देशभक्ति की प्यास है इस मिट्टी में

There is a thirst for patriotism in this soil

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

“लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी।”

भारत की पावन भूमि पर स्वतंत्रता दिवस का पर्व एक दिव्य उत्सव की भांति प्रतिवर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है। यह दिन, एक ऐसा दिन है जब समूचे भारतवर्ष के वीर सेनानियों के संघर्ष, उनके अद्वितीय बलिदान और असीमित धैर्य को श्रद्धांजलि दी जाती है। यह दिन केवल एक राष्ट्रीय अवकाश नहीं, अपितु एक राष्ट्रीय संकल्प है, जो हमें हमारी स्वतंत्रता के मूल्यों और उस संघर्ष की महत्ता का स्मरण कराता है, जो अनगिनत वीर सपूतों ने इस भूमि को स्वतंत्र कराने हेतु लड़ा था।

स्वतंत्रता संग्राम: वीरों की गाथा

भारत की स्वतंत्रता का संग्राम विश्व इतिहास का एक अभूतपूर्व उदाहरण है, जहाँ विभिन्न जातियों, धर्मों, और संस्कृतियों के लोग एकत्रित होकर एक साझा उद्देश्य के लिए लड़े। 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, जिसे सिपाही विद्रोह भी कहा जाता है, वह प्रथम चिंगारी थी जिसने भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की नींव रखी। इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जनाक्रोश को स्पष्ट रूप से प्रकट किया और यह सिद्ध किया कि भारतीय जनता की सहनशीलता की सीमा समाप्त हो चुकी है।

मगर, यह केवल शुरुआत थी। इसके बाद महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च, भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलनों ने ब्रिटिश सत्ता की नींव हिला दी। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस जैसे वीर सेनानियों की कुर्बानी ने स्वतंत्रता के संग्राम को बल प्रदान किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य स्वतंत्रता सेनानी संगठनों ने अंग्रेजों के खिलाफ अनेक प्रयास किए, जिनमें सत्याग्रह, धरना-प्रदर्शन, और सविनय अवज्ञा जैसे अहिंसात्मक आंदोलन प्रमुख थे।

15 अगस्त 1947 को, भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त की। यह दिन न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता का प्रतीक बना, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, समाज और सभ्यता की विजय का भी प्रतीक था।
आज हिंदुस्तान तो –

“गूंज रहा है दुनिया में हिंदुस्तान का नारा
चमक रहा है आसमान में तिरंगा हमारा।”

आजादी के बाद भारत की स्थितियाँ

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात, भारत को एक नए युग की ओर बढ़ने का अवसर मिला, लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं थीं। विभाजन की त्रासदी से उत्पन्न सामाजिक, धार्मिक, और आर्थिक समस्याओं ने नए भारत को बुरी तरह से प्रभावित किया। लाखों लोग अपने घरों से बेघर हुए, विभाजन के कारण देश में सांप्रदायिक दंगे भड़के, और हजारों निर्दोष लोग अपनी जान गंवा बैठे।

विभाजन के उपरांत, भारत ने नए सिरे से खुद को संगठित किया। संविधान निर्माण के लिए एक संविधान सभा का गठन किया गया, जिसके नेतृत्व में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने एक ऐसा संविधान तैयार किया, जिसने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित किया। 26 जनवरी 1950 को भारत ने अपने संविधान को अंगीकार कर, गणतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान स्थापित की।

पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत ने आधुनिकता की ओर कदम बढ़ाया। औद्योगिकीकरण, कृषि सुधार, पंचवर्षीय योजनाओं, और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में निवेश के माध्यम से राष्ट्र ने अपनी आर्थिक और सामाजिक प्रगति को सुनिश्चित किया। भारत ने अपनी विदेश नीति को भी तटस्थता और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित रखा, जिसमें गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रमुख भूमिका रही।

वर्तमान भारत में स्वतंत्रता की चुनौतियाँ

आज, स्वतंत्रता के 75 से अधिक वर्षों के पश्चात, भारत एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। आर्थिक प्रगति, वैज्ञानिक अनुसंधान, और सैन्य क्षमता में वृद्धि के बावजूद, वर्तमान भारत में स्वतंत्रता की कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

सबसे प्रमुख चुनौती भारत की सांप्रदायिक एकता को बनाए रखने की है। जातीयता, धर्म, और भाषाई विविधता भारत की शक्ति भी है और कभी-कभी संकट का कारण भी बनती है। कुछ स्थानों पर बढ़ती असहिष्णुता, सांप्रदायिक तनाव, और धार्मिक कट्टरता ने देश की एकता को खतरे में डाल दिया है। यह चुनौती हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम के उस मूल सिद्धांत के विपरीत है, जहाँ विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग एकजुट होकर लड़े थे। जरूरत है-

“क्यों करते हो दंगों और धमाको की ये जिद्द,
खण्डित नहीं होगा ,अखण्ड है ये हमारा हिन्द !!”

दूसरी महत्वपूर्ण चुनौती आर्थिक विषमता की है। यद्यपि भारत ने पिछले कुछ दशकों में तेजी से आर्थिक विकास किया है, लेकिन गरीबी, बेरोजगारी, और असमानता की समस्याएँ अब भी विद्यमान हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जीवन स्तर की विशाल असमानता, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता में भिन्नता, और महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार की आवश्यकता हमें स्वतंत्रता के सच्चे अर्थ की ओर उन्मुख करती है।

तीसरी चुनौती अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ी है। एक लोकतांत्रिक देश में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता, और विचारों की स्वतंत्रता का अत्यधिक महत्व है। हाल के वर्षों में, कई लोग इन स्वतंत्रताओं पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण चिंता व्यक्त कर रहे हैं। सरकार और जनता के बीच संवाद का महत्व, लोकतंत्र की मजबूती के लिए अनिवार्य है। यदि इस संवाद में बाधा उत्पन्न होती है, तो यह स्वतंत्रता की भावना के विरुद्ध होगा।

चौथी चुनौती सुरक्षा से संबंधित है। आतंकवाद, सीमा विवाद, और साइबर हमले, जैसे नए युग की चुनौतियाँ, देश की संप्रभुता और स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरे हैं। यह आवश्यक है कि भारत अपने सुरक्षा तंत्र को और अधिक सशक्त बनाए और वैश्विक समुदाय के साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ सशक्त कदम उठाए।

भारत का स्वतंत्रता दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि हमारी स्वतंत्रता की रक्षा और उसे बनाए रखने के लिए हमें सतत सतर्क रहना होगा। स्वतंत्रता केवल एक अधिकार नहीं है, बल्कि यह एक जिम्मेदारी भी है। स्वतंत्रता के मूल्यों की रक्षा के लिए हमें उन वीर सेनानियों के बलिदान को स्मरण करना होगा, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी। आज, जब हम 21वीं सदी के भारत की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, तब हमें अपने पूर्वजों के संघर्ष और उनके आदर्शों से प्रेरणा लेते हुए एक समृद्ध, सुरक्षित, और सशक्त भारत के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध रहना चाहिए। भारत की मिट्टी की खुशबू को बचाए रखना हम सब भारत वासी का ही फ़र्ज़ है-

“कुछ तो खास है इस मिट्टी में,
एक अलग ही एहसास है इस मिट्टी में,
यूं ही हंसते हुए मौत के मुंह नहीं जाते,
देशभक्ति की प्यास है इस मिट्टी में।”

इस स्वतंत्रता दिवस पर, हम सभी को अपने भीतर की स्वतंत्रता की भावना को पुनर्जीवित करते हुए, देश की एकता, अखंडता, और समृद्धि के लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए। यह दिन केवल उत्सव का नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और पुनःसंकल्प का भी दिन है, ताकि भारतवर्ष अपने सुनहरे भविष्य की ओर निरंतर अग्रसर होता रहे। अगर हर भारतीयों ने अपना फ़र्ज़ निभाया तो एक दिन-

“वतन के जाँ-निसार हैं वतन के काम आएँगे
हम इस ज़मीं को एक रोज़ आसमाँ बनाएँगे।”