अजमेर की विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर देश विदेश में मचा बबाल !!

There is a ruckus in the country and abroad regarding the world famous Dargah of Khwaja Moinuddin Chishti of Ajmer!!

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

अजमेर की विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर बीते दिनों से पूरी देश की सियासत में बवाल मचा हुआ है। अयोध्या की बाबरी मस्जिद और ज्ञान वापी आदि मामले के बाद उठे इस मामले की सड़क से संसद तक ही नहीं पूरे विश्व में चर्चा हो रही हैं।

इस विवाद की शुरुआत अजमेर के एक सिविल कोर्ट में दायर याचिका से हुई हैं। इसमें हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने बीते 25 सितंबर 2024 को दरगाह के अंदर एक शिव मंदिर होने का दावा किया। इसको लेकर उन्होंने ‘अजमेर- हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव‘ किताब के तर्कों का हवाला दिया है। इसमें अजमेर दरगाह के नीचे हिंदू मंदिर का जिक्र किया गया है। इस याचिका को कोर्ट ने 27 नवंबर को मंजूर कर लिया है। सिविल जज मनमोहन चंदेल ने अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को नोटिस जारी कर 20 दिसंबर तक इस पर अपना जवाब मांगा हैं। अब इस मामले में कोर्ट में सुनवाई होगी। वहीं, दूसरी ओर यह एक सियासी मुद्दा भी बन गया है। लगातार इसके पक्ष और विपक्ष में आम आदमी से लेकर राजनीतिक शख्सियतों के बयान सामने आ रहे हैं। भाजपा और विश्व हिंदू परिषद का कहना है कि इस मामले में सभी को धैर्य रखना चाहिए। जांच के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। प्रतिपक्ष के नेता इस संवेदनशील मामले को देश की सांप्रदायिक एकता और यमुना गंगा तहजीब के खिलाफ बता रहे हैं।

इस कड़ी में राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने अपने बयान में कहा कि अजमेर दरगाह के मामले में न्यायालय ही निर्णय करेगा, लेकिन यह भी सच है कि देश में अनेक मंदिरों को तोड़कर औरंगजेब और बाबर सहित अन्य मुगल आक्रांताओं ने मस्जिद बनाई थी। अब अजमेर दरगाह के पूरे मामले की जांच होगी। ऐसे में अगर न्यायालय आदेश देता है तो फिर इसकी खुदाई की जाए और वहां जो अवशेष मिलेंगे, उससे निर्णय हो जाएगा।

इधर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी उन्हीं की भाषा में अपनी प्रतिक्रिया दी है। गहलोत ने कहा जब देश आजाद हुआ था तब यह तय हुआ था कि जो धार्मिक स्थान जिस स्थिति में है। वे उसी स्थिति में रहेंगे। इस संबंध में कानून भी बना हुआ है। अजमेर दरगाह करीब 800 साल पुरानी है। इस पर सवाल उठाना गलत है। इस धार्मिक केंद्र को न्यायालय में नहीं ले जाना चाहिए था। गहलोत ने कहा कि अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है जहां दुनियाभर के मुस्लिम चादर चढाने आते हैं। यहां हिंदू भी आते हैं और चादर पेश करते हैं। गहलोत ने कहा कि देश में अब तक जो भी प्रधानमंत्री बने, चाहे वे किसी भी दल का हों, उन सबने अजमेर दरगाह पर चादर चढाई है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी तक तमाम प्रधानमंत्रियों की तरफ से दरगाह में चादर चढ़ती रही है। इसके बावजूद भी बीजेपी के लोग कोर्ट में केस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि लोगों में भ्रम पैदा किया जा रहा है जो कि गलत है। गहलोत ने कहा कि बीजेपी के लोग देश की जनता का ध्यान मूल मुद्दों से भटकाना चाहते हैं। देश के विकास के लिए मूल मुद्दे क्या हैं, यह ज्यादा महत्व रखता है। महंगाई और बेरोजगारी तथा विकास के मुद्दे हैं जिन पर कोई बात करने को तैयार नहीं है।

पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती का कहना है,एक निर्णय दिया गया था कि किसी भी स्थान का सर्वेक्षण किया जा सकता है जो संदिग्ध है। सुप्रीम कोर्ट के 1991 के फैसले में कहा गया है कि धार्मिक स्थल की स्थिति क्या है 1947 की तरह इसे बदला नहीं जा सकता, दुर्भाग्य से पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने एक ऐसा फैसला सुनाया जिससे देश में सभी ओर ऐसी मांगे उठना बढ़ गया है।

सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस मामले पर अपना आक्रोश से भरा बयान दिया कि बीजेपी और आरएसएस वाले मस्जिदों और दरगाहों के प्रति नफरत फैला रहे हैं। यह देशहित में नहीं है। असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि दरगाह पिछले 800 सालों से यहीं है। सभी प्रधानमंत्री दरगाह पर चादर भेजते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी वहां चादर भेजते हैं, फिर निचली अदालतें प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुनवाई क्यों नहीं कर रही हैं? इस तरह कानून का शासन और लोकतंत्र कहां जाएगा? पीएम मोदी और आरएसएस का शासन देश में कानून के शासन को कमजोर कर रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सब बीजेपी-आरएसएस के निर्देश पर ही किया जा रहा है।

अजमेर शरीफ दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका को कोर्ट द्वारा स्वीकार करने के बाद पहली बार अजमेर दरगाह दीवान ने अपना पक्ष रखा है। शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दीवान ने कहा कि इस मामले पर वे काेर्ट में कानूनी तरीके से जवाब देंगे। दरगाह दीवान ने कहा कि अजमेर दरगाह को लेकर विवाद किया जा रहा है। जिस किताब को आधार बनाया गया है उसमें यह साफ-साफ लिखा है कि ऐसा कहा जाता है, ऐसा सुना जाता है। बाकी जो भी वादी को कहना है, वह कोर्ट में कह चुका है। हम कोर्ट में कानूनी तौर पर इसका जवाब देंगे। हमारे पास अधिवक्ताओं का पैनल भी है। उन्होंने कहा कि संभल मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया है उसको लेकर कोर्ट को धन्यवाद देता हूं। मैं लोगों से अपील करता हूं कि हम शांति बनाए रखें और अपनी तरफ से ऐसा कुछ न करें जिससे विवाद पैदा हो। हमारे पास कानूनी अधिकार हैं, हमें कोर्ट जाना चाहिए और कोर्ट ने भी आज हमारी बात मान ली है।

इससे पहले, दीवान जैनुअल आबेदीन के पुत्र सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने भी एक बयान जारी किया। उन्होंने कहा कि दरगाह का इतिहास 800 साल पुराना है। सदियों पूर्व राजा-महाराजा, मुगल बादशाह आदि यहां आते रहे हैं। यह देश के साथ दुनिया को सौहार्द का संदेश देने वाला पवित्र स्थान है। अब इसमें शिव मंदिर होने को लेकर याचिका दायर की गई है। देश की प्रत्येक मस्जिद में मंदिर होने को लेकर लगातार दावे किए जा रहे हैं। केंद्र सरकार को ऐसे दावे करने वाले कतिपय व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।

अजमेर दरगाह के मामले में कोर्ट में याचिका दायर करने वाले विष्णु गुप्ता हिंदुओं से जुड़े मामलों पर अपनी टिप्पणियों को लेकर पर पहले भी चर्चा में रहे हैं। विष्णु गुप्ता ने 2011 में हिंदू सेना की स्थापना की थी। यह संगठन हिंदुत्व के मुद्दे उठाने के लिए चर्चाओं में रहता आया है।बीते दिनों उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर मुसलमानों से अल्पसंख्यकों का दर्जा वापस लेने एवं 2022 में पीएफआई संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी की थी।

विष्णु गुप्ता की ओर से कोर्ट में पेश याचिका में उन्होंने 168 पेज की ‘अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव‘ किताब के पेज नं. 93, 94, 96 और 97 का हवाला दिया गया हैं। उन्होंने कहा कि जब मैंने हरबिलास शारदा की किताब को पढ़ा, तो उसमें साफ-साफ लिखा था कि यहां पहले ब्राह्मण दंपती रहते थे। यह दंपती सुबह चंदन से महादेव का तिलक करते थे और जलाभिषेक करते थे। याचिका में पहला तर्क है कि दरगाह में मौजूद बुलंद दरवाजा की बनावट हिंदू मंदिर के दरवाजों की तरह है, इनकी नक्काशी को देखकर यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि दरगाह से पहले यहां हिंदू मंदिर रहा होगा। दूसरे तर्क में कहा गया है कि दरगाह के ऊपरी हिस्से को देखे,तो वहां हिंदू मंदिरों के अवशेष जैसी चीजें दिखती हैं। इनके गुंबदों को देखकर आसानी से समझा जा सकता है कि किसी हिंदू मंदिर को तोड़कर यहां दरगाह का निर्माण करवाया गया। विष्णु गुप्ता का तीसरा तर्क यह है कि देश में जहां भी शिव मंदिर हैं, वहां पानी और झरने जरूर होते हैं। ऐसा ही अजमेर दरगाह में भी है।

विष्णु गुप्ता ने दरगाह में मंदिर होने के अपने दावे के पीछे तीन आधार बताए हैं। वो अपने दावे के पहले आधार के बारे में कहते हैं कि अंग्रेजी शासनकाल में अजमेर नगर पालिका के कमिश्नर रहे हरबिलास सारदा ने 1911 में लिखी अपनी किताब में दरगाह के मंदिर पर बने होने का ज़िक्र किया है. हमने उनकी किताब को आधार बनाया है। दूसरे दावे के आधार के बारे में उन्होंने कहा, कि हमने अपने स्तर पर शोध किया और किताब की जानकारी के आधार पर दरगाह में जाकर देखा है। दरगाह की संरचना हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाई गई है।दरगाह की दीवारों और दरवाजों पर बनी नक्काशी हिंदू मंदिरों की याद दिलाती है।अपने दावे के तीसरे आधार के बारे में उन्होंने कहा कि अजमेर का हर एक शख़्स यह जानता है और उनके पूर्वज भी बताते रहे हैं कि वहां शिवलिंग होता था। लोगों का कहना है कि यहां हिंदू मंदिर हुआ करता था।

विष्णु गुप्ता कहते हैं कि दरगाह में असल में संकट मोचन महादेव मंदिर था और हमने मांग की है कि दरगाह का यदि कोई रजिस्ट्रेशन है तो उसे रद्द करते हुए इसे संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित किया जाए और हमें वहां पूजा-पाठ करने का अधिकार दिया जाए। विष्णु गुप्ता ने दावा किया है कि दरगाह में बने तहखाने को बंद किया हुआ है। सर्वे होगा तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी।

उल्लेखनीय है कि राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित विश्वप्रसिद्ध ख्वाजा साहिब की दरगाह में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा करते हुए हिंदू पक्ष ने अजमेर सिविल न्यायालय पश्चिम में याचिका दायर की। इस याचिका को कोर्ट ने विगत 27 नवंबर को स्वीकार किया और इससे संबंधित अल्प संख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी अजमेर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) को नोटिस देकर अपना पक्ष रखने को कहा है। इस मामले में कोर्ट 20 दिसंबर को अगली सुनवाई करेगी।

देखना है इस संवेदनशील मामले में कानूनी स्तर पर आगे और क्या क्या होता है?