गोपेन्द्र नाथ भट्ट
रेगिस्तान प्रधान और क्षेत्रफल की दृष्टि से देश के सबसे बड़े प्रदेश राजस्थान के लिये जीवनदायनी मानी जाने वाली इंदिरा गांधी नहर परियोजना की मुख्य नहर से इस बार राजस्थान को कम पानी मिलने की खबर से प्रदेश के किसानों के चेहरों पर मायूसी आ गई है।
इस बार इन्द्र देवता की राजस्थान पर बहुत कृपा रही और प्रदेश में मानसून की भरपूर वर्षा हुई तथा राज्य के अधिकांश बाँध लबालब भर गए । इससे प्रदेश के बाशिन्दों को इस बार गर्मियों में भी पेयजल की कमी नहीं होने की उम्मीद बँधी हैं, लेकिन कमजोर बारिश से उत्तर भारत के ऊपरी हिस्से विशेष कर राजस्थान नहर को जलापूर्ति करने वाले पौंग डेम में पानी की आवक कम हुई है। ऐसे में अब राजस्थान के किसानों को सिंचाई के लिए पानी की चिंता सताने लगी हैं।
खबर है कि पौंग डेम राज्य के सात जिलों को सिंचाई का पानी कम मिलेगा। इसका कारण इस बार सिंचाई के लिए पानी की बारी कम कर दी गई है। प्रदेश के जल संसाधन विभाग ने अभी मात्र चार बारियां देना ही तय किया है,जबकि पिछले साल सिंचाई के लिए पानी की सात बारी मिली थी। पानी की उपलब्धता से पानी की बारी तय होती रही है। गत 21 सितंबर को पौंग बाँध का जलस्तर 1364. 84 फीट था,जबकि पिछले साल इसी दिन जलस्तर 1389.00 फीट था। यानी पिछलें साल के मुकाबले यह 24.16 फीट कम है। हालांकि जल संसाधन विभाग ने स्पष्ट किया है कि इस कमी का असर केवल सिंचाई पर पड़ेगा और पेयजल आपूर्ति पर कोई कटौती नहीं होंगी। इस प्रकार जोधपुर सहित प्रदेश के 13 जिलों की पेयजल आपूर्ति में कोई कमी नहीं होगी।
इस परिस्थिति में प्रदेश में गैहूं की फसल प्रभावित होगी। विशेष कर गंगानगर और हनुमान गढ़ जिलों में इसका असर रहेगा। किसानों को कम पानी से होने वाली फसलें चना और सरसों बोने की सलाह कम दी गई है। इस प्रकार सात जिलों में किसानों का चना और सरसों की फसल पर जोर रहेगा और पानी की कमी के चलते इस बार गेहूं की बुवाई पर असर पड़ेगा। हालांकि नवंबर और जनवरी में पानी की स्थिति का पुनर्मूल्यांकन किया जायेगा और यदि पौंग बाँध में हिमालय से आने वाले जल का स्तर बढ़ेगा तो सिंचाई के लिए बारी का रिव्यू किया जाएगा और दिसंबर में पौंग में पानी की स्थिति के अनुसार पानी की बारी बढ़ाई जा सकती हैं। जल संसाधन विभाग की माने तो 5 फरवरी तक किसानों को चार बारियाँ में ही सिंचाई का पानी मिलना प्रस्तावित हैं।
इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना को राजस्थान की जीवन रेखा माना जाता हैं । इसे राजस्थान की मरूगंगा भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे बङी सिंचाई परियोजना है । इस महत्वपूर्ण नहर परियोजना का पुराना नाम राजस्थान नहर था। यह राजस्थान के उत्तर-पश्चिम भाग में बहती है और इसकी मुख्य नहर की चौड़ाई किसी बड़ी नदी के समदृश्य हैं।
इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना में राजस्थान के हिस्से का पूरा पानी नहीं मिलने का विवाद प्रारम्भ से ही चल रहा है। अन्तर्राज्यीय समझौते के अनुसार राजस्थान को रावी व्यास नदियों के पानी ने से अपने हक का 0.60 एमएफए पानी आदिनांक तक नहीं मिला हैं। पंजाब की सरकार ने विधानसभा में संकल्प पारित कर एक इंच पानी और किसी प्रदेश को नहीं देने का निर्णय लिया था । राजस्थान सरकार इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक ले गई है तथा केन्द्र सरकार से गुहार लगा अपने हक़ का पानी दिलाने का बार बार आग्रह कर चुकी है। इसी प्रकार राजस्थान सरकार भाखडा व्यास मेनेजेनेंट बोर्ड के प्रबन्धन में राजस्थान को उचित प्रतिनिधित्त्व देने और बीबीएमसी में प्रदेश के स्थाई प्रतिनिधि की और सचिव नियुक्त करने की माँग भी करती आ रही है लेकिन यह माँग अभी तक पूरी नहीं हुई है।
इस प्रकार इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना में पानी छोड़ने और रोकने की चाबी पूरी तरह से पंजाब के हाथ में है तथा पंजाब और हरियाणा के मध्य भी विवाद का खामियाज़ा राजस्थान को ही भोगना पड़ रहा है। इसके अलावा इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना में पंजाब से दूषित पानी आने का मुद्दा भी काफ़ी गंभीर है जिसके चलते खेती की जमीन ख़राब होने के साथ ही जन स्वास्थ्य और पशुओं की सेहत पर भी पड़ रहा है।
राजस्थान के मुख्यमन्त्री भजन लाल शर्मा पानी की कमी वाले प्रदेश राजस्थान में पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना ई आर सी पी और हरियाणा से यमुना जल को राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में लाने के लिए गंभीर प्रयास कर रहें हैं लेकिन उनके यह प्रयास तभी सार्थक होंगे जब राजस्थान के नदी जल विवादों के साथ जल विद्युत समझौते पूरी तरह ज़मीनी हकीकत बने। देखना है केंद्र और राज्य की डबल इंजन सरकार वर्तमान अनुकूल परिस्थितियों में राजस्थान की सूखी धरती की प्यास किस प्रकार बुझाने में सफलता हासिल करती हैं?