मध्यप्रदेश में जातीय राजनीति का कोई स्थान नहीं

There is no place for caste politics in Madhya Pradesh

दिलीप कुमार पाठक

देश के प्रत्येक राज्यों की अपनी राजनीति है कहीं मराठी अस्मिता, तो कहीं बिहारी अस्मिता, तो कहीं तमिल अस्मिता तो कहीं भाषायी अस्मिता तो कहीं क्षेत्रवाद हावी है l देश में बुनियादी मुद्दों पर वोटिंग बहुत कम ही होती है l जनता खेमों में उलझी हुई है, अगर देश के राज्यों में देखें तो सभी के अपने – अपने मुद्दे हैं, कोई किसी विवाद में उलझा हुआ है तो कोई किसी मुद्दे पर वहीँ देश के विभिन्न राज्यों का राजनीतिक अध्ययन करें तो पता चलता है कि सभी राज्यों में जातिगत आधार पर राजनीति होती है, जातीय समीकरण तहत राजनीति होती है भले ही राज्य का बंटाधार हो जाए l भारत गणराज्य के विभिन्न राज्यों में एक ऐसा भी राज्य है जिसे हिन्दुस्तान का हृदय कहते हैं, जो किसी भी तरह की जातिगत राजनीति को खारिज कर देता है l एमपी में जातीय राजनीति के लिए कोई स्थान नहीं है l

पिछले दो दशको से अधिक एमपी की कमान संभालने वाले नेता शिवराज सिंह चौहान ओबीसी वर्ग से आते हैं, परंतु पूरे राज्य में कुछ राजनीतिक लोगों एवं पत्रकारों के अलावा राज्य में किसी को पता ही नहीं है कि शिवराज सिंह चौहान ओबीसी वर्ग से आते हैं, आज भी एमपी में नेताओ का सर्वे किया जाए तो एमपी के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में शुमार हैं l ओबीसी, स्वर्ण, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक किसी भी वर्ग में आज भी शिवराज सिंह चौहान को एमपी का सबसे लोकप्रिय नेता माना जाता है लेकिन शिवराज सिंह चौहान की राजनीतिक सफ़लता एवं उनका काम करने का ढंग प्रदेश को जातीय राजनीतिक दलदल से बचाए हुए था, परंतु अब एमपी की सरकार अपनी महत्वाकांक्षा के कारण एमपी को जातीय दलदल में उलझाना चाहती है l

विडंबना कहें या एमपी का दुर्भाग्य कि एक ओर हम जातीय अभिशाप से बाहर निकलने के लिए हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं वहीं दूसरी ओर सत्ता के लालच में एक ही झटके में दशकों पीछे धकेलने के कुत्सित प्रयास हो रहे हैं। जातिप्रथा समाप्त करने की दिशा में समाज ने पिछले 75 वर्षों में लंबी और संघर्षपूर्ण यात्रा की है। कुर्सी की चाह में डूबे दल और नेताओं को यह भान होना चाहिए कि जिस जाति की आग को भड़काकर वह राजनीति की रोटियां सेकना चाहते हैं उसे शांत करने में समाज के हर वर्ग और धर्म के समाज सुधारकों ने बड़ा त्याग किया है। कितना दुखद है जो जाति समस्या इतिहास की बात हो जानी चाहिए थी वह हर चुनाव में पहले से अधिक विकराल रूप में दिखाई देने लगी है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि जातियों के आधार पर चुनाव जीतना सबसे आसान है,और मुश्किल चुनाव कोई लड़ेगा इतनी शुचिता वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में कहां देखने को मिलेगी।

एमपी में अचानक से ओबीसी को न्याय दिलाने के नाम पर आरक्षण को लागू करने के लिए एमपी में अलग ही बहस छिड़ गई है, क्या शिवराज सिंह चौहान ओबीसी नहीं हैं? क्या एमपी में एक ओबीसी नेता लगभग दो दशको तक राज्य का सीएम नहीं रहा? तो फ़िर एमपी में ओबीसी के नाम पर आरक्षण की राजनीति क्यों खेली जा रही है l यूपी बिहार जैसे राज्य आज भी जातीय दलदल में फंसे हुए हैं, उनका विकास देखा जा सकता है, देश के सबसे गरीब राज्यों में आते हैं l जब शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की कमान संभाली थी, तब प्रदेश को बीमारू राज्य कहा जाता था, परंतु आज एमपी एक विकासशील राज्यों की फेहरिस्त में आता है, चूंकि शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की राजनीति की l उनकी यही अदा मध्यप्रदेश का सबसे लोकप्रिय नेता बनाती है l

कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 13% से 27% बढ़ाया था, कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक हो जाने के कारण मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। आरक्षण लागू होता या नहीं विषय ये नहीं है, परंतु मुद्दा ये है कि एमपी को अपनी महत्वाकांक्षा की प्रयोगशाला क्यों बनाया जा रहा है l सवाल आरक्षण का नहीं है बल्कि सोच का है! क्या सरकारें आरक्षण की राजनीतिक कुचक्र में लोगों को उलझाकर अपना वोट बैंक बनाना चाहती हैं? यूपी बिहार जैसे राज्य पहले ही जातीय दलदल में उलझे हुए हैं, तो क्या एमपी को भी जातीय दलदल में फंसाने का राजनीतिक कुचक्र चल रहा है? क्या ऐसी नीतियां नहीं बनाई जा सकतीं कि सभी को समान अधिकार मिलें, आरक्षण बढ़ जाए, परंतु आर्थिक आधार पर मिलना चाहिए जिससे जरूरतमंद लोगों की मदद हो सके l परंतु कुछ समय से एमपी को जातीय राजनीतिक दलदल में फंसाने का जो कुचक्र चल रहा है वो लोगों को बांट सकता है, परंतु एमपी में जातीय समीकरण वाली राजनीति चलेगी नहीं l चूंकि एमपी में न कोई क्षेत्रीय अस्मिता की लड़ाई है है, और न ही कोई भाषायी अस्मिता की लड़ाई है, एमपी ने कई बार साबित किया है, भले ही एमपी देश के सबसे विकसित राज्यों में नहीं है परंतु एक न एक दिन देश के टॉप राज्यों की फेहरिस्त में होगा, क्योंकि एमपी की जनता को जातीय राजनीति पसंद नहीं है l मध्यप्रदेश सभी राज्यों से हटकर ज़रूरी मुद्दों पर वोट करता रहा है, और करता रहेगा l एमपी के लोगों में राजनीतिक चेतना का आभाव नहीं है जो जातीय राजनीति में उलझ जाएंगे l अगर नेता विकास की राजनीति करेंगे तो चाहे जिस भी जाति का हो एमपी की जनता उसे सिर आँखों पर बिठाती है l और एमपी में जातिगत आधार पर जिसने राजनीति करने की कोशिश की एमपी की जनता उसे खारिज कर देती है l