्डी, त्वचा आदि को प्राकृतिक मृत्यु के पश्चात् दान किया जा सकता है; तथा हृदय, यकृत, किडनी, फेफड़े, अग्न्याशय आदि केवल ब्रेन डेड के मामले में ही दान किए जा सकते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (एनओटीटीओ) भारत में अंगदान व प्रत्यारोपण की केंद्रीय संस्था है तथा इच्छुक व्यक्ति अंगदान कार्ड भरकर या ऑनलाइन पंजीकरण कर सकता है। मृत्यु के बाद परिजनों की अनुमति आवश्यक होती है, इसलिए परिवार को पहले से जानकारी देना जरूरी है।एनओटीटीओ के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 5 लाख लोग अंग विफलता के कारण मर जाते हैं, लेकिन अंगदान की दर अभी भी बहुत कम है; लगभग 0.86 प्रति मिलियन जनसंख्या। एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार एक दाता अपने जीवन से जाते-जाते 8 लोगों की जान बचा सकता है और लगभग 50 लोगों की ज़िंदगी बेहतर बना सकता है, यह तथ्य अभी भी अधिकांश लोग नहीं जानते। यहां पाठकों को बताता चलूं कि भारत में ब्रेन-डेथ की वैज्ञानिक व कानूनी मान्यता है, पर इसके बारे में जागरूकता कम होने से देश में संभावित दाताओं की संख्या बहुत घट जाती है। आज भारत ही नहीं दुनियाभर में बहुत से लोगों को अंग प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है और यदि हम यहां पर आंकड़ों की बात करें तो यूनाइटेड नेटवर्क फॉर ऑर्गन शेयरिंग (यूएनओ एस) के अनुसार, दुनिया भर में 1,03,993 से अधिक लोग अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल लाखों लोग अंग विफलता के कारण समय से पहले मर जाते हैं, जबकि अंगदान से उनकी जान बच सकती है। यह भी उल्लेखनीय है कि विश्व का पहला सफल अंग प्रत्यारोपण वर्ष 1954 में हुआ, जब रोनाल्ड ली हेरिक ने अपने जुड़वाँ भाई को किडनी दान की तथा अग्रणी शल्य-चिकित्सक डॉ. जोसेफ मरे को अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व कार्य के लिये वर्ष 1990 में फिज़ियोलॉजी या चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार मिला। हाल फिलहाल, अंगदान की खास बात यह है कि अंगदान में धर्म-जाति की कोई बाधा नहीं होती।दुनिया के लगभग सभी प्रमुख धर्म इसे मानव सेवा के रूप में स्वीकार करते हैं। इसके अलावा, दान किए गए अंग किस मरीज को मिलेंगे, यह पूरी तरह मेडिकल आवश्यकता और प्रतीक्षा सूची के मानकों पर तय होता है; इसमें न रिश्तेदारी का दबाव चलता है, न किसी तरह का भेदभाव। इन सभी तथ्यों से स्पष्ट है कि अंगदान सिर्फ एक चिकित्सा प्रक्रिया नहीं, बल्कि मानवता की सबसे बड़ी सेवा है, जिसे सही जानकारी मिलने पर और अधिक लोग अपनाने के लिए प्रेरित हो सकते हैं। बहरहाल, अच्छी बात यह है कि भारत में अंग प्रत्यारोपण से जुड़े नियम और प्रयास पिछले दो दशकों में काफी मजबूत हुए हैं।अंगदान को बढ़ावा देने के लिए सरकार, अस्पतालों और विभिन्न सामाजिक संस्थाओं एनजीओ आदि ने मिलकर इस दिन को विशेष अभियान के रूप में शुरू किया है। हमारी भारतीय संस्कृति में परोपकार केवल एक नैतिक गुण नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका माना गया है। यहाँ ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना सिखाती है कि समस्त संसार एक परिवार है और दूसरों की सहायता करना हमारे स्वभाव का हिस्सा होना चाहिए। कहना ग़लत नहीं होगा कि अंगदान एक तरह से सर्वोच्च परोपकार है, जिसमें मनुष्य अपने जाने के बाद भी किसी का जीवन बचा सकता है।यह निःस्वार्थ दान इंसानियत की सबसे उजली मिसाल बनकर दूसरों को नई उम्मीद देता है।अंगदान हमें सिखाता है कि सच्चा जीवन वही है, जो किसी और की सांसों में बसकर भी चलता रहे।दूसरों के लिए जीना, फिर चाहे वह किसी जरूरतमंद की मदद हो, किसी दुखी को सहारा देना हो, या समाज के लिए निस्वार्थ कार्य करना हो, सदा से भारतीय जीवन मूल्यों का केंद्र रहा है। उपनिषदों से लेकर महाकाव्यों तक, हर जगह दान, सेवा, करुणा और सहअस्तित्व को सर्वोच्च गुण बताया गया है। यही परोपकार की भावना समाज को जोड़ती है, मनुष्य को संवेदनशील बनाती है और बताती है कि सच्चा सुख तभी मिलता है जब हम अपने साथ-साथ दूसरों के लिए भी कुछ करते हैं।यह दिवस(अंगदान दिवस) समाज में यह संदेश देता है कि जीवन सिर्फ जिया ही नहीं जाता, दूसरों के लिए भी छोड़ा जा सकता है। आज भले ही हम वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं लेकिन आज भी जरूरत इस बात की है कि हम लोगों में अंगदान के प्रति जागरूकता और सकारात्मक सोच को बढ़ाएं, उनमें व्याप्त मिथकों, डर और गलत धारणाओं को दूर करें। अंगदान पंजीकरण को सरल और लोकप्रिय बनाने की दिशा में काम करें। आज जरूरत इस बात की भी है कि हम अस्पतालों और विभिन्न चिकित्सा संस्थानों में अंगदान प्रक्रिया को मजबूत करें। सबसे बड़ी बात तो यह है कि हम हमारे युवाओं और विभिन्न समुदायों को मानव सेवा के इस अभियान से जोड़ें। बहरहाल, हर साल इस दिवस के लिए एक थीम या विषय निर्धारित किया जाता है।इसी क्रम में राष्ट्रीय अंगदान दिवस 2024 में ‘अंगदान जन-जागरूकता अभियान’ थीम के साथ मनाया गया। इस थीम का उद्देश्य लोगों के बीच अंगदान के प्रति जागरूकता पैदा करना था, ताकि अंग दान, मस्तिष्क-मृत्यु, ऊतक दान आदि से जुड़ी भ्रांतियाँ दूर हों और अधिक लोग जीवन दान के लिए आगे आएँ। इस पहल द्वारा समाज में यह संदेश देने की कोशिश की गई कि अंगदान केवल किसी की मौत नहीं, बल्कि दूसरों के लिए नई जिंदगी देने का अवसर है।वहीं 2025 में यह दिवस ‘अंगदान: एक जीवन संजीवनी अभियान’ थीम के अंतर्गत आया है। इस थीम के माध्यम से सरकार और स्वास्थ्य संगठन इस नेक काम को और व्यवस्थित, व्यापक और देशव्यापी स्तर पर बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहे हैं। इसका उद्देश्य है-अंग दान को सामान्य, स्वीकार्य और सामुदायिक मूल्य बनाना, ताकि जितने लोग अंग-दान के लिए तत्पर हों, वे आगे आएँ और जिनको अंग की ज़रूरत हो, उन्हें जीवनदान मिल सके। बहरहाल, भारत में कानूनी पहलू की बात करें तो भारत में ट्रांसप्लांटेशन आफ ह्यूमन आर्गन्स एंड टिश्यूज़ एक्ट-1994(टीएच ओटीए) के तहत अंगदान व प्रत्यारोपण को विनियमित किया जाता है। यह कानून अवैध अंग व्यापार को रोकता है और केवल कानूनी, स्वैच्छिक दान को मान्यता देता है। यह भी उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत आता है तथा इसका राष्ट्रीय नेटवर्क प्रभाग देश में अंगों एवं ऊतकों के दान और प्रत्यारोपण के लिये खरीद, वितरण और पंजीकरण हेतु अखिल भारतीय गतिविधियों के शीर्ष केंद्र के रूप में कार्य करता है।अंत में यही कहूंगा कि आज हमारे देश में अंग-दान को लेकर अनेक चुनौतियाँ विद्यमान हैं। मसलन,अभी भी बहुत से लोग अंगदान को लेकर डर और भ्रम में रहते हैं। हमारे यहां आज भी अंगदान को लेकर धार्मिक और सामाजिक गलतफहमियाँ हैं। हमारे यहां आज भी पर्याप्त अस्पताल व आइसीयू सुविधाओं की कमी है, जहाँ ‘ब्रेन डेथ’ प्रमाणित की जा सके। इतना ही नहीं, हमारे यहां परिवार का भावनात्मक दबाव भी होता है, जिसके कारण परिजनों द्वारा अंगदान की अनुमति नहीं दी जाती है।ग्रामीण क्षेत्रों में जानकारी का भी अभाव है। हमारे यहां अंगों के परिवहन और संरक्षित करने की तकनीकी चुनौतियाँ भी हैं। हमें इन चुनौतियों से पार पानी होगी,तभी वास्तव में मानवता के लिए कुछ हो सकता है।निष्कर्षत: हम यह बात कही सकते हैं कि राष्ट्रीय अंगदान दिवस हमें यह याद दिलाता है कि अंगदान एक महान सेवा है, जो मृत्यु के बाद भी जीवन दे सकती है। जागरूकता बढ़ाकर, प्रक्रियाओं में सुधार कर और सामाजिक धारणाएँ बदलकर हम लाखों लोगों को जीवनदान दे सकते हैं।